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भारतीय विदेश सचिव ने जोरदार ढंग से उठाया सुरक्षा परिषद् में सुधार का मामला, कहा दुनिया भी कर आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सुधार जरूरी।
भारतीय विदेश सचिव श्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में फौरन सुधार की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि आतंकवाद का विश्व स्तर पर मुकाबला करने को हमें सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। श्री जयशंकर रायसीना डॉयलॉग 2017 के दूसरे दिन मुख्य विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। इस संवाद का आयोजन आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने विदेश मंत्रालय के सहयोग से किया था।
श्री जयशंकर ने स्पष्ट किया कि 70 साल पुरानी यह संंस्था अर्थात यूएनएससी, अपनी रिटायरमेंट की उम्र पार कर चुकी है लेकिन अभी भी कुछ निहित स्वार्थ में इसमें बदलाव लाने के प्रयासों में बाधाएं पैदा कर रहे हैं जबकि ये बदलाव दुनिया भर की आंकाक्षाओं को पूरा करने के लिए जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया को सबसे बड़े खतरा इस समय आतंकवाद से है। इसलिए जरूरी है कि बड़े व शक्तिशाली देश इस विकराल समस्या से लड़ने को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।
श्री जयशंकर ने कहा कि दुनिया आने दिनों में और जटिल हो जाएगी जहां बातीचत करना मुश्किल होगा। बातीचत करने के लिए पारदर्शिता और खुले दिमाग की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि “भारत और चीन के बीच काफी साझा हित हैं” क्योंकि भविष्य में सबसे महत्वपूर्ण नियम बहुपक्षवाद व बहुध्रुवीयता का ही होगा, खासतौर से एशिया में।
उन्होंने कहा लेकिन दुर्भाग्यवश चीन दूसरे देशों की चिंताओं को लेकर संवेदनशीलता नहीं दिखा रहा है। इस संदर्भ में उन्होंने बिना भारत को विश्वास में लिए भारत की भूमि पर गैर कानूनी ढंग से बनाए जा रहे पाक-चीन आर्थिक गलियारे का भी उल्लेख किया।
रायसीना डॉयलॉग के दूसरे दिन मुख्य विषय पर वक्तव्य के बाद श्री जयशंकर से सीपीईसी पर भारत के रूख के बारे में पूछा गया तो विदेश सचिव ने कहा कि अपनी संप्रभुता को लेकर चीन काफी संवेदनशील है, दूसरे देशों के प्रति भी उसे यही संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। उन्होंने सार्क की स्थिति के लिए बिना पाकिस्तान का नाम लिए उसे जिम्मेदर ठहराया। उन्होंने कहा, “यह केवल एक देश की असुरक्षा के कारण है।” उन्होंने कहा कि भारत सार्क की भरपाई करने के लिए दूसरे समूहों का उपयोग करने का प्रयास कर रहा है।
भूमंडलीकरण को लेकर बढ़ रही नाराजगी के संदर्भ में श्री जयशंकर ने कहा, “भूमंडलीकरण न रूका है, न रूकेगा।” नए अमेरिकी प्रशासन व रूस के बीच संबंधों में सुधार को लेकर लगाई जा रही अटकलों के संदर्भ में भारतीय विदेश सचिव ने कहा कि इन दोनो देशों के बीच संबंधों में सुधार भारत हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति के कूटनीतिक सलाहकार, जॉक् आॅडीबर्ट ने अपने मुख्य वक्तव्य में रूस पर आरोप लगाया कि वह जबरन सीरिया व यूक्रेन में बल प्रयोग से यूरोप की सीमाएं बदल रहा है। उन्होंने चीन द्वारा आवाजाही पर अंकुश लगाने के प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा कि फ्रांस व यूरोपीय संघ के लिए आवाजाही की आजादी महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है जिससे उनका अपना देश भी बुरी तरहं से प्रभावित है।
इससे पहले आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रुड ने “टॉकिंग आॅन कनेक्टिविटी” विषय पर बोलते हुए सुझाव दिया कि एशिया में कनेक्टिविटी गैप को कम करने के लिए भारत और चीन को मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओबीओरआर के साथ कुछ मसले हैं लेकिन अंतत: यह परियोजना एशिया व यूरेशिया में कनेक्टिविटी में सुधार लाने में मदद करेगी।
ओआरएफ के विशिष्ट फेलो श्री अशोक मलिक ने कहा कि इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए और ज्यादा आपसी सहमति की जरूरत है। इस साल इस तीन दिवसीय संवाद में 65 देशों के 250 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इस आयोजन के पहले संस्करण में 40 देशों के 120 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।
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Falguni Tewari was a Visiting Associate Fellow with ORF’s Centre for Strategic Studies. Her research at ORF focuses on Indian foreign policy, subnational diplomacy of ...
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