यह लेख रायसीना फाइल्स 2023 जर्नल का एक अध्याय है.
तकनीकी संबंधी लाभ हासिल करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन प्रतिस्पर्धा के एक नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं. यह एक ऐसा दौर है, जहां कोरोना महामारी की वजह से कमज़ोर हुई आपूर्ति श्रृंखलाओं के कारण, साथ ही साथ वैश्विक ताक़त बनने को लेकर हो रहे एक आधारभूत बदलाव की वजह से उनकी इस प्रतिस्पर्धा में तेज़ी आई है. इतना ही नहीं उनकी इस होड़ में प्रौद्योगिकी एक अभूतपूर्व भूमिका निभाने के लिए तत्पर दिखाई देती है. गूगल के पूर्व सीईओ एरिक श्मिट के अनुसार, "कई अमेरिकियों की चीन को लेकर वही पुरानी सोच है... अमेरिका अब चीन के रूप में एक आर्थिक और सैन्य प्रतिद्वंद्वी का सामना कर रहा है, जो कि आक्रामक रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों में हमारी विशेषज्ञता और अगुवाई के क़रीब आने की कोशिश कर रहा है."[1] ज़ाहिर है कि जब तक इस तरह के ट्रेंड में कोई अहम बदलाव नहीं होता है, तब तक अमेरिका एक ऐसे चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा, जो ना सिर्फ़ अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से काफ़ी बड़ा है, बल्कि बेहतर रिसर्च एवं डेवलपमेंट, विकसित प्रौद्योगिकियों और मज़बूत कंप्यूटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर से भी लैस है. इसलिए, चीन से स्वयं को अलग करना अमेरिका के लिए एक बेहद ज़रूरी रणनीति बन चुकी है, क्योंकि चीन अपने तकनीकी विकास को तेज़ गति से आगे बढ़ाने में लगा है. हालांकि, कई लोगों का मानना है कि चीन इसके लिए अनुचित साधनों का उपयोग करता है. चीन पर सख़्त रुख़ अख़्तियार करने की आवश्यकता के मुद्दे पर वाशिंगटन में दोनों राजनीतिक दलों की सहमति और समर्थन मिला हुआ है. हालांकि, यह निश्चित है कि इस अलगाव से अमेरिका और चीन दोनों को लागत एवं चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. देखा जाए तो तकनीकी अलगाव से दोनों देशों में इनोवेशन, विशेषज्ञता और लागत जैसे क्षेत्रों पर असर पड़ने की संभावना है. इस अलगाव की वजह से जिस क्षेत्र पर प्रत्यक्ष असर पड़ा है, वो धीमा हो रहा वैश्विक व्यापार है और हम सब जानते हैं कि यह वैश्वीकरण की अंतर्निहित विशेषताओं को बदलने का काम कर रहा है.
चीन से स्वयं को अलग करना अमेरिका के लिए एक बेहद ज़रूरी रणनीति बन चुकी है, क्योंकि चीन अपने तकनीकी विकास को तेज़ गति से आगे बढ़ाने में लगा है. हालांकि, कई लोगों का मानना है कि चीन इसके लिए अनुचित साधनों का उपयोग करता है.
प्रौद्योगिकी के मूलभूत तत्वों और इसके इर्द गिर्द होने वाली प्रतिस्पर्धा को एक संरचनात्मक ताक़त के तौर पर पहचाना गया है. यह ताक़त ना केवल वैश्विक प्रतिस्पर्धा को आकार देगी, बल्कि जिसकी वजह से अगले दो दशकों में संभावित रूप से टेक्नोलॉजी क्षेत्र से संबंधित नए लीडर्स या फिर दूसरे देशों पर प्रभाव रखने वाले देश उभर कर सामने आएंगे.[2] इसी सबके मद्देनज़र अमेरिका के लिए चीन उसकी सबसे बड़ी चिंता की वजह बन गया है.
