Published on Dec 18, 2020 Updated 0 Hours ago

तीन किस्तों की ये सीरीज़ संदीप बामज़ई की हालिया किताब, ‘प्रिंसेस्तान: नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे बनाया भारत’ से हमें पता चलता है कि विंस्टन चर्चिल ने ‘भारत के कुछ हिस्से’ अपने क़ाबू में रखने की साज़िश के तहत किस तरह, भारतीय रजवाड़ों को भड़काया, ताकि ब्रिटेन, इस उप-महाद्वीप पर किसी न किसी तरह का नियंत्रण बनाए रखे.

स्वतंत्र भारत के निर्माण के पीछे की साज़िशें और दांव-पेंच (भाग-1)

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री एक ‘बेशर्म साम्राज्यवादी’ थे और उस समय भी उनकी यही सोच बनी रही, जबकि ‘तब साम्राज्यवाद अपने आख़िरी दौर में था’, जैसा कि सरदार पटेल ने कहा था. आज भी अधिकतर भारतीय ऐसा ही मानते हैं. लेकिन, बहुत कम लोगों को ये पता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान विंस्टन चर्चिल ने ऐसी साज़िश रची थी जिससे भारत को हमेशा के लिए तगड़ा झटका लग जाता. प्रिंसेस्तान किताब से पहली बार उस घातक साज़िश पर से पर्दा उठा है, जिसके तहत भारत को कई टुकड़ों में विभाजित करने की चाल चली गई थी.

इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस के CEO और एडिटर इन चीफ, संदीप बामज़ाई बता रहे हैं कि जब भारत की आज़ादी का सूरज उगना तय हो चुका था और ये बात दीवार पर इबारत की तरह लिखी जा चुकी थी कि ब्रिटेन को भारत से जाना ही होगा, तब भी चर्चिल ने बड़ी सरगर्मी से ये कोशिश की थी कि वो भारत में किसी न किसी तरह ब्रिटेन की उपस्थिति और प्रभाव को बनाए रखें. बामज़ई लिखते हैं कि, जब अगस्त 1945 को चर्चिल ने भारत के वायसरॉय लॉर्ड वेवेल से मुलाक़ात की थी, तब चर्चिल ने वेवेल को सलाह दी थी कि वो ब्रिटेन के लिए ‘भारत का कुछ हिस्सा बचाकर रखें’. बामज़ई के मुताबिक़, चर्चिल ने वेवेल को दो टूक शब्दों में ये बात कही थी.

जब अगस्त 1945 को चर्चिल ने भारत के वायसरॉय लॉर्ड वेवेल से मुलाक़ात की थी, तब चर्चिल ने वेवेल को सलाह दी थी कि वो ब्रिटेन के लिए ‘भारत का कुछ हिस्सा बचाकर रखें’.

चर्चिल, भारत में ब्रिटेन की जैसी उपस्थिति चाहते थे, उसका सीधा ताल्लुक़ एशिया में ब्रिटेन के हितों के संरक्षण से था. ज़ाहिर है कि चर्चिल के नेतृत्व वाले ब्रिटेन की अपने साम्राज्य को बचाने की ललक बनी हुई थी, जबकि दूसरे विश्व युद्ध के ख़ात्मे तक विश्व व्यवस्था की कमान ब्रिटेन के हाथ से निकलकर अमेरिका के पास जा चुकी थी.

अब तक, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ब्रिटेन का इरादा भारत को तीन हिस्सों में बांटने का था-भारत, पाकिस्तान और रजवाड़े-रियासतें. ये एक ऐसी योजना थी, जिसे चर्चिल के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने क्लीमेंट एटली तक ने ख़ारिज नहीं किया था. बामज़ई ने भारत के ख़िलाफ़ तब चर्चिल के नेतृत्व में रची गई इस भयंकर साज़िश के एक नए पहलू को उजागर किया है. चर्चिल, भारत की रियासतों के साथ मिलकर काम कर रहे थे, क्योंकि ये राजे-रजवाड़े नवोदित भारतीय गणतंत्र का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे.

