तंज़ानिया में बगामोयो बंदरगाह के प्रोजेक्ट ने चीन और तंज़ानिया के रिश्तों के एक नए युग की शुरुआत की थी. कई वार्ताओं और कूटनीतिक परिचर्चाओं के बाद जाकर इस बंदरगाह को बनाने के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी गई थी. बगामोयो बंदरगाह के प्रोजेक्ट पर चीन और तंज़ानिया ने वर्ष 2013 में दस्तख़त किए थे. अफ्रीका के कई संगठनों और नागरिक अधिकार संस्थाओं ने इस समझौते को ‘चीन का जानलेवा क़र्ज़’ क़रार दिया था. इन संगठनों ने मांग की थी कि तंज़ानिया के तत्कालीन राष्ट्रपति जकाया किकवेटे इस बंदरगाह को विकसित करने के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दें. लेकिन, तमाम विरोधों के बावजूद, जकाया किकवेटे ने इस बंदरगाह को विकसित करने के चीन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था. हालांकि, जनवरी 2016 में तंज़ानिया में जॉन मगुफुली ने अपनी सरकार बना ली. और उसके तुरंत बाद उन्होंने बगामोयो बंदरगाह को विकसित करने के प्रोजेक्ट को रोक दिया. नए राष्ट्रपति ने कहा कि उनसे पहले के राष्ट्रपति ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए बातचीत को बेहद ख़राब तरीक़े से संचालित किया था. और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को ऐसी शर्तों पर शुरू करने की हामी भरी, जिससे तंज़ानिया की संप्रभुता को चीन के हाथों बेच दिया गया.
प्रेसिडेंट मगुफुली की सरकार ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए चीन द्वारा किए जा रहे दस अरब डॉलर के निवेश को भी रोक दिया गया. इसके पीछे कारण ये बताया गया कि चीन का निवेश अजीबोग़रीब और तंज़ानिया का शोषण करने वाला है.
लेकिन, उसके बाद बंद दरवाज़ों के पीछे हुई वार्ताओं और अज्ञात कारणों से इस बंदरगाह को विकसित करने के प्रोजेक्ट का काम वर्ष 2018 में फिर से शुरू हो गया. लेकिन, वर्ष 2019 में एक बार फिर इस प्रोजेक्ट का काम अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया. प्रेसिडेंट मगुफुली की सरकार ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए चीन द्वारा किए जा रहे दस अरब डॉलर के निवेश को भी रोक दिया गया. इसके पीछे कारण ये बताया गया कि चीन का निवेश अजीबोग़रीब और तंज़ानिया का शोषण करने वाला है. प्रोजेक्ट को नुक़सान पहुंचाने वाले ये बयान देने के बाद तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए तय हुई बेहद मुश्किल शर्तों को ख़त्म करने का काम शुरू किया.
21 अक्टूबर 2019 से चीन के मर्चेंट होल्डिंग्स इंटरनेशनल (CMHI) से बंदरगाह विकसित करने को लेकर दोबारा बातचीत शुरू हुई. इस दौरान, तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने प्रोजेक्ट को लेकर अपनी सरकार के पांच बिंदु वाले एजेंडा को जारी किया. इसमें बंदरगाह के संचालन के लिए तय की गई 99 साल के पट्टे की शर्त को 33 साल में तब्दील करना भी शामिल था. इस पट्टे की एक शर्त ये भी थी कि चीन, इस बंदरगाह को किराए पर भी दे सकता था. और इस पर तंज़ानिया की सरकार का कोई अधिकार नहीं होता. ख़ासतौर से भविष्य के संभावित निवेशों पर तो तंज़ानिया की सरकार का कोई नियंत्रण न होता. नई शर्त में बंदरगाह के विकास के प्रोजेक्ट पर टैक्स में रियायत ख़त्म करने और पहले दिए गए स्पेशल स्टेटस को ख़त्म करने का प्रस्ताव भी शामिल था. प्रोजेक्ट को दिया गया स्पेशल स्टेटस अगर ख़त्म हो जाएगा, तो उससे चीन की कंपनी को बिजली और पानी को बाज़ार भाव पर ख़रीदना होगा. इसके साथ साथ, CMHI पर ये पाबंदी भी लगा दी गई कि वो बंदरगाह पर अन्य तरह की व्यापारिक गतिविधियों का संचालन नहीं कर सकेगा. पुरानी शर्तों में एक और अहम बदलाव जो किया गया वो ये था कि तंज़ानिया की सरकार देश में अन्य प्रोजेक्ट का विकास करने का अधिकार बनाए रख सकेगी. इस उथल-पुथल में और इज़ाफ़ा तब हो गया, जब CMHI सार्वजनिक रूप से एक बयान जारी किया कि उसे काकोको से कोई दस्तावेज़ नहीं प्राप्त किया है और संबंधित पक्ष पहले ही बंदरगाह को 33 साल के पट्टे पर लेने और देने के लिए राज़ी हो चुके हैं.