यह वास्तविकता है कि अमेरिका और चीन के बीच महाशक्ति बनने के लिए मची होड़ में तकनीकी प्रतिस्पर्धा सबसे प्रमुख रूप में उभर कर सामने आई है. हालांकि चीन के विरुद्ध बाइडेन प्रशासन द्वारा हाल ही में किए गए निर्यात नियंत्रण उपाय[3] वर्तमान में कुछ ऐसे क़दम हैं, जो साफ तौर पर दिखाते हैं कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय प्रौद्योगिकी इंटरफ़ेस पिछले कुछ वक़्त से एक विवादित क्षेत्र रहा है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा चीन के ख़िलाफ़ एक व्यापार युद्ध छेड़ा गया था. इसी के अंतर्गत जहां मई 2018 में चीन पर 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के टैरिफ लगाने की योजना बनाई गई थी, वहीं ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिकी हाई-टेक उद्योगों में चीनी निवेश को लेकर सीमाएं भी निर्धारित की थी.[4] अमेरिका के इन क़दमों ने विशेष रूप से चीनी इंपोर्ट्स को लक्षित किया "जिसमें 'मेड इन चाइना 2025' प्रोग्राम से संबंधित औद्योगिक रूप से अहम टेक्नोलॉजी शामिल है".[5] अमेरिका द्वारा उठाए गए ये क़दम अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करने के साथ ही इस सेक्टर में अपने बढ़ते निवेश के माध्यम से अमेरिकी प्रौद्योगिकी के चीनी अधिग्रहण को रोकने के लिए उसके व्यापक प्रयासों का हिस्सा थे. जैसा कि अपेक्षित था, चीन ने अपनी जवाबी कार्रवाई के ज़रिए अमेरिका को धमकी दी.[6] इसके प्रतिउत्तर में अमेरिका ने इस लेख को लिखे जाने के दौरान तक केवल कुछ मामलों पर ही अपनी प्रतिक्रिया दी है.
वर्ष 2017 में यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (USTR) द्वारा की गई जांच[7] चीन को लेकर बढ़ती अमेरिकी तकनीकी चिंताओं का ही नतीज़ा थी. इस जांच में सामने आया कि चीन की आक्रामक प्रौद्योगिकी नीतियों ने टेक्नोलॉजी सेक्टर में 44 मिलियन अमेरिकी नौकरियों को चार तरीक़ों से ख़तरे की ज़द में ला दिया था. यानी ज़बरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, किफ़ायती क़ीमत से कम पर लाइसेंस की ज़रूरत, चीन द्वारा सामरिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए औद्योगिक रूप से अहम अमेरिकी प्रौद्योगिकी का अधिग्रहण और साइबर चोरी. अमेरिका का कहना था कि चीन की इन गतिविधियों ने वर्ष 1974 के यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन किया. चीन द्वारा किए इस तरह के उल्लंघनों ने मार्च 2018 में ट्रम्प शासन के अंतर्गत अमेरिका को विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के तहत चीन के विरुद्ध उल्लंघन विवाद दर्ज करने के लिए प्रेरित किया. ज़ाहिर है कि इसने चीन के साथ अमेरिका के तकनीकी अलगाव की नींव रखी. ट्रम्प के राष्ट्रपति रहने के दौरान, टैरिफ एवं निर्यात पर लगाए गए अंकुशों ने अमेरिकी कंपनियों को अपनी मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को चीन से बाहर ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया. राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक चीनी दूरसंचार-उपकरण निर्माता ZTE के अमेरिकी चिप ख़रीदने पर पाबंदी लगा दी और चीनी कंपनी हुआवेई को अमेरिकी कंपोनेंट्स तक पहुंच से दूर कर दिया.
राष्ट्रपति बाइडेन की मुहर
बाइडेन प्रशासन ने चीन के विरुद्ध पूर्ववर्ती सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों को दोगुना कर दिया है, जिसने अलगाव की इस प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया है. देखा जाए, तो बाइडेन प्रशासन द्वारा चिप्स एक्ट 2022 (CHIPS Act 2022) को लागू करने के निर्णय के माध्यम से शायद इस कार्रवाई को ज़बरदस्त तेज़ी प्रदान की गई थी. आज, अमेरिकी कांग्रेस में प्रौद्योगिकी नियंत्रण बढ़ाने पर दोनों दलों के बीच सहमति है, विशेष रूप से कथित 'सामरिक प्रौद्योगिकियों' को लेकर नियंत्रण बढ़ाने के मुद्दे पर. उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में चीन की तेज़ प्रगति से अमेरिका के सामने चुनौती खड़ी होने एवं उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के समक्ष ख़तरा पैदा होने की संभावना है. अमेरिका के सामने एक बड़ी भू-राजनीतिक चुनौती यह भी है कि चीन दुनिया भर में राजनीतिक फायदे के लिए अपने तकनीकी-आर्थिक लाभ एवं अनुकूल परिस्थितियों का इस्तेमाल कर सकता है, साथ ही वर्तमान वर्ल्ड ऑर्डर में बड़ा बदलाव ला सकता है.
