Published on Aug 04, 2023 Updated 0 Hours ago

जैसे-जैसे ये युद्ध आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की द्वारा सरकार और इसके काम-काज के डिजिटलीकरण में पिछले कुछ वर्षों के दौरान किए गए निवेश का फ़ायदा देखने को मिल रहा है.

यूक्रेन संकट से तकनीक के क्षेत्र में हमें किस तरह के सबक़ मिले?
यूक्रेन संकट से तकनीक के क्षेत्र में हमें किस तरह के सबक़ मिले?

ये लेख हमारी सीरीज़- रायसीना एडिट 2022 का एक हिस्सा है.


यूक्रेन में चल रहे युद्ध में केवल हथियारों की जंग नहीं हो रही है. इसमें तकनीक को भी हथियार बनाकर साइबर हमलों के ज़रिए यूक्रेन में तबाही मचाई जा रही है, जिसके चलते यूक्रेन में इंटरनेट की सेवा देने वाली सबसे बड़ी कंपनी की सेवाओं के लिए भी ख़तरा पैदा हो गया है. ग़लत जानकारी का सामरिक रूप से इस्तेमाल करके, यूक्रेन के नागरिकों के बीच दहशत फैलाई जा रही है और हक़ीक़त को तोड़- मरोड़कर पेश किया जा रहा है. जैसे-जैसे ये युद्ध आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की द्वारा सरकार और इसके काम-काज के डिजिटलीकरण में पिछले कुछ वर्षों के दौरान किए गए निवेश का फ़ायदा देखने को मिल रहा है. क्योंकि यूक्रेन, इस हमले से ख़ुद को बचाने के लिए अपने डिजिटल संसाधनों का भी बख़ूबी इस्तेमाल कर रहा है. इस संदर्भ में, कई और देश, ख़ास तौर से भारत, यूक्रेन के ‘डिजिटल लचीलेपन’ से कई सबक़ सीख सकते हैं, ताकि वो ये समझ सकें कि किस तरह एक उत्तरदायी और मज़बूत डिजिटल इकोसिस्टम, ज़रूरत पड़ने पर किसी बाहरी हमले से ख़ुद को बचा सकता है.

युद्ध की शुरुआत के बाद से ही डिया का इस्तेमाल यूक्रेन की सेना को पैसे दान करने, रूस की सेना की आवाजाही की तस्वीरों को आपसी सहयोग से जुटाने और संकट के कवरेज को प्रसारित करने के लिए किया जा रहा है. इस ऐप के डिजिटल पहचान पत्र वाले स्टोरेज का इस्तेमाल शरणार्थियों की आवाजाही और उन्हें अन्य देशों तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए भी किया जा रहा है.

पहला तो ये कि ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में डिजिटल परिवर्तन का मंत्रालय (MDT) बनाया था, ताकि देश की डिजिटल महत्वाकांक्षाओं को साकार किया जा सके. उन्होंने, इस कोशिश को कामयाब एक पूर्व स्टार्ट-अप संस्थापक, माइखैलो फेडोरोव को सौंपी थी. यूक्रेन के डिजिटल परिवर्तन मंत्रालय ने डिया ऐप (सरकार और मैं) लॉन्च किया, जिससे लाइसेंस और पहचान पत्र जैसे सरकारी दस्तावेज़ों के लिए अर्ज़ी देना सरल हो जाए. इस ऐप का मक़सद ‘स्मार्टफ़ोन में सरकार’ के तौर पर काम करना था और साल 2021 के आख़िर तक यूक्रेन के 4.4 करोड़ में से 1.3 करोड़ नागरिक इस ऐप का इस्तेमाल कर रहे थे. युद्ध की शुरुआत के बाद से ही डिया का इस्तेमाल यूक्रेन की सेना को पैसे दान करने, रूस की सेना की आवाजाही की तस्वीरों को आपसी सहयोग से जुटाने और संकट के कवरेज को प्रसारित करने के लिए किया जा रहा है. इस ऐप के डिजिटल पहचान पत्र वाले स्टोरेज का इस्तेमाल शरणार्थियों की आवाजाही और उन्हें अन्य देशों तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए भी किया जा रहा है. इस ऐप की बुनियाद में ट्रेंबिटा नाम की डेटा के लेन-देन की एक परत है, जिसे एस्टोनिया की ई-गवर्नेंस अकादेमी की मदद से तैयार किया गया है, ताकि सरकार के अधिकारी एक दूसरे से संवाद कर सकें- इससे सरकार के तमाम अंगों के बीच सूचना का आदान- प्रदान बिना किसी बाधा के  सुनिश्चित होता है. ट्रेंबिटा को रूस के साथ यूक्रेन के झगड़े को ध्यान में रखकर ही तैयार किया गया था. इसी वजह से और अधिक सुरक्षा के लिए इसमें क्रिप्टोग्राफी की एक और परत का इस्तेमाल किया गया था. वैसे तो ये सार्वजनिक डिजिटल मूलभूत ढांचा अभी शुरुआती दौर में ही है और इसके दायरे में सभी नागरिक या सरकारी पदों पर बैठे लोग नहीं आते हैं. लेकिन, ये संकट के वक़्त उन लोगों के लिए आपस में संवाद का भरोसेमंद ज़रिया है और इससे सूचना का प्रवाह बिना बाधा के होता है. अब ज़्यादा से ज़्यादा देश अपने यहां सरकारी ख़र्च से ऐसा डिजिटल सिस्टम बनाने के बारे में विचार कर रहे हैं, जो अन्य कामों के अलावा डेटा को इकट्ठा करके उनका प्रबंधन कर सके, इनोवेशव को बढ़ावा दे और सरकार को उसके काम-काज में मदद पहुंचाए. हालांकि, यूक्रेन की ही तरह इसमें हर नागरिक को शामिल करने और सबको बराबरी का मौक़ा देने जैसी चुनौतियों का समाधान तलाशने की ज़रूरत है, जिससे किसी संकट के वक़्त कोई नागरिक मदद से महरूम न रहे.

