Author : Harsh V. Pant

Published on Feb 20, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली भारत यात्रा पर आ रहे हैं उन्हें भारत और भारतीयों से बड़ी उम्मीदें हैं. जबकि, इधर भी लोगों की उनसे कई अपेक्षाएं हैं. यह यात्रा आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से बेहद प्रतिकूल समय में हो रही है, और इस पर दुनिया की नज़रें टिकी हैं.

बेहतर रिश्तों की नई उम्मीदें

अंततः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पहली यात्रा पर भारत आने वाले हैं. ट्रंप के राष्ट्रपति रहते भारत-अमेरिका संबंधों में उतार चढ़ाव आते रहे हैं. यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है. ट्रंप कई देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों में गतिरोध पैदा करने या बढ़ाने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति थी कुछ बुनियादी धारणाओं को भी बदल दिया है. ट्रंप की ऐसी नीतियों के बावजूद भारत द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता बनाए रखने में कामयाब रहा है, जो ट्रंप के लिए काफी मुश्किल लग रहा था. हालांकि, भारत-अमेरिका संबंधों में अब भी बड़ी चुनौतियां कायम है.

पिछले साल जून में ट्रंप प्रशासन ने भारत को प्राप्त विशेष व्यापार दर्जे को रद्द करने की घोषणा की थी. अमेरिका का कहना था, भारत ने अमेरिका को आश्वस्त नहीं किया कि वह अपने बाजार तक अमेरिका को न्यायपूर्ण और उचित पहुंच प्रदान करेगा. अमेरिका विशेष व्यापार दर्जे के तहत भारत को 5.6 अरब अमेरिकी डॉलर तक के सामान के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति देता था. यह व्यापार विवाद कुछ समय से चल रहा है. 2018 में वाशिंगटन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर 1962 के व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232 के तहत भारत से निर्यात होने वाले इस्पात और एलुमिनियम पर शुल्क लगा दिया था. इसके जवाब में भारत ने भी कदम उठाते हुए 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर के सामान पर 23.50 करोड़ डॉलर के शुल्क लगा दिये, जिससे भारत-अमेरिका के बीच व्यापार तनाव बढ़ गया.

अब डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा की घोषणा के एक दिन बाद अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) ने एक संघीय नोटिस जारी किया है. भारत को उन विकासशील देशों की सूची से हटा दिया है, जो गलत तरीके से रियायत निर्यात के साथ अमेरिकी उद्योग को नुकसान पहुंचाने वाले मामलों में जांच से छूट रखते हैं. इस कदम के साथ अमेरिका ने अनिवार्य रूप से जीएसपी के तहत भारत के लाभों को बहाल करने पर दरवाज़ा बंद कर दिया. जीएसपी जैसी अमेरिकी तरजीही व्यवस्था केवल विकासशील देशों के लिए हैं. ट्रंप ने ई- कामर्स नीति पर मतभेद के कारण भारतीयों के एच1-बी वीजा कोटा को 15 प्रतिशत तक सीमित करने पर भी विचार किया था. साथ ही, भारत की शुल्क/गैर शुल्क बाधाओं के कारण जांच की आशंका को बढ़ा दिया, ताकि अमेरिकी निर्यात को रोकने के क़दमों से भारत परहेज करें.

भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 2016-17 के 12 अरब डॉलर से घटकर 2018-19 में लगभग 17 अरब डॉलर हो गया, क्योंकि भारत में 2017 में अमेरिका से तेल और गैस खरीदना शुरू कर दिया था.

एक अनुमान लगाया जा रहा था कि ट्रंप के दौरे के दौरान भारत और अमेरिका एक सीमित व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे. ऐसा कोई समझौता अधर में लटक गया है, क्योंकि दोनों देशों के बीच मतभेदों को सुलझाने का काम अभी बाकी है. ख़ासकर कृषि उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों की बाजार पहुंच से संबंधित मतभेद अभी कायम है. दोनों देशों के बीच प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल की आपूर्ति संबंधी सौदों पर हस्ताक्षर की संभावना है. भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 2016-17 के 12 अरब डॉलर से घटकर 2018-19 में लगभग 17 अरब डॉलर हो गया, क्योंकि भारत में 2017 में अमेरिका से तेल और गैस खरीदना शुरू कर दिया था. ट्रंप 25 फरवरी को यहां देश के शीर्ष उद्यमियों से मुलाकात करेंगे. व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए बात करेंगे. राष्ट्रीय राजधानी में अमेरिकी राष्ट्रपति और कारपोरेट दिग्गजों के बीच राउंडटेबल बैठक आयोजित होगी.