उभरती भू-राजनीति में प्रौद्योगिकी की महत्ता के मद्देनज़र तकनीकी प्रतिस्पर्धा को लेकर अमेरिका का फोकस तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह की ज़रूरतों पर है. वर्ष 2022 के चिप्स अधिनियम को लागू करने वाला अगस्त 2022 का शासनादेश चीन के साथ अमेरिका के संबंधों को मूलभूत रूप से बदलने में बेहद अहम था. इसके ज़रिए बाइडेन प्रशासन ने न केवल चीन के साथ तकनीकी अलगाव की प्रक्रिया को तेज़ किया है, बल्कि तकनीकी प्रतिस्पर्धा को अमेरिका-चीन पॉलिसी के प्राथमिक आधारों में से एक बनाने के लिए, इसे सभी दिशाओं में एवं सभी सेक्टरों में विस्तारित किया है.
अमेरिका ने ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (BIS) की अगुवाई में चीन को किए जे वाले विकसित सेमीकंडक्टर, चिप बनाने वाले उपकरण और सुपर कंप्यूटर कंपोनेंट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. अमेरिकी एंटिटी सूची, जो अमेरिकी फर्मों को लाइसेंस के बिना अमेरिकी सामान आयात करने से रोकती है और जिसमें उन व्यक्तियों, कंपनियों, व्यवसायों और संस्थानों के नाम शामिल है, जिन्हें विशेष रूप से उल्लेखित वस्तुओं के "निर्यात, पुनः निर्यात और/या हस्तांतरण (देश में) के लिए एक विशेष लाइसेंस की आवश्यकता होती है,” उल्लेखनीय है कि इस सूची में शामिल कंपनियों और संगठनों की संख्या वर्ष 2018 और 2022 के बीच 130 से 532 तक बढ़कर, चौगुनी हो गई है.[8] इसके परिणामस्वरूप चीन की अग्रणी कंपनी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉर्प (SMIC) समेत सुपरकंप्यूटिंग एवं चिप/सेमीकंडक्टर निर्माण से जुड़ी ज़्यादातर प्रमुख चीनी कंपनियां और संगठन अब अमेरिकी एंटिटी सूची में शामिल हैं, जो अमेरिका की प्रमुख टेक्नोलॉजी तक चीन की पहुंच का दायरा सीमित करती हैं. हुआवेई जैसी चीनी कंपनियां ख़ास तौर से यूएस तकनीक का उपयोग करके बनाई गई गैर-अमेरिकी वस्तुओं को कवर करने के लिए बनाए गए बीआईएस के 'विदेशी उत्पाद प्रत्यक्ष नियम' के विस्तार से प्रभावित हुई है.
अमेरिका के निर्यात नियंत्रण के विस्तार ने तीसरे देशों के निर्माताओं और डिजाइनरों की हुआवेई जैसी चीनी कंपनियों की चिप्स बेचने की क्षमता पर भी असर डाला है. प्रभावी रूप से, इन क़दमों ने तीन कारणों से एक निर्णायक दौर बनाया है. इन क़दमों ने जहां चीन को हाई-एंड सेमीकंडक्टर चिप्स की आपूर्ति बंद कर दी है, वहीं वैश्विक स्तर पर चिप्स बनाने वाली मशीनों को प्राप्त करने से चीन को रोक दिया है और अमेरिकी नागरिकों (ग्रीन कार्ड धारकों सहित) को एक चीनी सेमीकंडक्टर कंपनी के लिए काम करने या उन्हें समर्थन और जानकारी उपलब्ध कराने से रोक दिया है.[9] इस फ़ैसले का मकसद अमेरिका में सेमीकंडक्टर के रिसर्च, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करना है.
अमेरिका के सामने एक बड़ी भू-राजनीतिक चुनौती यह भी है कि चीन दुनिया भर में राजनीतिक फायदे के लिए अपने तकनीकी-आर्थिक लाभ एवं अनुकूल परिस्थितियों का इस्तेमाल कर सकता है, साथ ही वर्तमान वर्ल्ड ऑर्डर में बड़ा बदलाव ला सकता है.
