Author : Aastha Kaul

Published on Mar 06, 2018 Updated 0 Hours ago

शांतिवाहिनी बलों में यौन शोषण और उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए भारत कितना प्रतिबद्ध है?

शांतिवाहिनी बलों में यौन शोषण समाप्त करने को प्रतिबद्ध भारत

संयुक्त राष्ट्र शांतिवाहिनी बल में भारतीय महिलाएं

पिछले कुछ दशकों के दौरान सशस्त्र संघर्ष की संरचना और गतिशीलता में बदलाव आया है। दो देशों के बीच के संघर्ष का रुझान अब देशों के आंतरिक संघर्ष की तरफ बदल गया है जिसका अर्थ यह है कि पीडि़तों की अधिकतर संख्या अब आम नागरिकों अर्थात सिविलियन की होने लगी है। संघर्षों में यौन हिंसा जैसी युद्ध की गैर- पारंपरिक रणनीतियों के फिर से वजूद में आने से उनकी असुरक्षा अब और ज्यादा बढ़ गई है। रवांडा तथा भूतपूर्व युगोस्लाविया में आतंकियों द्वारा सुनियोजित तरीके से बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया गया तथा अभी हाल में आईएसआईएस जैसे आंतकी समूहों द्वारा जातीय संहार के लिए युद्ध के एक हथियार के रूप में उन्हें इस्तेमाल में लाया गया है।

उग्रवादी और आतंकवादी ही यौन हिंसा के एकमात्र अपराधी नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के शांतिवाहिनी बल ने भी संघर्षरत क्षेत्रों का बेजा लाभ उठाया है और यौन शोषण एवं उत्पीड़न (एसईए) में संलिप्तता के जरिये नियमित रूप से निर्बल वर्गों का शोषण किया है। इससे ज्यादा घृणास्पद और क्या बात हो सकती है कि ब्लू हेलमेट (यूएन के शांतिवाहिनी बल के जवान) जिन्हें शांति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, उन लोगों के लिए ही असुरक्षा के सबब बन गए हैं जिनकी सुरक्षा करने का उन पर दायित्व है।

आंकड़ों के विश्लेषण से प्रदर्शित होता है कि 2010 के बाद से सालाना औसतन 50 मामले तथा 2017 के जुलाई एवं सितंबर के बीच दर्ज किए गए 31 मामलों के साथ एसईए यूएन के शांतिवाहिनी बल के भीतर एक निरंतर और स्थानिक समस्या बन गई है। यह संख्या विशेष रूप से चौंकाने वाली है क्योंकि यह देखते हुए कि ज्यादातर पीडि़त इन घटनाओं को अभिव्यक्त करने को लेकर बहुत सहज नहीं रहते, इसलिए बहुत कम मामलों की ही रिपोर्ट की जाती है।

भारतीय यूएन शांतिवाहिनी बल भी एसईए के आरोपों से अछूते नहीं रहे हैं जिनके खिलाफ 2010 और 2013 के बीच एसईए के तीन मामले दर्ज किए गए हैं। बहरहाल, यह उल्लेखनीय है कि यूएन शांतिवाहिनी बल में भारत सबसे अधिक जवानों का योगदान देने वाले देशों में एक है। उसकी लगभग 200,000 टुकडि़यां 50 मिशनों से जुड़ी हुई हैं पर उसके खिलाफ सबसे कम ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं। 2013 के बाद उसके जवानों पर एक भी ऐसा आरोप नहीं लगा है।

यह उपलब्धि एसईए के खिलाफ यूएन की ‘शून्य सहिष्णुता नीति (जीरो टोलेरेंस पॉलिसी)‘ का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने तथा भारतीय शांतिवाहिनी की नियुक्ति, प्रशिक्षण एवं अभियोग चलाने के तरीकों में उल्लेखनीय बदलाव लाने के द्वारा अर्जित की गई है। इससे संकेत मिलता है कि शेष विश्व भी भारत के अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकता है।

भर्ती और जांच

भारतीय सेना के वाइस चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल सरथ चंद ने पांच फरवरी को युद्ध में यौन शोषण की समाप्ति विषय पर बोलते हुए 2018 की समाप्ति तक यूएन शांतिवाहिनी बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 4 प्रतिशत से बढ़ा कर 8 प्रतिशत करने का संकल्प लिया और कहा कि ‘स्थायी शांति एवं सुरक्षा के लिए’ महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। यह संकल्प एसईए से लड़ने के लिए जवानों की भर्ती में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के भारत के प्रयासों में से एक है।

