Published on Mar 23, 2024 Updated 0 Hours ago

दक्षिण एशिया में सॉफ्ट पावर ने प्रतिशोध की ऐसी आशंका पैदा की है कि कर्ज़ का जाल जैसे नकारात्मक प्रभाव इन देशों को चीन से दुश्मनी मोल लेने की तुलना में कम खतरनाक विकल्प दिखाई देते हैं. 

दक्षिण एशिया में चीन की सॉफ्ट पावर का दायरा और उसके मायने

चीन की  सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी उसके प्राचीन ज्ञान, कन्फ्यूशी संस्थानों के प्रभाव, सांस्कृतिक लोकाचार और निवेश व आर्थिक सहायता देने का मिलाजुला रूप है ©Pixabay

दो सौ से भी अधिक सालों से हम एक ऐसी दुनिया में रहे हैं जहां आधुनिक होने का मतलब पश्चिमी होना या इस सभ्यता का पैरोकार होना रहा है. चीन जैसे गैर-पश्चिमी देश के तेज़ी से विकसित होने और दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व कायम करने की कवायद ने आधुनिक होने की एक नई परिभाषा गढ़ी है. चीन के इस फलक पर आने के बाद, आधुनिक होना अब एक बहुआयामी परिप्रेक्ष्य में समझा जाता है. उसके सॉफ्ट पॉवर मॉडल ने कन्टेसटेड मॉडर्निटी के नए युग की शुरुआत की है. उन्नीसवीं सदी में विदेशी और साम्राज्यवादी शक्तियों के हाथों चीन ने जिस अपमान और पराजय का अनुभव किया, उसने चीनी लोगों के बीच राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा दिया. वहीं विश्व पर अपनी अर्थव्यवस्था और आर्थिक ताकत का दूरगामी प्रभाव स्थापित करने के चलते चीन का राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी उपेक्षित नहीं रहा है. चीन ने इन दोनों आयमों में प्रमुखता से अपनी जगह बनाई है. परिदृश्य और मानसिकता में महाद्वीपीय होने के चलते चीन को ‘सिविलाइज़ेशन-स्टेट’ के रूप में जाना जाता है, यानी एक ऐसा राज्य जो न केवल भौगोलिक दृष्टि से ऐतिहासिक है बल्कि उसकी सभ्यता अनूठी और महत्वपूर्ण है. लगभग पाँच दशकों तक, दक्षिण एशिया का इलाका चीन के लिए अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सटीक भूगोल साबित हुआ है; इस क्षेत्र में चीन ने भारत और अमेरिका, दोनों को पछाड़ कर अपने प्रभुत्व और प्रभाव का विस्तार किया है.

परिदृश्य और मानसिकता में महाद्वीपीय होने के चलते चीन को ‘सिविलाइज़ेशन-स्टेट’ के रूप में जाना जाता है, यानी एक ऐसा राज्य जो न केवल भौगोलिक दृष्टि से ऐतिहासिक है बल्कि उसकी सभ्यता अनूठी और महत्वपूर्ण है.

