आईएनएस केसरी ‘मिशन सागर’ पर 55 दिनों में 7,500 नॉटिकल मील की यात्रा पूरी करने के बाद 28 जून, 2020 को भारत लौट आया. मिशन सागर 10 मई, 2020 को मालदीव, मॉरीशस, मेडागास्कर, कोमोरोस और सेशेल्स के द्वीप राष्ट्रों को कोविड-19 से संबंधित मदद मुहैया करने के लिए लॉन्च किया गया था. मिशन पर काम करते हुए आईएनएस केसरी ने ज़रूरी खाद्य पदार्थ, दवाएं, आयुर्वेदिक दवाएं बांटीं और मॉरीशस व कोमोरोस को चिकित्सा सहायता टीमें भी पहुंचाईं. कोविड-19 आपातस्थिति के दौरान, हिंद महासागर के द्वीप राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाएं आमदनी के मुख़्य स्रोत- पर्यटन में गिरावट के चलते प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई थीं. हिंद महासागर द्वीप राष्ट्रों में से दो- मालदीव और सेशेल्स दुनिया के पांच शीर्ष देशों में हैं, जिनकी जीडीपी पर्यटन और यात्रा पर निर्भर है. इनकी जीडीपी में पर्यटन का क्रमशः 32.5% और 26.4% योगदान है, और बाकी राष्ट्र भी दहाई के अंक में हैं. पहले से ही जलवायु परिवर्तन से बढ़ते समुद्र स्तर का सामना कर रहे इन द्वीपों को इस नई अभूतपूर्व स्थिति का सामना करना पड़ा. अफ़्रीका के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग ने के विकास अनुमान में भी ऐसी ही चिंता जताई गई है- कोमोरोस, मॉरीशस और सेशेल्स की जीडीपी में क्रमशः 1.2%, 6.8% और 10.8% की गिरावट आई है, जबकि मेडागास्कर में 0.4% की मामूली वृद्धि हुई है.
हिंद महासागर द्वीप राष्ट्रों में से दो- मालदीव और सेशेल्स दुनिया के पांच शीर्ष देशों में हैं, जिनकी जीडीपी पर्यटन और यात्रा पर निर्भर है.
इस तरह के एक भयानक और अप्रत्याशित संकट के दौरान मिशन सागर बहुत ज़रूरी था. हिंद महासागर द्वीप राष्ट्रों की मदद करना और उनके साथ सकारात्मक संबंध विकसित करना भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. दुनिया के बल्क कार्गो यातायात का एक तिहाई, दुनिया के ऑयल शिपमेंट का दो तिहाई और दुनिया के आधे कंटेनर शिप हिंद महासागर से जाते हैं जो इसे सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग बनाता है. इसके अलावा हिंद महासागर के द्वीप राष्ट्र हिंद महासागर के सी लाइंस ऑफ़ कम्युनिकेशन (SLOC) का हिस्सा हैं. ये समुद्री संचार की लाइनें देशों की अर्थव्यवस्था और क्षेत्र के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी हैं. वे कारोबारी व्यापार मार्ग और सैन्य आवागमन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.
हिंद महासागर SLOC के इस महत्व को चीन जैसी अन्य शक्तियां भी महत्व देती हैं, जिससे भारत के लिए समुद्री सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. चीन हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विस्तार और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) की मौजूदगी बढ़ाते हुए प्रभुत्व स्थापित कर रहा है. हालांकि सिल्क रूट के ऐतिहासिक संदर्भ हैं, लेकिन 15वीं शताब्दी में चीनी खोजकर्ता झांग ही की सात समुद्री यात्राओं तक कभी भी चीनी जहाज़ों ने हिंद महासागर के रास्तों को नियंत्रित नहीं किया है.
इसके अलावा, चीन हिंद महासागर में चीनी नौसैनिक जहाज़ों की मौजूदगी बढ़ाने के साथ अनमैंड अंडरवाटर व्हीकल (UUV) जैसी अत्याधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल करता रहा है. UUV का वैज्ञानिक कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने के अलावा पनडुब्बियों को ट्रैक करने और माइंस को तबाह करने के लिए भी किया जा सकता है. इसके अलावा, चीनी अनुसंधान पोत शियान-1 अंडमान द्वीप समूह के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के अंदर पानी में काम कर रहा है और चीन ने भारत को बताया कि टाइप 093 परमाणु-संचालित पनडुब्बियां हिंद महासागर में गश्त करेंगी.
