Author : Hari Bansh Jha

Published on Jul 27, 2017 Updated 0 Hours ago

क्षेत्र के नेताओं में राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के कारण, क्षेत्रीय संगठन अंतर-क्षेत्रीय सम्पर्क सुगम बनाने में प्रभावी साबित नहीं हुए हैं।

दक्षिण एशिया में सम्पर्क को बेहतर बनाने के लिए नई पहल की जरूरत

सड़कमार्ग, रेलवे, जलमार्ग, वायुमार्ग और हाल ही में बिछाये गए ऑप्टीकल फाइबर नेटवर्क के माध्यम वाली परिवहन और संचार व्यवस्था, भौतिक सम्पर्क के कुछ महत्वपूर्ण साधनों में शुमार है। लेकिन 1951 में राणा वंश के शासन की समाप्ति तक, नेपाल दुनिया के ज्यादातर हिस्सों के साथ इनमें से कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों की दृष्टि से लगभग कटा रहा। अपने केवल दो पड़ोसी देशों — दक्षिण में भारत और उत्तर में तिब्बत के साथ इसका सीमित सम्पर्क था। इन दो देशों के अलावा अन्य देशों के साथ नेपाल के सम्पर्क के युग का सूत्रपात 1956 में वहां योजनाबद्ध युग के प्रारंभ के साथ हुआ। इसके बाद, नेपाल का सम्पर्क भारत और तिब्बत की सरहदों को ही पार नहीं कर गया, बल्कि इसकी पहुंच दक्षिण एशिया और दुनिया के अन्य स्थानों तक भी कायम हुई।

अपनी भौगोलिक निकटता और करीबी सामाजिक संबंधों के नाते नेपाल, भारत के साथ सड़कमार्ग, रेलवे, वायुमार्ग और सीमा के आरपार बिछी बिजली की ट्रांसमिशन लाइन्स के माध्यम से जुड़ा हुआ है। अगर हम इस तथ्य पर गौर करें कि भारत दक्षिण एशिया का इकलौता ऐसा देश है, जिसके साथ नेपाल अपनी जमीनी सरहद को साझा करता है, तो यह सम्पर्क बिल्कुल स्वाभाविक है। भारत के अलावा अन्य देशों के साथ नेपाल का सम्पर्क अच्छा नहीं है। इस क्षेत्र में नेपाल बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका के साथ केवल वायुमार्ग के जरिए ही जुड़ा हुआ है।

आर्थिक लाभ

भौतिक सम्पर्क का व्यापार, निवेश और विकास के साथ सीधे तौर पर सह-संबंध है। सम्पर्क जितना व्यापक होगा, व्यापार, निवेश और विकास की संभावना उतनी ही अधिक होगी। शायद ही कोई देश ऐसा होगा, जिसका सम्पर्क बहुत बेहतर हो और वह गरीब भी हो। इसकी बजाए, केवल वही देश गरीब हैं, जो सम्पर्क के क्षेत्र में पीछे छूट चुके हैं।

सम्पर्क किसी भी देश को वस्तुओं का आयात और निर्यात करने के लिए अपनी पहुंच नए बाजारों तक कायम करने में समर्थ बनाता है। यह उसे अपनी वस्तुओं का ऊंचे दामों पर निर्यात करने और कम दामों पर वस्तुओं का आयात करने का अवसर उपलब्ध कराता है। यह कृषि, उद्योग, व्यापार और सेवा क्षेत्रों की वृद्धि में सहायता करता है। यह देश में उत्पादकता भी बढ़ाता है और नवाचार लाता है, रोजगार के अवसरों का सृजन करता है और सामाजिक-आर्थिक प्रगति की रफ्तार में भी तेजी लाता है। यह पर्यटन, उड्डयन, मोटर-वाहन और विभिन्न उद्योगों को प्रोत्साहन भी देता है।

बाहरी दुनिया से सम्पर्क के अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, देश के भीतर सम्पर्क पर बल दिए जाने की जरूरत है। इसके मद़देनजर नेपाल ने देश के भीतर सम्पर्क कायम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच सड़कों के माध्यम से सम्पर्क बनाने के लिए बहुत कुछ किया गया। एक अध्ययन में कहा गया है कि नेपाल में 1970 के दशक तक केवल 2700 किलोमीटर सड़के थीं, जब अब बढ़कर 42000 किलोमीटर हो चुकी हैं। [1] अकेले पिछले 15 बरसों में ही, लगभग 1700 किलोमीटर सड़कों की दशा में सुधार लाते हुए उन्हें हर-मौसम के अनुकूल बनाया गया है। इसके अलावा, 164 ट्रेल ब्रिज बनाए गए हैं। इस तरह देश के भीतर यात्रा पर लगने वाला समय 80 प्रतिशत तक घट गया है। [2] 2015 के विनाशकारी भूकम्प, खराब मॉनसून और व्यापार में रुकावटों के बाद मुख्य रूप से सम्पर्क के कारण ही 2016 में नेपाल के सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर सबसे कम 0.8 प्रतिशत तक पहुंच गई। 2017 में यह बढ़कर 5.6 प्रतिशत हो चुकी है। [3]

