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बचत अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण ख़ासियत है जो व्यक्ति विशेष और अर्थव्यवस्था के मैक्रोइकोनॉमिक फैक्टर पर असर डालती है.
कोविड-19 महामारी तबाही लेकर आई. प्रवासियों की मुसीबत और तकलीफ़ ने भारत को विचलित कर दिया. महामारी ने लोगों को ग़रीबी, भूख और बेघरपन के सागर में धकेल दिया. इस समय जो एक आर्थिक सवाल पूछने की ज़रूरत है वो घरेलू बचत दर के बारे में है. क्या घरेलू बचत कोविड-19 महामारी जैसे झटकों से बचाने के लिए काफ़ी है? क्या लोगों के पास इतना पैसा है कि वो बचत कर सकें? अगर नहीं तो क्या कम आमदनी वाले लोगों को बचत के लिए सक्षम बनाने के तरीक़े हैं? हम इस चर्चा के दौरान आख़िरी सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं.
भारत में बचत दर की कहानी 2011-12 से बहुत उत्साहजनक नहीं रही है. 2011-12 से सकल बचत दर गिर रही है और इसकी मुख्य वजह घरेलू सेक्टर की बचत में कमी है.
भारत में बचत दर की कहानी 2011-12 से बहुत उत्साहजनक नहीं रही है. 2011-12 से सकल बचत दर गिर रही है और इसकी मुख्य वजह घरेलू सेक्टर की बचत में कमी है. घरेलू सेक्टर राष्ट्रीय बचत में 60 प्रतिशत योगदान देता है. इसके अलावा, वित्तीय संपत्ति में घरेलू बचत भौतिक संपत्ति के मुक़ाबले कम हुई है लेकिन चिंता वित्तीय संपत्ति के ठहराव को लेकर है जो GDP का क़रीब सात प्रतिशत है. ये चिंता महामारी के झटके से भी पहले जो मंदी मौजूद थी, उसके सामने निवेश और आर्थिक गतिविधि को फिर से चालू करने के लिए फंड हासिल करने की ज़रूरत से पैदा होती है. वास्तव में 2007-08 के 36 प्रतिशत और 2011-12 के 34.6 प्रतिशत के मुक़ाबले 2018-19 में बचत दर गिरकर 30.1 प्रतिशत हो गई जो 15 साल में सबसे कम है. घरेलू निवेश संसाधनों में कमी होने से बाहर की तरफ़ देखने की ज़रूरत होगी और बाहरी कर्ज़ पर हमें निर्भर होना पड़ेगा जो भारत की हालत को कमज़ोर करेगा. इस पृष्ठभूमि में ये मुनासिब है कि उन तौर-तरीक़ों की पहचान की जाए जो अनौपचारिक सेक्टर में काम करने वालों, कम आमदनी वाले लोगों और समाज के दूसरे कमज़ोर लोगों को ज़्यादा बचत के लिए प्रोत्साहित करे. इस चर्चा में व्यवहारवादी अर्थशास्त्र से मिली जानकारी के आधार पर बचत के लक्ष्य को हासिल करने की रूप-रेखा खींची गई है.
क्लासिकल और नियो-क्लासिकल आर्थिक मॉडल के मुताबिक़ “इकोनॉमिक मैन” उस विचार की नुमाइंदगी करता है कि सभी इंसान बुद्धिमान होते हैं, उनकी पसंद अपने फ़ायदे को बढ़ाने की इच्छा से तय होती है. व्यवहारवादी अर्थशास्त्र, जो अर्थशास्त्र और विज्ञान का मेल है, “इकोनॉमिक मैन” के विचार को खारिज करता है और तर्क पर ज़ोर देता है. इसमें उस बात को मान्यता दी गई है कि इंसान का व्यवहार मुख्य तौर पर सामाजिक नियमों जैसे निष्पक्षता, दूसरे के हित के लिए जीने के सिद्धांत, सहयोग, आदान-प्रदान इत्यादि से तय होते हैं और अतार्किक आर्थिक फ़ैसलों से भरे होते हैं जिन्हें स्थिर माहौल के हिसाब से तौला नहीं जा सकता है. व्यवहारवादी अर्थशास्त्र ने पसंद की बनावट के विचार को बढ़ावा दिया है. ये तरीक़ा लोगों पर असर डालता है कि वो क्या पसंद करें जो उनके लिए फ़ायदेमंद हो, वो भी उनकी पसंद की आज़ादी पर असर डाले बिना. पसंद की बनावट के विचार से निकले प्रेरणा सिद्धांत को रिचर्ड थेलर और कास सनस्टीन ने लोकप्रिय बनाया और इसका इस्तेमाल सरकारों ने नीतिगत फ़ैसले लेने में किया.