किताब का अंश

दूसरे विश्व युद्ध के ख़ात्मे के बाद ब्रिटेन में हुए चुनाव में कंज़रवेटिव पार्टी का सूपड़ा साफ़ हो गया था. 31 अगस्त 1945 को जब वेवेल, चर्चिल से मिलकर अपने घर वापस जा रहे थे, तो चर्चिल ने लॉर्ड वेवेल से दो टूक कहा था कि, ‘भारत का एक हिस्सा ब्रिटेन के लिए बचाए रखना.’ जब चर्चिल, वेवेल को अपने दरवाज़े तक छोड़ने आए थे और ये संदेश देते हुए लिफ्ट का दरवाज़ा बंद किया था, तो इसकी गूंज बहुत दिनों तक सुनाई पड़ती रही थी. ख़ुद चर्चिल को ब्रिटेन की जनता ने सत्ता से हटाकर उनकी जगह एटली को देश का प्रधानमंत्री चुन लिया था. उसी साल बसंत के दिनों में चर्चिल जब सत्ता में थे, तभी उन्होंने वेवेल से बातचीत के दौरान, भारत का तीन हिस्सों-भारत, पाकिस्तान और प्रिंसेस्तान में विभाजन करने की सलाह दी थी. विश्व युद्ध के दौरान चर्चिल के मंत्रिमंडल में विदेश सचिव रहे लियोपोल्ड एमरी ने भी लगभग ऐसी ही बात, वेवेल के पूर्ववर्ती भारत के वायसरॉय लॉर्ड लिनलिथगो से वर्ष 1942 में तब कही थी, जब क्रिप्स मिशन की वार्ता चल रही थी: ‘दिल्ली पर नज़र रखने के लिए थोड़ी जगह बचाकर रखना’. लेकिन लिनलिथगो ने तब इस सलाह की अनदेखी कर दी थी, क्योंकि उनका विश्वास था कि ब्रिटेन अभी अगले तीस बरस तक भारत पर राज कर सकता था — सच तो ये है कि लिनलिथगो ने 19 अक्टूबर 1943 को वेवेल के लिए वायसरॉय का पद छोड़ते हुए यही बात कही थी. क्योंकि, चर्चिल की तरह वेवेल भी कांग्रेस विरोधी थे. लेकिन, इन सबका आकलन ग़लत साबित हुआ. क्योंकि, क्लीमेंट एटली ने लॉर्ड वेवेल की जगह माउंटबेटेन को भारत का वायसरॉय बनाकर भेज दिया. और माउंटबेटेन ने आने के साथ ही इस मिशन पर काम करना शुरू किया कि ब्रिटेन को पहले से तय तारीख़ 30 जून 1948 से काफ़ी पहले यानी 15 अगस्त 1947 तक हर हाल में भारत को अलविदा कह देना है. और जहां तक राजे रजवाड़ों की बात है, तो नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने अलग अलग चरणों में उन सबको भारत में समाहित कर लिया.

विश्व युद्ध के दौरान चर्चिल के मंत्रिमंडल में विदेश सचिव रहे लियोपोल्ड एमरी ने भी लगभग ऐसी ही बात, वेवेल के पूर्ववर्ती भारत के वायसरॉय लॉर्ड लिनलिथगो से वर्ष 1942 में तब कही थी, जब क्रिप्स मिशन की वार्ता चल रही थी

राजे-रजवाड़ों और रियासतों का साथ

मगर, ‘ब्रिटेन के लिए भारत का एक हिस्सा बचा कर रखने’ की योजना, साम्राज्यवादियों के दिल में बनी रही और उनकी उम्मीद उन रियासतों के शासकों, दीवानों और प्रधानमंत्रियों ने जगाए रखी, जो सीमांत में स्थित थे. जैसे कि, कश्मीर, हैदराबाद, भोपाल, जोधपुर और त्रावणकोर. इन रियासतों के शासक लंबे समय तक भारत में विलय के बजाय लुका-छिपी का खेल खेलते रहे. वो आज़ादी से लेकर प्रिंसेस्तान नाम के अलग भारत के ख़्वाब सजाते रहे. मज़े की बात ये है कि अमेरिका का विदेश मंत्रालय भी इस मुश्किल वक़्त में अपने फ़ायदे का रास्ता तलाश रहा था.

कश्मीर, हैदराबाद, भोपाल, जोधपुर और त्रावणकोर. इन रियासतों के शासक लंबे समय तक भारत में विलय के बजाय लुका-छिपी का खेल खेलते रहे. वो आज़ादी से लेकर प्रिंसेस्तान नाम के अलग भारत के ख़्वाब सजाते रहे

कुछ रियासतों के खनिज संसाधनों में दिलचस्पी रखने वाले वेवेल ने लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस को 26 फरवरी 1947 को भेजे गए एक मेमो में लिखा था कि — ‘ब्रिटिश सरकार (HMG) के बयान जारी होने के फ़ौरन बाद, दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के सेकेंड सेक्रेटरी मेरे उप निजी सचिव से मिलने आए. उन्होंने मुझसे पूछा कि अगर भारत की संविधान सभा किसी साझा संविधान पर सहमत नहीं होती है, तो भारत से रवाना होने के पहले ब्रिटेन यहां की सत्ता की बागडोर किसके हाथ में सौंपेगा? उन्होंने पूछा कि अगर पूरे भारत में लागू होने वाले संविधान पर सहमति नहीं बनती, तो क्या ब्रिटिश सरकार भारतीय रियासतों से अलग समझौते करने वाली है? उन्होंने ख़ास तौर से त्रावणकोर के बारे में मुझसे अर्थपूर्ण नज़रों से पूछा और इस बात का भी ज़िक्र किया कि हो सकता है कि कालात के पास तेल हो.’


(किताब ‘प्रिंसेस्तान: नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे भारत का निर्माण किया’ के प्रकाशकों रूपा पब्लिकेशन की सहमति से प्रकाशित अंश. किताब को यहां ख़रीदें) 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.