Author : Seema Sirohi

Published on Sep 02, 2020 Updated 0 Hours ago

ट्रंप प्रशासन द्वारा संघातिक चोट देने के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के अमेरिका में प्रवेश पर सिरे से रोक लगाने पर विचार किया जा रहा है.

चीन पर ट्रंप का चौतरफ़ा वार

अमेरिका अंतत: एशिया से अपनी धुरी ऐसे जोड़ने के फेर में है जिससे उसके मित्र तो आश्वस्त हों मगर चीन परेशान हो जाए. लेकिन सवाल यह है कि उसके दाव से उक्त में से एक भी अथवा दोनों प्रयोजन सिद्ध हो पाएंगे? पिछले दो सप्ताह में अमेरिका ने चीन तथा चीन की कंपनियों के विरूद्ध श्रृंखलाबद्ध कार्रवाई की है. कार्रवाई का उद्देश्य बीजिंग को यह स्पष्ट संदेश देना है—इतना तेजी ठीक नहीं. अपना समय आने की प्रतीक्षा करो. संयुक्त रूप में उसके उपायों में तगड़ा धक्का निहित है. यह सिलसिला बयानबाज़ी से शुरू हुआ था और जुलाई के मध्य तक वाशिंगटन उसे समुद्रवर्ती, कानूनी, प्रौद्योगिकीय एवं मानवाधिकारों के मुद्दों पर अपनी ताक़त दिखा चुका है. मुखिया बने रहने की लड़ाई पूरे दम खम से और खुलेआम शुरू हो चुकी है.

जो लोग यह कहते थे कि आपस में जुड़ी दुनिया में नया शीत युद्ध असंभव था उन्हें अपनी बात पर पुनर्विचार करना पड़ेगा क्योंकि वास्तविक परिस्थितियां ऐसी ही पैदा हो रही हैं. अमेरिका ने दक्षिण चीन समुद्र में चीन के दावों पर सवाल उठा रखे हैं, भारत में सीमा पर घुसपैठ के लिए बीजिंग की निंदा की है, हुआवे पर रोक लगाने के लिए यूनाइटेड किंगडम को मना लिया है और उईघरों को बंदी बनाने का विरोध किया है.

जो लोग यह कहते थे कि आपस में जुड़ी दुनिया में नया शीत युद्ध असंभव था उन्हें अपनी बात पर पुनर्विचार करना पड़ेगा क्योंकि वास्तविक परिस्थितियां ऐसी ही पैदा हो रही हैं.

बहुत से विश्लेषक चाहे कुछ भी कहें मगर राष्ट्रपति ट्रंप यदि चुनावी बहस का प्रयोग इस बात पर जोर डालने के लिए करें कि डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिडेन द्वारा चीन के प्रति वांछित सख्त रूख नहीं अपनाया जा रहा तो भी उसे विशुद्ध चुनाव के परिप्रेक्ष्य में नहीं माना जाएगा. डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति ने ही डब्लूटीओ यानी विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने में चीन की सहायता की थी. फिर चीन को उसकी व्यापारिक प्रथाओं के लिए ज़िम्मेदार ठहराने में उसके बाद आए डेमोक्रेटिक एवं रिपब्लिकन दोनों ही दलों के राष्ट्रपति नाकाम रहे.

नवंबर में चुनाव अमेरिकी प्रभुत्व बरकरार रखने की विशद लड़ाई का महत्वपूर्ण पड़ाव है और डेमोक्रेट यह बात भली-भांति जानते हैं. और वे भी इसके लिए डटकर लड़ेंगे अलबत्ता उनकी शैली शायद कुछ अलग हो सकती है. दोनों दल इस बात पर एकमत हैं कि चीन द्वारा वैश्विक उत्तराधिकार क्रम में अमेरिका को उसकी नंबर एक की स्थिति से हटाने की कोशिश की जा रही है.

ट्रंप बहुधा यह कहते हैं, ”इस प्रशासन के मुकाबले किसी भी अन्य प्रशासन ने चीन पर इतनी सख्ती नहीं बरती.” उन्होंने हांगकांग के विरूद्ध नए उपायों की घोषणा करते हुए पिछले दिनों फिर से ऐसा ही किया. यदि तथ्यों पर ध्यान दें तो वे एकदम सही हैं.’एशिया से गठजोड़’ को उनके प्रशासन के दौरान ठोस हिंद—प्रशांत नीति के रूप में विकसित किया गया है और अंतत: उसे धारदार भी बनाया गया है. भले ही ऐसा उनकी अंतरात्मा की आवाज पर अथवा चीन में रह चुके व्हाइट हाउस के कुछ प्रमुख अधिकारियों की पहल पर या फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उंची उड़ान के कारण हो.

