Author : Sushant Sareen

Published on Feb 27, 2019 Updated 0 Hours ago

इस हमले का एक निहितार्थ यह है कि अब नियंत्रण रेखा को पार न करने से संबंधित पुराना अंकुश समाप्त हो जाएगा। आतंकवादियों के ठिकाने चाहे वे कहीं भी हों, उन्हें निशाना बनाना वाजिब समझा जाएगा।

पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमले

पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से संबंध रखने वाले एक आतंकवादी द्वारा किए गए पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद से यह लगभग तय माना जा रहा था कि भारत जवाबी कार्रवाई करेगा। 2016 में की गई ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ ने कुछ सीमा रेखाएं खींची थीं और पुलवामा ने स्पष्ट तौर उनका उल्लंघन कर दिया। हालांकि यह साफ नहीं था कि यह जवाबी हमला किसी तरह का होगा, लेकिन यह बिल्कुल स्पष्ट था कि यह ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ से ज्यादा प्रबल होगा।

मौसम की परिस्थितियों और इस तथ्य को देखते हुए कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार किसी सीमित कार्रवाई के लिए तैयार बैठा होगा, एक बार फिर से अचानक हमला किए जाने की संभावना नहीं थी। ऐसे में यही संभावना बची थी कि क) तोपों से गोलाबारी की जाए-जो बहुत बार की जा चुकी है इसलिए उसका उतना प्रभाव या महत्व नहीं होगा; ख) आतंकवादियों के शिविरों/ठिकानों पर सटीकता से मिसाइल हमला किया जाए — लेकिन इससे संघर्ष बढ़ सकता है और संभवत: यह अच्छा शुरूआती दांव नहीं होगा; ग) आतंकवादियों के शिविरों पर हवाई हमले किए जाएं — इससे भी हालात काफी विकट हो सकते हैं, लेकिन यह हमला ज्यादा प्रबल होगा, इसको अस्वीकार नहीं किया जा सकेगा और इससे मिसाइल हमले की तरह संघर्ष में वृद्धि नहीं होगी।

इसलिए आज सुबह किए गए हवाई हमले पूरी तरह अनपेक्षित नहीं थे। लेकिन इस बात की अपेक्षा नहीं थी कि ये सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर तक ही सीमित नहीं रहेंगेबल्कि उससे आगे बढ़कर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में लम्बे समय से गतिविधियां चला रहे जैश के शिविर को निशाना बनाया जाएगा।

दूसरे शब्दों में कहें, तो ये हमले पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नहीं, बल्कि पाकिस्तान के भीतर किए गए। इत्त्तेफाक से बालाकोट वही जगह है, जहां 19वीं सदी में असली जेहादी सैयद अहमद बरेलवी महाराजा रणजीत सिंह की सिख सेना के हाथों मारा गया था। बरेलवी को आधुनिक दौर के ज्यादातर पाकिस्तानी जेहादियों द्वारा अपने आदर्श के तौर पर देखा जाता है। इसलिए, बालाकोट पर हमला किया जाना भारत की ओर से उठाया गया प्रतीकात्मक और महत्वपूर्ण कदम था।

इस हमले का एक निहितार्थ तो यह है कि अब नियंत्रण रेखा को पार न करने से संबंधित पुराना अंकुश समाप्त हो जाएगा। आतंकवादियों के ठिकाने चाहे वे कहीं भी हों, उन्हें निशाना बनाना वाजिब समझा जाएगा। इस समय ऐसा खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट में किया गया है, तो अगली बार ऐसा मुरीदके, बहावलपुर या किसी अन्य स्थान पर किया जा सकता है। दोनों पक्ष दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तानी धमकी को झूठा साबित किया गया। हमले से पहले पाकिस्तानी सेना हमेशा की तरह धमकी दे रही थी और शेखी बघार रही थी कि भारत की ओर से हमला होने की सूरत में वह अपने देश की हिफाजत कैसे करेगी। उसके मनोवैज्ञानिक हथकंडे इस बार भारतीयों को रोकने में नाकाम रहे।

अब भारत ने हमला कर दिया है और पाकिस्तानी इधर कुआं उधर खाई वाले हालात में उलझ गये हैं। अगर वे जवाबी हमला करें, तो किसके खिलाफ जवाबी हमला करेंगे? भारत में कोई आतंकवादी शिविर नहीं हैं। पाकिस्तान केवल नागरिक या सैन्य ठिकानों को निशाना बना सकता है। जिसे भारत कतई बर्दाश्त नहीं करेगा और इसके बदले में जबरदस्त जवाबी कार्रवाई की जाएगी, जो अगली बार केवल आतंकवादियों के शिविरों तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पाकिस्तान में सेना और नागरिकों को भी निशाना बनाया जाएगा। क्या पाकिस्तान संघर्ष को इस तरह बढ़ाने की स्थिति में है? क्या वह संघर्ष बढ़ाना भी चाहता है? पाकिस्तान के सामने दूसरा विकल्प यह है कि वह लोगों को यह समझाने का प्रयास करे कि यह भारतीय हमला ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था। ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ के विपरीत इस बार इस हमले को अस्वीकार करने का विकल्प नहीं अपनाया जा सकता।

शुरूआती संकेत ये हैं कि पाकिस्तानी इस बात का खंडन करेंगे कि भारत ने किसी को निशाना बनाया (पाकिस्तान की शुरूआती प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है)। आईएसपीआर के बयान से ऐसा लगता है कि पाकिस्तान जवाबी हमले की प्रतिबद्धता व्यक्त करने से बचना चाह रहा है। पाकिस्तानी इस हमले को इस तरह पेश कर रहे हैं कि भारत ने हमला किया, हमने उन्हें खदेड़ दिया, वे जल्दबाजी में लौट गए, कोई नुकसान नहीं हुआ, कोई हताहत नहीं हुआ, इसलिए कोई कदम उठाने की जरूरत नहीं है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान इस हमले को बर्दाश्त कर लेगा, ​ठीक वैसे ही जैसे उसने सर्जिकल स्ट्राइक्स को बर्दाश्त कर लिया था। इसका यह भी आशय है कि फिलहाल संघर्ष बढ़ने के आसार नहीं हैं।