सबसे अहम पहलू ये है कि इस डिजिटल बदलाव की यूक्रेन की योजना समाज और सरकार में ऐसी क्षमता विकसित करने की कोशिशों पर आधारित है, ताकि वो ज़ेलेंस्की सरकार द्वारा तेज़ी से लाए गए बदलावों को अपना सके. मिसाल के तौर पर, सभी मंत्रालयों में मुख्य डिजिटल परिवर्तन अधिकारी तैनात किए गए थे, ताकि डिजिटलीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके. 

सरकार और समाज में ‘क्षमता’ विकसित करना

दूसरा पहलू कनेक्टिविटी का है, जो यूक्रेन की सरकार की डिजिटल महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ाने के लिए बेहद ज़रूरी शर्त है. बहुत से लोगों के मन में ये सवाल है कि आख़िर युद्ध के कई हफ़्ते बीत जाने के बाद भी यूक्रेन इंटरनेट से जुड़ा हुआ है, दुनिया से रूस के हमले की हक़ीक़त साझा कर पा रहा है और प्रतिबंधों और पाबंदियों के रूप मे दुनिया भर से समर्थन जुटा पा रहा है. ये इसलिए मुमकिन हो पाया है क्योंकि ज़ेलेंस्की वर्ष 2024 तक अपने देश को ‘स्मार्टफ़ोन मुल्क’ बनाना चाहते थे. ये सपना साकार करने के लिए सरकार ने देश के दूरसंचार ढांचे को क़ानूनी तौर पर बेहद अहम क़रार दिया था, और शहरों, क़स्बों और गांवों तक सरकारी ख़र्च पर फाइबर कनेक्शन पहुंचाने का काम किया था. संघर्ष की शुरुआत के साथ ही यूक्रेन के नागरिक ऑनलाइन रहने, जानकारी हासिल करने और साझा करने के लिए इंटरनेट सेवा देने वालों पर भरोसा कर पा रहे हैं. यूक्रेन में दूरसंचार का ये मज़बूत ढांचा अन्य देशों और ख़ास तौर से भारत के लिए बड़ी मिसाल है. क्योंकि भारत में डिजिटल देश बनने की दूरदृष्टि होने के बावजूद, यहां एक दूरसंचार के एक लचीला और मज़बूत ढांचा बनाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं लगाए गए हैं, जिससे देश के हर नागरिक तक इंटरनेट की सेवा पहुंचाई जा सके.

