Author : Rouhin Deb

Published on Oct 22, 2020 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 वैश्विक महामारी भारत में एक बड़ी मंदी का कारण बनी है, लेकिन देश की अंतर्निहित सहनशक्ति और क्षमताएं इसे बुनियादी ढांचे की मदद से त्वरित विकास मार्ग पर चलते हुए न्यू इंडिया में बदलने में मदद करेंगे.

नेशनल इंफ़्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन: भारत का बड़ा सपना

जैसा कि साल के अंत तक कोविड-19 वैश्विक महामारी के ख़त्म होने पर कुछ सहमति बनती दिख रही है और हाल में जारी हुए भारत में जीडीपी के पिछली तिमाही के आंकड़े  -23.9% पर हैं, इन हालात में भारत में कम से कम पिछले कुछ दिनों से फिर से आर्थिक रिकवरी पर ध्यान केंद्रित होता दिख रहा है. कइयों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है और इसका कारण सिर्फ़ महामारी नहीं है. भारत की आर्थिक वृद्धि 2016 से घट रही है और तब से पिछले पांच वर्षों से लगातार गिरावट देखी जा रही है. विकास में इस गिरावट के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है देश में वर्ष 2009 से घटती निवेश दर.

ऐसे में, भारत के आर्थिक विकास मार्ग पर वापसी के लिए, उसे सिर्फ़ अल्पकालिक मौद्रिक और राजकोषीय प्रोत्साहन से कुछ ज़्यादा करने की ज़रूरत है. बल्कि, इसे समन्वित दृष्टिकोण और दीर्घकालिक रिकवरी के लिए एक अच्छी तरह से परिकल्पित योजना की ज़रूरत है. उदाहरण के लिए, चीन ने निवेश, बुनियादी ढांचे और मैन्युफ़ैक्चरिंग पर एक महाशक्ति के रूप में ज़बरदस्त वृद्धि दिखाई और ऐसा लगता है कि भारत इन तीनों मोर्चों पर बमुश्किल शुरुआत कर सका है. मौजूदा सरकार ने इन समस्याओं को हल करने के लिए ‘नेशनल इंफ़्रास्ट्र्क्चर प्रोजेक्ट (NIP)’ शुरू किया— जो बीमार भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और 2024 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए यकीनन सरकार का सबसे महत्वाकांक्षी कदम है. इस परियोजना में बीमार अर्थव्यवस्था को एक नया जोश  देने के लिए ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, कृषि, लॉजिस्टिक्स और टेलीकम्युनिकेशन जैसे क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रावधान किया गया है. हालांकि, कोविड -19 महामारी के बाहरी झटकों से योजना में रुकावट आई है और मुख्य़ फोकस जीवन से आजीविका पर स्थानांतरित हो गया है. सरकार के प्रयास विकास को बढ़ावा देने वाले निवेश से बदलकर, महामारी का सामना करने और कमज़ोर पड़ती अर्थव्यवस्था को सहारा देने की दिशा में मुड़ गए हैं. हालांकि, अब एक बार फिर से आर्थिक विकास की ओर ध्यान केंद्रित करने के साथ, विकास की बहस सरकार का पीछा कर रही है. हम नेशनल इंफ़्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के साथ ‘किस तरह पटरी पर लौट सकते हैं और अर्थव्यवस्था में विकास को पुनर्जीवित कर सकते हैं’ का सवाल सबसे पहले है.

इस परियोजना में बीमार अर्थव्यवस्था को एक नया जोश  देने के लिए ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, कृषि, लॉजिस्टिक्स और टेलीकम्युनिकेशन जैसे क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रावधान किया गया है. हालांकि, कोविड -19 महामारी के बाहरी झटकों से योजना में रुकावट आई है और मुख्य़ फोकस जीवन से आजीविका पर स्थानांतरित हो गया है.

