Author : Aarshi Tirkey

Published on Sep 28, 2020 Updated 0 Hours ago

बीआरआई परियोजनाएं अलग-अलग देशों से जुड़ी हैं, जहां अलग तरह की न्याय प्रणालियां हैं. विभिन्न देशों के बीच कानून और नियमन संबंधी ये अंतर, इस बात की संभावना को बढ़ाते हैं कि ये परियोजनाएं, कानूनी दांव-पेंच में फंस जाएं और अनिश्चितता बढ़े.

चीन की व्यावसायिक अदालतों का कड़वा सच

साल 2013 में कई खरब डॉलर की लागत से शुरु की गई, चीन की बेल्ट एंड रोड योजना (BRI) एक महत्वाकांक्षी योजना है. बुनियादी ढांचे के निर्माण से संबंधित इस परियोजना पर ज़ोर-शोर से काम चल रहा है और इसे एक प्रभावी भू-राजनीतिक पहल के रूप में देखा जा रहा है. अब तक 60 से अधिक देशों को साथ लेकर चलते हुए बीआरआई को आर्थिक एकीकरण का एक वैकल्पिक मॉडल तैयार करने और वैश्विक शासन-प्रणाली का एक नया रूप गढ़ने की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ऐसे में अलग-अलग क्षेत्रों में होने वाले इस विकास का कानूनी क्षेत्र पर प्रभाव पड़ने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता. यह बदलाव या प्रभाव ख़ासतौर पर अंतरराष्ट्रीय पक्षों से जुड़े विवाद सुलझाने और मतभेदों का समाधान ढूंढने संबंधी क्षेत्र में हो सकते हैं.

बीआरआई परियोजनाएं अलग-अलग देशों में मौजूद हैं, जहां अलग-अलग कानून प्रणालियां काम करती हैं. इनमें अंग्रेज़ी आम क़ानून, एंग्लो-अमेरिकन सिविल लॉ और इस्लामिक कानून, जैसी कुछ व्यवस्थाएं शामिल हैं. बीआरआई के परिप्रेक्ष्य में देखें तो अलग-अलग जगहों के कानून और नियमन संबंधी ये अंतर, अनिश्चितताओं को बढ़ाते हैं, और इस बात का जोखिम भी बढ़ जाता है कि परियोजना इन जगहों से संबंधित कानूनी दांव-पेंच में न फंस जाए. स्वाभाविक है कि चीनी निवेश और समर्थन के साथ बीआरआई जिस तरह आगे बढ़ रहा है, उसी के साथ, चीनी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों (SOE) और निजी कंपनियों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों की संख्या भी कई गुना बढ़ेगी. कई परियोजनाएं पहले ही कानूनी पचड़ों में पड़ चुकी हैं; उदाहरण के लिए, बेलग्रेड-बुडापेस्ट हाई-स्पीड रेलवे परियोजना में एक साल से अधिक की देरी हुई क्योंकि परियोजना से जुड़े हंगरी के आधिकारिक पक्ष ने यूरोपीय नियमों को दरकिनार कर सार्वजनिक बोलियों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था.

चीनी निवेश और समर्थन के साथ बीआरआई जिस तरह आगे बढ़ रहा है, उसी के साथ, चीनी राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों (SOE) और निजी कंपनियों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों की संख्या भी कई गुना बढ़ेगी.

