Author : Kabir Taneja

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Published on May 21, 2024 Updated 1 Days ago

इब्राहिम रईसी की अचानक हुई मौत के बाद, अगले 50 दिनों के दौरान जब तक ईरान नया राष्ट्रपति चुनेगा, वो ईरान की राजनीति के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण होंगे 

ईरान: इब्राहिम रईसी की अचानक हुई मौत के बाद देश में नाटकीय परिवर्तन के आसार!

पूर्वी अज़रबैजान सूबे के पहाड़ी इलाक़ों में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी, विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान और अन्य नेताओं की अचानक हुई मौत ने पूरे इलाक़े में सदमे की लहर दौड़ गई. इब्राहिम रईसी के देहांत की घोषणा, उनके जन्मस्थान मशाद स्थित ईरान के सबसे पवित्र तीर्थस्थल कहे जाने वाले इमाम रज़ा के मकबरे से की गई. 

 

ईरान की राजनीति में अचानक आया ये बहुत बड़ा बदलाव, बेहद नाज़ुक मोड़ पर आया है, जब ग़ज़ा में युद्ध चल रहा है. ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बहुत बढ़ा हुआ है और ईरान, अपने रूस और चीन जैसे साझीदारों के साथ ‘सत्ता की खेमेबंदी’ के नए दौर में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. हालांकि, ईरान के ‘सवाल’ को लेकर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय तनावों के बावजूद, इब्राहिम रईसी का निधन, इस क्षेत्र में ईरान की अपनी नीतियों से कहीं ज़्यादा उसकी अंदरूनी सियासत पर असर डालने वाला है.

 हालांकि, ईरान के ‘सवाल’ को लेकर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय तनावों के बावजूद, इब्राहिम रईसी का निधन, इस क्षेत्र में ईरान की अपनी नीतियों से कहीं ज़्यादा उसकी अंदरूनी सियासत पर असर डालने वाला है.

अभी तो ईरान के उप-राष्ट्रपति मुहम्मद मोख़बर (जो भारत के लिए ईरान के विशेष दूत भी हैं) को अगले 50 दिनों के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया है. क्योंकि, ईरान के संविधान के मुताबिक़ अगले 50 दिनों के भीतर ईरान को अपना नया राष्ट्रपति चुनना होगा.

 

उत्तराधिकार

 

दिवंगत राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी अचानक ही सत्ता के शीर्ष पर नहीं पहुंचे थे, बल्कि वो पारंपरिक मगर लगातार प्रयासों की वजह से राष्ट्रपति पद तक पहुंचे थे. रईसी, इस्लामिक विद्वानों के ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते थे. उन्होंने देश की न्यायिक व्यवस्था में काम करते हुए सत्ता की सीढ़ियां तय की थीं और उस इस्लामिक क्रांति के प्रति अपने क़र्ज़ को चुकाया था, जो 1979 के बाद से ईरान की विचारधारा और सियासत का आधार रही है. जैसा कि मशहूर विद्वान अराश अज़ीज़ी ने इशारा भी किया कि इब्राहिम रईसी, अयातुल्लाह ख़मेनेई के कार्यकाल में बने ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने सर्वोच्च नेता के प्रति अपनी पूर्ण निष्ठा प्रकट की थी. बरसों की निष्ठा और काम से अपना लोहा मनवाने के बाद, इब्राहिम रईसी अगस्त 2021 में उस वक़्त ईरान के आठवें राष्ट्रपति बने थे, जब अमेरिका बड़े शर्मनाक तरीक़े से ईरान के साथ परमाणु समझौते से अलग हो गया था और तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रूहानी की अगुवाई में ईरान के नरमपंथियों को बड़े योजनाबद्ध तरीक़े से अलग थलग किया जा रहा था.

 इब्राहिम रईसी के निधन से ईरान की सत्ता के गलियारों में संघर्ष छिड़ने की संभावना है. 2021 में ये आरोप बढ़-चढ़कर लगाए गए थे कि चुनावों में इब्राहिम रईसी को जिताने के लिए ‘धांधली’ की गई थी.

अभी पिछले हफ़्ते की बात है, जब सर्वोच्च नेता के प्रति दुर्लभ मगर खुली बग़ावत करते हुए पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी ने एक चिट्ठी जारी की थी. इस चिट्ठी में रूहानी ने ईरान की ताक़तवर संरक्षण परिषद के इस फ़ैसले पर अफ़सोस जताया था कि परिषद ने उन्हें विशेषज्ञों की सभा में अपने पद की रक्षा कर पाने में नाकाम रहने वाले के तौर पर रेखांकित किया था. रूहानी का इशारा रूढ़िवादियों के नियंत्रण वाले मगर लगातार सिकुड़ते सत्ता वर्ग की तरफ़ था. इब्राहिम रईसी के निधन से ईरान की सत्ता के गलियारों में संघर्ष छिड़ने की संभावना है. 2021 में ये आरोप बढ़-चढ़कर लगाए गए थे कि चुनावों में इब्राहिम रईसी को जिताने के लिए ‘धांधली’ की गई थी. पिछले कुछ वर्षों के दौरान, ईरान में मतदान का प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है. मार्च महीने में ईरान के संसदीय और विशेषज्ञों की सभा के चुनावों में सिर्फ़ 41 प्रतिशत लोगों ने ही अपने वोट डाले थे.