भारत का लंबे समय तक आर्थिक क्षेत्र में प्रभावी न होना और दक्षिण एशिया में अमेरिकी दखल व असर कम रहने के चलते चीन की साफ्ट पावर को लगातार बढ़ावा मिला है. चीन की  सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी उसके “प्राचीन ज्ञान,” कन्फ्यूशी संस्थानों के प्रभाव, सांस्कृतिक लोकाचार और निवेश व आर्थिक सहायता देने का मिलाजुला रूप है. इस मिलिजुली कूटनीतिक पेशकश ने न केवल एक ब्रांड के रूप में चीन को दक्षिण एशिया में बखूबी बेचा है बल्कि विश्व में शांति बहाल करने वाले देश के रूप में उसे पेश किया है. इस बात का आकलन करने के लिए कि चीन की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी क्या दक्षिण एशिया में उसकी विशिष्ट छवि को बनाए रखेगी और उसे भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक लाभ पहुंचाएगी, यह जानना ज़रूरी है कि चीनी ब्रांड की विशेषताएं और विसंगतियां क्या हैं? बीजिंग का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) दक्षिण एशिया में चीन की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में उभरा है. यह एक व्यापक योजना है जिसका उद्देश्य है भूमि और समुद्री नेटवर्क के माध्यम से एशिया को अफ्रीका और यूरोप के साथ जोड़ना ताकि आर्थिक एकीकरण को प्रोत्साहन मिले और क्षेत्रीय एकीकरण, बिना रोक-टोक व्यापार व वित्तीय एकीकरण के ज़रिए आर्थिक विकास हो. यह सिल्क रोड, इकोनॉमिक बेल्ट और 21वीं सदी के मैरीटाइम सिल्क रोड की तर्ज पर बनाई गई योजना है, जो चीन के पिछले गौरव को एक नए तरीके से पुनर्जीवित करेगी. रीसर्च के मुताबिक BRI (बीआरआई) के ज़रिए सदस्य देशों के बीच व्यापार में 4.1 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी होगी. डी सोयर के मुताबिक बीआरआई से सदस्य देशों के जीडीपी में 2.6 फीसदी और 3.9 फीसदी तक का इजाफा होगा. पिछले हालांकि, भारत ने इस महत्वाकांक्षी योजना को अस्वीकार कर दिया है. पिछले कुछ सालों में बीजिंग और नई दिल्ली के बीच टकराव बढ़ा है जिसकी जड़ है, दोनों के बीच मौजूद रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता और भू-राजनीतिक मुद्दों पर अलगाव. इसमें चीन-भारत सीमा विवाद भी शामिल है. ऐसे में चीन का बीआरआई कार्यक्रम भारत के लिए उन्हीं आशंकाओं को एक बार फिर से जीवित करता है. इससे दोनों क्षेत्रीय ताकतों के बीच मनमुटाव बढ़ा है और इसका इस्तेमाल बीजिंग भारत के साथ दक्षिण एशियाई संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए भी कर सकता है.

भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार रहे बांग्लादेश को चीन में एक नया वैश्विक साझेदार मिला है. चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग और बांग्लादेशी प्रधान मंत्री शेख हसीना के बीच हुई हालिया मुलाकातों में यह स्थापित हुआ है कि बांग्लादेश के आर्थिक विकास को बीआरआई फंडिंग के ज़रिए किया जाएगा. दोनों पक्ष यह मानते हैं कि बीआरआई सदस्य देशों के लिए परस्पर सहयोग और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक मॉडल स्थापित करता है और क्षेत्रीय स्तर पर राज्य के लिए एकसाथ जुड़ने के नए अवसर पैदा करता है. मुमकिन है कि भविष्य में बीजिंग, बांग्लादेश के पायरा में बीआरआई संबंधी विकास के ज़रिए वहां स्थित बंदरगाह का लाभ उठाने की कोशिश करे. वहीं भूटान अपनी अर्थव्यवस्था में विस्तार और विविधता लाने के लिए चीन के साथ संभावित साझेदारी के पक्ष में हैं. हालांकि, खबरों के मुताबिक चीन के लगातार दबाव के बावजूद भूटान आगामी बीआरआई सम्मेलन से दूरी बनाए रख सकता है, जैसा कि उसने साल 2017 में किया था. भूटान के राजनयिक संबंध फिलहाल भारत के पक्ष में हैं, हालांकि, चीन की नरम ताकत इस क्षेत्र में लगातार तेज़ हो रही है.

श्रीलंका ने चीन द्वारा अपने बीआरआई कर्ज़ का भुगतान किए जाने के एवज़ में, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और हिंद महासागर में स्थित अपने बंदरगाह हम्बनटोटा को चीन को सौंप दिया है. चीन लगातार यह कोशिश कर रहा है कि रणनीतिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस तरह के फैसलों के ज़रिए वो अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ता रहे और श्रीलंका को सुरक्षित महसूस कराता रहे. चीन के सॉफ्ट पॉवर निवेशों ने बीआरआई से आगे भी कई आयामों में सफलता हासिल की है. उदाहरण के लिए, श्रीलंका को कोरोनावायरस से बचाव और उसके बढ़ते मामलों को रोकने के लिए तकनीकी सहायता और एक मॉडल की ज़रूरत है; चीन के पास यह दोनों मौजूद हैं. श्रीलंका में महामारी से निपटने के प्रयासों के लिए चीन ने रियायती दरों पर 500 मिलियन डॉलर का कर्ज़ दिया है. राजदूत हू वेई ने इससे पहले श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्री पवित्रा वन्नियाराची को एक दस्तावेज पेश किया था जिसमें चीन में कोविड-19 के संचालन से सीखे गए सबक का लेखा-जोखा मौजूद था. अप्रैल की शुरुआत में, श्रीलंका में जारी प्रमुख चीनी परियोजनाओं में शामिल कंपनियों और चीनी सरकार ने बड़ी संख्या में मास्क, पीपीई और परीक्षण किट दान किए थे. इस मामले में अमेरिका की अनुपस्थिति और भारत की निष्क्रियता ने चीन के लिए संभावनाओं और उसकी छवि को सकारात्मक रूप से आगे बढ़ाया है.