बाइडेन प्रशासन के अंतर्गत अमेरिका दो पारस्परिक वजहों से चीन से अलग हो रहा है. पहला, चीन के प्रौद्योगिकी संबंधी विकास को धीमा करने के लिए और दूसरा, उसकी आर्थिक एवं ज़्यादा अहम सैन्य महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के लिए. बाइडेन प्रशासन के भीतर चीन को लेकर लंबे समय से चली आ रही बहस, चीन के विरुद्ध सख़्त और तत्काल कदम उठाए जाने के साथ समाप्त होती दिख रही है. इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बाइडेन प्रशासन से बायोटेक, मैन्युफैक्चरिंग और फाइनेंस जैसे अन्य रणनीतिक सेक्टरों में अब और भी कड़े क़दमों की उम्मीद की जा रही है.[10] जैसे कि चिप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और प्रौद्योगिकी के लिए बहुत अहम हैं, ऐसे में इस पर लगाई की पाबंदियों से चीन में आपूर्ति श्रृंखला, ई-कॉमर्स, ऑटोनॉमस व्हीकल्स, साइबर सुरक्षा, मेडिकल इमेजिंग, दवाओं की खोज, क्लाइमेट मॉडलिंग और चीन में रक्षा उत्पादन जैसे चिप्स पर पूरी तरह से निर्भर रहने वाले क्षेत्रों को झटका लगने की उम्मीद है. हालांकि, भले ही यह क़दम चीनी अर्थव्यवस्था और विकास को विभिन्न तरीक़ों से धीमा कर सकते हैं, लेकिन ऐसे में यह भी संभावना है कि अमेरिका के नेतृत्व वाले ये प्रतिबंध चीन में चिप्स निर्माण को लेकर घरेलू स्तर पर तेज़ी को गति प्रदान करने वाले साबित होंगे.
विभाजित वर्ल्ड ऑर्डर
देखा जाए, तो एक हिसाब से अमेरिका ने चीन से तकनीकी रूप से अलगाव की शुरुआत वर्ष 2010 के मध्य से ही शुरू कर दी थी. हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाई गई नवीनतम पाबंदियां ज़्यादा 'आक्रामक' हैं. निर्यात और आयात पर नियंत्रण, देश में व देश के बाहर होने वाले निवेश प्रतिबंध, लाइसेंसिंग और वीजा प्रतिबंध एवं सख़्त क़ानून लागू करने जैसे उठाए गए कई क़दमों के साथ ही अमेरिका ने टेक्नोलॉजी से जुड़ी रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए अपने निवेश में भी बढ़ोतरी की है. अमेरिका के अकेले चिप्स अधिनियम से सेमीकंडक्टर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए पांच वर्षों में 52.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इंतज़ाम किया गया है. यह कदम अमेरिका में ना केवल चिप्स के निर्माण को प्रोत्साहित करता है, बल्कि नेशनल साइंस फाउंडेशन, ऊर्जा विभाग एवं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी के लिए महत्वाकांक्षी विस्तार योजना भी तैयार करता है. यह यूनाइटेड स्टेट्स इनोवेशन एंड कॉम्पिटिशन एक्ट (USICA) और COMPETES एक्ट के प्रस्तावों के मुताबिक़ है, जो विशेष रूप से STEM सेक्टर में रिसर्च के लिए मज़बूत आधारभूत समर्थन बनाने की कोशिश करते हैं. चिप्स अधिनियम कई अन्य नए प्रावधानों की भी शुरुआत करता है. जैसे कि यह अमेरिका में सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी इकाइयों में निवेश के लिए 25-प्रतिशत टैक्स क्रेडिट का प्रावधान करता है, चीन में सेमीकंडक्टर निर्माण के विस्तार को सीमित करता है और कई संघीय एजेंसियों में अनुसंधान एवं विकास पहलों के लिए पांच वर्षों में लगभग 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्त पोषण को अधिकृत करता है.[11]
