Author : Akanksha Sharma

Published on Aug 08, 2020 Updated 0 Hours ago

कोविड महामारी के चलते भारत में कारोबारी जगत के लिए सीएसआर नियमों में कई बदलाव किए गए. इस स्तर के संकट से निपटने के लिए निर्विवाद रूप से सामूहिक कार्रवाई जरूरी थी

क्या भारत में इंपैक्ट इनवेस्टिंग सीएसआर के लिए भविष्य का रास्ता है?

भारत में कारोबारी जगत के लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) को अनिवार्य बनाकर हमारे देश ने एक शानदार उदाहरण पेश किया है कि कारोबारी किस तरह अपना काम करते हुए समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं. केपीएमजी की 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के कारोबारी जगत ने सीएसआर के लिए 2014-15 में करीब 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर (5779.7 करोड़ रुपये) और 2019-20 में 1 अरब डॉलर (8,691 करोड़ रुपये) से अधिक खर्च किया. सीएसआर कानून में हालिया संशोधन द्वारा इन जिम्मेदारियों को बढ़ाते हुए वित्त वर्ष के दौरान 2 फीसद खर्च को अनिवार्य कर दिया गया है. कोई कंपनी ऐसा करने में नाकाम रहती है, तो इस्तेमाल नहीं की गई राशि को एस्क्रो खाते में डाल दिया जाएगा और अगर पैसा तीन वर्षों के भीतर इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो उसे ‘नेशनल अनस्पेंट कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड’ में जमा कर दिया जाएगा. हालांकि 100 से अधिक कंपनियों ने निर्धारित दो फीसद से ज्यादा खर्च किया, फिर भी देश के सबसे पिछड़े जिले वंचित रह गए.

शुद्ध लाभ घटने के साथ ही सीएसआर फंड की मात्रा भी आनुपातिक रूप से कम हो जाएगी. एफएसजी की एक हालिया रिपोर्ट में मुख्यधारा की सीएसआर फंडिंग में लगभग 30-60 फीसद की कमी और मौजूदा एनजीओ साझेदारों के साथ करार की प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता देने से नई फंडिंग में कमी आने का अनुमान जताया गया है

कोविड महामारी के चलते भारत में कारोबारी जगत के लिए सीएसआर नियमों में कई बदलाव किए गए. इस स्तर के संकट से निपटने के लिए निर्विवाद रूप से सामूहिक कार्रवाई जरूरी थी. जीवन और आजीविका के अवसरों के नुकसान को सीमित करने व आर्थिक विकास थम जाने से बचाने के लिए सरकार ने कारोबारी जगत के साथ मिलकर कई स्तर पर काम किया. इसके बाद, कोविड को लेकर किए गए खर्च को भी सीएसआर के दायरे में शामिल किया गया. इस एकजुटता को आगे बढ़ाते हुए कोविड-19 राहत कार्य के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने के वास्ते पीएम केयर्स फंड बनाया गया. हालांकि नेक इरादे और ज़रूरत के बावजूद सीएसआर खर्च के लिए एकमुश्त चेक पर दस्तख़त कर देना कारोबारियों के बीच तेजी से एक लोकप्रिय तरीका बन गया है. दूसरी ओर कानून साफ तौर से कहता है कि विकास कार्यक्रम कंपनी के व्यावसायिक मॉडल का हिस्सा होना चाहिए.

इधर, देशव्यापी लॉक-डाउन और चरणबद्ध अनलॉक ने आर्थिक विकास को काफी धीमा कर दिया है. शुद्ध लाभ घटने के साथ ही सीएसआर फंड की मात्रा भी आनुपातिक रूप से कम हो जाएगी. एफएसजी की एक हालिया रिपोर्ट में मुख्यधारा की सीएसआर फंडिंग में लगभग 30-60 फीसद की कमी और मौजूदा एनजीओ साझेदारों के साथ करार की प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता देने से नई फंडिंग में कमी आने का अनुमान जताया गया है. कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए पीएम केयर्स फंड से करीब 41.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर (3,100 करोड़ रुपये) वेंटिलेटर, प्रवासी मजदूरों और वैक्सीन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और सीएसआर के सालाना बजट का 80 फीसद से ज्यादा महामारी का सामना करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में निकट भविष्य में अन्य सामाजिक विकास कार्यक्रमों के लिए सीएसआर फंडिंग बुरी तरह प्रभावित होने वाली है.