नवंबर में चुनाव अमेरिकी प्रभुत्व बरकरार रखने की विशद लड़ाई का महत्वपूर्ण पड़ाव है और डेमोक्रेट यह बात भली-भांति जानते हैं. और वे भी इसके लिए डटकर लड़ेंगे अलबत्ता उनकी शैली शायद कुछ अलग हो सकती है.

ट्रंप प्रशासन की कुछ ताजा कार्रवाई पर ध्यान दीजिए. ट्रंप ने हांगकांग स्वायत्तता अधिनियम पर दस्तख़त करके उसे कानून बनाया है. इसके तहत हांगकांग की स्वायत्तता पर ग्रहण लगाने में चीन का सहयोग करने वाले व्यवसायों एवं व्यक्तियों पर आवश्यक बंदिश लगाने की व्यवस्था है. उन्होंने कार्यकारी आदेश पर भी दस्तख़त किए और अमेरिका द्वारा हांगकांग को मुख्य देश चीन के समकक्ष मानने की घोषणा कर दी.

उल्लेखनीय यह तथ्य भी है कि विधेयक को अमेरिका की कांग्रेस ने सर्वसम्मति से पारित किया जिससे यह स्पष्ट है कि चीन के मामले में राष्ट्रीय भावना कहां पर पहुंच चुकी. विधेयक द्विदलीय था उसे संपूर्ण समर्थन मिला. इतने अधिक ध्रुवीकरण युक्त राजनीतिक माहौल में यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

ट्रंप ने अपनी टिप्पणी में कहा, ” इस कानून से मेरे प्रशासन को हांगकांग की स्वतंत्रता खत्म करने में लगे व्यक्तियों एवं प्रतिष्ठानों को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए शक्तिशाली नए उपकरण हासिल हुए हैं.उसी दिन, ट्रंप ने हांगकांग को विशेष दर्जा देने की व्यवस्था खत्म करने के कार्यकारी आदेश पर दस्तख़त किए. ”हांगकांग से मुख्य देश चीन के समान ही व्यवहार किया जाएगा. कोई विशेषाधिकार नहीं, कोई विशेष आर्थिक व्यवहार नहीं तथा संवेदनशील प्रौद्योगिकी का निर्यात भी नहीं.

विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने सोमवार को घोषणा की कि दक्षिण चीन सागर के आर-पार चीन का दावा ”पूर्णतया अवैध” है. उन्होंने आगे कहा,”दुनिया, दक्षिण चीन सागर को बीजिंग द्वारा अपनी सामुद्रिक बपौती समझने की अनुमति कदापि नहीं देगी.यह वास्तव में कठोर भाषा है. यह द हेग में अंतरराष्ट्रीय पंचाट द्वारा 2016 में सुनाए गए फैसले का सबसे स्पष्ट एवं गर्जनपूर्ण अभिकथन है. यह निर्णय 2013 में चीन के विरूद्ध फिलीपींस द्वारा दायर मामले में पंचाट ने उसी के पक्ष में दिया था.

इसका सीधा अर्थ यह है कि चीन द्वारा पिछले दशक में फटाफट बनाए गए अवैध कृत्रिम द्वीपों तथा छोटी—छोटी टेकड़ियों के चारों ओर फैले समुद्र पर चीन के हरेक दावे को अमेरिका पूरी ताक़त से ठुकरा रहा है. वाशिंगटन ने आवश्यक होने पर ख़ुद को कार्रवाई के लिए कानूनी रूप में तैयार कर लिया है मगर उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अन्य दावेदारों द्वारा मदद मांगने पर उनकी सहायता भी कर सकेगा. नीति के लिहाज से यह अग्रगामी कदम है.

ट्रंप प्रशासन की कुछ ताजा कार्रवाई पर ध्यान दीजिए. ट्रंप ने हांगकांग स्वायत्तता अधिनियम पर दस्तख़त करके उसे कानून बनाया है. इसके तहत हांगकांग की स्वायत्तता पर ग्रहण लगाने में चीन का सहयोग करने वाले व्यवसायों एवं व्यक्तियों पर आवश्यक बंदिश लगाने की व्यवस्था है.

इसी दौरान अमेरिकी नौसेना और अधिक ‘नौवहन की आजादी कार्रवाई’ कर रही है. ऐसी कार्रवाई उसने इसी मंगलवार को दक्षिण चीन सागर स्थित स्प्रैटली द्वीप के पास भी की. नौवहन की आजादी कार्रवाई हालांकि 2015 में ओबामा प्रशासन के दौरान शुरू की गई थी मगर ट्रंप प्रशासन उसे और अधिक बार दोहरा रहा है.