हालांकि, देखा जाए तो चीन ने अब तक बाइडेन प्रशासन द्वारा उठाए गए क़दमों के प्रति उस तरह से प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिस तरह से उसने वर्ष 2018 के टैरिफ युद्ध के दौरान ट्रम्प प्रशासन के विरुद्ध दी थी. लेकिन बाइडेन प्रशासन द्वारा व्यापक स्तर लगाए गए नियम-क़ानूनों ने विश्व की दो बड़ी ताक़तों के बीच पहले से ही बाज़ार में एकाधिकार को लेकर जारी होड़ को और बढ़ाने का काम किया है. वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा उठाए गए क़दमों के कारण नए वर्ल्ड ऑर्डर में महाशक्ति प्रतिस्पर्धा का गणित फिर से निर्धारित होने की संभावना है. ज़ाहिर है कि भले ही चिप्स रोज़मर्रा के जीवन और युद्धों दोनों के केंद्र में हो गए हों, पर यह होड़ प्रौद्योगिकी एवं इसके उपयोग पर टिकी है. उदाहरण के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध ने आधुनिक पारंपरिक युद्धों में चिप्स की महत्ता को प्रदर्शित किया है. जब यह युद्ध अपने चरम पर था, तब रूस को चिप्स की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा,[12] जिससे मिसाइलों और अन्य हथियारों का इस्तेमाल करने में तमाम दिक़्क़तें सामने आईं. यूरोप में इस तरह के युद्ध का एक गंभीर असर पड़ा है, क्योंकि यह ना केवल महत्त्वपूर्ण चिप्स के उत्पादन और आपूर्ति को कमज़ोर कर सकते हैं, बल्कि दुनिया भर में नागरिकों के जीवन को भी प्रभावित कर सकते हैं.[13]
यूक्रेन युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था ने अमेरिका और चीन को तकनीकी अलगाव के रास्ते पर ला खड़ा किया है. यहां तक कि दोनों देशों ने घरेलू स्तर पर टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग, व्यापक आर्थिक नियंत्रण और आत्मनिर्भरता के एजेंडे की मज़बूती पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.
यूक्रेन युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था ने अमेरिका और चीन को तकनीकी अलगाव के रास्ते पर ला खड़ा किया है. यहां तक कि दोनों देशों ने घरेलू स्तर पर टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग, व्यापक आर्थिक नियंत्रण और आत्मनिर्भरता के एजेंडे की मज़बूती पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. एक तरफ़ अमेरिका ने अपने घरेलू विकास पर फोकस किया है, वहीं दूसरी तरफ़ चीन ने 'मेड इन चाइना 2025' (MIC 2025) के माध्यम से अपने विज़न को मज़बूती दी है. अपने इस विज़न के अंतर्गत चीन औद्योगिक कायाकल्प के माध्यम से जहां प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है, वहीं उसकी वैश्विक विनिर्माण मूल्य श्रृंखलाओं में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने, उभरती प्रौद्योगिकियों के सेक्टर में तेज़ी से आगे बढ़ने और विदेशी कंपनियों पर निर्भरता को कम करने की भी मंशा है. इस विज़न के तहत वर्ष 2015-2025 के लिए चीन की औद्योगिक प्राथमिकताओं में 10 सेक्टर शामिल हैं, जैसे कि नई पीढ़ी की सूचना प्रौद्योगिकी, अत्याधुनिक कम्प्यूटरीकृत मशीन और रोबोट, एयरोस्पेस, समुद्री उपकरण और उच्च तकनीक से लैस जहाज, विकसित रेलवे परिवहन उपकरण, नवीन-ऊर्जा और ऊर्जा की बचत करने वाले वाहन, एनर्जी उपकरण, एग्रीकल्चर मशीन, नई सामग्री एवं बायोफार्मा और हाई-टेक मेडिकल डिवाइस.[14] इनोवेशन की इन प्राथमिकताओं ने प्रौद्योगिकी को और उसमें भी विशेष तौर पर चिप्स को उनके निर्माण और वितरण प्रक्रियाओं के केंद्र में पाया है. जिस बात को लेकर अमेरिका ख़ास तौर चिंतित है, वह यह है कि चीन और उसके समर्थन वाली इकाइयां अमेरिका और अन्य देशों से इन तकनीकों के अधिग्रहण एवं इन पर अपना कब्ज़ा जमाने के लिए अपनी चालबाज़ी से बाज नहीं आ रही हैं और इसके लिए हर तरह का हथकंडा अपना रही हैं.[15] हालांकि, चीन इन आरोपों से इनकार करता है.