ये सारे आंकड़े सीएसआर कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के ढांचे को मजबूत करने की बढ़ती जरूरत की ओर इशारा करते हैं. इस तरह के हालात का सामना करने में सक्षम ज्यादा लचीली व्यवस्था का निर्माण करने के साथ राहत और बचाव कार्य के साथ-साथ सतत विकास समय की जरूरत है. इसके अलावा, नए सीएसआर मानदंड यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि सामाजिक बदलाव के लिए धन का इस्तेमाल इस तरह किया जाए जिसका असर दिखे और जिसके विकास के लिहाज़ से पिछड़े क्षेत्रों तक पहुंचने में पारदर्शिता हो.

यही वह जगह है जहां कंपनियां सामाजिक क्षेत्र में निवेश कर ठोस और सतत विकास में हाथ बंटाने के लिए तार्किक रूप से और ज्यादा प्रभावी ढंग से काम कर सकती हैं. यह कॉरपोरेट जगत को मात्रात्मक, साक्ष्य आधारित और मापा जा सकने वाला असर देते हुए सीएसआर निवेश के संसाधनों को बढ़ाने का मौका देता है.

एसडीजी को हासिल करने के लिए भारत को सालाना 500 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता है. 2019-20 में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों ने मिलकर सिर्फ 1 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए

भारत फिलहाल वैश्विक एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) सूची में 117वें स्थान पर है. कोविड-19 महामारी का सामना करने में पैसे की भारी कमी को देखते हुए, और साथ ही बेहतर भविष्य के लिए संसाधन आधार के अनुसार अधिकतम प्रभाव की हर संभावना का पता लगाना बेहद जरूरी है. एसडीजी को हासिल करने के लिए भारत को सालाना 500 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता है. 2019-20 में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों ने मिलकर सिर्फ 1 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए. यह वह बिंदु है जहां ‘इंपैक्ट इनवेस्टिंग’ कर फंडिंग अंतराल को कम करने के साथ ही अतिरिक्त रिटर्न भी मिल सकता है जिसे स्थायी बदलाव के लिए दोबारा निवेश किया जा सकता है.

इंपैक्ट इनवेस्टिंग कॉरपोरेट जगत को सामाजिक भलाई के लिए योगदान देते हुए साझेदारी करने का मौका देता है. कॉरपोरेट वेंचर कैपिटल, इन्क्यूबेटर्स और इंपैक्ट बॉन्ड और फंड्स इंपैक्ट इनवेस्टिंग के विभिन्न मॉडल हैं. इनमें से हर एक नवाचार को बढ़ावा देने, सतत बदलाव और हस्तक्षेप की संभावना के साथ वित्तीय रिटर्न, सकारात्मक सामाजिक या पर्यावरणीय बदलाव लाने के लिए किया जाता है. इसलिए वे आमतौर पर कृषि, छोटे कर्ज, आवास, स्वास्थ्य सेवा या शिक्षा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