लाईबेरिया में 2007 में पहली महिला पुलिस इकाई (एफएफपीयू) की तैनाती के बाद भारत को शांतिवाहिनी बल में महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के मामले में एक रोल मॉडल के रूप में देखा जाने लगा है। भारत ने 2017 में यह सुनिश्चित करने के द्वारा कि 15 प्रतिशत सैन्य पर्यवेक्षक महिलाएं ही होंगी, अपना यह संकल्प भी पूरा कर लिया। महिला शांतिवाहिनी बल के एसईए में संलिप्त होने के कम ही आसार हैं और वे अपने पुरुष सहयोगियों को भी एसईए में संलिप्त होने से निरुत्साहित कर सकती हैं। बहरहाल, केवल महिला शांतिवाहिनी बल में इजाफा करना ही एसईए का समाधान नहीं है और विशेषज्ञों का मानना है कि घरेलू संस्कृतियों, विशेष रूप से, सेना में जेंडर की समानता की भावना पैदा करना यौन शोषण की रोकथाम में ज्यादा कारगर है। भारत में अभी भी भारतीय सेना में महिलाओं को सेना में युद्ध लड़ने की अनुमति नहीं है। बहरहाल, जनरल रावत की जेंडर की बाधाओं को तोड़ने और महिलाओं की भर्ती करने की प्रतिबद्धता वास्तविक लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में एक आशाजनक कदम है।

इन आरोपों के लगाए जाने के बाद भर्ती-पूर्व सख्त जांच कदम भी उठाए गए हैं। भारत ने आचरण एवं अनुशासन इकाई (सीडीयू) के जांच दिशानिर्देशों का अनुपालन किया है और यह सुनिश्चित किया है कि यह सख्ती केवल एसईए तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि किसी भी प्रकार के बुरे आचरण में संलिप्त किसी भी सैन्य, पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी की तैनाती शांतिवाहिनी बल में नहीं की जाएगी।

बहरहाल, आरोपों के आधार पर दोष सिद्धि पर जोर संभवतः समस्याजनक साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए, एसईए को लेकर जीरो टोलेरेंस नीति के बावजूद, भारत ने संयुक्त राष्ट्र पुलिस (यूएनपोल), जिस पर बलात्कार और उत्पीड़न का आरोप लगा है, में शामिल होने के लिए अधिकारियों का चयन किया है। इसके अतिरिक्त, शांतिवाहिनी जवानों को ऐसे क्षेत्रों में तैनात करने की भारत की नीति, जहां संयुक्त राष्ट्र संघ को मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर आशंकाएं रही थीं, उनकी पृष्ठभूमि को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है क्योंकि कई के खिलाफ खुद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ही न्यायेतर अभियोगों एवं बल के मनमाने इस्तेमाल में संलिप्त रहने के लिखित प्रमाण दिए गए हैं। इसलिए, भारत को अनिवार्य रूप से जांच से संबंधित अपने कदमों का फिर से आकलन करना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिना रत्ती भर संदेह के, काम करने वाले प्रत्येक शांतिवाहिनी बल के जवान का बिल्कुल साफ रिकॉर्ड होना चाहिए।