हिंद महासागर द्वीपों के ऐसे आर्थिक और सामरिक महत्व को देखते हुए, जिसे अन्य देश भी स्वीकार करते हैं, भारत द्वारा 2015 में SAGAR (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फ़ॉर ऑल इन द रीजन) की शुरुआत की गई थी. सागर का मुख़्य उद्देश्य क्षेत्रीय समस्याओं जैसे कि समुद्री पड़ोसियों को मानवीय सहायता पहुंचाना और हिंद महासागर में समुद्री डाकू जैसे किसी भी देश से नहीं जुड़े तत्वों का मुकाबला करना है. 2004 में सुनामी, बार-बार आने वाले भूकंप, बढ़ते समुद्री जल का ख़तरा, मालदीव का जल संकट और इनमें भारतीय मदद इस पहल के महत्व को दर्शाती है. भारत के लिए बड़ा मक़सद हिंद महासागर में ऐसी एकमात्र क्षेत्रीय शक्ति के रूप में वैधता हासिल करना है, जिसके पास पूरे क्षेत्र को मानवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता है. 2015 में शुरू की गई पहल सागर एक्ट ईस्ट पॉलिसी, प्रोजेक्ट सागरमाला और प्रोजेक्ट मौसम के साथ मिलकर काम करती है.
भारत ने 2015 की समग्र पहल को जारी रखते हुए हिंद महासागर के तटवर्ती देशों की मदद को हाथ बढ़ाया, जिसकी शुरुआत कोरोनावायरस के कारण चीन के वुहान से लोगों को निकालने से की गई. निकाले गए लोगों में बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव, दक्षिण अफ़्रीका और मेडागास्कर के भावनात्मक मामले थे
भारत ने 2015 की समग्र पहल को जारी रखते हुए हिंद महासागर के तटवर्ती देशों की मदद को हाथ बढ़ाया, जिसकी शुरुआत कोरोनावायरस के कारण चीन के वुहान से लोगों को निकालने से की गई. निकाले गए लोगों में बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव, दक्षिण अफ़्रीका और मेडागास्कर के भावनात्मक मामले थे, फिर उन्हें उनके देश भेजने से पहले भारत में क्वारंटाइन में रखा गया. इस सबसे भारत को एक ज़िम्मेदार शक्ति के रूप में विश्वसनीयता मिली.
मिशन सागर के तहत भारत हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन सहित जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेजकर मॉरीशस और सेशेल्स का पहला मददगार बन गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन देशों को भारतीय मदद का पूरा भरोसा दिलाया. इस तरह की मदद ने सेशेल्स के साथ 2018 में दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से एज़ंप्शन आईलैंड पर एक नौसैनिक अड्डा विकसित करने के लिए हुए समझौते के अलावा भी निश्चित रूप से एक नया बंधन बनाया गया होगा.
दूसरी तरफ़ चीन ने एकदम शुरुआत में ही मालदीव में महामारी रोकथाम की सामग्री पहुंचाई. कई सालों से माले में भारत समर्थक सरकार को देखते हुए, भारत दक्षिण एशियाई देश मालदीव का पहला मददगार बनना चाहिए था. हालांकि, चीन की क़र्ज़ के जाल में फांस लेने की कूटनीति ने मालदीव और चीन के बीच रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया है, जिससे भारत को मजबूत संबंध बनाने की भरपूर जगह और मौक़ा मिला है. हालांकि, इस तरह का मौक़ा हमारी तरफ से किए गए रणनीतिक कूटनीतिक कृत्यों के बजाय दूसरी तरफ़ की आकलन में चूक से मिला है. भारत को इस बात को लेकर ज़रूर चौकस रहना चाहिए कि मलक्का जलसंधि, जोहोर जलसंधि और स्वेज़ नहर के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों के साथ हिंद महासागर विश्व व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है. दूसरे देश इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेंगे. हिंद महासागर में 2019 में रूस-ईरान-चीन नौसैनिक अभ्यास इसी ख़तरे का सबूत है. यह अभ्यास भारत द्वारा निर्मित चाबहार बंदरगाह से शुरू हुआ था.
भारत को इस बात को लेकर ज़रूर चौकस रहना चाहिए कि मलक्का जलसंधि, जोहोर जलसंधि और स्वेज़ नहर के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों के साथ हिंद महासागर विश्व व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है. दूसरे देश इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेंगे.
चूंकि पश्चिमी हिंद महासागर स्वेज़ नहर तक पहुंच का रास्ता देने के साथ पूर्वी अफ़्रीका, खाड़ी और दक्षिण एशिया के चौराहे पर है, यह खाड़ी शक्तियों सऊदी अरब, ईरान, यूएई, क़तर और तुर्क़ी के बीच प्रभुत्व की लड़ाई का मैदान बन जाता है. खाड़ी देश अपनी बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति के साथ, हिंद महासागर में भारत के लिए समुद्री संचार के बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र में बाब अल-मंदेब और इरिट्रिया के संकरे रास्ते के प्रवेश द्वार के लिए गंभीर चुनौती बन रहे हैं.
खाड़ी देश बंदरगाह के बुनियादी ढांचे और सैन्य ठिकानों में भारी निवेश कर रहे हैं. संयुक्त अरब अमीरात, सोमालीलैंड में एक अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र बारबेरा में सैन्य अड्डा बना रहा था, लेकिन अब इसे नागरिक हवाई अड्डे में बदल दिया गया है. उनका पहले से ही एरिट्रिया के असाब में एक स्थायी अड्डा है. इन दोनों ठिकानों का मक़सद पश्चिमी हिंद महासागर के प्रवेश द्वार बाब अल-मंदेब पर नियंत्रण रखना है. खाड़ी देश जिस तरह से पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार कर रहे हैं और सैन्य अड्डे के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, उससे पता चलता है कि वे हिंद महासागर में बाब अल-मंदेब जैसे चोक पॉइंट को नियंत्रित करना चाहते हैं.