इन मामलों की जटिलता को देखते हुए, एक सवाल यह उठता है कि विवाद को सुनने के लिए कौन सा मंच सबसे उपयुक्त होगा: क्या यह विदेशी अदालतें होंगी, या चीनी अदालतें या फिर ये मामले केवल अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रों में ही सुने और सुलझाए जाने चाहिए? इनमें से बहुत कुछ संबंधित पक्षों, उनके बीच हुए क़रार या समझौतों, अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं और मामले से जुड़े प्रासंगिक तथ्यों पर निर्भर करता है- जैसे, कंपनियां कहां स्थित हैं, या अनुबंध पर कहां हस्ताक्षर किए गए थे. यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीनी दलों को लगता है कि विदेशी निवेश से जुड़े विवादों में चीन हमेशा वंचित और नुक़सान की स्थिति में रहा है. साल 2018 में दिए एक साक्षात्कार में, ‘चाइनीज़ काउंसिल फॉर द प्रमोशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड’ (CCPIT) जो चीनी सरकार की व्यापार संबंधी एक इकाई है, ने खुलासा किया था कि विवादों को हल करने के लिए विदेशी मध्यस्थता संस्थानों को चुनने वाले चीनी उद्यमों ने इनमें से 90 प्रतिशत मामलों में हार का सामना किया. ऐसे में, इस समस्या को हल करने और बीआरआई परियोजना में भाग लेने वाली स्थानीय कंपनियों के विश्वास को बनाए रखने के लिए, बीजिंग ने चीन अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालयों (CICC) की स्थापना की है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति द्वारा सीआईसीसी को पहली बार जनवरी 2018 में प्रस्तावित किया गया था, जब बीआरआई संबंधी विवादों के समाधान के लिए विकल्पों की तलाश की जा रही थी. इसके बाद, अगस्त 2018 में सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट (SPC) द्वारा जारी की गई एक राय के आधार पर, शेनजेन और शीआन इन दो शहरों में, अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय स्थापित किए गए. क्रमवार रूप से ये दोनों शहर बीआरआई की समुद्रवर्ती “रोड” और थल मार्ग पर आधारित “बेल्ट” के नज़दीकी इलाके हैं. इस संबंध में यह जानना भी ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय विश्व स्तर पर एक नई अवधारणा हैं, और सिंगापुर, दुबई, क़तर और अबू धाबी जैसे प्रमुख शहरों में इन्हें हाल ही में बनाया गया है. इनका उद्देश्य राष्ट्रीय अदालतों और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता केंद्रों (ICC) का विकल्प प्रदान करना है. आईसीसी विशिष्ट और परिवर्तनीय नियमों के साथ राष्ट्रीय न्यायिक आदेश का हिस्सा होते हैं. इस तरह के केंद्रों या संस्थानों का प्राथमिक उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय दलों के लिए एक पारदर्शी, सुलभ और निष्पक्ष प्रक्रिया के ज़रिए विवादों को सुलझाना और मतभेद की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय पक्षों को सलाह देना है. इस मायने में सीआईसीसी विवादों को सुलझाने का एक चीनी विकल्प प्रदान करना है, यह देखते हुए कि बीआरआई परियोजना के आगे बढ़ने पर बहुपक्षीय विवादों की संख्या बढ़ने की संभावना है.

आईसीसी विशिष्ट और परिवर्तनीय नियमों के साथ राष्ट्रीय न्यायिक आदेश का हिस्सा होते हैं. इस तरह के केंद्रों या संस्थानों का प्राथमिक उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय दलों के लिए एक पारदर्शी, सुलभ और निष्पक्ष प्रक्रिया के ज़रिए विवादों को सुलझाना और मतभेद की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय पक्षों को सलाह देना है.

सीआईसीसी की बात करें तो यह, सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट, जो चीन का सर्वोच्च न्यायालय है, उसके अंतर्गत आने वाला एक स्थायी निकाय है. यह एक ऐसी इकाई है जो “वन-स्टॉप-शॉप” यानी एक ही पटल पर सभी तरह के उपाय और हल उपलब्ध कराने का काम करेगा. इसमें विवाद सुलझाना, मध्यस्थता, और मध्यस्थता व मुक़दमेबाज़ी जैसे सभी विकल्प और प्रक्रियाएं शामिल हैं. सीआईसीसी के अधिकार क्षेत्र में, महत्वपूर्ण और बड़े मौद्रिक मामलों के अलावा ऐसे अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों को सुनना और सुलझाना भी आता है, जिनका “महत्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी प्रभाव” हो. यह निकाय केवल समकक्ष अंतरराष्ट्रीय पक्षों से जुड़े नागरिक और वाणिज्यिक विवादों को ही सुनेगा. यह राज्यों के बीच के व्यापार संबंधी, निवेश संबंधी या फिर निवेशक और राज्यों के बीच के विवादों पर सुनवाई नहीं करेगा. सीआईसीसी के प्रक्रिया संबंधी नियम 40 अनुच्छेदों में दर्ज हैं, और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कानूनों के बजाय चीन के प्रक्रियात्मक कानूनों से लिए गए हैं.