रक्षा समझौते दोनों देशों के बीच केंद्रीय मुद्दा बनकर उभरे हैं. अमेरिका ने 2018 में भारत को सामरिक व्यापार अधिकार की पहली सूची में पदोन्नत कर दिया था, अतः भारत सशस्त्र ड्रोन जैसी संवेदनशील तकनीकों का आयात कर सकता है. 2016 में अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में मान्यता दी थी. इसे तार्किक कदम के रूप में देखा जा सकता है, जिसके तहत अमेरिका अपने सहयोगी देश को उच्च रक्षा तकनीक बेचने का फैसला कर सकता है. पिछले साल दोनों देशों के बीच रियल टाइम सूचना साझा करने की सुविधा के लिए संचार-अनुकूलता और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने, भारत अमेरिका टू-प्लस-टू मंत्रिस्तरीय वार्ता करने, यूएस पैसिफिक कमांड का नाम यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड में बदलने और आम सहमति बनाने पर सहमति बनी थी. ये समझौते इस अशांत समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा साझेदार बनाने के लिए अमेरिका और भारत के इरादे को दर्शाता है. अमेरिका से भारत की रक्षा ख़रीद बाद से 2007 के बाद से 17 अरब डॉलर तक पहुंच गई है, क्योंकि भारत अपने पारंपरिक आपूर्तिकर्ता से कुछ दूर हो गया है. रिपोर्ट है कि भारत ने सीहॉक हेलिकॉप्टर और अपाचे हमलावर हेलिकॉप्टर की ख़रीद के लिए 3.5 अरब डॉलर का पैकेज तय किया है.

सीएएटीएएस के माध्यम से रूस पर वाशिंगटन ने प्रतिबंध लगा रखे हैं. इन प्रतिबंधों के कारण रूस से रक्षा प्रणाली लेने पर असर पड़ेगा. इसके अलावा एक ख़तरा यह भी है कि अगर नई दिल्ली रूस से दूरियां बनाई, तो वह विकसित रक्षा प्रणाली की आपूर्ति पाकिस्तान को कर देगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर असर पड़ेगा

सीएएटीएएस के माध्यम से रूस पर वाशिंगटन ने प्रतिबंध लगा रखे हैं. इन प्रतिबंधों के कारण रूस से रक्षा प्रणाली लेने पर असर पड़ेगा. इसके अलावा एक ख़तरा यह भी है कि अगर नई दिल्ली रूस से दूरियां बनाई, तो वह विकसित रक्षा प्रणाली की आपूर्ति पाकिस्तान को कर देगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर असर पड़ेगा. इसी प्रकार ईरान और वेनेजुएला के साथ अमेरिका के बढ़ते तनाव ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को दांव पर लगा दिया है. भारत 80 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा जरूरत के लिए तेल आयात पर निर्भर है. नई दिल्ली अफगानिस्तान में अमेरिकी नीति के पलटने से भी चिंतित है.

नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा से भारत को बहुत फायदे हुए थे. ट्रंप की भारत यात्रा इस मायने में छोटी बात नहीं है कि वह अपने प्रचार अभियान के लिए भारतीय अमेरिकियों के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का भी उपयोग करेंगे. उन्हें उम्मीद है कि वह उन भारतीय-अमेरिकी  मतदाताओं का ध्यान खींचने में कामयाब होंगे, जो आमतौर पर डेमोक्रेट के पक्ष में रहे हैं.

यह बात भी छिपी हुई नहीं है कि व्यापार विवादों को कई बार ऐसे बिंदु तक पहुंचा दिया गया, जहां भारत-अमेरिका संबंध पूरी तरह से पटरी से उतरने लगे थे. हालांकि, असलियत हमेशा बहुत अलग रही है

दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र के द्वि-पक्षीय संबंधों का बड़ा महत्व है, लेकिन इसमें भारतीय पक्ष परेशानियों से ग्रस्त रहा है. कश्मीर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एक कदम आगे और एक कदम पीछे खींचने की नीति का विश्लेषण जरूरत से ज्यादा किया गया है और यह देखने की कोशिश की गई है कि क्या इस मुद्दे पर अमेरिका के रुख में कोई बदलाव आया है. खैर, यह बात भी छिपी हुई नहीं है कि व्यापार विवादों को कई बार ऐसे बिंदु तक पहुंचा दिया गया, जहां भारत-अमेरिका संबंध पूरी तरह से पटरी से उतरने लगे थे. हालांकि, असलियत हमेशा बहुत अलग रही है. अमेरिका-भारत के संबंध डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति शासन के दौर में फले-खुले हैं और इसमें दोनों पक्षों को लाभ भी मिला है. अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत और वर्तमान विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंखला के शब्दों में कहें, तो, ‘भारत और अमेरिका से रणनीतिक संबंध इस सदी की शानदार भागीदारी बनने की क्षमता रखते हैं’. वाकई, पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय रिश्ते में जो लंबा सफर तय किया है, उसे देखते हुए यह कहना कोई अतिशयोक्ति भी नहीं लगती.


“यह लेख मूल रूप से हिंदुस्तान अखबार  में छप चुका है.

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