एनआईपी परियोजना के लिए चालू वित्त वर्ष में 13.6 ट्रिलियन रुपये और 19.5 ट्रिलियन रुपये का आवंटन अगले वित्त वर्षों 2021-22, 2022-23 के लिए किया गया है, जिसका 80 फ़ीसद निवेश सरकार फ़ाइनेंस करेगी. हालांकि, महामारी के पूरे देश में फैलने के साथ, चीजें बेतरतीब हो गई हैं. 68 दिन के सख़्त लॉकडाउन में जीडीपी में 23.9 फ़ीसद गिरावट आई है और वित्तीय घाटा वर्ष 2020-21 के बजट अनुमान से 103 फ़ीसद ज़्यादा हो गया है, जिसने स्वास्थ्य संकट के बीच सरकार को नई परियोजनाओं के लिए धन देने की हालत में नहीं छोड़ा है. इसके अलावा, कर संग्रह में भी गिरावट आई है, जिसमें जून की तिमाही में जीएसटी संग्रह आधा रह गया (औद्योगिक गतिविधियों में भारी गिरावट के चलते) (चित्र 4 देखें) और आयकर व कॉर्पोरेट कर संग्रह क्रमशः36 फ़ीसद और 23 फ़ीसद नीचे रहा है ( लगभग 1.9 करोड़ लोग नौकरियां गंवा चुके हैं और कॉर्पोरेट कर 23 प्रतिशत रह गया है (चित्र 2 और 3). इन रुझानों को देखते हुए, पूरी तरह साफ़ है कि सरकार चालू वर्ष में अपने घाटे के लक्ष्य को थाम पाने में सक्षम नहीं होगी और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए उधार लेने की ज़रूरत होगी. अनुमानों के अनुसार, उधार ली जाने वाली राशि 12 लाख करोड़ तक हो सकती है, जो देश के ऋण को जीडीपी अनुपात में लगभग 87 फ़ीसद तक ले जा सकता है. ऐसे वित्तीय दबावों के बीच, एनआईपी परियोजना पर निवेश योजनाओं को झटका लग सकता है. ख़ासकर राज्य सरकारों से जो संसाधनों के हिसाब से और निराशाजनक बदहाल स्थिति में हैं. इस संकट के बीच, सरकार को अभी भी एनआईपी पर काम आगे बढ़ाने के उपायों की तलाश करनी होगी और इसके लिए निवेश का इंतज़ाम करना होगा, क्योंकि इस समय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का यही इकलौता रास्ता दिखता है.

आगे का रास्ता

कोविड-19 महामारी के बीच संसाधनों को बढ़ाने के लिए एक अभिनव और समन्वित दृष्टिकोण की ज़रूरत होगी. शुरुआत करने के लिए, सरकार निवेश के लिए भविष्य निधि और बीमा को देख सकती है क्योंकि ये ज़्यादा व्यवस्थित हो रहे हैं. उदाहरण के लिए, एलआईसी भारत स्थित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में 1,25,000 करोड़ फ़ंड के निवेश के लिए तैयारी कर रहा है. इसी तरह, भारतीय मर्चेंट बैंकों ने भी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर काम करने वाले फ़ंड हाउस खोले हैं, जो सरकार को निकट भविष्य में परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने में मदद कर सकते हैं. दूसरी बात, सरकार विदेशी पेंशन फंडों की ओर भी रुख़ कर सकती है क्योंकि इन्होंने हमेशा भारतीय ब्राउनफील्ड परियोजनाओं (किसी पहले से चल रही कंपनी को खरीदना या लीज़ पर लेना) में रुचि दिखाई गई है. हालांकि, देश में लालफ़ीताशाही के तामझाम के कारण ग्रीनफ़ील्ड परियोजनाओं (इसमें निवेशक ज़मीन से लेकर सभी सुविधाएं ख़ुद खड़ी करते हैं) के प्रति विदेशी फ़ंडिंग एजेंसियों के बीच कम रुचि रही है. ये फ़ंड भारत में ग्रीनफ़ील्ड परियोजनाओं में शायद ही कभी शामिल हुए हैं और उन्होंने चुनिंदा मौक़ों पर ऐसा किया भी तो, किसी प्रभावशाली भारतीय कॉरपोरेट के साथ साझेदारी के माध्यम से ही था. इसलिए भारत सरकार एनआईपी में बुनियादी निर्माण (ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स) को भारतीय रुपये से पूरा करने पर विचार कर सकती है और परिसंपत्ति निर्माण पूरा हो जाने के बाद सरकार बाद के चरणों (ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट्स) में परियोजना को संचालित करने के लिए डॉलर में फ़ंड जुटा सकती है. इस सफल मॉडल का एक बड़ा उदाहरण इंफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट है, जिसने विदेशी फ़ंड से बहुत अधिक धन आकर्षित किया था. हालांकि, इन सभी कदमों के साथ, सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि जुटाया गया धन लौटाना भी होगा. इसलिए, सरकार को पूरे भारत में प्रचलित मुफ़्तख़ोरी की संस्कृति से दूर रहना चाहिए. विश्व स्तर के बुनियादी ढांचे का निर्माण राजस्व से नहीं, बल्कि जनता के धन से होना चाहिए.

सरकार चालू वर्ष में अपने घाटे के लक्ष्य को थाम पाने में सक्षम नहीं होगी और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए उधार लेने की ज़रूरत होगी. अनुमानों के अनुसार, उधार ली जाने वाली राशि 12 लाख करोड़ तक हो सकती है, जो देश के ऋण को जीडीपी अनुपात में लगभग 87 फ़ीसद तक ले जा सकता है. 

