Author : Naghma Sahar

Published on Jan 16, 2019 Updated 0 Hours ago

किसी भी चीज़ के चीनीकरण का मतलब ये है की उसे चीनी रंग रूप में ढाला जाए और अब यही चीन अपनी मुसलमान आबादी के साथ करने वाला है।

चीन की सीनाजोरी के आगे चुप है देश

दुनिया धार्मिक कट्टरता की बात करती रहती है लेकिन चीन ने ये कर के दिखाया है। चीन ने दिखाया है कि वो सीनाजोरी कर सकता है और दुनिया पलक भी नहीं झपकाएगी। चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स में कुछ दिनों पहले खबर आई कि चीन ने इस्लाम के sinicisation की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है। यानी इस्लाम का चीनीकरण। ऐलान कर के एक नया कानून पारित किया गया जिसके तहत आने वाले पांच सालों में चीन में इस्लाम को चीनी रंगरूप दिया जायेगा। इस से ये साफ़ हो गया है कि अब से चीन में कानूनी तौर पर वही इस्लाम चलेगा जो कम्युनिस्ट पार्टी के सिद्धांतों के मुताबिक होगा, जिसका चीन की संस्कृति से कोई टकराव न हो, बाक़ी कानूनन ग़ैरकानूनी करार दिए गए हैं।

किसी भी चीज़ के चीनीकरण का मतलब ये है की उसे चीनी रंग रूप में ढाला जाए और अब यही चीन अपनी मुसलमान आबादी के साथ करने वाला है। चीन में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी शिनजियांग प्रांत में है जो चीन का सबसे बड़ा प्रान्त है। यहाँ की कुल आबादी का ४५ फीसदी हिस्सा उईघर मुसलमान हैं। चीन में ५५ अल्पसंख्यक समुदायों को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गयी है जिनमें से एक उईघर हैं। लेकिन इनपर सालों से अत्याचार हो रहा है। ये लम्बी दाढ़ी नहीं रखने, सड़कों, बाज़ारों, बसों में हिजाब न पहनने और रोज़ा न रखने से कहीं ज्यादा है। मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन ने उईघर मुसलमानों के लिए ख़ास तरह के डिटेंशन कैंप बनाये हैं जहाँ उन्हें बंदी बना कर रखा जाता है और शराब पीने या फिर सूअर का मांस खाने को मजबूर किया जाता है। पार्टी के मुताबिक ये कैंप मेंटल अस्पताल हैं जहाँ वैचारिक बीमारी का इलाज किया जा रहा है। UN के मुताबिक इन ख़ास डिटेंशन कैंप में १० लाख से ज्यादा उईघर मुसलमान क़ैद में रखे गए हैं। यहाँ उन्हें ज़बरदस्ती मज़हब छोड़ने पर मजबूर किया जाता है और कम्युनिस्ट पार्टी की वफादारी की शपथ दिलाई जाती है। मानवाधिकार सन्सथानो के मुताबिक ये संख्या और ज्यादा है और इनमें से एक बड़ी तादाद शिनजियांग प्रांत के कैम्पों और जेलों में गायब हो गए हैं।

जहाँ तक चीन के उईघर मुसलमानों का सवाल है पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी और कट्टरपंथियों की जमात दोनों ही खामोश हैं।

इस पर किसी भी देश से ज्यादा विरोध नहीं हुआ है। चीन का सदाबहार दोस्त पाकिस्तान तक इस पर उफ़ नहीं करता जबकि वो भारत में अल्पसंख्यकों का हितैषी बनने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ता, बल्कि दुनिया भर में चाहे रोहिंग्या हों या कोई और देश वो मुसलमानों का सरपरस्त बनने का मौक़ा नहीं गंवाता। लेकिन जहाँ तक चीन के उईघर मुसलमानों का सवाल है पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी और कट्टरपंथियों की जमात दोनों ही खामोश हैं।

हालाँकि किसी भी चीज़ का चीनीकरण नया नहीं है लेकिन राष्ट्रपति शी जो माओ के बाद से चीन के सबसे ताक़तवर नेता के रूप में उभरे हैं, उनके काल में इसे एक नयी आक्रामकता मिली है। इस से इस्लाम को मानने वालों की आजादी कम होती गयी है। अब जब धार्मिक कट्टरता को कानूनी जामा पहना दिया जायेगा, तो ज़ाहिर है बीजिंग धर्म की मान्यताओं को चीनी समाजवाद के नज़रिए से दोबारा लिखेगा.. फिलहाल चीन के कई इलाकों में इस्लाम पर पाबन्दी है.. अगर कोई नमाज़ पढ़ते, या रोज़ा रखे या हिजाब और दाढ़ी के साथ नज़र आ गया तो गिरफ़्तारी का खतरा रहता है। इसके लावा कई मस्जिदों को बंद किया गया है। पिछले साल चीन की सरकार ने सभी प्रान्तों को इस बात के आदेश दिए कि वो अपने यहाँ खाद्य प्रोडक्ट्स में हलाल स्टैण्डर्ड को हटा दें, जबकि उस से पहले एक्सपोर्ट के लये हलाल को बढ़ावा दिया जाता था। क्या ये इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम से नफरत नहीं?

पिछले साल चीन की सरकार ने सभी प्रान्तों को इस बात के आदेश दिए कि वो अपने यहाँ खाद्य प्रोडक्ट्स में हलाल स्टैण्डर्ड को हटा दें, जबकि उस से पहले एक्सपोर्ट के लये हलाल को बढ़ावा दिया जाता था। क्या ये इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम से नफरत नहीं?

पहले उईघर मुसलमानों को सिलसिलेवार तरीके से निशाना बनाया गया और अब देश में दुसरे मुस्लिम अल्पसंख्यकों तक ये खतरा फैल गया है।

सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने धर्म के चीनीकरण को इस तर्क के साथ सही ठहराया है कि चीन को इस्लामी अलगाववाद और कट्टरपंथियों का खतरा झेलना पड़ रहा है।

हालाँकि चीन में मुसलमानों की आबादी लगभग १० मिलियन है, इस्लाम चीन में एक सदी से भी पुराना मज़हब है। लेकिन इस्लाम से नफरत हाल की उपज है, पिछले ४-५ सालों में इसमें आक्रामकता आई है। इस्लाम के चीनीकरण के लिए एक रूपरेखा तैयार की गयी है जो पंचवर्षीय योजना के तहत लागू की जायेगी, ८ प्रान्तों के स्थानीय इस्लामिक संगठनों के प्रतिनिधियों से इस पर विचार विमर्श गया है। इस्लाम के चीनीकरण का ये प्रस्ताव राष्ट्रपति शी ने २०१५ में लाया था, तब से अब ये और ज्यादा परिपक्व हो गया है। कहा जा रहा है कि इस्लाम को चीनी रंगरूप देने का ये मतलब कतई नही कि विचारधाराएँ या मान्यताएं बदली जाएँगी, बस ये इस्लाम धर्म की सोशलिस्ट समाज से समरसता बढ़ाने की दिशा में एक पहल है। हालाँकि कानून अभी सिर्फ इस्लाम की बात करता है लेकिन चीन की फेहरिस्त में दुसरे धर्म भी हैं.. ताओ, बौद्ध, कैथोलिक और प्रोटोस्टेंट भी अपनी आस्थाओं के चीनीकरण के इंतज़ार में हैं।

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