Author : Sohini Nayak

Published on Apr 02, 2024 Updated 0 Hours ago

अधिकांश रूप से जिन क्षेत्रों में अतिक्रमण किया गया है, वह नदियों द्वारा पोषित जलीय इलाके हैं, जैसे हुमला में भागदरे नदी का इलाका, सिंधुपालचक्क में खराने व जम्बू नदी का इलाका और संखुवासा जलीय क्षेत्र में भोटेकोशी व समुजुग नदी का इलाका.

चीन के साथ ‘निर्विवाद’ रूप से सीमा विवाद में फंसा नेपाल

ऐसे समय में जब नेपाल और चीन के बीच संबंधों को अक्सर अनुकरणीय माना जाता है, हाल ही में दोनों देशों के बीच हुए सीमा-विवाद की मीडिया में आई ख़बरों ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है. हिमालयी देश नेपाल में मौज़ूद एक नागरिक समाज संगठन द्वारा प्रसारित इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है, कि चीन ने तिब्बत से सटी नेपाली सीमा में आने वाले हुमला ज़िले के लंपचा गांव में (जो नम्खा ग्राम्य नगर पालिका के अंतर्गत आता है) 11 इमारतों का निर्माण किया है.

हालांकि, नेपाल के विदेश मंत्रालय ने तुरंत हरकत में आते हुए, इन आरोपों का खंडन किया, फिर भी नेपाली नागरिकों में चीन को लेकर आक्रोश और चीन के प्रति विरोधी भावनाओं के बीच, “चीनी विस्तारवाद रोको” जैसे नारों से इनकार नहीं किया जा सकता है. यह घटनाक्रम चीन और नेपाल के बीच मौज़ूद, लेकिन छिपे हुए उस सीमा विवाद और अतिक्रमण की याद दिलाता है, जो लंबे समय से दोनों देशों के बीच रहा है.

चीन-नेपाल सीमा को अक्सर 1960 के एक समझौते के माध्यम से ‘नियंत्रित सीमा प्रणाली’ के रूप में दर्शाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 1961 की सीमा संधि हुई, और दोनों देशों के बीच स्तंभों के ज़रिए सीमांकन किया गया.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

चीन-नेपाल सीमा को अक्सर 1960 के एक समझौते के माध्यम से ‘नियंत्रित सीमा प्रणाली’ के रूप में दर्शाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 1961 की सीमा संधि हुई, और दोनों देशों के बीच स्तंभों के ज़रिए सीमांकन किया गया. दोनों देशों के बीच की यह सीमा, बड़े पैमाने पर भौगोलिक संरचनाओं जैसे कि हिमालयन रेंज, पर्वतीय श्रृंखलाओं, दर्रों, नदियों और घाटियों द्वारा भी चिह्नित की गई है. नेपाल का चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ ऐतिहासिक जुड़ाव रहा है, जो सातवीं शताब्दी से भी पुराना है और जिसके ज़रिए, बौद्ध भिक्षु और व्यापारियों का भारत में आना-जाना सुनिश्चित होता रहा है.

यहां यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि सीमा संबंधी विषयों के जानकार बुद्ध नारायण श्रेष्ठ ने उल्लेख किया है कि समय के साथ पारंपरिक सीमाओं में कई बदलाव भी हुए, जिनमें छोटी-छोटी बस्तियों की बसावट और दोनों देशों के बीच लेने-देन की नीति के आधार पर हुए बदलाव शामिल हैं. पुनर्निर्मित हुए बहुत से ज़िलों में से एक है हुमला और विशेष रूप से इसका उत्तर-पश्चिमी भाग, जो चीनी इलाके की ओर एक पर्वत जैसा दिखता था, लेकिन अब इसे नेपाल में धकेल दिया गया है.

सीमा रेखा के सभी परिवर्तनों को 1961 की संधि के बाद के नक्शों में देखा जा सकता है, मुख्य रूप से एक संयुक्त समिति की बैठक के बाद, जिसके चलते सामंजस्यपूर्ण तरीके से 76 स्थायी सीमा स्तंभों का निर्माण किया गया. यह भी पता चला है कि नेपाल ने चीन से 2139 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा लेते हुए, अपने सीमा क्षेत्र का 1836.25 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा, चीन को दिया था. इसके परिणामस्वरूप नेपाल को अपने लिए 302.75 वर्ग किलोमीटर का शुद्ध लाभ हुआ.

नेपाल में 15 ज़िले ऐसे हैं, जिनकी सीमाएँ पड़ोसी देश चीन की सीमाओं से लगती है. यह कुलमिलाकर 1439 किलोमीटर की सीमा रेखा है. ऐसे में पिछले दशक में, कई महत्वपूर्ण सीमा मुद्दे सामने आए हैं.

