Author : Ashok Sajjanhar

Published on Nov 16, 2020 Updated 0 Hours ago

एक इंडो-पैसिफिक सुरक्षा संरचना विकसित करनी होगी. ऐसा करने से एक मुक्त, खुला और नियम आधारित इंडो-पैसिफिक बनेगा जहां नेविगेशन की स्वतंत्रता होगी, प्रादेशिक अखंडता का सम्मान होगा और सभी विवादों का निपटारा बातचीत और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक़ होगा.

दुनिया के चार महत्वपूर्ण देशों के समूह क्वॉड को संस्थागत रूप देने की नई कवायद

किसी राजनीतिक या सुरक्षा विश्लेषक ने आज से सिर्फ़ एक साल पहले न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान जब क्वॉड्रिलेटरल (क्वॉड) सुरक्षा संवाद की पहली मंत्री स्तरीय बैठक हुई थी तो कल्पना नहीं की होगी कि चार भागीदार देशों- ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका- के विदेश मंत्री मौजूदा बेहद संक्रामक महामारी के दौरान ख़ासतौर पर यात्रा करके समूह की मीटिंग में भाग लेने के लिए टोक्यो जाएंगे. ये इस बात की गवाही है कि जहां तक क्वॉड के तहत सहयोग की बात है तो पिछले एक साल के दौरान चारों देशों ने लंबी दूरी तय की है.

10 साल के फ़ासले के बाद जब नवंबर 2017 में मनीला में क्वॉड को फिर से ज़िंदा किया गया था तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उस समारोह के मुखिया थे. इससे पहले 2004 में दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशिया में आई सुनामी के वक़्त चारों देशों ने साथ आने की थोड़ी-बहुत कोशिश की थी. उस वक़्त सुनामी से प्रभावित देशों को मदद मुहैया कराने के लिए ये देश आगे आए थे. जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने 2007 में भारतीय संसद में अपने भाषण के दौरान इंडो-पैसिफिक में एक संगठन का विचार रखा. लेकिन ये पहल चीन के ज़ोरदार विरोध की वजह से आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि चीन को ऐसा लग रहा था कि इस तरह का संगठन उसके ख़िलाफ़ बनाया जा रहा है.

10 साल के फ़ासले के बाद जब नवंबर 2017 में मनीला में क्वॉड को फिर से ज़िंदा किया गया था तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उस समारोह के मुखिया थे. इससे पहले 2004 में दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशिया में आई सुनामी के वक़्त चारों देशों ने साथ आने की थोड़ी-बहुत कोशिश की थी. 

2008 से चीन की राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक मज़बूती दिखने की शुरुआत हुई. साथ ही वो अपने पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय बातचीत में और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ज़िद्दी रवैया दिखाने लगा. इस अवधि के दौरान चीन के लिए दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं- पहली घटना अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और आर्थिक संकट थी और दूसरी 2008 में बीजिंग ओलंपिक. वैश्विक आर्थिक संकट चीन के लिए अच्छा साबित हुआ क्योंकि इस दौरान चीन ने स्टिमुलस पैकेज का सहारा लेकर अर्थव्यवस्था में अपेक्षाकृत मज़बूत विकास दर हासिल की. दूसरी तरफ़ अमेरिका, यूरोप और जापान की अर्थव्यवस्था में तेज़ गिरावट दर्ज की गई. इससे भी बढ़कर, 2008 में बीजिंग में ओलंपिक की शानदार मेजबानी ने चीन को इस आत्मविश्वास से भर दिया कि वो दुनिया में आगे बढ़ने के लिए तैयार है.

दुनिया महामारी और अभूतपूर्व आर्थिक गिरावट की दोहरी चुनौती का सामना कर रही है. इन चुनौतियों की वजह से कई देशों में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी है और इसे साफ़ तौर पर चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सामरिक मौक़े के तौर पर देखा जा रहा है. 