हालांकि पाकिस्तानी सेना के लिए इस शर्मिंदगी को भुला पाना मुश्किल होगा। जहां एक ओर आईएसपीआर मुख्यधारा वाले मीडिया को जबरदस्ती से नियंत्रित कर लेगा, जिसे आसानी से वश में किया जा सकता है, जो ‘सत्ता’ द्वारा नियंत्रित और उसी में अंत:स्थापित है, जो नियमों का पालन करता है, उसको सोशल मीडिया पर चल रहे कथानक को नियंत्रित करने में मुश्किल होगी, जो इन दिनों पाकिस्तान में सूचना का एकमात्र स्रोत बन चुका है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तानी सशस्त्र बलों को बुरी तरह चोट पहुंची है।

यहां सवाल यह उठता है कि अपनी छवि में सुधार लाने के लिए क्या पाकिस्तान के लिए सामान्य आतंकवादी कार्रवाई करना काफी होगा या उसे किसी तरह के परम्परागत हमले के साथ जवाब देना होगा। दुविधा इस बात को लेकर है कि आतंकवादी हमला होने पर एक बार फिर से जवाबी हमला किया जाएगा, जैसा कि परम्परागत हमले के मामले में भी होगा। इतना ही नहीं, आतंकवादी हमले का कूटनीतिक रूप से भी उल्टा प्रभाव पड़ेगा।

अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर, पाकिस्तानी काफी उत्तेजित हो रहे हैं और खुद को शांतिप्रिय देश के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं और अपने वार्ताकारों पर यह प्रभाव डालने की कोशिश कर रहे हैं कि वे भारत को अपने रुख से पीछे हटने को कहें। दुर्भाग्यवश, पाकिस्तान को कोई राहत नहीं मिल पा रही है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और साथ ही साथ एफएटीएफ में उसे मिली नाकामयाबी से यह अर्थ निकला है कि सब ठीक है। पाकिस्तान अब यह उम्मीद कर रहा होगा कि बड़ी ताकते बीच-बचाव करने और मामले को शांत करने की कोशिश करें। लेकिन भारत के न​जरिए से महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अब तक हमेशा नियमों के मुताबिक चलता आया था, इसलिए हर कोई भारत के प्रति झूठा समर्थन और सहानुभूति दिखाता था, लेकिन साथ ही भारत पर जवाबी हमला न करने का दबाव भी बनाता था। अब जबकि भारत जवाबी कार्रवाई कर चुका है, ऐसे में दबाव पाकिस्तान पर होगा कि वह अपने व्यवहार में सुधार करे और हड़बड़ी में कोई ऐसा कदम न उठाए, जिससे हालात काबू से बाहर हो सकते हों, खासतौर पर तब, जबकि भारत, पाकिस्तान की ओर से किसी भी तरह की उकसावे वाली घटना होने पर कार्रवाई करने से नहीं हिचकिचाएगा।

गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है। अगर वह संघर्ष बढ़ाना चाहता है, तो उसको भारी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा और वह भी ऐसे समय में, जब वह हाथों में भीख का कटोरा थामे पूरी दुनिया में मारा-मारा फिर रहा है। संघर्ष का खर्च उठा पाना पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के बूते से बाहर है। ऐसे में पाकिस्तान की अक्लमंदी यही होगी कि वह इस बात को महसूस करे कि भारत को हजारों जख्मों से लहुलुहान करने की उसकी रणनीति का चक्र पूरा हो चुका है। भारत को पाकिस्तान में कोई दिलचस्पी नहीं है, उस पर कब्जा करने की तो और भी नहीं है। भारत की दिलचस्पी सिर्फ इसी बात में है कि पाकिस्तान, भारत में आतंकवाद फैलाना बंद कर दे। अगर पाकिस्तान आतंकवाद की उस दलदल साफ कर देता है, जिसका इस्तेमाल उसने भारत में गड़बड़ी पैदा करने के लिए किया था, तो हालात सामान्य होने की दिशा में बढ़ सकते हैं। लेकिन यदि पाकिस्तान झूठी गीदड़भभकी देने में जुटा रहा, भारत को ललकारता रहा और खून-खराबा करने की प्रवृत्ति दर्शाता रहा, तो उसे जबरदस्त जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा।

आखिर में, भारतीय राजनीतिज्ञों के लिए भी सलाह है। इस हमले का राजनीतिकरण करना नादानी होगा, क्योंकि इसका प्रभाव उस राष्ट्रीय सर्वसम्मति पर पड़ेगा, जो पाकिस्तान की ओर से आने वाली किसी भी चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने के पक्ष में बन रही है। सरकार अगर इसके लिए वाहवाही लूटने की कोशिश नहीं भी करेगी, तो भी यह उसके लिए राजनीतिक रूप से लाभकारी ही साबित होने वाला है। जहां तक विपक्ष का सवाल है, तो वह सशस्त्र बलों, और तो और सरकार का समर्थन करके, अपने वोट खो नहीं देगा, बल्कि हो सकता है कि उसे परिपक्वता दिखाने के ​लिए कुछ और वोट जीतने का मौका मिल जाए। सरकार के खिलाफ नुकता-चीनी करके वह खुद को और ज्यादा वोटों से दूर कर देगा।

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