भारत की भूमिका

नेपाल और भारत के संबंध अनूठे हैं। दुनिया में कोई भी अन्य देश, इन दोनों देशों की तरह एक-दूसरे से बंधे हुए नहीं हैं। कुछ हद तक इसका कारण इनकी खुली सरहद और कुछ हद तक इसका कारण इनके नागरिकों के साथ एक-दूसरे के देश में किया जाना वाला राष्ट्रीय व्यवहार है।पासपोर्ट और वीजा जैसी औपचारिकताओं के न होने के कारण, रोजाना लाखों लोग, विशेषकर नेपाल-भारत सीमा क्षेत्रों पर, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, रोजगार, व्यापार और आर्थिक कारणों से सरहद पार करते हैं। इतना ही नहीं, सीमावर्ती इलाकों में बसे हजारों लोग हर साल सीमापार वैवाहिक रिश्ते भी कायम करते हैं, यह बात इन दोनों देशों के रिश्तों का हमेशा सदाबहार रखती है। एक देश से दूसरे देश में लोगों की बेरोक-टोक आवाजाही को सैंकड़ों बरसों से दोनों देशों की प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था ने लगातार बनाए रखा है।

भारत और नेपाल के बीच मुक्त सीमा सम्पर्क की निरंतरता का प्रतीक है। अगर बुनियादी ढांचे और संचार सुविधाओं के विकास के जरिए उचित सम्पर्क कायम किया जा सके, तो सरहद के दोनों ओर व्यापार और अन्य आर्थिक गतिविधियों में और भी तेजी लाई जा सकती है। लेकिन इस क्षेत्र में सड़क, रेलवे, दूरसंचार और डाक सेवाओं का विकास बहुत कम हुआ है। पिछले कई दशकों तक केवल जनकपुर-जयनगर रेलवे ने नेपाल और भारत को जोड़े रखा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसकी सेवाएं भी बंद हैं।

मुक्त सीमा के लाभ को समझते हुए भारत सरकार ने नेपाल-भारत सीमा के चार प्रमुख स्थानों पर एकीकृत सीमा-चौकियां(आईसीपी) बनाने में नेपाल सरकार को सहायता दी है। इनमें रक्सौल (भारत) – बीरगंज (नेपाल), सुनौली (भारत) -भैरहवा (नेपाल), जोगबनी (भारत) -बिराटनगर (नेपाल) और नेपालगंज रोड ((भारत) – नेपालगंज (नेपाल) में शामिल हैं। [4] इसके अलावा भारत सरकार ने नेपाल-भारत सीमा के जरिए, पांच स्थानों पर सीमा पार रेलवे सम्पर्क विकसित करने पर भी सहमति प्रकट की है। इनमें जयनगर (भारत) से बर्दिबास(नेपाल), जोगबनी (भारत) से बिराटनगर (नेपाल), नौतन्वा (भारत) से भैरहवा (नेपाल), रुपैडिहा (भारत) को नेपालगंज (नेपाल) और न्यू जलपाईगुड़ी (भारत) से कॉंकड़भिट्टा (नेपाल) शामिल हैं। महत्वपूर्ण रूप से, जयनगर-बर्दिबास-जिसमें जयनगर से बीजलपुरा तक 51 किलोमीटर रेलवे लाइन को ब्रॉडगेज में बदला जाना और इसका 17 किलोमीटर आगे बर्दिबास तक विस्तार शामिल है, पर काम पर पहले ही शुरू हो चुका है। इसी तरह जोगबनी से बिराटनगर तक 17.65 किलोमीटर वाली जोगबनी-बिराटनगर रेलवे लाइन पर काम प्रगति पर है। [5]