इस उथल-पुथल में और इज़ाफ़ा तब हो गया, जब CMHI सार्वजनिक रूप से एक बयान जारी किया कि उसे काकोको से कोई दस्तावेज़ नहीं प्राप्त किया है और संबंधित पक्ष पहले ही बंदरगाह को 33 साल के पट्टे पर लेने और देने के लिए राज़ी हो चुके हैं.
अप्रैल 2020 में तंज़ानिया की ग़ैर सरकारी समाचार एजेंसियों ने ख़बर प्रकाशित की कि तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने बगामोयो प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है. जिसके बाद चीन के एक अधिकारी चेंग वैंग ने 11 ट्वीट करके इस विषय पर अपना पक्ष रखा. चेंग वैंग, चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी हैं. और वो इस समय ओमान की राजधानी मस्कट में स्थित चीन के दूतावास में वाणिज्य दूत के तौर पर तैनात हैं. चेंग वैंग ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में दस अरब डॉलर का निवेश, चीन के तमाम निवेशकों और संचालकों का इस प्रोजेक्ट में अंतिम निवेश है. और ये दावा करना ग़लत है कि इस प्रोजेक्ट में दस अरब डॉलर के निवेश का वादा केवल चीन ने किया था. बगामोयो बंदरगाह में तीन पक्ष हैं- चाइना मर्चेंट ग्रुप (CMHI) और स्टेट जनरल रिज़र्व फंड (SGRF), ओमान और तंज़ानिया. चेंग वैंग के मुताबिक़, मुताबिक़, चीन के स्टेट जनरल रिज़र्व फंड की इस प्रोजेक्ट में दस प्रतिशत से कम हिस्सेदारी नहीं है. और इसीलिए, कंपनी ने अपने हिस्से के अनुसार ही निवेश किया. हालांकि चेंग वैंग ने इस प्रोजेक्ट को रद्द करने पर कोई ऐतराज़ नहीं जताया. लेकिन, इस प्रोजेक्ट को लेकर जितने बड़े पैमाने ग़लत जानकारियां पेश की गईं और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, वो बेहद हास्यास्पद है.
इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी के दौरान कई अफ्रीकी छात्रों के साथ चीन में दुर्व्यवहार और भेदभाव की भी घटनाएं सामने आईं. हालात तब और बिगड़ गए, जब स्थानीय लोगों ने चीन के कामगारों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए. स्थानीय लोगों में चीन से आए मज़दूरों और कामगारों को लेकर बहुत असुरक्षा और नाराज़गी है. प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि, तंज़ानिया की सरकार चीन से सभी तरह के आर्थिक संबंध समाप्त कर दे. क्योंकि, जहां भी चीन की सरकार निवेश कर रही है, उससे उन देशों को फ़ायदा कम और नुक़सान अधिक हो रहा है. हालांकि, तंज़ानिया में चीन के दूतावास ने अफ्रीकी छात्रों के साथ चीन में हो रहे भेदभाव के आरोप को अस्वीकार कर दिया. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिय ने एक ट्वीट में लिखा कि, ‘चीन में सभी विदेशी नागरिकों को बराबरी का दर्जा दिया जाता है. किसी के साथ भेदभाव नहीं होता. और चीन की सरकार भेदभाव को क़तई बर्दाश्त नहीं करती.’
ज़ाहिर है कि चीन और अफ्रीका के बीच इस बढ़ते तनाव का असर तंज़ानिया पर भी पड़ा है. और इसीलिए तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने बगामोयो बंदरगाह प्रोजेक्ट को रद्द करने का ऐतिहासिक फ़ैसला किया. इस प्रोजेक्ट को पूर्वी अफ्रीका का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कहा जा रहा था. ये चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक प्रमुख अंग था. BRIS से जुड़े अन्य कम विकसित देशों की ही तरह तंज़ानिया की सरकार को भी इस बात का डर था कि इस बंदरगाह को विकसित करने से ख़ुद उनके देश को कोई लाभ नहीं होने वाला है. इस प्रोजेक्ट के रद्द होने से चीन की विश्वसनीयता को तगड़ा झटका लगा है. तंज़ानिया के इस क़दम से पूर्वी अफ्रीका में BRI के भविष्य पर भी सवालिया निशान लग गए हैं. चीन के निवेश की एक भारी कमी ये है कि चीन जिस देश में निवेश करता है, उसे तकनीकी जानकारी का हस्तांतरण नहीं करता. बल्कि, ख़ुद चीन की सरकारी और निजी कंपनियां ही किसी प्रोजेक्ट का संचालन करती हैं.