वैश्विक प्रभाव
अमेरिका-चीन तकनीकी अलगाव का असर दुनिया में उथल-पुथल मचा सकता है. पहले से ही कई देशों ने इसके मद्देनज़र अपने स्तर पर क़दम उठाना शुरू कर दिया है. इसके तहत जहां अन्य देशों के साथ साझेदारी की जा रही है, वहीं जहां भी संभव हो, घरेलू मैन्युफैक्चरिंग और आपूर्ति को बढ़ाकर इन घटनाक्रमों के व्यापक प्रभाव से निपटने के लिए तैयारी करना शुरू कर दी गई है. सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन की अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए व्यापक तौर पर प्रतिबंध लगाने के बजाए, लक्षित रेगुलेशन को अपनाने और सेमीकंडक्टर उद्योग को अपने वर्चस्व की लड़ाई का क्षेत्र नहीं बनाने की सलाह के बावज़ूद, यह प्रमुख वैश्विक ताक़तों के लिए अपने भू-राजनीतिक हितों को साधने का ज़रिया बन गया है.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रौद्योगिकी, वो भी विशेष तौर पर चिप निर्माण बेहद महत्त्वपूर्ण है. अमेरिका और चीन सेमीकंडक्टर निर्माण को गति देने के साथ ही भविष्य में इसकी आपूर्ति को संचालित करने में जुटे हुए हैं. वर्ष 2020 के बाद से पूरे अमेरिका में कम से कम 35 सेमीकंडक्टर कंपनियों ने घरेलू चिप्स निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. इन कंपनियों में इंटेल जैसी शीर्ष चिप निर्माण कंपनियां शामिल हैं, जिसने हाल ही में ओहियो में सेमीकंडक्टर बनाने के लिए दो नई फैक्ट्रियों में 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश किया है. माइक्रोन टेक्नोलॉजी द्वारा भी इस दशक के अंत तक अमेरिका में 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर ख़र्च करने की उम्मीद है. ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने भी अमेरिका में अपने निवेश को तीन गुना बढ़ाकर 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक करने की योजना बनाई है.[16]
अमेरिका के साथ अपने तकनीकी अंतर को पाटने की दिशा में चीन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. इसके लिए चीन ने अगले पांच वर्षों में अपने देश में रणनीतिक प्रौद्योगिकियों और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, चिप्स, 5जी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स शामिल हैं. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन अपनी घरेलू टेक्नोलॉजी कंपनियों को अधिक से अधिक सब्सिडी देने के मामले में अमेरिका का ही अनुसरण करेगा, ज़ाहिर है कि ऐसा करने में कोई परेशानी भी नहीं है. प्रौद्योगिकी के मामले में ख़ुद को आत्मनिर्भर बनाने के अपने प्रयास के अंतर्गत चीन द्वारा सेमीकंडक्टर और एआई जैसी 'डीप टेक्नोलॉजी' पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने की संभावना है. इस पूरी प्रक्रिया को अमली जामा पहनाने के लिए चीन द्वारा चिप्स और अहम प्रौद्योगिकियों का निर्माण करने वाली कंपनियों को भारी मात्रा में सरकारी सब्सिडी दिए जाने की संभावना है. उल्लेखनीय है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा पहले ही सितंबर 2022 में राष्ट्रीय संसाधनों को एक साथ जुटाकर तकनीकी दिक़्क़तों को दूर करने का आह्वान किया जा चुका है.[17] इसके कुछ ही समय बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने 20वीं पार्टी कांग्रेस में टेक्नोलॉजी से जुड़े नवाचारों को देश के विकास की मुख्य धुरी के रूप में घोषित किया था.
अमेरिका और चीन के बीच जो इतना बड़ा तकनीकी अलगाव है, वो चार चीज़ों से बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है, यानी टेक्नोलॉजी, ट्रेड, फाइनेंस और आम लोग. आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में दोनों देशों के बीच यह चारों मुद्दे परस्पर जुड़े हुए हैं.
