तमाम ऊहापोह और बयानबाजियों के बाद आखिर में यही लगा कि भारत और अमेरिका के बीच काफी कुछ सहज है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो द्विपक्षीय रिश्तों में तमाम अनिश्चितताओं के बीच भारत आए. उनके दौरे में दोनों देशों के बीच रिश्तों की मौजूदा तस्वीर को लेकर बहुत उत्सुकता रही, क्योंकि तमाम लोग मानते हैं कि ये रिश्ते मुश्किल भंवर में फंस गए हैं. बहरहाल विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में पोंपियो दोनों देशों की एक बार फिर से साझेदारी के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करते रहे. हालांकि दोनों नेताओं ने यह माना कि व्यापार के मोर्चे पर कुछ मतभेद अवश्य हैं, लेकिन उन्हें पूरा विश्वास है कि इन विवादों को सफलतापूर्वक सुलझा लिया जाएगा.
अमेरिका-भारत साझेदारी
जयशंकर ने कहा कि चूंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है तो दोनों देशों के बीच समय-समय पर कुछ मतभेद स्वाभाविक हैं. पोंपियो ने कहा कि दोनों देश एक दूसरे को द्विपक्षीय साझेदार से कहीं बढ़कर समझते हैं और दोनों किसी भी मोर्चे पर एक दूसरे की मदद कर सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘अमेरिका-भारत साझेदारी पहले ही नई ऊंचाई छूने की शुरुआत कर चुकी है.’
भारत अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क घटाए
वास्तव में इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि ट्रंप प्रशासन ने कुछ मुद्दों पर अजीब स्थितियां पैदा कर दी हैं, जिनकी सुगबुगाहट पिछले काफी समय से हो रही थी. वाशिंगटन चाहता है कि नई दिल्ली अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क घटाए. वहीं इस महीने की शुरुआत में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस यानी जीएसपी के तहत भारत को मिले एक लाभार्थी विकासशील देश का दर्जा खत्म कर दिया. यह खासा अहम माना जाता है.
आर्थिक सक्रियता
भारत को मिला यह दर्जा समाप्त करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इसमें अमेरिका को बराबर फायदा नहीं मिल रहा है और भारत उसे बाजार में अपेक्षित पहुंचने नहीं दे रहा है. ऐसे में भारत-अमेरिका में जब भी वार्ता होगी तब व्यापार का मुद्दा ही मुख्य रूप से केंद्र में रहेगा, क्योंकि दोनों देश अपनी आर्थिक सक्रियता को नए सिरे से तय करने का प्रयास कर रहे हैं.
पश्चिमी एशिया में उबाल पूरे उफान पर
पश्चिमी एशिया में उबाल पूरे उफान पर है जहां भारत के हित अमेरिका और ईरान दोनों के साथ जुड़े हैं. ईरान से तेल खरीदने को लेकर भारत को अमेरिका से मिली छूट की मियाद अब समाप्त हो चुकी है. भारत ने पहले ही इस वास्तविकता से तालमेल बैठाना भी शुरू कर दिया है. इसी का नतीजा है कि अमेरिका से भारत का तेल आयात बढ़ा है. फिलहाल अमेरिका से होने वाले तेल आयात ने भारत के परंपरागत तेल आपूर्तिकर्ता पश्चिमी एशियाई देशों को भी पीछे छोड़ दिया है, मगर भारत यहां क्षेत्रीय स्थायित्व एवं स्थिरता भी चाहता है और पोंपियो को इससे अवगत करा दिया गया है. यह बात जयशंकर के बयान से और स्पष्ट हो जाती है. उन्होंने कहा कि खाड़ी के हालात में ऊर्जा सुरक्षा एक पहलू है, लेकिन इसके साथ ही वहां रहने वाले भारतीयों, क्षेत्रीय सुरक्षा एवं व्यापार जैसे अन्य कारक भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं.
एस-400 ट्रायंफ एयर डिफेंस सिस्टम
भारत द्वारा रूस से खरीदे जा रहे एस-400 ट्रायंफ एयर डिफेंस सिस्टम का मसला भी एजेंडे में शामिल रहा, क्योंकि अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगा रखे हैं. मॉस्को के साथ नई दिल्ली के ऐतिहासिक सामरिक रिश्तों की अनदेखी नहीं की जा सकती. इसीलिए भारत ने दलील दी कि उसे रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों से जुड़े कानून से छूट दी जानी चाहिए. भारत ने अमेरिका के सामने तर्क रखा कि वह अमेरिका के साथ 10 अरब डॉलर से अधिक के रक्षा अनुबंध करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. यह दर्शाता है कि भारत के सामरिक ढांचे में अमेरिका की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है.