भारत ने सड़कों और हवाई अड्डों सहित नेपाल के बुनियादी ढांचे के विकास और आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक समय ऐसा था जब काठमांडु का देश के किसी भी अन्य हिस्से के साथ कोई संबंध न था, भारत ने 1950 के दशक के मध्य में त्रिभुवन राजमार्ग का निर्माण किया था। नेपाल के सबसे लम्बे पूर्व-पश्चिम राजमार्ग में भारत का अंश 75 प्रतिशत है। नेपाल में पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी हिस्से को तराई से जोड़ने वाले पोखरा-सुनौली राजमार्ग के निर्माण में भी भारत की सहायता समान रूप से महत्वपूर्ण है। इसी तरह, भारत ने नेपाल के काठमांडु में त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और देश के विभिन्न शहरों में छोटे हवाई अड्डों के निर्माण में भी प्रमुख भूमिका निभाई। नेपाल को पूर्वी-पश्चिमी गलियारे के साथ ऑप्टीकल फाइबर प्रोजेक्ट में भारत की सहायता भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। सबसे खास बात तो यह है कि बुनियादी ढांचे और संचार क्षेत्र के सभी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स भारत की आर्थिक सहायता से बनाए गए हैं।

दक्षिण एशिया के साथ सम्पर्क

भारत इकलौता ऐसा देश है, जिसके साथ दक्षिण एशिया क्षेत्र में नेपाल अपनी जमीनी सरहद को साझा करता है। पिछले कुछ वर्षों में, दोनों देशों ने सड़कों, रेलवे और वायुमार्ग के जरिए अपना सम्पर्क बेहतर बनाने की कोशिश की है। वायु सम्पर्क के क्षेत्र में, नेपाल एयरलाइन्स दिल्ली से जुड़ी हुई है। इसके अलावा, भारत की एयर इंडिया और जेट एयरवेज के विमान काठमांडु तक जाते हैं। नेपाल बिमान बांग्लादेश एयरलाइन्स के जरिए ढाका से जुड़ा हुआ है। भूटान की ड्रक एयर काठमांडु तक जाती है। [6] हिमालयन एयरलाइन्स और नेपाल एयरलाइन्स काठमांडु को श्रीलंका के कोलम्बो से जोड़ती हैं। लेकिन नेपाल का पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान के साथ सीधा वायु सम्पर्क नहीं है। पहले पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन्स (पीआईए) काठमांडु तक जाती थी, लेकिन उसकी सेवाएं बंद हैं।

नेपाल क्षेत्र में विभिन्न देशों तक अपना सम्पर्क बनाने के लिए दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय और उपक्षेत्रीय संगठनों का उपयोग करता है। इसके लिए वह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) का संस्थापक सदस्य बना और बाद में बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम (बिम्सटेक) और बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआईएन)पहल जैसे उप क्षेत्रीय समूहों में शामिल हुआ। नेपाल ने बिम्सटेक के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया तक अपने सम्पर्क को विविध बनाने में भी दिलचस्पी दिखाई है।

इसका संक्षिप्त ब्यौरा नीचे दिया गया है:

सार्क

1985 में सार्क की स्थापना के बाद से ही नेपाल, व्यापार के जरिए सदस्य देशों तक अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश करता आ रहा है। इसके लिए उसने एसएपीटीए (1993) और एसएएफटीए (2006) जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। नवम्बर 2014 में 18वें सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान, नेपाल ने दक्षिण एशिया में बिजली क्षेत्र में सम्पर्क के लिए ऊर्जा सहयोग के लिए सार्क प्रारूप समझौते पर हस्ताक्षर किए। हालांकि दक्षिण एशियाई देशों के बीच वाहनों ही आवाजाही और रेलवे सम्पर्क कायम करने जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स से संबंधित समझौते पाकिस्तान के असहयोग के कारण फायदेमंद नहीं रहे। उरी में 2016 में भारतीय सेना के शिविर पर आतंकी हमले के बाद, जिसमें 17 सैनिक शहीद हो गए थे और 19 घायल हुए थे, [7] भारत ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के पीछे पाकिस्तान का कथित हाथ होने का संदेह व्यक्त किया था। इसके बाद भारत और कुछ अन्य देशों ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद में 15-16 नवम्बर को होने वाले 19वें सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप यह शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं किया जा सका और तभी से यह अनिश्चित स्थिति में है।

बिम्सटेक

नेपाल उप क्षेत्रीय संगठन, बिम्सटेक के फ्रेमवर्क के तहत परिवहन और संचार सुविधाओं का विकास करके बाहरी दुनिया के साथ सम्पर्क बढ़ाने की कोशिशें भी कर रहा है। आठ सदस्यों वाले इस संगठन में बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईंलैंड शामिल हैं। इसमें पांच देश बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका दक्षिण एशिया से हैं, जबकि म्यांमार और थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं। [8]