मिशन सागर और इस पूरे सागर अभियान का मक़सद समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक व सुरक्षा सहयोग विकसित करना है, बाब अल-मंदेब और फ़ारस की खाड़ी की महत्वपूर्ण जलसंधियों के महत्व को नहीं भूलना चाहिए. बंदरगाह परियोजनाओं में भारतीय निवेश को बढ़ाना चाहिए. खाड़ी देशों के साथ भारतीय संबंधों में सुधार हुआ है और इसे मज़बूत बनाया जाना चाहिए
हालांकि अमीरात के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं और यह दूसरे खाड़ी देशों के साथ भी सकारात्मक संबंध विकसित कर रहा है, लेकिन चीन चुनौती पेश कर रहा है. वे खाड़ी देशों को सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मुहैया कराने में सक्षम हैं- निवेश और बुनियादी ढांचा. चीन द्वारा अल-दुक्म में चीन-ओमान औद्योगिक पार्क, सऊदी औद्योगिक परिसर यान्बू में निवेश किया गया है. खाड़ी के बंदरगाहों और आर्थिक विकास में चीनी निवेश बढ़ना ही है, क्योंकि पश्चिमी हिंद महासागर यूरोप को जाने का रास्ता है, जो वन बेल्ट बन रोड प्रोजेक्ट के लिए महत्वपूर्ण है. चीन ने जिबूती में एक नौसैनिक अड्डा बना लिया है और नौसैनिक जहाजों व यूयूवी (अनमैंड अंडरवाटर व्हीकल) जैसी उन्नत टेक्नोलॉजी के साथ जब-तब अपनी ताक़त का प्रदर्शन करता रहता है. इस तरह, चीन इस एनर्जी संपन्न क्षेत्र में खाड़ी देशों को उनके हितों को पूरा करने में मदद देकर उनकी प्राथमिकताओं को बदलने और भारत को मात देते हुए संचार की समुद्री लाइनों पर महत्वपूर्ण रूप से नियंत्रण रखने की स्थिति में है.
मिशन सागर और इस पूरे सागर अभियान का मक़सद समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक व सुरक्षा सहयोग विकसित करना है, बाब अल-मंदेब और फ़ारस की खाड़ी की महत्वपूर्ण जलसंधियों के महत्व को नहीं भूलना चाहिए. बंदरगाह परियोजनाओं में भारतीय निवेश को बढ़ाना चाहिए. खाड़ी देशों के साथ भारतीय संबंधों में सुधार हुआ है और इसे मज़बूत बनाया जाना चाहिए. भौगोलिक निकटता, इंडियन ओपन रिम एसोसिएशन जैसे संगठनों और साझा इतिहास का इस्तेमाल चाबहार और सागर जैसी मानवीय सहायता के साथ बुनियादी ढांचे के विकास में भारतीय भागीदारी बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए. सांस आने की जगह को छोड़कर संचार के पूरे समुद्री मार्ग पर नियंत्रण रखना बेकार है.
कोविड-19 ने भारत को हिंद महासागर द्वीप राष्ट्रों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण मौक़ा दिया है और मिशन सागर के माध्यम से 2015 की सागर पहल की अवधारणा को बल मिला है. जितनी ज़िंदगियां बचाई गईं, क्षमता का निर्माण किया और उपकरणों की आपूर्ति की गई, उससे मिशन सागर संबंधों में महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया. चीन की मौजूदगी में हाल ही में इंडियन ओशन कमीशन में पर्यवेक्षक देश के रूप में भारत को शामिल किए जाने से पता चलता है कि 2015 में सागर के शुभारंभ के बाद से भारत लंबा सफ़र तय कर चुका है. इंडियन ओशन कमीशन पर्यवेक्षक की हैसियत से, भारत एक अन्य चोक प्वाइंट हिंद महासागर-मोज़ांबिक चैनल के बारे में बोलने का हक़दार बन गया है. मिशन सागर को भारतीय दख़ल बढ़ाने और सकारात्मक छवि बनाने के लिए खाड़ी देशों व हिंद महासागर के हितधारक देशों तक विस्तारिक किया जा सकता है.
हालांकि, भारत को यह बात भी याद रखना चाहिए कि यह पर्यवेक्षक देश के रूप में स्वीकार किया जाने वाला 5वां सदस्य था, जबकि चीन पहले से सदस्य था. इसके अलावा, भारत को हिंद महासागर द्वीप राष्ट्रों में अपने हितों की रक्षा करने, बुनियादी ढांचे का निर्माण शुरू करने, सैन्य अभ्यास करने और हितधारक देशों में निवेश करने के लिए हिंद महासागर आवागमन की सीमा- बाब अल-मंदेब और इरिट्रिया के नेक (गर्दन) पर एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की ज़रूरत है.
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