वैश्विक महामारी कोविड ने और अधिक गंभीर तथा गहरी मौजूदा सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को सामने ला दिया है, यह उन समस्याओं के अलावा है जिनसे हमारा देश पहले से ही जूझ रहा था. लाखों बेरोजगार हैं और शिक्षा डिजिटल हो गई है, ये अलग बात है डिजिटल शिक्षा के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा और कनेक्टिविटी तक पर्याप्त पहुंच नहीं है. इससे निम्न आय वर्ग के परिवारों के बच्चों का जोखिम बढ़ा है, जिसका पहले से ही उन्हें मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता के कारण सामना कर रहे हैं. एडटेक और डिजिटल इनिशिएटिव के माध्यम से निवेश करने का असर कोविड-19 महामारी के दौरान ही नहीं बल्कि इसके बाद भी इन समस्याओं को हल करने का एक शक्तिशाली ज़रिया साबित हो सकता है. उत्थान प्रौद्योगिकी, विभिन्न-क्षेत्रों में सहयोग और नए मॉडल, इसका इस्तेमाल प्रशिक्षण और लर्निंग सेशन आयोजित करने या रोजगार चाहने वालों को भावी रोजगार के अवसरों के साथ जोड़ने के लिए किया जा सकता है. समग्र ऑनलाइन शिक्षा या रोजगार की तलाश करने वालों में अंतराल को कम करके, बड़ी आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा या आजीविका के अवसरों को सुनिश्चित कर प्रवासन और नौकरी की असुरक्षा को खत्म किया जा सकता है.

महामारी की रोकथाम और इलाज के उपायों के बोझ तले दबा स्वास्थ्य सेवा ढांचा, जो न केवल कोविड-19 का सामना कर रहा है, बल्कि वंचित तबके के लोगों की स्वास्थ्य संबंधी बड़ी ज़रूरतें भी पूरी करता है, महत्वपूर्ण हो गया है. उन्हें ऐसी महामारियों और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लचीला बनाने की जरूरत है. यहां, नए तरीके के उपायों को शुरू करने के लिए इंपैक्ट इनवेस्टमेंट में काफी संभावनाएं हैं. डिजिटल और ऑफलाइन व्यावसायिक रणनीतियां प्रौद्योगिकी के संयोजन की मदद से सबसे निचले पायदान पर मौजूद अति-संवेदनशील समुदायों के लिए उत्पादों और सेवाओं का प्रभावी ढंग से वितरण कर सकती हैं. इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में इंपैक्ट इनवेस्टिंग निवेशकों को शुद्ध आय बनाए रखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र के सामाजिक निर्धारकों को दुरुस्त करने का मौका दे सकती है. यह सबसे वंचित आबादी की स्वास्थ्य दशा पर महत्वपूर्ण असर डाल सकता है.

डिजिटल और ऑफलाइन व्यावसायिक रणनीतियां प्रौद्योगिकी के संयोजन की मदद से सबसे निचले पायदान पर मौजूद अति-संवेदनशील समुदायों के लिए उत्पादों और सेवाओं का प्रभावी ढंग से वितरण कर सकती हैं.

इंपैक्ट इनवेस्टिंग गैर-सरकारी संगठनों/ क्रियान्वयन एजेंसियों को प्राथमिकता देता है जो अमल कर सकते हैं और नतीजों को माप सकते हैं और सबसे अच्छा असर डाल सकते हैं. काम करने वाले मॉडल के साथ तथ्यात्मक आंकड़े होते हैं, जो सरकारों और कॉरपोरेट जगत को समान तरीके से सिर्फ उन कार्यक्रमों के लिए भुगतान की इजाजत देते हैं, जो प्रभाव की गारंटी देते हैं.

हालांकि कॉरपोरेट जगत को सीएसआर फंड केवल एनजीओ में निवेश करने की अनुमति देने से, नए विचारों से लैस सामाजिक संस्थाओं के एक महत्वपूर्ण हिस्से को धन के अभाव में बड़े पैमाने पर संचालन के जोखिम के साथ छोड़ दिया गया है. जैसा कि आत्मनिर्भर भारत का विचार रफ्तार पकड़ रहा है, इंपैक्ट इनवेस्टमेंट लाभप्रदता की स्पष्ट संरचना और सामाजिक विकास में मदद करने वाले मजबूत व्यापार मॉडल के माध्यम से समावेशन की पेशकश करता है. यहां तक कि यह व्यवस्था सामाजिक उद्यमों को वित्त पोषण के लिए जीवनदायिनी भी हो सकती है और इस तरह विभिन्न वर्गों में नवाचारों को बढ़ावा देती है: मातृ स्वास्थ्य, बाल विकास, और दूसरों के लिए शिक्षा जो अब सिर्फ परोपकार नहीं है. इनमें से हर एक मानव तथा सामाजिक पूंजी विकास में रणनीतिक निवेश है, जो हमारे देश में वंचित लोगों के लिए अधिक समावेशी भविष्य को बढ़ावा देता है. और इंपैक्ट इनवेस्टमेंट के माध्यम से, पूरक पूंजी की एक सतत श्रृंखला है जिसे इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में चल रहे कार्यक्रम के लिए नियोजित किया जा सकता है.

