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समाजवादी पार्टी की स्थापना 4 अक्टूबर 1992 को लखनऊ में हुई थी। स्थIपना के घोषित सिद्धान्त थे ‘समाजवाद, प्रजातंत्र एवं समानता’। समाजवादी पार्टी ने साम्प्रदायिक सद्भाव को अपनी पार्टी का मूलाधार रखा तथा सदैव यह यत्न किया कि पिछडे तबके, मुसलमानों एवं महिलाओं के विकास हेतु विशेष अवसर उपलब्ध हों। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली लोकप्रिय पार्टी का गठन किया गया था।
विचारधारा के स्तर पर, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, समाजवादी पार्टी समाजवादी आन्दोलन को ही आगे बढाने के उदे्श्य से गठित की गयी थी। उदे्श्य था समतामूलक समाज की स्थापना। विचारधारा की धुरी पंथ निरपेक्षता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के इर्द-गिर्द थी। समाजवादी पार्टी के जनक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव, राम मनोहर लोहिया के चेले थे एवं खाटी समाजवादी रंग में रचे बसे थे। लोहिया के अनुयायी होने के कारण मुलायम सिंह यादव को एक प्रदेश स्तर का नेता होने के बावजूद एक राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय दृष्टि मिली थी, जिसके कारण कालान्तर में समाजवादी पार्टी को प्रदेश एवं राष्ट्रीय राजनीति में साम्प्रदायिकता विरोधी, अधिनायक वाद विरोधी, सेम्यूलर तथा प्रगतिशील ध्रुव का खिताब मिलता रहा। मुख्य धारा की पार्टी रहते हुए भी समाजवादी पार्टी वाम दलों की स्वभाविक मित्र बनी रही।
समाजवादी पार्टी की स्थापना कई मायनों में महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना थी। केन्द्र में नरसिम्हा राव की अल्पसंख्यक कांग्रेस सरकार थी, जिसे शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त उपजे नये वैश्विक सन्तुलन एवं आर्थिक उदारवाद की चुनौती से दो-चार होना पड रहा था। नरसिम्हा राव एवं मनमोहन सिंह की जोडी के आर्थिक उदारीकरण से कांग्रेस का नेहरू मार्का विकास का ढॉंचा एवं इन्दिरा गॉंधी का गरीबी हटाओ का नारा पीछे छूटता दिख रहा था। सहयोगी वामपन्थी उदारवाद एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रभुत्व तथा विश्व विजेता अमेरिका के बढते प्रभाव से कसमसा रहे थे।
राष्ट्रीय परिदृश्य में साम्प्रदायिकता का बोलबाला था। तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा हिमांचल प्रदेश में भाजपा की सरकारें थीं। अपने पहले मुख्य मंत्रित्व काल में मुलायम सिंह यादव विश्व हिन्दू परिषद के कार सेवकों से एक मुचेहटा ले चुके थे। 1990 की आडवानी की रथयात्रा की परिणति कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद ढहाने के असफल प्रयास के रूप में हुई। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह कारसेवकों पर गोली चलवा कर बाबरी मस्जिद बचाने में सफल रहे। यह दीगर बात है कि वी.पी.सिंह सरकार जाती रही एवं भाजपा राष्ट्रीय परिदृश्य में मजबूती से उभरी एवं उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार सत्ता में आयी।
कार सेवकों पर फायरिंग ने चाहे-अनचाहे मुलायम सिंह की राजनैतिक दिशा तय कर दी। “मुल्ला-मुलायम” का तमगा उन्हें रातों-रात मुसलमानों का मसीहा बना गया। यह कांग्रेस की मुस्लिम जमींदारी का अन्त था। मुलायम सिंह के पास लोहिया एवं चरण सिंह की सर्वहारा, पिछडों एवं किसानों की विरासत पहले ही थी। विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा प्रकारान्तर में भाजपा विरोध उन्हें स्वाभाविक रूप से वामपंथी, लैफ्ट आफ सेन्टर तथा गैर कांग्रेसी दलों का नेतृत्व प्रदान कर गया।
समाजवादी पार्टी का स्थापना सम्मेलन दिनांक 4, 5 नवम्बर 1992 में लखनऊ में आयोजित हुआ था। प्रारम्भ से ही समाजवादी पार्टी ने गैर कांग्रेस वाद एवं गैर भाजपा की नीति अपनायी। स्थापना सम्मेलन में पारित अपने राजनैतिक प्रस्ताव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के उदारीकरण, महानगरीय संस्कृति, विदेशी कर्ज की कडी आलोचना की। समाजवादी पार्टी का मानना था कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार द्वारा नौकरशाहों एवं पूँजी-पतियों के गठजोड से आम जनता को लूटा जा रहा है। हर्षद मेहता का प्रतिभूति घोटाला इसी भ्रष्ट गठजोड का परिणाम है। केन्द्र सरकार की खाद, डीजल, पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि करके खाद्य उत्पादन गिराने की मूर्खतापूर्ण कार्यवाही से जहॉं एक ओर देश की अर्थ व्यवस्था गर्त में जा रही है वहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लूट की खुली छूट देकर कांग्रेस सरकार देश को पश्चिमी ताकतों का गुलाम बनाने की साजिश कर रही है।