वित्तीय रुकावटों के अलावा, सरकार को अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उस नीतिगत अनिर्णय पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा, जो वह वर्षों से झेल रही है. खराब संस्थागत गुणवत्ता, नियमों की बाधाएं और मंज़ूरी भारत में एक कंस्ट्रक्शन परियोजना को हर कदम पर रोकते हैं. भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण मंजूरी, अनुबंध और अदालतों में जनहित याचिकाओं के चलते देरी परियोजनाओं के लिए एक और बड़ी बाधा रही है, जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है ताकि निजी ठेकेदार बिना रुके और समय पर काम पूरा कर सकें. इसके अलावा, इन परियोजनाओं में संबंधित मंत्रालयों को परियोजना के सुचारु संचालन को सुगम बनाने की बड़ी ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए और कार्यान्वयन एजेंसियों को प्रक्रिया में सभी ज़रूरी मदद और मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए. कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, जो कभी केंद्रीय कैबिनेट में मंत्रालय हुआ करता था और जो देश भर में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की स्थिति पर नज़र रखने के लिए ज़िम्मेदार था, इसका अब कोई अस्तित्व नहीं है. इसलिए, ऐसी ही एजेंसी न केवल प्रगति पर नज़र रखने और समय-सीमा का पालन कराने के लिए बनानी चाहिए, बल्कि यह मंज़ूरी दिलाने और वित्तीय समझौते करने तक ऐसे तमाम मुद्दों से संबंधित विभिन्न मसलों पर राज्य सरकारों, संबंधित मंत्रालय, अंतर-मंत्रालय केंद्र-राज्य समन्वय के लिए भी ज़िम्मेदार होनी चाहिए. यह उन परियोजनाओं की बेहतर समझ और तेजी से कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करेगा जिनके विभिन्न स्तर पर विभिन्न हितधारक हैं. डिज़ाइन में ख़ामी के कारण भारत में बड़ी संख्या में परियोजना में देरी होती है. उदाहरण के लिए, कोलकाता में न्यू हावड़ा ब्रिज पूरा होने में 22 साल लग गए. निर्माण में देरी के प्रमुख कारणों में से एक है भारत में ख़राब डिज़ाइन योजना. डिज़ाइन अपने आप में सरकार के सबसे उपेक्षित मानदंडों में से एक रहा है, जबकि परियोजना की अवधारणा में लंबी देरी लगती है, दूसरी तरफ़ जापान और चीन जैसे देश परियोजना से पहले ही डिज़ाइनिंग योजना में ज़्यादा समय लगाते हैं. इन देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को परियोजनाओं के पूरा होने में देरी को कम करने के लिए अपने बुनियादी ढांचे के डिज़ाइन तंत्र को दुरुस्त करना होगा.

इस सफल मॉडल का एक बड़ा उदाहरण इंफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट है, जिसने विदेशी फ़ंड से बहुत अधिक धन आकर्षित किया था. हालांकि, इन सभी कदमों के साथ, सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि जुटाया गया धन लौटाना भी होगा. 

और अंतिम बात जो कम महत्वपूर्ण नहीं है, सरकार द्वारा शुरू किया गया इंडिया इनवेस्टमेंट ग्रिड (आईआईजी) जो इंफ़्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर रियल टाइम अपडेट ट्रैक करने के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म के रूप में लॉन्च किया गया है, को सूचना के मामले में अधिक ईमानदारी बरतने की ज़रूरत है और सिर्फ़ हेडलाइन बनाने वाली सेक्टर के हिसाब से निवेश राशि बताने से निवेश समस्या हल नहीं होगी. सूचनाओं में स्पष्टता होनी चाहिए जैसे कि विशिष्ट परियोजना पर अगले 12 महीनों में निविदा जारी होने जा रही है,  अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, इसमें शामिल मंत्रालयों, राज्य सरकार की भूमिका आदि में स्पष्टता हो. आईआईजी डेटाबेस को अपडेट किया जाना चाहिए, जिससे कि विभिन्न परियोजनाओं में भाग लेने के लिए इच्छुक प्राइवेट हितधारकों के लिए अधिक स्पष्टता हो.

कोविड -19 महामारी भारत में बड़ी मंदी का कारण बनी है, लेकिन इसकी अंतर्निहित सहनशक्ति और क्षमताएं इसे बुनियादी ढांचे द्वारा त्वरित विकास मार्ग के साथ न्यू इंडिया में बदलने में मदद करेंगी. इन कदमों के साथ उम्मीद की जाती है कि एनआईपी, जिसमें आर्थिक और सामाजिक बुनियादी ढांचा परियोजनाएं दोनों शामिल हैं, परियोजना की तैयारी में सुधार करेगा, बुनियादी ढांचे में निवेश (घरेलू और विदेशी दोनों) आकर्षित करेगा, और सरकार द्वारा 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य हासिल करने में एक सफल संस्थान साबित होगा.

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