सीआईसीसी का लक्ष्य ख़ुद को अंतरराष्ट्रीय चार्टर वाली एक संस्था के रूप में पेश करना है, जो बीआरआई की अवधारणा का अभिन्न अंग है और उससे मेल खाता है. हालांकि, सीआईसीसी को नज़दीकी रूप से समझने पर यह बात सामने आती है कि यह संस्था अपने वैश्विक समकक्षों की तुलना में रूढ़िवादी और सीमित है. नीचे दी गई तालिका सीआईसीसी और अन्य अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रो के बीच तुलना करती है. सीआईसीसी की सीमा या उसकी सबसे बड़ी ख़ामी यह है कि इसके नियमों के तहत, केवल चीनी नागरिकों को ही न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय पक्षों को सुनने वाली संस्था होने के बावजूद, कोई विदेशी नागरिक इसका न्यायाधीश नहीं बन सकता. सीआईसीसी में ऐसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीशों को नियुक्त करने का भी कोई प्रावधान नहीं है, जिन्हें विदेशी न्यायालयों में विदेशी कानूनों को लागू करने या उनके आधार पर कार्रवाई करने का अनुभव रहा हो. इसके उलट अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रों के काम काज को देखों तो विदेशी न्यायाधीश, इन केंद्रों की विश्वसनीयता और निष्पक्षता क़ायम करने में अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इस बात को लेकर हमेशा एक चिंता ज़ाहिर की जाती है कि घरेलू अदालतें और न्यायाधीश, स्थानीय संरक्षणवाद से प्रभावित होकर, स्थानीय हितों व घरेलू उद्यमों के पक्ष में निर्णय ले सकते हैं.

तालिका: प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक अदालतों का तुलनात्मक चित्रण तुलना

संस्थान बेंच का आकार अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश अदालत की भाषा
सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय 36 16 अंग्रेज़ी
दुबई अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र 8 5 अंग्रेज़ी
कतर इंटरनेशनल कोर्ट 12 10 अंग्रेजी और अरबी
चीन अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय 16 0 अकर्मण्य

स्रोत: वी काय और एंड्र्यू गॉडविन- चीन के अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालयों के समक्ष चुनौतियां और अवसर

एक और बात जो सीआईसीसी को अन्य अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रों से अलग करती है, वह यह है कि इसका कामकाज अंग्रेज़ी भाषा में होने के बजाय मंदारिन में होगा. अंतरराष्ट्रीय पक्षों के लिए कार्यवाही को आसान बनाने और सभी के लिए सूचनाओं के आदान-प्रदान को समान रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र आमतौर पर अंग्रेजी में अपनी कार्यवाही का संचालन करते हैं. मंदारिन में होने वाला काम काज किसी पक्ष के लिए अदालत की कार्यवाही में भाग लेना और उसे समझना, मुश्किल या नामुमकिन बना सकता है. इसके अलावा, केवल वही वकील जिनके पास चीन में वकालत करने का लाइसेंस है, चीन के अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालयों के समक्ष, अलग-अलग पक्षों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं.

यह दूसरे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रों द्वारा अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों से भी अलग है, जहां विदेशी वकीलों के पास इन अदालतों में वकालत करने के लिए, पंजीकरण प्राप्त करने के आसान तरीके उपलब्ध होते हैं. अदालत में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा यहां एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि ऐसे अंतरराष्ट्रीय वकील जो अंग्रेज़ी में वकालत कर सकते हैं, उनकी संख्या, मंदारिन में वकालत करने वालों से कहीं अधिक होगी. इस संबंध में, सीआईसीसी के समक्ष अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेशी पक्षों को हर हाल में चीनी वकीलों और कानूनी कंपनियों से संपर्क करना होगा. कुल मिलाकर भाषा संबंधी यह नियम अंतरराष्ट्रीय पक्षों के लिए आदलती कार्रवाई को और मुश्किल बना सकते हैं.

कामकाज के इन तरीकों की अलग-अलग स्तर पर आलोचना की गई है, और इन्हें बीआरआई की ‘वैश्विक’ प्रकृति के विरोध में देखा जा रहा है. इस तरह की आलोचनाओं की भरपाई करने के लिए सीआईसीसी ने एक अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विशेषज्ञ समिति (ICEC) का गठन किया, जिसमें विदेशी कानूनी विशेषज्ञ शामिल थे. वो मामलों के आधार पर मध्यस्थता करेंगे और विदेशी कानूनों व पहले इस तरह मामलों में लिए फ़ैसलों के आधार पर सीआईसीसी न्यायाधीशों को सलाह और सहायता प्रदान करेंगे. हालांकि इस अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विशेषज्ञ समिति की सटीक रूप से क्या भूमिका होगी, वो अपनी प्रकृति में कैसी होगी और सीआईसीसी न्यायाधीशों के साथ उसके संबंध कैसे होंगे इसे लेकर फिलहाल स्पष्टता नहीं है. उदाहरण के लिए, आईसीईसी और सीआईसीसी के न्यायाधीशों के बीच अलग राय होने या किसी मुद्दे पर मतभेद होने की स्थिति में किसकी बात मानी जाएगी और राय किसके पक्ष में रहेगी, इसे लेकर कोई स्पष्ट नियम नहीं बनाए गए हैं.