चीन लगातार यह कोशिश कर रहा है कि रणनीतिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस तरह के फैसलों के ज़रिए वो अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ता रहे और श्रीलंका को सुरक्षित महसूस कराता रहे. चीन के सॉफ्ट पॉवर निवेशों ने बीआरआई से आगे भी कई आयामों में सफलता हासिल की है.

चीन की रणनीतिक प्रतिबद्धताओं में इस्लामाबाद के साथ सीपीईएसी (CPEC) स्थापित करना भी शामिल है, जिसके तहत चीनी पूंजी और उत्पादन क्षमता का इस्तेमाल कर इस्लामाबाद के लिए “सतत आर्थिक विकास का तंत्र” विकसित किया जा सके. इसके बदले में, बीजिंग को अरब सागर में मौजूद रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मलक्का जलडमरूमध्य क्षेत्र में व्यापार मार्ग मिलेगा. बांग्लादेश में भी कुनमिंग और चटगांव को जोड़ने वाली एक समानांतर पाइपलाइन बनाने की योजना पर काम चल रहा है. अगर अमेरिका और भारत चीन का विरोध करने के लिए मलक्का और हिंद महासागर के क्षेत्रों को अवरुद्ध करने की कोशिश करते हैं तो ऐसें में यह एक रणनीतिक विकल्प के रूप में भी काम करेगा. चीन इस द्वीप को संसाधन प्रबंधन और इससे संबंधित संतुलन पैदा करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है. चीन की गतिविधियां भारत को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया व जापान जैसे दूसरे लोकतांत्रिक देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, जो मिलकर एक गठबंधन की तरह काम कर सकते हैं. 

इस मामले में दुनिया की दूसरी बड़ी शक्तियों के मुकाबले चीन को अधिक सफलता मिली है क्योंकि इन दूसरी शक्तियों ने द्विपक्षीय निवेश को सहकारी ढांचे के तहत किया. राजनीतिक रूप से अलग यूरोप, मध्य पूर्व और भारत की अलग-अलग सभ्यताओं के उलट चीन ने अपने अधिकांश क्षेत्र पर राजनीतिक एकरूपता स्थापित की है. पश्चिमी संस्थान अक्सर दक्षिण एशिया की अलग-अलग सरकारी प्रणालियों के कामकाज में अपने हिसाब से हस्तक्षेप करते हैं या सशर्त ही उनके साथ कामकाज के लिए तैयार होते हैं.  ऐसे में मध्यम-आकार के गैर-पश्चिमी और विकासशील देशों को अगर लोकतंत्र आधारित स्वतंत्र बाज़ार और बाज़ार सत्तावाद (जो बेहतर विकास, स्थिरता, जीवन-स्तर में सुधार और अभिव्यक्ति पर लगाम कसने की बात करता है) के बीच एक विकल्प चुनने को कहा जाए तो बहुमत सत्तावादी मॉडल के पक्ष में रहेगा. 

राजनीतिक रूप से अलग यूरोप, मध्य पूर्व और भारत की अलग-अलग सभ्यताओं के उलट चीन ने अपने अधिकांश क्षेत्र पर राजनीतिक एकरूपता स्थापित की है.