प्रशिक्षण

चूंकि शांतिवाहिनी बल के जवानों में अभी भी अधिकतर पुरुष ही हैं, तैनाती-पूर्व अनिवार्य प्रशिक्षण एसईए के खिलाफ यूएन की जीरो टोलेंरेंस पॉलिसी के कार्यान्वयन में एक प्रमुख साधन बन गया है। भारत ने जेंडर संवेदीकरण, आचरण के यूएन मानकों तथा विशेष रूप से अपने खुद के शांतिवाहिनी बलों के लिए एसईए के खिलाफ रिपोर्टिंग तंत्रों पर सत्रों को शामिल करने के जरिये अपने तैनाती-पूर्व प्रशिक्षण प्रयासों में बढोतरी की है और दुनिया के दूसरे देशों के शांतिवाहिनी बलों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। संयुक्त राष्ट्र शांतिवाहिनी केंद्र (सीयूएनपीके) ने भारत के भीतर एवं बाहर के महिला एवं पुरुष दोनों ही तरह के प्रतिभागियों के साथ कई कार्यप्रणालियों के संचालन के द्वारा भारत के पूर्व-तैनाती प्रशिक्षण प्रयासों का नेतृत्व किया है और उसके पायलट कोर्स को तीन अन्य देशों द्वारा भी दुहराया गया है। केंद्र ने कई भाषाओं में ऑनलाइन तैनाती-पूर्व पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने के लिए शांति परिचालन प्रशिक्षण संस्थान (पीओटीआई) के साथ भी साझीदारी की है जिससे दूसरे देशों के पास अपनी खुद की शांतिवाहिनी सेनाओं को उनकी अपनी भाषाओं में प्रशिक्षण देने के साधन सुनिश्चित किए जा सके। तैनाती-पूर्व प्रशिक्षण का महत्व बच्चों के यौन शोषण के भयावह आरोपों के बाद मध्य अफ्रीकी गणराज्य (सीएआर) में यूएन मिशन के इंटरनल ओवरसाइट सर्विसेज (ओआईओएस) ऑडिट के 2015 ऑफिस द्वारा रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट से पता लगा कि आश्चर्यजनक रूप से 57 प्रतिशत कर्मचारियों ने अनिवार्य तैनाती-पूर्व प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था और इस प्रकार “वे एसईए के खिलाफ आचरण के यूएन मानकों से पूरी तरह अवगत नहीं थे और इसी के अनुरूप उन्होंने खुद के आचरण में बदलाव नहीं किया।”

अभियोजन

ऊपर प्रस्तुत डाटा से, यह स्पष्ट है कि प्रशिक्षण एवं जांच पर्याप्त नहीं है और अभी भी नए मामले सामने आ ही रहे हैं। एक उल्लेखनीय बाधा यूएन एवं सैन्य टुकडि़यां भेजने वाले देशों के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) के कारण यूएन कर्मचारियों को प्राप्त पूर्ण प्रतिरक्षण है। इस समझौते के कारण, दोषियों पर मेजबान देशों में किए गए अपराधों के कारण मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, यह जिम्मेदारी टीसीसी की होगी। भारत इस मामले में विशेष रूप से सक्रिय रहा है और उसने यह सुनिश्चित किया कि सीईए के सभी तीन मामलों की पूरी तरह जांच की जाए और दोषी पक्षों को दंडित किया जाए।

भारत ने अन्य टीसीसी के एसईए अपराधियों को सजा देने के यूएन के प्रयासों में भी योगदान दिया है। एसईए के खिलाफ सचिव एंटोनियो गटरेस के ‘नए दृष्टिकोण’ में भी अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के प्रति एक मजबूत प्रतिबद्धता देखी गई और सीईए से मुकाबला करने के लिए पीडि़त केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया गया। इसके परिणामस्वरूप यौन शोषण एवं उत्पीड़न पीडि़तों के समर्थन में ट्रस्ट फंड की स्थापना की गई जो पीडि़तों के सामान्य होने में मदद करता है। भारत इसमें वित्तीय सहयोग देने वाला पहला देश था। भारत ने सियरा लियोन के लिए रेजीडुअल स्पेशल कोर्ट को भी फंड उपलब्ध कराया जिसने बाल यौन शोषण के अपराधियों पर मुकदमा चुलाया एवं उन्हें सजा दी तथा उन्हें शादी करने को बाध्य किया।

सीईए के प्रति भारत की प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि वह न केवल अपने शांतिवाहिनी बलों के भीतर बल्कि समस्त शांतिवाहिनी अभियान के भीतर से यौन शोषण समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत को प्रशिक्षण एवं अभियोजन के क्षेत्रों में उदाहरण स्थापित करते रहना चाहिए तथा शांतिवाहिनी सुधारों को और आगे बढ़ाने के लिए शांतिवाहिनी को योगदान देने वाले स्वच्छ रिकॉर्ड वाले एकमात्र देश की अपनी स्थिति का लाभ भी उठाना चाहिए।


लेखिका ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में रिसर्च इन्टर्न हैं।

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