Published on Dec 22, 2020 Updated 0 Hours ago

जिस बात को ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि क्या ट्रंप की ओर से चीन को लेकर अपनाए गए रवैये में कोई बदलाव लाया जा सकता है, क्योंकि चीन के प्रति अमेरिकी नीति अभी भी बहुपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय व वैश्विक महत्व के संस्थानों की स्थिति को तय करने के नज़रिए से महत्वपूर्ण है.

पुन: परिवर्तन और सिद्धांतों की कूटनीति : पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया को लेकर बाइडेन की नीति

अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन, जनवरी 2021 में अपना कार्यालय संभालने के लिए तैयार हैं और कामकाज की शुरुआत के साथ, पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया को लेकर अमेरिका की विदेश नीति उनके लिए एक चुनौती साबित हो सकती है. अमेरिका और वियतनाम व थाईलैंड जैसे देशों के बीच रणनीतिक व कूटनीतिक संबंध पिछले कुछ सालों में बेहतर हुए हैं, इसके बावजूद कि उनके पड़ोसी देश चीन के साथ, अमेरिका के संबंध खिन्न रहे हैं और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता इन देशों के लिए एक चेतावनी की तरह है. इस बात को लेकर एक सामान्य समझ यह है, कि बाइडेन के नेतृत्व में वाशिंगटन की नीतियां, ट्रंप की नीतियों से बहुत अलग नहीं होंगी और इनमें आमूलचूल बदलाव की संभावना नहीं है. फिर भी, भले ही यह संभव न लगे लेकिन एक अनुमान यह भी है, कि चीन के साथ अमेरिका के संबंधों को लेकर वाशिंगटन की नीतियां, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों के नज़रिए से केवल चीन के प्रति आशंकाओं से भरी नहीं होंगी. इस परिप्रेक्ष्य में अमेरिका की नीतियां चीन के दायरे से निकलकर आगे भी जा सकती हैं.

पूर्वी एशिया को लेकर जो बाइडेन से एक ऐसे दृष्टिकोण की अपेक्षा की जा रही है जो कम से कम लेन-देन पर आधारित हो. इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे अमेरिका और जापान व दक्षिण कोरिया, दोनों के बीच स्थिर संबंध बहाल होने की दिशा में सकारात्मक पहल हो सकेगी.

पूर्वी एशिया को लेकर जो बाइडेन से एक ऐसे दृष्टिकोण की अपेक्षा की जा रही है जो कम से कम लेन-देन पर आधारित हो. इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे अमेरिका और जापान व दक्षिण कोरिया, दोनों के बीच स्थिर संबंध बहाल होने की दिशा में सकारात्मक पहल हो सकेगी. एक शब्द जिसका उपयोग जो बाइडेन के चुनावी अभियान और उनके भाषणों में कई बार किया गया है वह है, “पुन: परिवर्तन” (reinvent) यानी स्थितियों में परिवर्तन कर नयापन बहाल करने की एक कोशिश. यह एक नया दृष्टिकोण है जो, सियोल और टोक्यो दोनों के लिए एक स्वागत योग्य क़दम होगा, जहां ट्रंप के कार्यकाल के दौरान इन देशों पर दबाव और उनके प्रति अस्थिरता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी वहीं जो बाइडेन के प्रशासन ने “राजनय के सिद्धांतों” पर ध्यान केंद्रित करने का वादा किया है, जो ट्रंप की ओर से अपनाई गई दबाव की कूटनीति के उलट है, और जिस के तहत उन्होंने दक्षिण कोरिया पर अमेरिकी सैन्य उपस्थिति के लिए अधिक भुगतान करने के लिए ज़ोर डाला था. प्योंगयांग के संबंध में, यह उम्मीद की जा रही है कि सियोल पर परमाणु शक्ति को घटाने यानी ‘डी-न्यूक्लियर’ करने के लिए दबाव बनाए रखा जाएगा वहीं टोक्यो के साथ अमेरिकी संबंधों को बहाल करने की दिशा में एक त्रिपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में प्रयास किए जा सकते हैं

जो बात ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा वह यह है कि क्या ट्रंप की ओर से चीन को लेकर अपनाए गए रवैये में कोई बदलाव लाया जा सकता है, क्योंकि चीन के प्रति अमेरिका की नीति अभी भी बहुपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय व वैश्विक संस्थानों की स्थिति को तय करने के नज़रिए से महत्वपूर्ण है.

जो बात ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा वह यह है कि क्या ट्रंप की ओर से चीन को लेकर अपनाए गए रवैये में कोई बदलाव लाया जा सकता है, क्योंकि चीन के प्रति अमेरिका की नीति अभी भी बहुपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय व वैश्विक संस्थानों की स्थिति को तय करने के नज़रिए से महत्वपूर्ण है. अमेरिका की विदेश नीति का असर पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया पर भी पड़ेगा. ऐसे में, गठबंधनों को फिर से जीवंत करने पर ध्यान केंद्रित करना वाशिंगटन की नई विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण घटक और तरीका हो सकता है.

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