समाजवादी पार्टी ने अपने स्थापना सम्मेलन में पारित राजनैतिक प्रस्तावों में पहले दिन से ही आर्थिक उदारीकरण से जुडे डंकल प्रस्ताव एवं एम्जिट पालिसी का पुरजोर विरोध किया। पार्टी राष्ट्रीय मुद्राकोष के दबाव में बनायी गयी आर्थिक नीतियों के विरोध में थी। अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी पार्टी का मानना था कि भारत को अपनी अरब समर्थन की नीति पर कायम रहना चाहिए तथा इजरायल को भारत सरकार द्वारा मान्यता देने को दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय बताया।
लोहिया की भारत पाकिस्तान के परिसंघ की परिकल्पना में मुलायम सिंह ने एक कदम और बढाकर बंगला देश को भी शामिल कर लिया। यह एक प्रकार से मुस्लिम लींग जनित एवं कांग्रेस द्वारा प्रच्छन्न रूप से समर्थित “द्वि राष्ट्रीय अवधारणा” को नकारना ही था, वही ध्रुव दक्षिण पंथी दलों, भाजपा एवं शिवसेना के प्रचण्ड राष्ट्रवाद की धार को कुंद करके मुस्लमानों की सहानुभूति बटोरना भी था।
स्थापना के बाद से समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह के नेतृत्व में दो बार उत्तर प्रदेश में सरकारें बनी। बदलते राजनैतिक परिदृश्य में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को गाहे-बगाहे गैर कांग्रेसवाद को छोटी बुरायी मानते हुए अंगीकार करना पडा। इसी प्रकार भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के परम्-ध्येय के चलते बिना मांगे मनमोहन सिंह की यूपीए (कांग्रेस) सरकार को समर्थन देने का अपमानजनक निर्णय भी लेना पडा। वैचारिक विरोध के बावजूद भारत, अमेरिका न्यूक्लियर डील में वामपंथी साथियों के विरोध तथा कांग्रेस के पक्ष में ‘राष्ट्रहित’ में मतदान करना पडा।
स्थापना के 25 वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी समाजवादी पार्टी की वर्ष 2012 से उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार है। समाजवादी पार्टी की सरकार का नेतृत्व श्री मुलायम सिंह यादव के पुत्र एवं पार्टी के युवा चेहरा अखिलेश यादव के हाथों में है। अखिलेश को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपने का संकेत मुलायम सिंह ने वर्ष 2012 से काफी पहले ही दे दिया था। लोगों ने इस उत्तराधिकार की परम्परा को लोहिया के वंशवाद विरोध के खिलाफ बताया था। चौतरफा आलोचना सह रहे मुलायम सिंह का बचाव छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र ने किया। छोटे लोहिया ने इस संघर्ष को वंशवाद बताया।
अखिलेश यादव के मुख्य मंत्रित्व काल में समाजवादी पार्टी ने कुछ क्रान्तिकारी बदलाव देखें हैं। अंग्रेजी विरोध, टेक्नोलाजी विरोध आर्थिक उदारीकरण एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विरोध अब बदलती समाजवादी विचारधारा के एजेण्डे में नहीं है। अखिलेश का युवा समर्थक लैपटॉप एवं स्मार्ट फोन से लैस है। वर्ष 2012 का विधान सभा का चुनाव साइकिल चला कर जीतने वाले अखिलेश ‘हाईटेक रथ’ पर सवार होकर विकास से विजय की यात्रा पर निकल चुके हैं। अतीक अहमद एवं मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबली को सार्वजनिक रूप से धकिया कर वे समाजवादी पार्टी के चाल एवं चरित्र में बदलाव का मुखर संकेत दे चुके हैं।
5 नवम्बर, 2016 को लखनऊ में आयोजित रजत जयन्ती समारोह समाजवादी पार्टी एवं मुलायम सिंह यादव के लिए सम्भवत: उनके जीवन की सबसे बडी चुनौती है। अखिलेश का कमोवेश सफल मुख्य मंत्रित्वकाल सम्भवत: इस रजत जयन्ती की सबसे बडी उपलब्धि होती। परन्तु स्थिति पूर्णत: भिन्न है। सरकार एवं पार्टी अलग अलग रास्ते पर हैं। यह राजनीति का विद्रूप ही कहा जायेगा, कि पार्टी बचाने के लिए मुलायम सिंह को सार्वजनिक रूप से अपने मुख्यमंत्री पुत्र की लानत, मलानत करनी पड रही है। स्थापना के समय से ही जुडे भाई राम गोपाल यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निष्कासित करना पड रहा है। अजीत सिंह एवं प्रशान्त किशोर जैसों के सामने गठबन्धन हेतु हाथ फैलाना पड रहा है।
मुस्लिम एवं पिछडों का परम्परागत वोट बैंक एवं समाजवादी सेम्यूलर एवं नेता जी की भारी भरकम विरासत अखिलेश को पार्टी में रोक पाने में असफल सी दिख रही है। अखिलेश सिद्धार्थ की तरह निर्गमन कर चुके हैं। भले ही वे वीतरागी न हो किन्तु इस क्रम में वे समाजवादी पार्टी का बहुतेरा ‘अवांछित वैगेज’ छोडने में सफल रहे हैं। ‘रजत जयन्ती’ समारोह में मुलायम सिंह अपने राजनैतिक गुरू एवं मार्गदर्शक को अनेकों प्रसंगों में याद करेंगे। सम्भव है कि उन्हें लोहिया की (यह) मान्यता “पत्नी एवं बच्चों के कारण, सम्भव है कि सार्वजनिक कार्यकर्ता भ्रष्ट हो जाये” भी याद आये। इसी के साथ ही छोटे लोहिया की उक्ति “संघर्ष का वंशवाद” कहीं “वंश का संघर्ष” न बन जाये।
लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन नयी दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं।
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Falguni Tewari was a Visiting Associate Fellow with ORF’s Centre for Strategic Studies. Her research at ORF focuses on Indian foreign policy, subnational diplomacy of ...
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