Author : Ramanath Jha

Published on Dec 09, 2020 Updated 0 Hours ago

BRTS वाले शहर अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की अधिकता से जूझ रहे हैं- सामान्य बस सेवा, BRTS और मेट्रो.

क्या भारतीय शहरों ने बस रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम को अलविदा कह दिया है?

जैसा कि ज़्यादातर शहरी चीज़ों में होता है, उसी तरह शहरी परिवहन में भी देश पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ज़रूरत को लेकर लंबी नींद के बाद जागा. ये नींद तब टूटी जब प्राइवेट गाड़ियों की अधिकता की वजह से शहरों की सड़कों का दम घुटने लगा, नतीजतन शहरों में सड़कों पर लंबा जाम लगने लगा. भारत सरकार 2006 में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (NUTP) लेकर आई जिसमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ज़ोर दिया गया और 10 लाख से ज़्यादा आबादी वाले शहरों के लिए यूनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का गठन किया गया. भारत सरकार ने जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (JnNURM) की भी शुरुआत की जो शहरी स्थानीय निकायों के लिए एक सुधार आधारित केंद्रीय वित्तीय सहायता की पहल है.

दिल्ली में फ़ैसला लेने वाले BRTS से प्रभावित हुए और उन्होंने कुछ भारतीय शहरों में इस सिस्टम को शुरू करने का फ़ैसला लिया. 4,770.86 करोड़ रुपये की कुल लागत से नौ शहरों में 422 किमी की BRTS प्रोजेक्ट को मंज़ूर किया गया.

क्या BRTS मॉडल फ़ायदेमंद साबित हो सकता है?

बस रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम (BRTS) को JnNURM से जोड़ा गया. ये कोई देश में विकसित सिस्टम नहीं है. इस सिस्टम की नक़ल प्राथमिक रूप से लैटिन अमेरिकी शहरों से की गई थी ख़ास तौर पर ब्राज़ील के शहर क्यूरिटिबा से जहां BRTS कम दाम पर तेज़ रफ़्तार पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्विस मुहैया कराने में कामयाब रही. दिल्ली में फ़ैसला लेने वाले BRTS से प्रभावित हुए और उन्होंने कुछ भारतीय शहरों में इस सिस्टम को शुरू करने का फ़ैसला लिया. 4,770.86 करोड़ रुपये की कुल लागत से नौ शहरों में 422 किमी की BRTS प्रोजेक्ट को मंज़ूर किया गया. ये शहर थे पुणे-पिंपरी चिंचवड, इंदौर, भोपाल, अहमदाबाद, जयपुर, विजयवाड़ा, विशाखापट्टनम, राजकोट और सूरत. दिल्ली में BRTS की फंडिंग राज्य सरकार ने की. सभी प्रोजेक्ट एक साथ शुरू नहीं हुए और इन शहरों में BRTS को मंज़ूरी 2006 से शुरू होकर अगले एक दशक तक दी जाती रही. बाद में अमृतसर, नया रायपुर, और हुबली धारवाड़ को भी शामिल किया गया जिनमें से आख़िरी दो शहरों में विश्व बैंक ने क़र्ज़ देना मंज़ूर किया.

BRTS के निर्माण के चरणों के दौरान कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा. दूसरी बातों के साथ-साथ ये समस्याएं डिज़ाइन, रास्ते के एक्सक्लूज़िव अधिकार, BRTS स्टेशन तक पहुंच, सुरक्षा के मुद्दे और अदालत के प्रतिकूल फ़ैसले से जुड़ी थीं. काम-काज शुरू होने के चरण में BRTS को लोगों की अनुशासनहीनता, दुर्घटनाओं, बस में ख़राबी, अपर्याप्त बस, शहरी स्थानीय निकायों की वित्तीय कमज़ोरी और केंद्रीय समर्थन वापस लेने का सामना करना पड़ा.

हमारे शहरों में लोगों के अनुशासन के निम्न स्तर को देखते हुए BRTS बस के लिए रास्ते पर एक्सक्लूज़िव अधिकार एक सपना ही रह गया. कार चलाने वाले, ऑटो ड्राइवर और मोटर साइकिल वाले BRTS की लेन में बिना किसी डर के गाड़ी चलाने लगे. इस अनुशासनहीनता की वजह से कई हादसे हुए. 