शक्ति प्रदर्शन के अंतर्गत उस क्षेत्र में दो अमेरिकी वैमानिक युद्धपोत तथा चार जंगी जहाज तैनात हैं. यूएसएस निमित्ज तथा यूएसएस रोनाल्ड रीगन ने इस महीने वहां दुर्लभ द्विपोतीय ऑपरेशन किए हैं. चीन के सामुद्रिक दावों पर पोम्पियो की घोषणा के अगले ही दिन अमेरिकी जंगी जहाज राल्फ जॉनसन ने स्प्रैटली द्वीपों के विवादास्पद समुद्री क्षेत्र का दौरा किया.

यह आसियान देशों पर निर्भर है कि वे चीन से व्यापार चालू रख कर आपस में बंटे रहेंगे अथवा कोई अलग राह अपनाएंगे. उनके पास निर्णय का अवसर है. भारत की बात करें तो वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार चीन के अतिक्रमण के संदर्भ में पोम्पियो तथा तथा कांग्रेस के सदस्यों दोनों ने ही सार्वजनिक एवं निजी रूप में खुलेआम हमारा समर्थन किया है. पोम्पियो ने कहा कि वे तथा भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आपस में बहुधा बात करते हैं.

” हमने वहां चीन के दूरसंचार बुनियादी ढांचे से पैदा हो रहे खतरे के बारे में बात की है.”ऐसा उन्होंने हाल में कहा और चीन के 59 ऐप के प्रयोग पर रोक लगाने के भारत निर्णय का भी जिक्र किया. अमेरिका भी टिकटॉक पर प्रतिबंध लगा रहा है.

पोम्पियो ने हाल में फॉक्स न्यूज़ को बताया कि वे चीन के ऐप के समूचे मसले पर ‘अत्यंत गंभीरता’ से विचार कर रहे हैं. उन्होंने लोगों को चेतावनी दी कि वे ऐप तभी डाउनलोड करें,”जबकि आप अपनी निजी सूचनाओं को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में जाने देना चाहते हों.” टिकटॉक की मिल्कियत चीन की कंपनी बाइटडांस के पास है.

वाशिंगटन के सतत दबाव, सुरक्षा के मुद्दों पर कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर पनप रहे विरोध तथा अंतत: हांगकांग में चीन की हरकतों से मजबूर होकर प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यह फैसला किया.  

क्या चीन के ख़िलाफ़ माहौल बन रहा है जैसा पोम्पियो ने बीते बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया. पिछले हफ्ते ब्रिटेन द्वारा अपने 5जी नेटवर्क में चीन की बड़ी कंपनी हुआवे की हिस्सेदारी पर अगले साल जनवरी से रोक लगाने तथा मौजूदा उपकरणों को भी सन 2027 तक हटा देने के निर्णय से साफ है कि उसकी नीति बदलने से सोच वास्तव में बदलने की झलक दिख रही है. वाशिंगटन के सतत दबाव, सुरक्षा के मुद्दों पर कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर पनप रहे विरोध तथा अंतत: हांगकांग में चीन की हरकतों से मजबूर होकर प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यह फैसला किया.

अपनी ओर से तो अमेरिका ने हुआवे को अमेरिकी प्रौद्योगिकी के निर्यात पर पिछले ही साल रोक लगा दी थी. मई में उस कंपनी को अमेरिकी सेमी कंडक्टर की बिक्री पर भी रोक लगाकर नियम और भी सख्त कर दिए क्योंकि अमेरिका उसे सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष खतरा बताता है. इसके साथ ही अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों के कुछ खास कर्मचारियों पर वीजा संबंधी रोक भी लगा दीं क्योंकि वे मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वाले शासनों की भौतिक सहायता कर रहे थे. यह आदेश मुख्यत: चीन के प्रशासन पर ही लक्षित है.

ट्रंप प्रशासन द्वारा संघातिक चोट देने के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के अमेरिका में प्रवेश पर सिरे से रोक लगाने पर विचार किया जा रहा है. इस प्रस्ताव पर समग्र कार्रवाई चल रही है मगर अभी स्पष्ट नहीं है कि ट्रंप इसकी मंजूरी दे ही देंगे. प्रतिबंध लगने से चीन के लाखों यात्री अमेरिका जाने से वंचित हो जाएंगे क्योंकि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य संख्या नौ करोड़ से अधिक है. इससे आक्रामक नीतिगत प्रतिकार एकदम नए स्तर पर पहुंच जाएगा—जनता के बीच.

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