क्लासिकल और नियो-क्लासिकल आर्थिक मॉडल के मुताबिक़ “इकोनॉमिक मैन” उस विचार की नुमाइंदगी करता है कि सभी इंसान बुद्धिमान होते हैं, उनकी पसंद अपने फ़ायदे को बढ़ाने की इच्छा से तय होती है.
भारत में आर्थिक सर्वेक्षण (2018-19) नीतिगत नतीजों को बेहतर करने में व्यवहारवादी अर्थशास्त्र के सिद्धांत का इस्तेमाल करने पर ज़ोर देता है. कई नीतियां सामाजिक नियमों का फ़ायदा उठाकर व्यवहारवादी अर्थशास्त्र के इस्तेमाल के ज़रिए लोगों की पसंद पर असर डालती हैं. स्वच्छ भारत मिशन (SBM), जन धन योजना (JDY) और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP) जैसी योजनाएं सामाजिक नियमों से जुड़े बदलावों के लिए समझदारी के पक्षपात का इस्तेमाल करती हैं. ऐसे प्रेरणा परंपरागत लागत लाभ विश्लेषण के मुक़ाबले फ़ायदेमंद होते हैं क्योंकि वो लोगों के ज्ञान संबंधी काम, अनुभव और भावनाओं की गहराई को मान्यता देते हैं. लेकिन इस तरह की प्रेरणा देश में कम बचत दर की समस्या का समाधान कैसे कर सकती हैं?
इस संदर्भ में हम वैश्विक अनुभवों से फ़ायदा उठा सकते हैं. हम दुनिया भर में हुए प्रायोगिक हस्तक्षेप के संक्षिप्त सर्वेक्षण को पेश करते हैं जो अलग-अलग तरह के प्रेरणा के रूपों का व्यक्तिगत बचत के स्तर पर असर की छानबीन करता है. अलग-अलग तरह की बचत तकनीक कैसे लोगों को बचत के लिए प्रेरित करती हैं, ये समझने के लिए केन्या में हुए एक ज़मीनी प्रयोग में पाया गया कि बैंक की तरह एक साधारण तकनीक, जहां लोगों के पैसे जमा करने या पैसे निकालने को लेकर कोई शर्त नहीं हो, अच्छी तादाद में लोगों के लिए पैसे की बचत और उनके बचत के स्तर को बढ़ाने के लिए काफ़ी है.
बचत की इस तकनीक की पेशकश के अलावा जो मुख्य तौर-तरीक़ा इस्तेमाल में लाया गया वो मानसिक हिसाब था जिसमें दिमाग़ होशो-हवास में समझता है कि पैसे को किसी ख़ास मक़सद के लिए रखा गया है और इसलिए उसे दूसरे पैसे के साथ नहीं मिलाया जा सकता. ये भी पाया गया कि दूसरों के बचत से जुड़े व्यवहार पर असर डालने में सामूहिक बचत की सामाजिक प्रेरणा काफ़ी असरदार है. मानसिक हिसाब के सिद्धांत के साथ सामाजिक प्रेरणा के इस तरीक़े का समर्थन कोलंबिया में हुए एक और प्रयोग में किया गया. बचत तकनीक से जुड़ी कर्ज़ योजनाएं भी काफ़ी कामयाब हैं. प्रेरित करने के तौर-तरीक़े के रूप में मानसिक हिसाब की शक्ति को मलावी में किसानों के संदर्भ में हुए एक ज़मीनी प्रयोग में भी सही पाया गया. जिन किसानों को फसल के बदले नकद भुगतान किया गया उनके मुक़ाबले उन किसानों ने ज़्यादा बचत की जिन्हें फसल से हुई बचत को सीधे बैंक में जमा करने का अवसर दिया गया. इससे भी बढ़कर जिन किसानों ने अपनी बचत का एक हिस्सा फिक्स्ड डिपॉज़िट किया, उन्होंने सबसे ज़्यादा बचत की.
