Author : Harsh V. Pant

Published on Apr 25, 2020 Updated 0 Hours ago

दुनिया भर के राष्ट्र स्वाभाविक तौर पर अपनी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर गहरी नजर रखे हुए हैं और चीन की अर्थव्यवस्था पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश में हैं. उनके लिए जरूरी है कि वे अपनी तरह की सोच रखने वाले देशों के साथ मिलकर काम करें. वे न सिर्फ एक नई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाबनाने की ओर बढ़ें, बल्कि चीन की वर्चस्ववादी सोच से बचने की जुगत भी करें.

चीन की कूटनीतिक मंशा पर उठते सवाल!

दुनिया संदेहों से भरी हुई है और चीन बीच-बीच में सफाई देने में जुटा है. चीन के वुहान शहर के प्रशासन ने अपने यहां कोविड-19 से मरने वालों की संख्या अचानक 50 फीसदी क्यों बढ़ा दी? यही वह नगर है, जहां से कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला. नए आंकड़ों के मुताबिक, यहां कुल 3,869 लोग इस खतरनाक वायरस के शिकार बने, जबकि पूरे चीन में यह आंकड़ा अब 4,600 से पार चला गया है. यह कहते हुए कि पारदर्शिता से कोई समझौता नहीं किया गया है, वुहान के अधिकारियों ने बताया कि आंकड़ों में यह वृद्धि इसलिए की गई, क्योंकि अस्पताल से बाहर हुई मौतों को भी अब इसमें शामिल किया गया है. मगर इन नए आंकड़ों ने चीन के उन दावों-प्रतिदावों पर शक की नई चादर तान दी, जो वह महामारी की शुरुआत से रटता रहा है. दुनिया भर में अमूमन यही माना जा रहा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने सूचनाएं छिपाईं और मौत के बारे में सच नहीं बताया. सीसीपी ने शुरुआती दिनों में जिस तरह से इस महासंकट को छिपाने का काम किया, उसी का परिणाम है कि यह महामारी अब इतनी गंभीर हो गई है और भारी संख्या में लोगों की जान ले रही है.

नतीजतन, चीन और इसके कथित कुप्रबंधन पर शिकंजा कसा जाने लगा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को दी जाने वाली आर्थिक मदद रोक दी है. ट्रंप का आरोप है कि संगठन ने न सिर्फ घातक गलतियां कीं, बल्कि चीन पर बेजा भरोसा किया. बेशक इसके लिए ट्रंप की चौतरफा आलोचना हुई है, लेकिन महामारी को लेकर चीन का आंख मूंदकर समर्थन करने के कारण डब्ल्यूएचओ की वैश्विक साख को भी धब्बा लगा है. राष्ट्रपति ट्रंप का बीजिंग पर हमला जारी है और वहां से आने वाली हर नई सूचना को वह चीन पर सख्त रुख अपनाने का नतीजा मान रहे हैं. अमेरिका कोरोना वायरस से स्रोत की भी जांच कर रहा है और उन अपुष्ट रिपोर्टों की तस्दीक करने में भी जुटा है कि यह वायरस बाजार की बजाय वुहान की एक प्रयोगशाला से निकला है. अमेरिकी राज्य मिजूरी ने तो अप्रत्याशित कदम उठाते हुए चीन पर मुकदमा ही कर दिया है और आरोप लगाया है कि बीजिंग ने कोरोना वायरस को लेकर दुनिया को गलत जानकारी दी, जिससे बड़े पैमाने पर मौत और भारी आर्थिक नुक़सान हुआ.

चीन न सिर्फ इस महासंकट का इस्तेमाल अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने में कर रहा है, बल्कि उसने यह तक घोषणा कर दी है कि वह स्वास्थ्य सेवा के ‘सिल्क रोड’ पर फिर से काम शुरू करने जा रहा है. चिकित्सा आपूर्ति करते हुए चीन यूरोप से लेकर अफ्रीका तक अपनी पहुंच बनाने में जुट गया है

हम बेशक अमेरिका और चीन के बीच की इस तनातनी को कोविड-19 से पहले से जारी इन दोनों बड़ी ताक़तों में सर्वोच्चता की जंग की अगली कड़ी मान सकते हैं, लेकिन यूरोप की तरफ से सख्त प्रतिक्रिया का आना एक दिलचस्प विकास है. यूरोप के वरिष्ठ राजनेता अब चीन के व्यवहार और उसकी नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं. पारंपरिक रुझान से अलग फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रॉन ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र जैसे खुले समाज और सत्य को दबाने वाले समाज में कोई तुलना नहीं हो सकती. ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक रॉब भी चीन के खिलाफ काफी मुखर हैं और कह रहे हैं कि दुनिया को बीजिंग से इस मुश्किल सवाल का जवाब मांगना चाहिए कि कैसे कोरोना वायरस आया और इसे शुरू में ही क्यों नहीं रोका जा सका?