इंपैक्ट इनवेस्टमेंट विशेष रूप से विकासशील देशों में, जैसा कि हमारा देश भी है- स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए ऑनलाइन सुविधाओं से लेकर बेहतर इंटरनेट बैंडविथ, ज्यादा मजबूत कृषि व्यवसाय मूल्य श्रृंखला, या ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए भी जरूरी होगा. महामारी से मिली सीख के आधार पर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की जगह लचीली स्थानीय व्यवस्था के लिए तेज बदलाव होगा. और इंपैक्ट इनवेस्टमेंट के माध्यम से इन छोटे उद्यमियों की मदद करने से कॉरपोरेट जगत को न केवल स्थायी स्वदेशी आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण करने में मदद मिल सकती है, बल्कि रोजगार के अवसरों और आर्थिक विकास में योगदान देने वाला क्षेत्रीय विकास भी हो सकता है.

इंपैक्ट इनवेस्टमेंट में जो पारदर्शिता और परिणाम मिलता है वह इसे एक असाधारण माध्यम बनाता है, जो धन  को राष्ट्र निर्माण के लिए यथासंभव प्रभावी ढंग से खर्च करने में मदद कर सकता है.

कोविड-19 आने वाले कई वर्षों तक निर्णायक विश्व संकट रहेगा. इसने हमें दिखाया है कि किस तरह स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटल साक्षरता, आजीविका और गरीबी उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में विकासात्मक फंड को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. भारत में हमें इन विकास संकेतकों में से हर एक के लिए गुणवत्ता, पहुंच और उपलब्धता के संदर्भ में हस्तक्षेप को बुनियादी रूप से सुधारने की जरूरत है. तभी हम अपने विकास के आयाम को बनाए रखने और समावेशी विकास प्रदान करने में सक्षम होंगे. इंपैक्ट इनवेस्टमेंट में जो पारदर्शिता और परिणाम मिलता है वह इसे एक असाधारण माध्यम बनाता है, जो धन  को राष्ट्र निर्माण के लिए यथासंभव प्रभावी ढंग से खर्च करने में मदद कर सकता है. इसमें वर्ष 2030 तक एसडीजी को पूरा करने के लिए भारत को सक्षम बनाने के वास्ते  आवश्यक अतिरिक्त धन उपलब्ध कराने की अपार क्षमता है, जो सरकारी और निजी संस्थाओं के साथ-साथ छोटे निवेशकों, अमीरों और परोपकारी संस्थाओं को अपने संसाधनों की साझेदारी से बहुत अधिक है. बाजार के जोखिमों के बावजूद बड़े आकार और संभावनाओं के कारण भारत में फायदेमंद रिटर्न के बेजोड़ अवसर है.

देश में समृद्ध और वंचित लोगों के बीच अभी भी बड़ा अंतर है, और वित्तीय नवाचार इस लगातार चौड़ी होती खाई को पाट सकते हैं. इंपैक्ट इनवेस्टमेंट सामाजिक, पर्यावरणीय और प्रशासनिक लाभ पैदा करता है; साथ ही उन उद्यमों के लिए पूंजी का मार्ग प्रशस्त करता है जो नतीजों को हासिल करने में सक्षम होते हैं, और पुराने पड़ चुके व्यावसायिक मॉडल ऐसा नहीं कर सकते. समय बीतने के साथ, एक ऐसे राष्ट्र के लिए जो संविधान की घोषणा के अनुसार अपने सभी नागरिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है, इंपैक्ट इनवेस्टमेंट पारिस्थितिकी तंत्र अधिक सटीकता से खर्च को लक्षित करने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है.


ये लेखक के निजी विचार हैं.

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