इसके अलावा भी पिछले एक दशक के दौरान कुछ और महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं. वैसे तो चीन का विस्तारवाद हू जिंताओ के सत्ता में होने के दौरान ही दिखने लगा था लेकिन 2012 में शी जिनपिंग के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव बनने के बाद इसने बिल्कुल अलग रूप ले लिया. सत्ता संभालने के फ़ौरन बाद जिनपिंग ने 2021 तक चीन को समृद्ध देश बनाने और उन इलाक़ों को फिर से वापस पाने का लक्ष्य रखा जिनको वो अपना मानता है. इसके लिए जिनपिंग ने ‘चाइनीज़ ड्रीम’ का विचार सामने रखा. एक और महत्वपूर्ण घटना उस वक़्त हुई जब 2009 के बाद चीन ने दक्षिणी चीन सागर (SCS) के द्वीपों पर कब्ज़ा करने और वहां सेना को तैनात करने के साथ-साथ कृत्रिम द्वीपों का निर्माण शुरू किया. दक्षिणी चीन सागर में चीन के दावों को लेकर फिलीपींस की तरफ़ से दायर केस पर जुलाई 2016 में हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के चीन के ख़िलाफ़ फ़ैसले के बावजूद चीन दक्षिणी चीन सागर में ज़्यादातर इलाक़ों पर अपना कब्ज़ा स्थापित करने की कोशिश से बाज़ नहीं आया.

दुनिया में अपने प्रभुत्व की तरफ़ आख़िरी क़दम चीन ने इस साल की शुरुआत में उठाया जब उसने पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को फैलाया. चीन भले ही आक्रामक तौर पर वायरस फैलाने में अपनी भूमिका से इनकार करता रहे लेकिन ये साफ़ है कि पिछले साल के अंत में जब पहली बार महामारी सामने आई तो उसने झूठ बोला था. बाक़ी दुनिया महामारी और अभूतपूर्व आर्थिक गिरावट की दोहरी चुनौती का सामना कर रही है. इन चुनौतियों की वजह से कई देशों में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी है और इसे साफ़ तौर पर चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सामरिक मौक़े के तौर पर देखा जा रहा है. अगर कोरोना वायरस नहीं आता तो संभवत: चीन को अंदरुनी और बाहरी तौर पर ख़ुद को मज़बूत करने में कुछ साल और लग सकते थे.

क्वॉड देशों के बीच आपसी सहयोग में तेज़ी के लिए चीन को धन्यवाद देने की ज़रूरत है. नवंबर, 2017 में क्वॉड के गठन के बाद दो साल से ज़्यादा समय तक चारों देशों के बीच किसी बड़ी शिखर वार्ता के दौरान विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव/महानिदेशक स्तर पर ही बैठक होती रही. चीन ने लगातार क्वॉड को “समंदर की सतह पर झाग” की तरह खारिज किया और भविष्यवाणी की कि अपने विरोधाभासों के तले दब कर क्वॉड विघटित हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

चीन ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान दक्षिणी चीन सागर पर अपना सैन्य नियंत्रण महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा दिया है और किसी आसियान सदस्य देश ने या किसी और देश ने चीन की तरफ़ उंगली नहीं उठाई क्योंकि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की वजह से वो देश व्यापार और निवेश के लिए पूरी तरह चीन पर निर्भर हो चुके हैं

क्वॉड के चारों सदस्य देश और दूसरे कई देश पिछले कई वर्षों से दक्षिणी चीन सागर में चीन के ज़िद्दी रवैये की वजह से गहरी चिंता महसूस कर रहे हैं. चीन ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान दक्षिणी चीन सागर पर अपना सैन्य नियंत्रण महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा दिया है और किसी आसियान सदस्य देश ने या किसी और देश ने चीन की तरफ़ उंगली नहीं उठाई क्योंकि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की वजह से वो देश व्यापार और निवेश के लिए पूरी तरह चीन पर निर्भर हो चुके हैं. सिर्फ़ फिलीपींस ने चीन को परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ले जाने का साहस दिखाया लेकिन वहां जीत हासिल करने के बाद भी उसने फ़ैसले को लागू करने के लिए दबाव बनाने के ख़िलाफ़ फ़ैसला लिया.

