Author : Abhijit Singh

Published on Mar 02, 2022 Updated 0 Hours ago

हाल ही में नियुक्त किए गए समुद्री सुरक्षा को-ऑर्डिनेटर को तमाम एजेंसियों के बीच तालमेल को सुनिश्चित करना होगा, जिससे कि भारत की समुद्री सुरक्षा का ढांचा मज़बूत हो सके. 

भारत के समुद्री सुरक्षा संयोजक के सामने जो चुनौतियाँ खड़ी हैं, वो बिल्कुल साफ़-साफ़ दिख रहा है!

सरकार ने देश के पहले राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक या को-ऑर्डिनेटर (NMSC) की नियुक्ति कर दी है. नौसेना के पूर्व उप प्रमुख, वाइस एडमिरल अशोक कुमार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में समुद्री सुरक्षा के संयोजक पद पर नियुक्त किया गया है. उनकी ज़िम्मेदारी ये होगी कि वो तमाम एजेंसियों और भागीदारों के कामकाज में तालमेल बिठाकर भारत की विशाल समुद्री तट रेखा की सुरक्षा सुनिश्चित करें. इसके साथ साथ उन्हें भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में देश के हितों की निगहबानी भी करनी होगी.

देश में राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा को-ऑर्डिनेटर की नियुक्ति पिछले दो दशक से ज़्यादा समय से चली आ रही चर्चाओं का नतीजा है. पाकिस्तान के साथ 1999 के कारगिल युद्ध के बाद पहली बार समुद्री सुरक्षा के ढांचे को मज़बूत करने के लिए प्रस्ताव पेश किया गया था. 2008 के मुंबई आतंकी हमलों ने एक समुद्री सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के गठन और समुद्री सुरक्षा सलाहकार- को नियुक्त करने की मांग को और तेज़ कर दिया. इसका मक़सद सभी समुद्री मामलों के लिए एक केंद्रीय संस्था का निर्माण करना था. उसके बाद के वर्षों में तटीय सुरक्षा को काफ़ी तवज्जो दी जा रही है. नौसेना और तट रक्षकों के आधुनिकीकरण के साथ साथ, समुद्र तट की निगरानी के मूलभूत ढांचे का भी काफ़ी विस्तार किया गया है. इन क़दमों के बावजूद, भारत की समुद्री एजेंसियों के बीच तालमेल को कभी भी पूरी तरह से अमली जामा नहीं पहनाया जा सका. इसकी एक बड़ी वजह ये रही कि बहुत से तटीय राज्यों की समुद्री पुलिस सेवा, तटीय सुरक्षा की ज़रूरतों को लेकर बेपरवाह रही है. हाल ही में गुजरात में पकड़ी गई ड्रग की बड़ी खेप इस बात को उजागर करती है कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान स्थित ड्रग की तस्करी के गिरोहों के लिए समुद्री रास्ता आज भी सबसे पसंदीदा बना हुआ है.

देश में राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा को-ऑर्डिनेटर की नियुक्ति पिछले दो दशक से ज़्यादा समय से चली आ रही चर्चाओं का नतीजा है. पाकिस्तान के साथ 1999 के कारगिल युद्ध के बाद पहली बार समुद्री सुरक्षा के ढांचे को मज़बूत करने के लिए प्रस्ताव पेश किया गया था.

यूएन में पाँच सूत्रीय परिकल्पना

 राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक की भूमिका कितनी असरदार साबित होती है, ये उसके कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों के चार्टर की बारीकियों पर निर्भर करेगा. जो बात अभी साफ़ है, वो ये कि एडमिरल अशोक कुमार की बुनियादी ज़िम्मेदारी यही होगी कि वो समुद्री क्षेत्र के ख़तरों को एक बड़े नज़रिए से देखें. संभावना यही है कि उन्हें प्रधानमंत्री के ‘सागर’ (Security and Growth for All) मंत्र से प्रेरणा मिलेगी. पिछले साल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की परिचर्चा में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सागर’ की परिकल्पना को ‘पांच सिद्धांतों’ के ज़रिए और आगे बढ़ाया था, जिससे समुद्री क्षेत्र की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इन सिद्धांतों में समुद्री व्यापार की बाधाएं दूर करना; विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा; प्राकृतिक आपदाओं और नॉन स्टेट संगठनों से पैदा होने वाले ख़तरो से मिलकर निपटना; समुद्री संसाधनों और पर्यावरण का संरक्षण करना; और उत्तरदायी समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना शामिल है. सरकार द्वारा इस साल समुद्री थिएटर कमान की स्थापना करने के प्रस्ताव से इस बड़ी पहल में और भी तेज़ी आने की उम्मीद है.

ऐसे में ये कहना पर्याप्त होगा कि एडमिरल अशोक कुमार को तुरंत काम पर जुट जाना होगा. समुद्री सुरक्षा में सुधार और समुद्री एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतर होने के बाद भी, ज़्यादातर राज्य सरकारें, समुद्र तटीय सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाने की इच्छुक नहीं नज़र आती हैं. समुद्री पुलिस थानों की कम संख्या से लेकर तटीय निगरानी के लिए गश्ती नौकाओं का कम इस्तेमाल करने और तट पर स्थित मूलभूत ढांचे और कर्मचारियों की भारी कमी और मिले फंड को ख़र्च न करने के चलते सुरक्षा के ढांचे में संस्थागत कमज़ोरियां अभी भी बनी हुई हैं. राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा को-ऑर्डिनेटर की फ़ौरी ज़िम्मेदारी तो इन कमियों को दूर करने की होगी.