अमेरिका और चीन के बीच जो इतना बड़ा तकनीकी अलगाव है, वो चार चीज़ों से बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है, यानी टेक्नोलॉजी, ट्रेड, फाइनेंस और आम लोग. आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में दोनों देशों के बीच यह चारों मुद्दे परस्पर जुड़े हुए हैं. देखा जाए, तो प्रौद्योगिकी की अगुवाई में तमाम दूसरे सेक्टरों में चीन के साथ अलगाव की जो भी मज़बूरियां हैं, वे कहीं न कहीं बीजिंग की तरफ़ से राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में अमेरिका के समक्ष खड़े होने वाले ख़तरों से प्रेरित हैं. बाइडेन प्रशासन द्वारा प्रस्तुत किए गए तीन महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील दस्तावेज़ों, यानी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी (NSS), नेशनल डिफेंस स्ट्रेटजी (NDS) और न्यूक्लियर पोस्चर रिव्यू (NPR), सभी में चीन को अमेरिकी वर्चस्व के लिए सबसे ताक़तवर चुनौती के रूप में बताया गया है. यहां तक कि रूस के युद्ध की वजह से वर्चस्व की जो होड़ मची है, वो भी एक भयावह ख़तरे को सामने लाती है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी द्वारा चीन को "अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को फिर से निर्धारित करने के मंसूबे और इस मकसद को पूरा करने के लिए आर्थिक, कूटनीतिक, सैन्य एवं तकनीकी ताक़त बढ़ाने, दोनों ही लिहाज़ से एकमात्र प्रतिद्वंद्वी" के रूप में परिभाषित किया गया है. इन आकलनों में चीन की तरफ़ से आने वाले तकनीकी ख़तरों को अमेरिका की प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के तौर पर बताया गया है और इसी वजह से अमेरिका घरेलू और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए अपने क़दमों के ज़रिए ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित हुआ है.
निष्कर्ष
ऐसे में जबकि चीन से तकनीकी अलगाव बाइडेन प्रशासन के लिए प्रमुख चिंता का मुद्दा बना हुआ है, अमेरिका से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था पर सॉफ्ट-लैंडिंग प्रभाव यानी इकोनॉमी की धीमी लेकिन स्थाई प्रगति के लिए अन्य देशों के एक बड़े नेटवर्क के साथ मिलकर कार्य करे. चीन की चुनौती और चीन के विरुद्ध टेक्नोलॉजी सेक्टर में विनिमयों के व्यापक असर से निपटने के लिए समान विचारधारा वाले भागीदारों और उनके सहयोगियों के साथ अमेरिकी साझेदारी बेहद ज़रूरी है. जैसे-जैसे अमेरिका और चीन टैरिफ बाधाओं, निर्यात अंकुशों, प्रतिबंधों और ब्लैक लिस्ट में डालने के प्रभावों से निपटने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, चीन एवं अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन में दो अलग-अलग प्रकार के रुझान उभरने की उम्मीद है. चीन सरकारी समर्थन और सब्सिडी के साथ उन उद्योगों पर बल देगा, जो चिप्स और अन्य महत्त्वपूर्ण तकनीकों से संबंधित हैं एवं संवेदनशील प्रौद्योगिकियों व सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की प्रक्रिया को गति प्रदान करते हैं. द्विपक्षीय स्तर पर देखा जाए तो चीन हाल ही में साइन किए गए ऑडिट फर्म सुपरविज़न एग्रीमेंट समझौते समेत अमेरिका के साथ व्यापार से जुड़े समझौतों को रद्द करके या फिर WTO में अमेरिका के विरुद्ध उल्लंघन की शिकायत दर्ज़ करके जवाबी कार्रवाई कर सकता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो चीन अपने अनुमानित 44 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ ख़निज तत्वों के भंडार का लाभ उठाते हुए ऐसे देशों के साथ अपनी साझेदारियों को मज़बूत कर सकता है और वहां निवेश बढ़ा सकता है, जो चिप्स के एक महत्त्वपूर्ण घटक रेयर अर्थ मैटेरियल्स से समृद्ध हैं. जहां तक अमेरिका की बात है, तो उम्मीद है कि निजी उद्यम अन्य देशों और साझेदारों के लिए ऑफशोरिंग ज़िम्मेदारियों द्वारा नए प्रतिबंधों और विनियमों के असर को कम करने के लिए ज़्यादा स्वतंत्रता के साथ कार्य करेंगे. इस तरह के प्रयासों में अमेरिका की अगुवाई वाला 'चिप 4' गठबंधन भी होगा, जिसमें जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान शामिल हैं. यह तीनों देश ऐसे हैं, जो सेमीकंडक्टर निर्माण, डिजाइन और आपूर्ति को काफ़ी हद तक संचालित करते हैं. जैसा कि इन तीनों देशों के समक्ष चिप्स की समस्या से बड़े और अहम चीनी ख़तरे मौज़ूद हैं और ये व्यापक पैसिफिक क्षेत्र में संतुलन से बंधे हुए हैं, जिसके तेज़ होने की संभावना है.