सीआईसीसी को चीन के सर्वोच्च न्यायालय के अधीन एक स्थाई अदालती इकाई के रूप में प्रतिष्ठित किया जा रहा है. इससे सीआईसीसी के स्वतंत्र कामकाज और स्वायत्ता को लेकर कई सवाल उठते हैं. माना जा रहा है कि इस प्रशासनिक ढांचे के चलते सीआईसीसी पर बीजिंग का राजनीतिक और कानूनी दबाव लगातार बना रहेगा. दुनिया के अलग-अलग देशों को लेकर भ्रष्टाचार सूचकांक जारी करने वाली वैश्विक संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक उसके भ्रष्टाचार सूचकांक में चीन की रैंकिक सुधर कर अब 198 देशों में 80 हो गई है. हालांकि, राजनीतिक और सार्वजनिक हित से संबंधित निर्णयों को जन-समीक्षा से दूर रखने जैसी कुछ बातें चीन में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मामले में चीन की कोशिशों पर सवाल उठाते हैं. वहीं दूसरी तरफ, साल 2020 के रूल ऑफ लॉ सूचकांक में नागरिक न्याय और आपराधिक न्याय जैसे मुद्दों पर चीन अपने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रिय समकक्षों के मुक़ाबले बहुत नीचे है.

बीआरआई परियोजना के संबंध में चीन द्वारा स्थापित सीआईसीसी एक महत्वपूर्ण क़दम है, क्योंकि विभिन्न देशों के बीच कानून व नियमों के ढांचे को सुरक्षित रखने और सभी पक्षों के बीच कानूनी सहयोग बनाए रखने के लिए यह एक नए तंत्र और एक नई प्रणाली को स्थापित करने का काम करता है. हालांकि, यह संस्था वैश्विक मानकों पर खरी नहीं उतरती, जिससे अंतरराष्ट्रीय दलों के समक्ष इसकी विश्वसनीयता और वैधता प्रभावित होती है. स्पष्ट रूप से एक चिंता यह है कि स्थानीय कंपनियों को जोखिम, अनिश्चितताओं और प्रतिकूल कानूनी व्यवस्थाओं से बचाने के पीछे सीआईसीसी का एक गहरा रणनीतिक उद्देश्य है. इसे एक ‘बीमा पॉलिसी’ के रूप में देखा जा रहा है जो बीआरआई में भाग लेने वाली चीनी कंपनियों के लिए जोखिम को कम करेगी. कामकाज के अपने तरीकों और नियमों के ज़रिए यह प्रणाली चीनी उद्यमों को एक चिर-परिचित, अनुकूल और चीन के हितों पर केंद्रित कानूनी तंत्र प्रदान करेगी.

ऐसेअदालत में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा यहां एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि ऐसे अंतरराष्ट्रीय वकील जो अंग्रेज़ी में वकालत कर सकते हैं, उनकी संख्या, मंदारिन में वकालत करने वालों से कहीं अधिक होगी.

एक चिंता यह भी है कि चीन अपनी वित्तीय क्षमता के कारण विदेशी संस्थाओं पर सीआईसीसी के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करने का दबाव बना सकता है. बीजिंग ज्यों-ज्यों एक मुखर आर्थिक शक्ति और वैश्विक शासन स्थापित करने वाले नियम-निर्माता के रूप में ख़ुद को दृढ़ बनाएगा, सीआईसीसी जैसे मंच, व्यापार, अर्थव्यवस्था और शासन से जुड़ा नया न्यायशास्त्र गढ़ने और स्थापित करने का काम कर सकते हैं. फिलहाल, इस संस्थान के अधिकार क्षेत्र और इसकी प्रकृति को समझने के लिए, इससे संबंधित फ़ैसलों और नए नियमों पर नज़र रखना और उनकी बारीक़ी से पड़ताल करना ज़रूरी है. इसके साथ ही यह भी देखना होगा कि चीन के ये अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय, क्या वाकई उन मानकों पर खरे उतर पाएंगे जो बीआरआई की ‘वैश्विक सहयोग’ की अवधारणा से मेल खाते हों, या फिर यह केवल एक जुमला बनकर रह जाएगा.

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