 

हालांकि, चुनावी राजनीति से इतर ईरान के इस्लामिक गणराज्य में उत्तराधिकार के इससे भी बड़े दांव-पेंच चल रहे हैं. सबसे ताक़तवर कहे जाने वाले ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़मेनेई उम्र के नौवें दशक में हैं. इब्राहिम रईसी, ख़मेनेई के बेटे मुज्तबा ख़मेनेई और ख़मेनेई के एक और विश्वासपात्र अलीरेज़ा अराफ़ी उनके उत्तराधिकारी बनने की दौड़ में शामिल थे. रईसी के बेदाग़ वैचारिक इतिहास और इस्लामिक क्रांति एवं अयातुल्लाह ख़मेनेई के प्रति संपूर्ण वफ़ादारी, ख़ास तौर से 1980 के दशक में डिप्टी प्रॉसिक्यूटर जनरल के तौर पर अपने कार्यकाल की वजह से रईसी, ख़मेनेई के पसंदीदा शख़्स के तौर पर काफ़ी चर्चा में रहे थे. लेकिन, ख़मेनेई का उत्तराधिकारी तय करना अकेले उनकी पसंद नापसंद पर निर्भर नहीं है. विद्वान अफ़शोन ओस्टोवोर का कहना है कि, ख़मेनेई को सत्ता के तमाम केंद्रों को अपने पाले में करना होगा, या उनसे मोल-भाव करना होगा, तभी जाकर उनके पसंदीदा उत्तराधिकारी को आसानी से सत्ता पर पूरा नियंत्रण हासिल हो सकेगा. इसमें बेहद ताक़तवर इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (IRGC) भी शामिल है. 

 

हालांकि, आगे चलकर ईरान की सियासत में सत्ता के तमाम केंद्र अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए आपस में खींचतान करेंगे. इसमें IRGC भी शामिल है, जिसने ख़मेनेई के दौर में अपनी तय भूमिका से कहीं ज़्यादा ताक़त और प्रभाव जुटा लिया है.

 

चुनौतियां

 

भले ही इब्राहिम रईसी ईरान के राष्ट्रपति थे. पर, देश की विदेश और क्षेत्रीय नीतियां मोटे तौर पर अयातुल्लाह के निर्देश पर ही चलती थीं और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर इसमें मदद की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती थी. रिवोल्यूशनरी गार्ड और क़ुद्स फ़ोर्स जैसी इसकी शाख़ाएं पूरे मध्य पूर्व में हथियारबंद लड़ाकों का वो मोर्चा खड़ा करने में कामयाब रही हैं, जिसे ईरान ‘प्रतिरोध की धुरी’ कहता है. इन संगठनों की मदद से ईरान काफ़ी हद तक किसी भी घटना से अपना पल्ला झाड़ पाने में सफल रहता है. इसमें यमन में हूती, लेबनान में हिज़्बुल्लाह, फ़िलिस्तीन में हमास के अलावा, इराक़, सीरिया और अन्य देशों में कई छोटे छोटे अन्य संगठन भी शामिल हैं.

 

हो सकता है कि रईसी की मौत की वजह से होने वाले सत्ता परिवर्तन का उसकी भू-सामरिक योजनाओं पर बहुत व्यापक या सीधा असर न पड़े. अगर सारे नहीं, तो ज़्यादातर IRGC की मदद से अयातुल्लाह ही निर्णय प्रक्रिया में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं. 1979 में अपनी स्थापना के बाद से अपनी तय भूमिका के चलते IRGC न केवल एक सैन्य संगठन के तौर पर ख़ुद को बहुत मज़बूत बना लिया है, बल्कि वो सियासी और आर्थिक तौर पर भी काफ़ी ताक़तवर हो गई है. यहां ईरान के भीतर सैन्य ज़िम्मेदारियों का विभाजन समझना भी बहुत ज़रूरी है. ईरान की सेना की ज़िम्मेदारी, देश की संप्रभुता की रक्षा करने की है. वहीं, IRGC का उत्तरदायित्व इस्लामिक गणराज्य की अक्षुण्णता और ताक़त के साथ साथ अयातुल्लाह की हिफ़ाज़त करना है. मिसाल के तौर पर पिछले महीने अमेरिका ने भारत की जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे, उन्हें तब इस बात का पता चला था कि वो जो कल-पुर्ज़े ईरान को बेच रहे थे, उनका इस्तेमाल IRGC के व्यापक ड्रोन कार्यक्रम में होना था, जो न केवल पूरे मध्य पूर्व में, बल्कि यूक्रेन में तबाही मचा रहे हैं.

 ईरान की सेना की ज़िम्मेदारी, देश की संप्रभुता की रक्षा करने की है. वहीं, IRGC का उत्तरदायित्व इस्लामिक गणराज्य की अक्षुण्णता और ताक़त के साथ साथ अयातुल्लाह की हिफ़ाज़त करना है.

आज जब ईरान, इब्राहिम रईसी की मौत के सदमे से जूझ रहा है और आने वाले 50 दिनों में उसको ‘गणराज्य’ के नए राष्ट्रपति का चुनाव करना है, तो इस दौरान ग़ज़ा में युद्ध और हमास को ईरान का समर्थन और अपनी इन्हीं नीतियों की वजह से हिज़्बुल्लाह और अन्य संगठनों को पालने-पोसने का सिलसिला जारी रहने की उम्मीद है. हालांकि ये नेतृत्व, अयातुल्लाह और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के साये तले ही अस्तित्व में है, और अपना काम करता है. ईरान की हुकूमत के ढांचे को मिलने वाली किसी बुनियादी चुनौती से उसे ये ही बचाते हैं.

 

इन सभी बातों के बावजूद, अगले 50 दिन ईरान की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे.

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Kabir Taneja

Kabir Taneja

Kabir Taneja is a Deputy Director and Fellow, Middle East, with the Strategic Studies programme. His research focuses on India’s relations with the Middle East ...

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