एडमिरल अशोक कुमार को तुरंत काम पर जुट जाना होगा. समुद्री सुरक्षा में सुधार और समुद्री एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतर होने के बाद भी, ज़्यादातर राज्य सरकारें, समुद्र तटीय सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाने की इच्छुक नहीं नज़र आती हैं.

कुछ लोगों के मुताबिक़, समुद्री सुरक्षा से जुड़ी भारत की एजेंसियां, आतंकवाद के ख़तरे पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देती हैं. इसके चलते वो इंसानों की तस्करी, अवैध रूप से मछली मारने, जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए संकटों और समुद्री प्रदूषण जैसी ग़ैर पारंपरिक चुनौतियों पर बहुत कम ज़ोर देती हैं. एडमिरल अशोक कुमार, नौसेना, तट रक्षक बल, समुद्री पुलिस और अन्य एजेंसियों के बीच बातचीत करके इन दोनों चुनौतियों के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश करेंगे. भारत के छोटे बंदरगाहों की सुरक्षा पर भी उन्हें क़रीब से निगाह डालनी होगी. क्योंकि, इन बंदरगाहों पर प्रशासन को (2021 के भारतीय बंदरगाह विधेयक के चलते) तार्किक  बनाने की भी व्यापक रूप से आलोचना होती रही है.

समुद्री क्षेत्र में तालमेल

इस बीच, एक केंद्रीय समुद्री पुलिस बल के गठन का गृह मंत्रालय का प्रस्ताव अभी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास विचाराधीन है. संभावना यही है कि इस नए बल के अपने कर्मचारी, नियम, मैनुअल, क़ानून और मूलभूत ढांचे की सुविधाएं होंगी, और इस बल की अगुवाई महानिदेशक स्तर के अधिकारी करेंगे. इसके बाद भी, अभी ये साफ़ नहीं है कि इस नए केंद्रीय संगठन के पास अपराध दर्ज करके जांच करने का अधिकार होगा या फिर नहीं. इसके लिए अभी भी तटीय सुरक्षा बिल 2013 पर संसद की मुहर लगनी बाक़ी है; सुरक्षा के योजनाकारों के लिए अलग अलग भागीदारों की ज़िम्मेदारियों का साफ़ तौर से बंटवारा करना भी एक बड़ी चुनौती होगी.

अलग-अलग समुद्री एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में घालमेल के चलते राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक को ये भी सुनिश्चित करने पर ज़ोर देना होगा कि एजेंसियों द्वारा आपस में गोपनीय जानकारियां साझा करने की पुरानी कमज़ोरी फिर से न हावी हो.

अलग-अलग भागीदारों के बीच टकराव और खींचतान को सुलझाने के साथ साथ, राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक को तटीय निगरानी और ख़ास तौर से तट पर लगे रडारों की संख्या बढ़ाने और छोटी नौकाओं के लिए स्वचालित पहचान व्यवस्था (AIS) पर भी ज़ोर देना होगा. अपने क्षेत्र की बेहतर जागरूकता के लिए गोपनीय जानकारी जुटाने के मानवीय पहलू पर भी और अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है. अलग-अलग समुद्री एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में घालमेल के चलते राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक को ये भी सुनिश्चित करने पर ज़ोर देना होगा कि एजेंसियों द्वारा आपस में गोपनीय जानकारियां साझा करने की पुरानी कमज़ोरी फिर से न हावी हो. समुद्री क्षेत्र के विकास का मसला भी अहम बना हुआ है हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने अंदमान और निकोबार द्वीप समूह पर सैन्य और असैन्य मूलभूत ढांचा विकसित करने की कोशिश की है. लेकिन, पर्यावरणविद् कहते हैं कि मूलभूत ढांचे के विकास के लिए घोषित की गई तमाम परियोजनाओं से इन द्वीपों का नाज़ुक पर्यावरण तबाह हो जाएगा. अब ये देखने वाली बात होगी कि राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक को विकास और समुद्री संरक्षण के मामलों में सलाह देने का अधिकार होगा या फिर नहीं.

कुल मिलाकर, एडमिरल अशोक कुमार अपना ध्यान भारत के समुद्री क्षेत्र के तमाम भागीदारों के बीच तालमेल बढ़ाने पर केंद्रित करेंगे. फ़ौरी तौर पर, संभावना यही है कि वो समुद्री और तटीय सुरक्षा की समीक्षा करने वाली सर्वोच्च संस्था यानी ‘समुद्री और तटीय सुरक्षा को मज़बूत बनाने की राष्ट्रीय समिति’ (NCSMCS) के साथ मिलकर काम करेंगे. हालांकि, आगे चलकर, राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संयोजक को भारत की समुद्री सुरक्षा को लेकर अलग अलग विचारों और नज़रियों के बीच एकरूपता लाने की ज़रूरत होगी. इसमें कोई दो राय नहीं कि ये बहुत बड़ी चुनौती साबित होने वाली है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.