भारत की अमेरिका को दो टूक
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स (आइएसए) की दिशा में आगे बढ़ रहा है जिससे अमेरिका के साथ रक्षा उद्योग में सहयोग एवं जुड़ाव को बढ़ावा मिलेगा. रूस से जुड़े सवाल को जयशंकर ने रणनीतिक रूप देते हुए कहा, ‘भारत के तमाम देशों के साथ भिन्न-भिन्न किस्म के रिश्ते है, उनमें से कुछ रिश्ते स्थाई हैं. उनका इतिहास रहा है. हम वही करेंगे जो राष्ट्रहित में होगा. रणनीतिक साझेदारी का एक पहलू उस क्षमता में भी निहित होता है जिसमें प्रत्येक देश दूसरे देश के राष्ट्रीय हितों को समझते हुए उनका सम्मान करे.’
पोंपियो का भारत का तीसरा दौरा
यह पोंपियो का तीसरा भारत दौरा है. उनका यह दौरा अगले सप्ताह जी20 सम्मेलन में मोदी-ट्रंप वार्ता की जमीन तैयार करने का काम करेगा. भारत-अमेरिका द्विपक्षीय रिश्तों में ट्रंप द्वारा कुछ अनिश्चितता पैदा करने के बावजूद पोंपियो का रुख भारत के लिए सहज ही रहा है. भारत में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि अमेरिका एच1बी वीजा में और कटौती करने की योजना बना रहा है. हालांकि वाशिंगटन द्वारा पहले ही इसका खंडन किया जा चुका है. इस वार्ता में जयशंकर ने अपनी ओर से कुछ व्यावहारिकता का पुट भी जोड़ा. उन्होंने कहा, ‘दोनों देशों के अपने-अपने हित हैं. इसके कारण कुछ टकराव होना स्वाभाविक है. कूटनीति के जरिये हम उनका कोई साझा समाधान तलाशेंगे. हम अमेरिका के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ चर्चा करेंगे.’
अमेरिका के साथ नजदीकी रिश्ते ही चीन की सबसे बढ़िया काट
भारत के साथ रिश्तों को और बेहतर बनाना खुद अमेरिका के हित में है, मगर उसमें भारतीय विदेश नीति की अनदेखी करना वैश्विक राजनीति में भारत के बढ़ते प्रभाव को नुकसान पहुंचाता है. नई दिल्ली में तमाम लोगों को भले ही यह कुछ अजीब लगे, लेकिन भारत अमेरिका के साथ अपने सामरिक रिश्ते और मजबूत बनाकर मुख्य रूप से अपनी सामरिक स्वायत्तता बढ़ाना चाहता है. मौजूद दौर में भारत के लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती चीन की ओर से खड़ी हो रही है और उसमें भारत को कोई बढ़त भी नहीं मिली हुई है. हाल-फिलहाल अमेरिका के साथ नजदीकी रिश्ते ही चीन की सबसे बढ़िया काट साबित हो सकती है. वहीं दीर्घ अवधि में ये रिश्ते भारत को अपनी व्यापक राष्ट्रीय शक्ति विकसित करने यानी अपने दम पर बड़ी ताकत बनने में मददगार साबित होंगे.
भारत-अमेरिका वार्ता में नई जान
तमाम बातों के बावजूद माइक पोंपियो का भारत दौरा भारत-अमेरिका वार्ता में नई जान फूंकने में सफल रहा है. जयशंकर के रूप में उन्हें एक ऐसा साझेदार भी मिल गया है जो व्यावहारिक नतीजे देने के लिए उतने ही प्रतिबद्ध हैं.
भारत अमेरिका के सामने झुकने वाला नहीं
अब यह जिम्मा मोदी और ट्रंप पर है कि वे जी20 सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय रिश्तों को रणनीतिक संकल्प प्रदान करें. हालांकि मोदी से मुलाकात के पहले ट्र्रंप ने यह कहा है कि वह अमेरिकी वस्तुओं पर भारत द्वारा आयात शुल्क बढ़ाए जाने को मंजूर नहीं करते, लेकिन माना जा रहा है कि भारत दबाव की इस रणनीति के आगे आसानी से झुकने वाला नहीं.
यह लेख मूल रूप से दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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