तीसरा और शायद सबसे अहम पहलू ये है कि इस डिजिटल बदलाव की यूक्रेन की योजना समाज और सरकार में ऐसी क्षमता विकसित करने की कोशिशों पर आधारित है, ताकि वो ज़ेलेंस्की सरकार द्वारा तेज़ी से लाए गए बदलावों को अपना सके. मिसाल के तौर पर, सभी मंत्रालयों में मुख्य डिजिटल परिवर्तन अधिकारी तैनात किए गए थे, ताकि डिजिटलीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके. स्थानीय निकायों में डिजिटल क्षमता विकसित करने के लिए सरकार ने डिजिटल परिवर्तन के क्षेत्र में विशेषज्ञों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था, जिससे कि वो शहरों के प्रशासन के साथ मिलकर काम कर सकें. इसके अलावा, आम नागरिकों के लिए डिया प्लेटफॉर्म पर डिजिटल साक्षरता की ट्रेनिंग देने वाले संसाधन मौजूद हैं. इसका मक़सद यही था कि सरकार और आम नागरिकों, दोनों में ये क्षमता हो कि वो तकनीक का बख़ूबी इस्तेमाल कर सकें और फिर ज़्यादा भरोसे के क़ाबिल और पारदर्शी सरकारी व्यवस्था बनाई जा सके. इसके साथ साथ डिजिटल अफ़सरशाही और डिजिटल जानकारी वाले नागरिकों को तैयार करने से डिजिटल परिवर्तन के मंत्रालय को रूस के हमले का मुक़ाबला करने का अहम मोर्चा बनने में मदद की है. इसके ज़रिए युद्ध के बारे में ग़लत सूचनाओं से निपटने जैसी चुनौतियों से पार पाया जा रहा है.

भारत के पास आधार (पहचान के लिए) और यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (भुगतान) जैसी सेवाएं हैं. इसके साथ साथ इस समय डेटा साझा करने की व्यवस्था को लेकर बहस भी चल रही है. लेकिन एक ऐसा मूलभूत ढांचा बनाने के लिए अभी और प्रयास किए जाने की ज़रूरत है, जो देश के आख़िरी नागरिक तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करे और सरकार और नागरिक ऐसी क्षमता का लाभ उठा सकें.

इसके अलावा, यूक्रेन अपने संवेदनशील डेटा को सुरक्षित रखने के लिए आपातकालीन योजना पर काम कर रहा है, ताकि इन आंकड़ों को राजधानी कीव से परे किसी ऐसे स्थान पर सुरक्षित रखा जा सके, जो देश के भीतर भी हो सकता है और बाहर भी. भारत जैसे जो देश अपने डेटा को स्थानीय स्तर पर रखने पर ज़ोर देते रहे हैं, उन्हें अपने डेटा को सुरक्षित रखने और उन साझीदारों से भरोसेमंद भागीदारी विकसित करने का फ़ायदा मिल सकता है, जहां पर संकट के वक़्त कुछ ख़ास तरह के आंकड़ों को सुरक्षित रखा जा सके.

आख़िरी नागरिक तक कनेक्टिविटी

यूक्रेन ने डिजिटलीकरण की ये कोशिश सरकारी व्यवस्था को और कुशल, भरोसेमंद और पारदर्शी बनाने के लिए शुरू की थी. हालांकि, यूक्रेन द्वारा मानवीय, डिजीटल और अन्य मूलभूत ढांचे में आपसी तालमेल से सरकारी निवेश करने के चलते मौजूदा संकट के बीच एक ऐसे मज़बूत डिजिटल इकोसिस्टम को खड़ा करने में मदद मिली है, जो रूस के आक्रमण का मुक़ाबला कर सके और उसे जवाब दे सके. इन कोशिशों के बावजूद यूक्रेन की जवाबी कार्रवाई बहुत अच्छी नहीं रही है और इसके चलते कई बड़ी चिंताएं भी पैदा हुई हैं- जैसे कि संवेदनशील डेटा की सुरक्षा, ग़लत जानकारी का आम होना और गंभीर साइबर हमलों का सामना करने में यूक्रेन की क्षमता- लेकिन यूक्रेन ऐसे हमलों से अपनी हिफ़ाज़त में काफ़ी हद तक तैयार दिखता है.

बहुत से देशों ने सार्वजनिक डिजिटल मूलभूत ढांचे में निवेश किया है; मिसाल के तौर पर भारत के पास आधार (पहचान के लिए) और यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (भुगतान) जैसी सेवाएं हैं. इसके साथ साथ इस समय डेटा साझा करने की व्यवस्था को लेकर बहस भी चल रही है. लेकिन एक ऐसा मूलभूत ढांचा बनाने के लिए अभी और प्रयास किए जाने की ज़रूरत है, जो देश के आख़िरी नागरिक तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करे और सरकार और नागरिक ऐसी क्षमता का लाभ उठा सकें. इसके अलावा सर्वर्स की सुरक्षा और साइबर हमले के संकट के वक़्त कैसी जवाबी कार्रवाई की जाए, इस बारे में अभी और सोच-विचार करने की ज़रूरत है. भारत के सीमा विवादों को देखते हुए, उसे यूक्रेन से सबक़ सीखने की ज़रूरत है और देश के काम-काज के तमाम क्षेत्रों में डिजिटल परिवर्तन लाने का ढांचा बनाने और उसे समाज का हिस्सा बनाने के बारे में और गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है.

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