Published on Feb 04, 2019 Updated 0 Hours ago

जहां यूजी रिसर्च की अवधारणा भारत में बिल्कुल नई है, वहीं दुनिया के कई हिस्सों में पहले से ही ये चलन में है।

जल्द पड़ताल की सीख: भारत में रिसर्च को यूजी पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों होना चाहिए?

106 वीं इंडियन साइंस कांग्रेस को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर बल दिया था कि विश्वविद्यालयों को शोध (रिसर्च) में शामिल होने की ज़रूरत है। जहां भारत ने प्राथमिक शिक्षा में पूर्ण यानी क़रीब-क़रीब 100 फ़ीसदी नामांकन दर हासिल करने में काफ़ी तरक़्क़ी की है, वहीं उच्च शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान देने में असफल रहा है। इसका नतीजा ये है कि भारत में उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात चीन के 48.44 फ़ीसदी और अमेरिका के 88.84 फ़ीसदी के मुक़ाबले 25.8 फ़ीसदी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन हमें शिक्षा प्रणाली की बड़ी कमियों के प्रति आगाह करता है। अगर उच्च शिक्षा प्रणाली को आज की ज़रूरतों को पूरा करना है और आज की कसौटी पर खड़ा उतरना है तो इन कमियों को तत्काल दूर किया जाना चाहिए।

 रिसर्च (शोध) का महत्व

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में रिसर्च आज भी एक कमज़ोर कड़ी बनी हुई है। हां, पारंपरिक तौर पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च (TIFR), होमी भाभा सेंटर फ़ॉर साइंस एज़ुकेशन और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस (IISC) जैसे कुछ विशिष्ट संस्थान इसके अपवाद हैं। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ उच्च शिक्षा प्रणालियों के विपरीत, इन संस्थानों और शैक्षणिक विश्वविद्यालयों के बीच शायद ही किसी तरह का पारस्परिक संवाद होता हो।

भारत की उच्चतर शिक्षा प्रणाली में रिसर्च आज भी एक बड़ी कमज़ोरी बनी हुई है जो कि विशिष्ट (स्पेशलाइज्ड) संस्थानों में छिप जाती है या यूं कहें कि छिपी हुई है।

भारत में, उच्चतर शिक्षा में दाख़िला लेनेवाले क़रीब 80 फ़ीसदी छात्र अंडर ग्रेजुएट (यूजी) प्रोग्राम्स में ही हैं। शोध और अनुप्रयोग-उन्मुख शिक्षा काफ़ी हद तक अंडर ग्रेजुएट शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ा सकती हैं। जहां अंडर ग्रेजुएट रिसर्च की अवधारणा भारत में बिल्कुल नई है, वहीं दुनिया के कई हिस्सों में ये पहले से ही चलन में है। इस तरह के कार्यक्रमों पर कई अध्ययनों से छात्रों पर सकारात्मक प्रभाव दिखा है, जैसे कि मेंटरशिप के माध्यम से सीखने की क्षमता बढ़ना, रीटेंशन में बढ़ोतरी, ग्रेजुएट एज़ुकेशन में नामांकन में बढ़ोतरी, गहन सोच में मज़बूती, रचनात्मकता, समस्या का समाधान, बौद्धिक स्वतंत्रता और रिसर्च के तरीक़ों की समझ। अंडर ग्रेजुएट स्तर पर रिसर्च, अनुसंधान-उन्मुख कैरियर विकल्पों के लिए योग्यता बढ़ाने में मददगार होने के साथ-साथ छात्रों के लिए रोज़गार के मौक़े बढ़ाता है। अपनी जमात (एसोसिएशन) के स्वभाव और रिसर्च प्रोग्राम की बारीकियों के आधार पर फ़ैकल्टी छात्रों के साथ अपने रिसर्च आइडियाज़ को साझा कर कुछ सीख सकते हैं, कुछ महत्वपूर्ण फ़ीडबैक हासिल कर सकते हैं। साथ ही ये असिस्टेंटशिप और अप्रेंटिसशिप में भी उनके लिए मददगार होगा। इसके अलावा, रिसर्च के ज़रिए फ़ैकल्टी की पढ़ाने की क्षमता बढ़ती है और नॉलेज़ को अपग्रेड करने में भी रिसर्च मददगार होता है। इस स्तर पर रिसर्च की संस्कृति पेश करने और बनाए रखने से फ़ैकल्टी की कमी की समस्या को हल करने में भी मदद मिल सकती है, क्योंकि संभवतः ज़्यादा छात्र डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टोरेट अध्ययन के विकल्प चुनेंगे और अपने देश में पढ़ाएंगे। किसी भी उच्च शिक्षा प्रणाली में, रिसर्च और शिक्षण को आदर्श रूप से साथ-साथ चलना चाहिए।