डिज़ाइन के मामले में ब्राज़ील के शहर क्यूरिटिबा में BRTS स्टेशनों को ढलान पर बनाया गया. इससे यात्रियों को बिना सीढ़ी चढ़े या उतरे बस स्टेशन तक पहुंचने में आसानी हुई. लेकिन स्थानीय मुद्दों के बोझ से दबे भारतीय शहरों में स्टेशन को अलग तरह से डिज़ाइन किया गया जिसकी वजह से यात्रियों को स्टेशन तक पहुंचने में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा. सड़क के बीचोंबीच दोनों तरफ़ BRTS की लेन के चयन से फुटपाथ के बग़ल वाली लेन में होने वाली कई तरह की गतिविधियों के दखल से परहेज में मदद मिली. इन गतिविधियों में कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों के द्वारा कूड़ा उठाना, टैक्सी और ऑटो के द्वारा सवारियों को लेना और छोड़ना, व्यावसायिक गाड़ियों के द्वारा सामान उठाना और छोड़ना, पार्किंग और फेरी दुकान शामिल हैं. लेकिन सड़क के बीच में लेन होने की वजह से BRTS के यात्रियों को आधी सड़क पार करके वहां तक पहुंचने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसकी वजह से चलती गाड़ियों से यात्रियों के दुर्घटना का शिकार होने की आशंका बढ़ गई. दुर्घटना से परहेज करने के लिए यात्रियों के सड़क पार करते समय ट्रैफिक सिग्नल लगाया गया. इसकी वजह से BRTS लेन के बाहर गाड़ियों की रफ़्तार कम हो गई.

हमारे शहरों में लोगों के अनुशासन के निम्न स्तर को देखते हुए BRTS बस के लिए रास्ते पर एक्सक्लूज़िव अधिकार एक सपना ही रह गया. कार चलाने वाले, ऑटो ड्राइवर और मोटर साइकिल वाले BRTS की लेन में बिना किसी डर के गाड़ी चलाने लगे. इस अनुशासनहीनता की वजह से कई हादसे हुए. मिसाल के तौर पर, 2016 से 2019 के बीच अहमदाबाद में BRTS लेन में 22 हादसे हुए जिनमें लोगों की जान गई. पुणे में भी BRTS के रास्ते में ऐसे ही हादसे हुए. इस वजह से शहरों को मजबूर होकर रास्ते पर एक्सक्लूज़िव अधिकार की रक्षा करने के लिए वॉर्डन की नियुक्ति करनी पड़ी जिससे BRT को चलाने की लागत बढ़ गई. इंदौर में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने अक्टूबर 2013 में फ़ैसला दिया कि अस्थायी उपाय के तौर पर कार BRT लेन का इस्तेमाल कर सकती हैं. हाईकोर्ट ने BRT लेन का BRT बसों के द्वारा एक्सक्लूज़िव इस्तेमाल करने के मामले में विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त कर दी. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फरवरी 2015 में इस फ़ैसले पर फिर से विचार किया. विशेषज्ञों की समिति की रिपोर्ट पर विचार के बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि इंदौर में BRT बसों के अलावा कोई और गाड़ी BRT कॉरिडोर में नहीं चलेगी. दोनों फ़ैसलों के बीच में इंदौर में काफ़ी असमंजस की स्थिति बनी रही

इन दिक़्क़तों की वजह से जहां BRTS को झटका लगा वहीं जिन शहरों में शहरी स्थानीय निकायों के द्वारा BRTS चलाई जा रही थी, वहां निकायों की वित्तीय कमज़ोरी असली समस्या थी. कई तरह के निगम करों की जगह GST ने ले ली और संपत्ति कर शहरी स्थानीय निकायों के लिए हक़ीक़त में एकमात्र प्रमुख कर बच गया. जिन शहरों ने BRTS को लागू किया, उन्हें शुरू में बसों की ख़रीद के लिए पूंजी भारत सरकार ने मुहैया कराई. लेकिन अब ये केंद्रीय सहायता बची नहीं है. शहरी स्थानीय निकाय अब पूरी तरह ख़ुद पर निर्भर हैं और पुरानी बसों की जगह नई बस ख़रीदने और बढ़ती आबादी के हिसाब से नई बस ख़रीदना उनके लिए कठिन काम हो गया है. ज़रूरत से कम और पुरानी बसों की वजह से BRTS लागू करने वाले कई शहर कम बसों के बेड़े, कम सवारी और बड़े नुक़सान के दुष्चक्र में फंस गए हैं. जिन शहरों में बस सेवा का संचालन राज्य सरकार के द्वारा किया जा रहा है, वहां भी हालात बेहतर नहीं हैं क्योंकि राज्य सरकारें भी वित्तीय रूप से संघर्ष कर रही हैं और BRTS उनकी प्राथमिकता नहीं लगती.

क्यों बीआरटीएस को नाकाम बताई जा रही है?