मौज़ूदा हालात

नेपाल में 15 ज़िले ऐसे हैं, जिनकी सीमाएँ पड़ोसी देश चीन की सीमाओं से लगती है. यह कुलमिलाकर 1439 किलोमीटर की सीमा रेखा है. ऐसे में पिछले दशक में, कई महत्वपूर्ण सीमा मुद्दे सामने आए हैं. पहला मुद्दा डोलाखा ज़िले के लामबागर क्षेत्र में लापचीगांव इलाके में है. यह विवाद बॉर्डर मार्कर नंबर 57 और छह हेक्टेयर भूमि से संबंधित है.

दूसरा मुद्दा नेपाल के कृषि मंत्रालय के सर्वेक्षण विभाग द्वारा किए गए दावों के इर्द-गिर्द घूमता है, जो सात सीमावर्ती जिलों, डोलखा, गोरखा, दारचुला, हुमला, सिंधुपालचक्क, संखुवासा और रसुवा में फैले नेपाली भूमि पर अवैध चीनी कब्ज़े को लेकर है. इसके अतिरिक्त, गोरखा जिले में सीमा स्तंभ संख्या 35, 37 और 38 के विस्थापन और सोलुखुम्बु में नम्पा भंज्यांग में स्तंभ संख्या 62 के स्थापन को भी नोट किया गया है.

पहले तीन स्तंभ टॉम नदी के आसपास रुई गांव का हिस्सा थे. हालांकि, पिछले मानचित्रों में इन इलाकों को नेपाली सरकार के अधीन करार दिया गया है, जहां के लोग नेपाली सरकार को करों का भुगतान करते थे, इस इलाके पर चीन द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था और साल 2017 में इसे तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र के साथ विलय कर दिया गया था. अक्सर यह तर्क दिया जाता रहा है कि, अधिकांश रूप से जिन क्षेत्रों में अतिक्रमण किया गया है, वह नदियों द्वारा पोषित जलीय इलाके हैं, जैसे हुमला में भागदरे नदी का इलाका, सिंधुपालचक्क में खराने व जम्बू नदी का इलाका और संखुवासा जलीय क्षेत्र में भोटेकोशी व समुजुग नदी का इलाका.

सर्वसम्मति का रास्ता

यह भी आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP), चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) द्वारा इस तरह के अतिक्रमण को शह दे रही है. नेपाल में विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के सदस्यों ने अतिक्रमणकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए संसद के निचले सदन की प्रतिनिधि सभा में एक प्रस्ताव पारित करने की कोशिश भी की थी, ताकि अतिक्रमण पर रोक लगाई जा सके.

हालांकि, सरकार इस मुद्दे पर लगभग शांत रही है, जिससे इस तर्क को बल मिले कि ऐसा कोई सीमा विवाद मौज़ूद नहीं है. यह भी भूलना नहीं चाहिए कि चीन वास्तव में नेपाल को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) देने वाला अग्रणी देश है. वित्तीय वर्ष 2019-20 में नेपाल को प्राप्त कुल एफडीआई का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा चीन से आया था. इसके अलावा, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ऑफ चाइना के तहत होने वाले क़रार और निवेश अलग हैं, जिसका नेपाल न केवल एक सदस्य है, बल्कि उसे बेशुमार लाभ भी मिल रहे हैं.

नेपाली सरकार चीन की ओर से होने वाले किसी भी सीमा विवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सक्षम नहीं हो सकती है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूव नेपाल को जो आर्थिक कीमत चुकानी पड़ सकती है, उसका भुगतान करना नेपाल के लिए बहुत महंगा साबित होगा.

इन परिस्थितियों में, नेपाली सरकार चीन की ओर से होने वाले किसी भी सीमा विवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सक्षम नहीं हो सकती है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूव नेपाल को जो आर्थिक कीमत चुकानी पड़ सकती है, उसका भुगतान करना नेपाल के लिए बहुत महंगा साबित होगा. ख़ासकर अब जब कोविड-19 की महामारी के कारण हालात बेहद अनिश्चित हैं. बहरहाल, काठमांडू में चीनी दूतावास के बाहर कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिनके परिणाम सामने आ भी सकते हैं, और नहीं भी.

फिलहाल, दोनों पड़ोसी देशों ने एक सौहार्दपूर्ण मार्ग पर चलने का फैसला किया है, जिसके चलते यह घोषणा की गई है कि उनके बीच द्विपक्षीय संबंध स्थिर और मजबूत हैं, और भविष्य की व्यस्तताओं को बाधित करने के लिए कोई विपरीत स्थिति सामने नहीं आएगी. इस परिदृश्य में दोनों देशों के बीच, पहले से मौज़ूद लेकिन छिपे हुए इन सीमा विवादों को कैसे सुलझाया जाता है, और सुलझाया जाता भी है या नहीं, यह देखना बाकी है.


मूल रूप से यह लेख साउथ एशिया वीकली में प्रकाशित हुआ है.

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