अगर भारत ग्लोबल यूनिवर्सिटी रैंकिंग लिस्ट में रहना चाहता है तो शैक्षणिक परिसरों का अंतरराष्ट्रीयकरण महत्वपूर्ण है और ये तब तक संभव नहीं है जब तक एक ऐसे इकोसिस्टम को न प्रोत्साहित किया जाए जो उच्च गुणवत्ता वाले रिसर्च को बढ़ावा देता हो।

इसके अलावा, भारत में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में सरकार ने दो महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं: ‘स्टडी इन इंडिया’ और ‘इंस्टीट्यूट्स ऑफ़ एमिनेंस।’ इन दोनों योजनाओं के तहत संस्थाओं को विश्व स्तरीय बनाने और कैंपस में उच्च गुणवत्ता वाले रिसर्च कराने की ज़रूरत होगी। तभी जाकर सक्षम फ़ैकल्टी के साथ-साथ दुनिया भर से डॉक्टरेट छात्र भारत आएंगे। अगर भारत ग्लोबल यूनिवर्सिटी रैंकिंग लिस्ट में रहना चाहता है तो परिसरों का अंतरराष्ट्रीयकरण महत्वपूर्ण है और ये तब तक संभव नहीं है जब तक एक ऐसे इको सिस्टम को प्रोत्साहित न किया जाए जो उच्च गुणवत्ता वाले रिसर्च को बढ़ावा देता हो।

कुछ रणनीतिक क़दम

हालांकि, बुनियादी ढांचा, शिक्षकों, फ़ंड और कंटेट की तुलना में बाधाओं को देखते हुए सरकार को अंडर ग्रेजुएट (यूजी) अनुसंधान कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की ख़ातिर नीतियां लागू करने के लिए रणनीतिक क़दम उठाने की ज़रूरत होगी। पहला, दुनिया के मानक के मुताबिक़ शिक्षा पर जीडीपी का कम से कम 6 फ़ीसदी ख़र्च करने की ज़रूरत है। तभी जाकर उच्च गुणवत्ता वाले रिसर्च के लिए बेहद ज़रूरी बुनियादी ढांचा, लैब्स और संसाधनों को अपग्रेड किया जा सकता है। दूसरा, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (UGC) और दूसरे नियामक संस्थाओं को प्रतिष्ठित पत्रिकाओं की प्राथमिकता सूची के साथ सामने आना होगा। इससे देश को फ़र्ज़ी पत्रकारों और प्रकाशनों की समस्या से निजात मिलेगी। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च (TIFR) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस (IISC) जैसे शोध संस्थानों को अच्छे प्रदर्शन करनेवाले कुछ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों का मार्गदर्शन करना चाहिए जब तक कि वो उचित और उच्च गुणवत्ता वाले रिसर्च कंडक्ट करने की बारीकियों से अवगत नहीं हो जाते। जब एक बार ये संस्थान ऐसा करने में सक्षम हो जाएं तो ये दूसरे पायदान के कॉलेजों की मदद कर सकते हैं और फिर ये सिलसिला चलता रहेगा। तीसरा, अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में रिसर्च को शामिल करने के लिए योजनाबद्ध तरीक़े होने चाहिए। पाठ्यक्रम में सीमाएं तय होने और रट्टा मारने की प्रैक्टिस की वजह से भारत में ज़्यादातर छात्र किसी असल रिसर्च या व्याख्यान की कोशिश किए बिना ही ग्रेजुएट हो जाते हैं, यहां तक कि मास्टर लेवल पर भी ऐसा ही होता है। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (UGC) को ये अनिवार्य करना चाहिए कि छात्र कम से कम 5,000 शब्दों का रिसर्च पेपर सौंपें और उनका वैसे ही मूल्यांकन होना चाहिए जैसा कि गंभीर रिसर्च जर्नल्स में प्रकाशन के लिए होता है। जब तक छात्रों को शुरुआती दौर से रिसर्च की अहमियत के प्रति जागरूक नहीं किया जाता है, तब तक वो उच्च शिक्षा के वास्तविक मूल्य को नहीं पहचान पाएंगे।

शिक्षा में यथास्थिति ऐसी शिक्षा के परिणामस्वरूप हुई है जो न केवल निम्न स्तर की है, बल्कि जिसके कारण चाह कर भी लोग रिसर्च की दुनिया में नहीं पहुंच पाते हैं। अगर भारत को अपनी आबादी का फ़ायदा उठाना है तो उसे अपने नज़रिए को उन्नत/प्रगतिशील बनाना चाहिए अन्यथा, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जो बातें कहीं हैं वो सिर्फ़ उदाहरण तक ही सीमित रह जाएंगे।


यह टिप्पणी मूल रूप से द हिंदू में छपी थी।

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Authors

Harsh V. Pant

Harsh V. Pant

Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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Antara Sengupta

Antara Sengupta

Antara Sengupta is an Erasmus+ scholar pursuing an International Masters in Education Policies for Global Development. She is a former Research Fellow at ORF Mumbai.

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