आख़िर में, अमेरिका को चीन के विरुद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र और उससे भी आगे लचीली प्रौद्योगिकी साझेदारी स्थापित करने के अपने प्रयासों को काफ़ी जांच-परख के पश्चात आगे बढ़ाना होगा. विशेष रूप से जब बाइडेन प्रशासन चीन को निशाना बनाने और स्वंय को उससे अलग करने के लिए 'लोकतंत्र बनाम तानाशाही' की बहस को आगे बढ़ाता है, तो उसे अपने अन्य इंडो-पैसिफिक भागीदारों के आकलन को लेकर भी सतर्क रहना होगा. यह एक सच्चाई है कि सभी देश लोकतंत्र के बारे में वाशिंगटन की परिभाषा और उसकी समझ से इत्तेफाक नहीं रखते हैं, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देश. ऐसे में अमेरिका को निर्यात नियंत्रण के साथ में मानवाधिकार 'आचार संहिता' को जोड़ने की अपनी कोशिशों में ना केवल संतुलन स्थापित करना चाहिए, बल्कि इंडो-पैसिफिक रीजन में अपने अन्य भागीदारों को भी इसमें समायोजित करना चाहिए.
टेक्नोलॉजी से संबंधित और तकनीक से बढ़ी हुई क्षमताओं के साथ देशों की 'ग्रे ज़ोन' गतिविधियां बढ़ने की संभावना है. जब चीन के मद्देनज़र इन परिस्थितियों का आकलन किया जाता है, तो इसकी संभावना और बढ़ जाती है. हालांकि, चीन के तकनीकी उभार को लेकर अमेरिका की चिंताएं वास्तविक हैं, या फिर उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है, इसके बारे में भविष्य में ही पता चल पाएगा.
Endnotes
[1] Graham Allison, Kevin Klyman, Karina Barbesino and Hugo Yen, “The Great Tech Rivalry: China vs the U.S.,” Belfer Center for Science and International Affairs, Harvard Kennedy School, December 7, 2021.
[2] Global Trends 2040: A More Contested World, National Intelligence Council, United States of America.
[3] The White House, “FACT SHEET: President Biden Signs Executive Order to Implement the CHIPS and Science Act of 2022,” August 25, 2022.
[4] David Lynch, “Trump Announces Tariffs on China, Tech Crackdown Ahead of Key Trade Meeting,” The Washington Post, May 29, 2018.
[5] The White House, “President Donald J. Trump is Confronting China’s Unfair Trade Policies,” May 29, 2018.
[6] Louis Nelson, “White House Sees ‘Short-Term Pain’ as Trump Stokes China Trade War,” The Politico, April 4, 2018.
[7] Office of the United States Trade Representative Executive Office of the President.
“Findings of the Investigation into China’s Acts, Policies, and Practices related to Technology Transfer, Intellectual Property, and Innovation under section 301 of the Trade Act of 1974,” March 22, 2018,
[8] Jon Bateman, “Biden Is Now All-In on Taking Out China,” Foreign Policy, October 12, 2022.
[9] Vivek Mishra, “The Great US-China Tech Decoupling,” ORF, November 2, 2022.
[10] Bateman, “Biden Is Now All-In on Taking Out China”
[11] President Biden Signs CHIPS and Science Act into Law, White & Case, 12 August 2022,
[12] Zoya Sheftalovich and Laurens Cerulus, “The Chips are Down: Putin Scrambles for High-tech Parts as his Arsenal Goes Up in Smoke,” Politico, September 5, 2022.
[13] Morgan Meaker, “Russia’s War in Ukraine Could Spur Another Global Chip Shortage,” Wired, February 28, 2022.
[14] “Made in China 2025,” Industrial Policies: Issues for Congress, Congressional Research Service, December 22, 2022.
[15] “Made in China 2025,” Industrial Policies: Issues for Congress
[16] Don Clark and Ana Swanson, “U.S. Pours Money Into Chips, but Even Soaring Spending Has Limits,” New York Times, January 1, 2023.
[17] Don Weinland, “The Tech War Between America and China is Just Getting Started,” The Economist, November 18, 2022.
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