सांस्कृतिक आदान-प्रदान से जुड़ी सफलता के परिप्रेक्ष्य से देखें तो चीन अपनी संस्कृति की एक सच्ची और बेहतर छवि फैलाने का प्रयास कर रहा है. साथ ही उसकी कोशिश है बीआरआई जैसे मिलेजुले प्रयास के ज़रिए दक्षिण एशिया के अलग-अलग सांस्कृतिक धड़ों को एक साथ एक छत्र के नीचे लाना ताकि पारस्परिकता मेलजोल बढ़े और सदस्य देशों में एक दूसरे के प्रति परस्पर कर्तव्य का भाव पैदा हो. नेपाल में चीनी दूतावास ऐसे संस्थानों, मीडिया और थिंक-टैंक से संपर्क बनाए रखता है जो नेपालियों के अपने पड़ोसी देश के प्रति सकारात्मक रवैये को बढ़ावा देते हैं और उसका समर्थन करते हैं. चीनी और बंगलादेशी सरकारों ने शिक्षा और पेशेवरों में मेलजोल बढ़ाने और उनके आपसी संपर्क को स्थापित करने के लिए विनिमय कार्यक्रम शुरु किए हैं. ढाका में कई कन्फ्यूशियस केंद्र हैं. चीन आतंकवाद के मुद्दे पर भी जोर-शोर से अपनी चिंता ज़ाहिर कर रहा है. यहां तक कि राज्य स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिए सम्मेलन और मीट-अप समूह बनाए गए हैं.  साल 2018 में, बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान और चीनी जन सुरक्षा मंत्री ने आतंकवाद और आतंकवाद से बचाव के मुद्दे पर चर्चा भी की थी. म्यांमार में, चीन सशस्त्र जातीय समूहों का समर्थन करने के बजाय, शांति प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए लगातार कोशिशें कर रहा है. ऐसा लगता है कि बीजिंग अब यह समझ रहा है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बढ़ाकर वह अपने लिए लाभ के अधिक अवसर पैदा कर सकता है, बजाय इसके कि वो अशांति को बढ़ावा देकर अपने आर्थिक विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाए.

चीनी निवेश द्वारा आधारभूत संरचना के निर्माण क्षेत्र में मौजूद कमी की भरपाई किए जाने के बावजूद, पश्चिमी विश्लेषक अक्सर ऋण-कूटनीति की चर्चा करते हैं जिसके अनुसार- जब ऋणी अर्थव्यवस्थाएं अपने कर्ज़ चुकाने में असमर्थ होती हैं तो उन पर चीन के भौगोलिक और कूटनीतिक हितों का समर्थन करने का दबाव बढ़ जाता है. दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों ने या तो पहले इस पर ध्यान नहीं दिया या वो इसमें बहुत गहरे स्तर पर उतर चुके हैं, या फिर वो यह मानते हैं कि वे इससे द्विपक्षीय कूटनीतिक स्तर पर कई तरह के लाभ उठा रहे हैं. दक्षिण एशिया में सॉफ्ट पावर ने प्रतिशोध की ऐसी आशंका पैदा की है कि कर्ज़ का जाल जैसे नकारात्मक प्रभाव इन देशों को चीन से दुश्मनी मोल लेने की तुलना में कम खतरनाक विकल्प दिखाई देते हैं.

दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों ने या तो पहले इस पर ध्यान नहीं दिया या वो इसमें बहुत गहरे स्तर पर उतर चुके हैं, या फिर वो यह मानते हैं कि वे इससे द्विपक्षीय कूटनीतिक स्तर पर कई तरह के लाभ उठा रहे हैं.

भारत और चीन के बीच हाल में हुए सीमा विवाद और झड़पें यह बताती हैं कि ज़रूरत पड़ने पर चीन अपने वांछित राष्ट्रवादी लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए कड़ाई का रुख अपनाने यानी हार्ड-पावर का इस्तेमाल करने से परहेज़ नहीं करेगा. राष्ट्रवादी इरादों को छिपाकर उन्हें सहृदयता और साथी देशों की मदद का जामा पहनाकर चीनी नेता, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को गूढ़ और द्विअर्थक संकेत दे रहा है.

भारत दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्से के साथ अधिक समरूपता रखता है, लेकिन चीन की बीआरआई योजना और दूसरी आर्थिक कोशिशों और फ़ायदों के चलते नई दिल्ली का इस क्षेत्र पर प्रभाव कम रहा है. चीन ने जिस तरह सॉफ्ट पॉवर की अवधारणा को पुन: परिभाषित किया है उससे कई मायनों में आर्थिक लाभ हो रहा है, क्योंकि सॉफ्ट पॉवर का ये अनूठा संस्करण अमेरिकी व्याख्या से परे, बहुआयामी और बहुलवादी दक्षिण एशिया के लिए अधिक आकर्षक और सार्थक है.

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