पिछले कई दशकों से इन देशों ने इस इलाक़े में अमेरिका की सुरक्षा मौजूदगी और चीन के साथ आर्थिक संबंधों का फ़ायदा उठाया है. ये देश मौजूदा महाशक्ति और उसको चुनौती देने वाले देश के बीच किसी का पक्ष नहीं लेना चाहते हैं. इस साल की शुरुआत में पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के अभूतपूर्व ढंग से फैलने की वजह से चीन के ख़िलाफ़ हालात बिगड़ गए. शुरुआत में चीन की तरफ़ से अपना गुनाह छिपाने की कोशिश, फिर भारत, जापान, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग, वियतनाम, मलेशिया के ख़िलाफ़ चीन का शक्ति प्रदर्शन और आख़िर में भूटान, ताजिकिस्तान और दूसरे देशों के ख़िलाफ़ चीन की विस्तारवादी साज़िश ने पूरी दुनिया को चीन के ख़िलाफ़ एकजुट कर दिया. चीन की ग़लतियां उसके ‘वॉल्फ वॉरियर’ राजनयिकों, आर्थिक दादागीरी, दवाइयों और वेंटिलेटर जैसी महत्वपूर्ण चीज़ों के भंडारण ने और बढ़ा दी.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्वॉड के तीन अन्य सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध भी काफ़ी बेहतर हुए हैं. अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे के बीच मुलाक़ात के बाद भारत और जापान के रिश्तों में उम्मीद से कहीं ज़्यादा मज़बूती आई है

हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि चीन दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है. चीन क्षेत्र, आबादी, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक और सैन्य ताक़त के मामले में इतना बड़ा देश है कि उसे अलग-थलग नहीं किया जा सकता. दुनिया भर में चीन के दोस्त और समर्थक हैं जो उसे आकर्षक आर्थिक अवसर के तौर पर देखते हैं. लेकिन क्वॉड देशों के साथ-साथ यूरोप के कई देशों- जैसे UK, फ्रांस और संभवत: जर्मनी- की दुश्मनी का चीन की आर्थिक तरक़्क़ी और सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर बेहद ख़राब असर पड़ सकता है.

क्वॉड की मौजूदा मज़बूत स्थिति के लिए चीन सबसे बड़ी वजह है. 2017 में भारत इस समूह के सबसे अनिच्छुक सदस्य के तौर पर देखा जा रहा था क्योंकि उसे पता था कि चीन के साथ 3,488 किमी लंबी विवादित सीमा वाला वो अकेला देश है. साथ ही, चीन के साथ उसके संबंध ख़ासतौर पर जटिल हैं क्योंकि भारत को चीन एशिया में अपनी नंबर वन स्थिति का प्रतिस्पर्धी मानता है. लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन की हालिया घुसपैठ ने उसकी कपटी और विध्वंसकारी साज़िश का पर्दाफ़ाश कर दिया. इसकी वजह से भारत अब क्वॉड के दायरे को फैलाने में सबसे आगे है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्वॉड के तीन अन्य सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध भी काफ़ी बेहतर हुए हैं. अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे के बीच मुलाक़ात के बाद भारत और जापान के रिश्तों में उम्मीद से कहीं ज़्यादा मज़बूती आई है. ऑस्ट्रेलिया के साथ भी द्विपक्षीय साझेदारी में कम महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आए हैं. इस बात की संभावना है कि दोनों देशों के बीच सामरिक स्तर पर विचारों के बढ़ते मेल की वजह से ऑस्ट्रेलिया को नवंबर 2020 के मालाबार सैन्य अभ्यास में न्योता दिया गया.

चारों देशों के बयान में इस बात की अहमियत बताई गई कि न सिर्फ़ मंत्री स्तरीय नियमित बैठक हो बल्कि विषय के जानकारों की भी नियमित बैठक बुलाई जाए. सभी चार देशों ने आसियान के आगे भी दूसरे मिलते-जुलते विचारों वाले साझेदार देशों ख़ास तौर पर यूरोपीय देशों के साथ काम करने के महत्व पर ज़ोर दिया. 