वर्तमान में, नेपाल बिम्सटेक का अध्यक्ष है। 2017 के आखिर में नेपाल द्वारा चौथा बिम्सटेक शिखर सम्मेलन आयोजित किए जाने की संभावना है, जिसमें सम्पर्क, व्यापार, पर्यटन, निवेश, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे मामलों पर चर्चा हो सकती है। नेपाल सड़कों के जरिए बिम्सटेक सदस्य देशों के साथ सम्पर्क विकसित करने पर इस उम्मीद से ज्यादा ध्यान दे रहा है कि इनसे आर्थिक वृद्धि की रफ्तार तेज हो सकती है और जनता के बीच आपसी संबंध मजबूत हो सकते हैं। [9]

बीबीआईएन पहल

भारत द्वारा की गई पहल पर जून 2015 में भूटान के थिम्पू में दक्षिण एशिया के बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआईएन)सहित चार देशों के परिवहन मंत्रियों ने मोटर वाहन समझौते (एमवीए) पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता यात्रा में लगने वाला समय और वस्तुओं की ढुलाई की लागत में कमी लाने तथा क्षेत्र के देशों के बीच निर्बाध सम्पर्क सुनिश्चित करने के मद्देनजर किया गया। ऐसी अपेक्षा की गई कि इन चारों देशों के निजी, सार्वजनिक और वाणिज्यिक वाहनों की अपनी सीमा के पार आवाजाही से न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक सहयोग में वृद्धि होगी, बल्कि जनता के बीच आपसी सम्पर्क भी बेहतर हो सकेगा। इस पहल के तहत नेपाल की भूटान और बांग्लादेश के अलावा भारत तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। इसके अलावा, नेपाल को जल संसाधन प्रबंधन, बिजली, परिवहन और ढांचागत क्षेत्रों में भी लाभ पहुंच सकता है।

एमवीए समझौते के संदर्भ में, बांग्लादेश के परिवहन मंत्री ओबेदुल कादेर ने कहा था, “आइए हम अपनी सरहदों को बांटने वाला स्थान बनाने की जगह जोड़ने वाला स्थान बनाएं।” [10] एमवीए को देशों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद, हस्ताक्षर होने की तारीख से लेकर छह महीने के भीतर इस समझौते को लागू करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक आगे नहीं बढ़ पा रहा है। भूटान की संसद ने एमवीए का अनुमोदन नहीं किया है। इसके अलावा इस संगठन के अन्य देशों द्वारा एमवीए को लागू करने की पूर्व शर्तों को अब तक पूरा नहीं किया गया है।

राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत

नेपाल और भारत के बीच सीमापार सम्पर्क दक्षिण एशिया में अनुकरणीय है। इसके बावजूद, दोनों देशों के बीच सम्पर्क को सुगम बनाने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। दोनों देशों के बीच ज्यादातर सड़क सम्पर्क और रेलवे नेटवर्क अभी निर्माणाधीन अवस्था में हैं और उनकी प्रगति की रफ्तार बहुत धीमी है। जलमार्ग और ऑप्टीकल फाइबर नेटवर्क के जरिए नेपाल और भारत में सम्पर्क बिल्कुल नया है, लेकिन अब तक इन क्षेत्रों की संभावनाओं का पता लगाया जाना बाकी है। इससे पहले, नेपाल द्विपक्षीय परियोजनाओं के धीमे कार्यान्वयन के भारत को जिम्मेदार ठहराया करता था। लेकिन भारत द्वारा नेपाल सरकार को कार्यान्वयन के लिए जरूरी धन उपलब्ध कराने के बावजूद इनमें से बहुत सी परियोजनाएं टाल-मटोल की स्थिति में हैं।

सार्क, बिम्सटेक और बीबीआईएन पहल जैसे क्षेत्रीय संगठन परिवहन और संचार के क्षेत्रों में अंतर-क्षेत्रीय सम्पर्क सुगम बनाने में प्रभावी साबित नहीं हुए हैं। ऐसा नहीं है कि इनमें से कुछ गतिविधियों के लिए संसाधनों की कमी है, बल्कि इससे कहीं ज्यादा क्षेत्र के देशों के नेताओं में ऐसा कर पाने की इच्छा शक्ति का अभाव है। सम्पर्क से संबंधित मामलों को सुलझाने के लिए नए सिरे से पहल किए जाने की जरूरत है। द्विपक्षीय, क्षेत्रीय या उपक्षेत्रीय स्तरों पर सम्पर्क कायम करने के लक्ष्य वाली इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रत्येक संबद्ध देश द्वारा प्राथमिकता दिए जाने की जरूरत है।

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