जैसा कि उपरोक्त पाई चार्ट से स्पष्ट है कि चीन की सरकार ने तंज़ानिया को जो क़र्ज़ दिया है, उसका अधिकतर हिस्सा ऊर्जा क्षेत्र में लगा है. ऊर्जा सेक्टर को दिया गया ये क़र्ज़ चीन के आयात निर्यात बैंक के माध्यम से वर्ष 2012 में दिया गया है. इससे एम्नाज़ी की खाड़ी से तंज़ानिया की राजधानी दार-ए-सलाम तक गैस पाइपलाइन का निर्माण किया जाना था. 2016 में भारत ने तंज़ानिया को 9 करोड़ 20 लाख डॉलर का लाइन ऑफ़ क्रेडिट (LoC) दिया था, जिससे कि ज़ंज़ीबार के जल आपूर्ति सिस्टम को सुधारा जा सके. और तंज़ानिया व भारत के विकास संबंधी रिश्तों को मज़बूत किया जा सके. अगर हम भारत और चीन द्वारा तंज़ानिया को उसके विकास के लिए दिए गए क़र्ज़ की तुलना करें, तो साफ़ दिखाई देता है कि बहुत से अफ्रीकी देशों के लिए क़र्ज़ का प्रमुख स्रोत चीन ही है. वाल स्ट्रीट जर्नल की हालिया रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीकी देशों को दिया गया चीन का क़र्ज़ बढ़ कर 143 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. अगर अफ्रीकी देश समय पर चीन का ये क़र्ज़ नहीं चुका पाते हैं, तो उसकी क़ीमत उन्हें दूसरे तरीक़े से चुकानी होगी. ऐसे में चीन के इतने भारी भरकम क़र्ज़ से दबे तंज़ानिया के लिए ये कोई अच्छी ख़बर नहीं है. इन परिस्थितियों में अगर बगामोयो बंदरगाह प्रोजेक्ट जारी रहता, तो तंज़ानिया पर चीन के क़र्ज़ का बोझ और भी बढ़ जाता.
अगर हम भारत और चीन द्वारा तंज़ानिया को उसके विकास के लिए दिए गए क़र्ज़ की तुलना करें, तो साफ़ दिखाई देता है कि बहुत से अफ्रीकी देशों के लिए क़र्ज़ का प्रमुख स्रोत चीन ही है. वाल स्ट्रीट जर्नल की हालिया रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीकी देशों को दिया गया चीन का क़र्ज़ बढ़ कर 143 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
इन ख़राब तजुर्बों के बावजूद, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन की सरकार ने अफ्रीकी महाद्वीप में तमाम उपयोगी प्रोजेक्ट बनाए हैं. चीन और तंज़ानिया के आर्थिक और राजनीतिक संबंध कई गुना बढ़ गए हैं. अभी पिछले ही साल, तंज़ानिया के प्रधानमंत्री कार्यालय में निवेश विभाग की राज्य मंत्री एंगेला कैरुकी ने माना था कि तंज़ानिया में चीन ने काफ़ी निवेश कर रखा है. उन्होंने कहा था कि तंज़ानिया को वर्ष 2025 तक मध्यम आय वर्ग के दर्जे वाले देश के तौर पर विकसित करने का लक्ष्य प्राप्त करने में चीन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है.
तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने जिस मज़बूती से इस प्रोजेक्ट को रद्द किया है, उससे उन्होंने अन्य अफ्रीकी देशों के सामने एक मिसाल पेश की है. जिससे कि वो ये आकलन कर सकें कि उनके देश में जो विदेशी निवेश हो रहा है, वो उनकी आर्थिक और राजनीतिक ज़रूरतों को पूरा करने वाला हो.
कोविड-19 की महामारी के दौरान भी तंज़ानिया और चीन के एक दूसरे की मदद करने की ख़बरें आई थीं. इसीलिए, एक वाजिब सवाल तो अब भी बना ही हुआ है कि, अगर बगामोयो बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट, संबंधित देश को कोई ख़ास लाभ नहीं पहुंचाते हैं, तो क्या इनकी प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है? और क्या ऐसे प्रोजेक्ट वो संबंधित देश के संघर्ष और शोषण को जायज़ ठहराने का काम करते हैं? बुनियादी ढांचे के विकास के किसी भी प्रोजेक्ट में निवेश से आदर्श रूप में यही अपेक्षा की जाती है कि वो कम से कम किए गए निवेश पर रिटर्न प्रदान करें. अब अगर कोई भी प्रोजेक्ट ऐसा करने में असफल रहता है, तो उसे विकसित करने के लिए जो क़र्ज़ लिया गया है, उसे चुका पाना मुश्किल हो जाता है. तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने जिस मज़बूती से इस प्रोजेक्ट को रद्द किया है, उससे उन्होंने अन्य अफ्रीकी देशों के सामने एक मिसाल पेश की है. जिससे कि वो ये आकलन कर सकें कि उनके देश में जो विदेशी निवेश हो रहा है, वो उनकी आर्थिक और राजनीतिक ज़रूरतों को पूरा करने वाला हो. साथ ही साथ, इससे ये सबक़ भी मिलता है कि कोई भी अफ्रीकी देश अपने यहां के लोगों और संसाधनों का शोषण करने वाले प्रोजेक्ट पर हामी न भरे.
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