इस तरह के हालात में कथित तौर पर BRTS अपने मक़सद में आम तौर पर नाकाम बताई जा रही है. ऐसी उम्मीद लगाई गई थी कि BRTS प्राइवेट गाड़ियों की सवारियों को बसों की तरफ़ ले जाएगी क्योंकि ये किफ़ायती क़ीमत पर तेज़ सेवा मुहैया कराएगी. इसके अलावा, BRTS के लिए लेन रिज़र्व होने की वजह से प्राइवेट गाड़ियों के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा सवारियां सफ़र कर सकेंगी. लेकिन ऊपर बताई गई वजहों से इनमें से कोई मक़सद पूरा नहीं हो सका. इसके बदले BRTS को सड़क की दुर्लभ जगह पर एकाधिकार जमाने वाले और ग़ैर-BRTS लेन को जाम करने वाले के तौर पर देखा गया. स्थानीय पार्षदों ने BRTS को लेकर गंभीर संदेह जताया. पुणे के एक पार्षद योगेश ससाणे ने कहा, “हडपसर में हम लगातार ट्रैफिक जाम का सामना करते हैं. लोगों ने लंबे वक़्त से BRTS लेन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. इसे बेकार में अलग किया गया है.” एक और पार्षद सिद्धार्थ शिरोले ने जोड़ा, “मैंने शुरू से कहा है कि जब तक हर पांच मिनट में एक बस नहीं मिलेगी तब तक BRTS का कोई उपयोग नहीं है.”

इस बीच देश भर में सरकारी विभागों ने मेट्रो के लिए नया प्यार दिखाना शुरू कर दिया. BRTS की शुरुआत से पहले मेट्रो का निर्माण शुरू करने वाले कोलकाता और दिल्ली के अलावा बेंगलुरु, जयपुर, अहमदाबाद, पुणे, पिंपरी चिंचवड, इंदौर, भोपाल, सूरत और राजकोट- सभी शहर मेट्रो की तैयारी करने लगे. राज्य सरकार और भारत सरकार भी मेट्रो को लेकर उत्साहित थीं. भारत सरकार ने मेट्रो के लिए 74,400 करोड़ आवंटित किए और राज्य सरकारों ने भी अपना समर्थन दिया. साफ़ तौर पर मेट्रो की चमक-दमक ने BRTS को फीका कर दिया है.

धूमिल होता मॉडल

ऊपर बताए गए घटनाक्रम का असर ये हुआ है कि शुरुआत में BRTS के लिए पूरी तरह उत्साह दिखाए जाने के बाद दिलचस्पी कम हो गई है. सिर्फ़ तीन शहरों (पुणे, सूरत और अहमदाबाद) पायलट चरण से आगे बढ़े. BRTS वाला कोई भी शहर तय योजना के मुताबिक़ नेटवर्क बनाने में कामयाब नहीं हुआ; कोई शहर इसके लिए चिंतित भी नहीं है, न ही वो BRT का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं. दिल्ली ने पहले ही 2016 में BRTS को ख़त्म कर दिया. पुणे और पिंपरी चिंचवड भी दिल्ली के नक्शे क़दम पर चले. इसके अलावा BRTS वाले शहर अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की अधिकता से जूझ रहे हैं- सामान्य बस सेवा, BRTS और मेट्रो. इस हालत में वो चुपचाप BRTS को हटाने में दिलचस्पी रखते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि BRTS में सरकारी पैसे के निवेश को लेकर असहज सवालों को देखते हुए लंबे वक़्त में इस सिस्टम को ख़ामोशी से दफ़न कर दिया जाएगा. किसी भी हालत में आधा दर्जन से ज़्यादा मेगा शहर, 50 महानगर और 3,00,000 से ज़्यादा आबादी वाले 150 से ज़्यादा शहरों के देश में एक दर्जन शहरों में BRTS को शुरू करना एक छोटी पहल थी. इसके दायरे में देश की शहरी आबादी का क़रीब 10 प्रतिशत हिस्सा ही आता था और उसके ग़ायब होने पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाएगा.

BRTS वाले शहर अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की अधिकता से जूझ रहे हैं- सामान्य बस सेवा, BRTS और मेट्रो. इस हालत में वो चुपचाप BRTS को हटाने में दिलचस्पी रखते हैं. 

BRTS की नाकामी भारत सरकार के द्वारा बनाए गए शहरी कार्यक्रम, जिन्हें शहरी स्थानीय निकायों को लागू करने की ज़रूरत है, के लिए एक ख़तरे की घंटी है. शुरुआती सहायता निवेश के स्थायित्व की कोई गारंटी नहीं है. संसाधन ख़त्म होने पर हो सकता है कि शहरों में उन्हें चलाने की क्षमता नहीं हो.

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