इस संदर्भ में हम वैश्विक अनुभवों से फ़ायदा उठा सकते हैं. हम दुनिया भर में हुए प्रायोगिक हस्तक्षेप के संक्षिप्त सर्वेक्षण को पेश करते हैं जो अलग-अलग तरह के प्रेरणा के रूपों का व्यक्तिगत बचत के स्तर पर असर की छानबीन करता है.
कोलंबिया में प्रमुख व्यावसायिक बैंकों के साथ हुए एक और ज़मीनी प्रयोग में निचले स्तर के वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षरता वाले कम कमाई वाले युवाओं को तकनीक के ज़रिए प्रेरित किया गया. इस प्रयोग में युवा खाता धारकों को मोबाइल फ़ोन पर महीने और पखवाड़े में टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए बचत की याद दिलाई गई. इन मैसेज का युवा खाता धारकों के बचत के स्तर पर महत्वपूर्ण असर पड़ा.
किसी व्यक्ति को बचत के लिए प्रेरित करने में समझदारी के पक्षपातों का इस्तेमाल कुछ नैतिक मुद्दे खड़े करता है. अच्छी नीयत के साथ भी अचेतन पक्षपातों का फ़ायदा उठाना असंयमित सूचना का निर्माण कर सकता है जहां असर डालने वाले के पास लक्ष्य किए गए समूह के मुक़ाबले अपेक्षाकृत सूचना का फ़ायदा होता है. ये अस्पष्टता भी बनाता है- लक्ष्य किए गए समूह के लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है, इसका फ़ैसला करने के लिए किस मानक का इस्तेमाल किया गया है? प्रेरित करने की तीव्रता क्या है और क्या अगर प्रेरित करने को लेकर नियम नहीं हों तो क्या इससे धक्का-मुक्की की स्थिति बन सकती है? प्रेरित करने के सिद्धांत को निश्चित तौर पर इन बाधाओं से पार पाना होगा ताकि वो नीति निर्माण के लिए आदर्श पसंद बन सकें.
बचत अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण ख़ासियत है जो व्यक्ति विशेष और अर्थव्यवस्था के मैक्रोइकोनॉमिक फैक्टर पर असर डालती है.
बचत अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण ख़ासियत है जो व्यक्ति विशेष और अर्थव्यवस्था के मैक्रोइकोनॉमिक फैक्टर पर असर डालती है. बचत की ज़्यादा सुविधा के साथ लोगों को कर्ज पाने और पूंजी इकट्ठा करने के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश करने के ज़्यादा अवसर मिलते हैं, ख़ासतौर पर मौजूदा महामारी जैसे आकस्मिक हालत में. भारत JAM (जन-धन-आधार-मोबाइल फ़ोन) त्रिमूर्ति के ज़रिए पहले ही वित्तीय समावेशन के लिए ज़रूरी नींव रख चुका है. इस डिजिटल संरचना का फ़ायदा उठाने की ज़रूरत है ताकि व्यवहारवादी अर्थशास्त्र के इस्तेमाल के ज़रिए घरेलू बचत को और बढ़ाया जा सके. भारत को चाहिए कि वो ख़ासतौर पर विकासशील देशों में इस्तेमाल किए जा रहे प्रेरित करने के सिद्धांतों से सीखकर अपना ख़ुद का प्रायोगिक अध्ययन करे ताकि ये पता चल सके कि व्यवहारवादी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का इस्तेमाल लक्ष्य किए गए समूहों में बचत बढ़ाने के लिए किस तरह किया जाए.
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Renita DSouza is a PhD in Economics and was a Fellow at Observer Research Foundation Mumbai under the Inclusive Growth and SDGs programme. Her research ...
Read More +Shruti Jain was Coordinator for the Think20 India Secretariat and Associate Fellow Geoeconomics Programme at ORF. She holds a Masters degree in Public Policy and ...
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