यूरोप इसलिए मुखर हुआ है, क्योंकि यूरोपीय संघ इटली और स्पेन जैसे राष्ट्रों में हालात संभाल न सका. मगर चीन यूरोप की एकता में सेंध भी लगा रहा है. दरअसल, इटली के प्रधानमंत्री गुइसेपे कॉन्टे की चिकित्सा उपकरण संबंधी मांग को पूरा करने में यूरोपीय सरकारें नाकाम रहीं. जर्मनी, फ्रांस और चेक गणराज्य जैसे कुछ देशों ने तो ज़रूरतमंद पड़ोसियों को आपातकालीन उपकरण व चीजें मुहैया कराने से बिल्कुल इनकार कर दिया. जबकि चीन न सिर्फ इस महासंकट का इस्तेमाल अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने में कर रहा है, बल्कि उसने यह तक घोषणा कर दी है कि वह स्वास्थ्य सेवा के ‘सिल्क रोड’ पर फिर से काम शुरू करने जा रहा है. चिकित्सा आपूर्ति करते हुए चीन यूरोप से लेकर अफ्रीका तक अपनी पहुंच बनाने में जुट गया है. अभी जब पश्चिम विभाजित और खुद में सिमटा हुआ है, तब चीन अपने नेतृत्व को जाहिर करने से पीछे नहीं हट रहा. उल्लेखनीय यह भी है कि पिछले दो दशकों में चीन की कंपनियों ने यूरोपीय प्रौद्योगिकी कंपनियों में खासा निवेश और उनका अधिग्रहण किया है. ऐसे में, यह खतरा है कि कोविड-19 महामारी और इसके कारण पैदा होने वाला आर्थिक संकट यूरोप में चीनी दखल की नई संभावनाएं खोल सकता है. हालांकि यूरोप इस खतरे से अनजान नहीं है. यूरोपीय संघ के कॉम्पिटिशन कमिशनर ने हाल ही में कहा है कि इससे बचने के लिए यूरोपीय देशों को अपनी कंपनियों में शेयर बढ़ाना चाहिए.

यूरोप में दखल बढ़ाने के अलावा चीन अपनी सैन्य आक्रामकता बढ़ाने का भी काम कर रहा है, और यह किसी से छिपा नहीं है. वह दक्षिण चीन सागर में सैनिकों की आवाजाही तेज कर रहा है, ताईवान, जापान और दक्षिण कोरिया को धमकी दे रहा है और संदिग्ध परमाणु गतिविधियां भी शुरू कर रहा है

यूरोप में दखल बढ़ाने के अलावा चीन अपनी सैन्य आक्रामकता बढ़ाने का भी काम कर रहा है, और यह किसी से छिपा नहीं है. वह दक्षिण चीन सागर में सैनिकों की आवाजाही तेज कर रहा है, ताईवान, जापान और दक्षिण कोरिया को धमकी दे रहा है और संदिग्ध परमाणु गतिविधियां भी शुरू कर रहा है. जाहिर है, व्यापार और स्वास्थ्य को हथियार बनाने की उसकी कोशिशों का वैश्विक नेतृत्व के रूप में उसकी स्वीकार्यता पर गहरा असर पडे़गा.

ऐसे में, दुनिया भर के राष्ट्र स्वाभाविक तौर पर अपनी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर गहरी नजर रखे हुए हैं और चीन की अर्थव्यवस्था पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश में हैं. उनके लिए जरूरी है कि वे अपनी तरह की सोच रखने वाले देशों के साथ मिलकर काम करें. वे न सिर्फ एक नई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाबनाने की ओर बढ़ें, बल्कि चीन की वर्चस्ववादी सोच से बचने की जुगत भी करें. कोविड-19 के कारण जिस तरह से जान-माल की अपूरणीय क्षति हो रही है, उससे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी बेपरदा हो गई है. उम्मीद है, चीन से आ रहे इस खतरे का जल्दी अंत होगा.


यह लेख मूलरूप से हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित हो चुका है.

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