अमेरिका के साथ भारत के संबंध में सबसे ज़्यादा बेहतरी आई है और मोदी के मुताबिक़ मौजूदा समय में ये “एक ज़रूरी साझेदारी” है. दुनिया को लेकर भारत और अमेरिका की सोच लगभग एक जैसी है, ख़ासतौर पर जहां चीन के बेरोकटोक आगे बढ़ने का मुक़ाबला करने की बात है. कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान महामारी से मुक़ाबले का अनुभव साझा करने के लिए हर हफ़्ते क्वॉड के सदस्य देशों के वरिष्ठ अधिकारी और न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम के विदेश सचिव/उप मंत्री ने वर्चुअल बैठक की.टोक्यो में क्वॉड सदस्य देशों के मंत्रियों ने अपनी बैठक के बाद साझा बयान जारी नहीं किया. उन्होंने अलग-अलग बयान जारी किए. इससे लगता है कि उनके दृष्टिकोण में कहीं-कहीं मतभेद है.

जहां ज़्यादातर देशों ने साफ़ तौर पर चीन का ज़िक्र नहीं किया- अमेरिका इसका अपवाद है- लेकिन कई जगह परोक्ष रूप से चीन का संदर्भ दिया गया था. चीन का ज़िक्र करना चाहिए और अगर करना चाहिए तो कैसे- इस बात को लेकर सर्वसम्मति का अभाव इन देशों की तरफ़ से साझा बयान न जारी करने की संभावित वजह हो सकती है. अमेरिका ने कहा कि पिछले कुछ महीनों के दौरान ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान से चीन के बर्ताव ने क्वॉड को लेकर उसकी उत्सुकता में बढ़ोतरी कर दी. साझा बयान जारी नहीं होने से लगता है कि कुछ मुद्दों को लेकर सदस्य देशों के बीच गहरे मतभेद थे. लेकिन ये भी साफ़ है कि चीन को लेकर ज़्यादातर मुद्दों पर इन देशों के बीच व्यापक सहमति है. अगली मंत्री स्तरीय बैठक के बाद अच्छा होगा कि वो साझा बयान जारी करें. चारों देशों के बयान में इस बात की अहमियत बताई गई कि न सिर्फ़ मंत्री स्तरीय नियमित बैठक हो बल्कि विषय के जानकारों की भी नियमित बैठक बुलाई जाए. सभी चार देशों ने आसियान के आगे भी दूसरे मिलते-जुलते विचारों वाले साझेदार देशों ख़ास तौर पर यूरोपीय देशों के साथ काम करने के महत्व पर ज़ोर दिया. टोक्यो के दौरे ने क्वॉड के देशों को जापान के नये प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा के साथ मिलने का मौक़ा भी मुहैया कराया. साथ ही इन देशों में द्विपक्षीय बातचीत भी हुई.

आगे आने वाले समय में क्वॉड को सक्रिय तौर पर उन मुद्दों का विस्तार करने के बारे में सोचना चाहिए जिनका वो सामना कर रहा है. इन मुद्दों में 5जी तकनीक, बेहतर बुनियादी ढांचा, लचीला सप्लाई चेन, कनेक्टिविटी, मानवीय सहायता और आपदा राहत, साइबर सुरक्षा, दुर्लभ तत्व, आतंक का मुक़ाबला, दुष्प्रचार से निपटना, पाइरेसी का मुक़ाबला और अन्य शामिल हैं. क्वाड देशों को समान विचार वाले दूसरे देशों जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया, UK, फ्रांस, जर्मनी आदि से भी संपर्क स्थापित करना चाहिए ताकि बदलते हालात में ज़्यादा समावेशी हो सकें और ज़्यादा विश्वसनीयता मुहैया करा सकें.

एक इंडो-पैसिफिक सुरक्षा संरचना विकसित करनी होगी. ऐसा करने से एक मुक्त, खुला और नियम आधारित इंडो-पैसिफिक बनेगा जहां नेविगेशन की स्वतंत्रता होगी, प्रादेशिक अखंडता का सम्मान होगा और सभी विवादों का निपटारा बातचीत और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक़ होगा. चीन की बढ़ती आक्रामकता एक चुनौती है जिसका मुक़ाबला क्वॉड और दूसरे समान विचार वाले देशों को मिल-जुलकर करना चाहिए. टोक्यो में हाल की क्वाड बैठक ने साझा तौर पर काम करने के इन देशों के संकल्प का प्रदर्शन किया है ताकि इलाक़े में चीन से शांति को ख़तरे का मुक़ाबला किया जा सके और मौजूदा नियम आधारित विश्व व्यवस्था को बरकरार रखा जाए

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