Author : Hindol Sengupta

Published on Aug 22, 2019 Updated 0 Hours ago

जब भारत गणराज्य बना, तो उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष के नैतिक बल की बदौलत वो विश्व कूटनीति में एक सम्मानजनक आवाज़ बना था. आज उभरता हुआ भारत अपनी पर्यावरण नीति से वो नैतिक बल दोबारा हासिल कर सकता है.

नरेंद्र मोदी और जलवायु परिवर्तन के भारत के नए नियम!

आज़ादी के बाद से ही भारत गणराज्य के नेताओं का विश्वास था कि उसमें दुनिया को नैतिक नेतृत्व प्रदान करने की अनूठी क्षमता है. [i]तब भारत के पास धन-बल नहीं था. इस कमी को पूरा करने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में भारत के नीति नियंताओं ने विश्व कूटनीति में भारत के नैतिक और प्रतीकात्मक नेतृत्व पर ज़ोर दिया.  भारत, साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ बड़ी आवाज़ बना. उपनिवेशवाद के बाद के दौर में उदारवादी अंतरराष्ट्रीय संवाद का अगुवा भी भारत बना जिसे नस्लवाद[ii] के विरोध का नैतिक अधिकार हासिल था. तब भारत ने उपनिवेशवाद के शिकंजे नए आज़ाद हुए देशों की संप्रभुता पर ज़ोर दिया. तब का भारत विश्व में बड़ी ताक़तों की दादागीरी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता था. उस वक़्त भारत ने किसी भी महाशक्ति के ख़ेमे मे जाने के बजाय गुटनिरपेक्षवाद पर ज़ोर दिया था.

आज़ादी के बाद के शुरुआती दौर में भारत ने अपने नैतिक नेतृत्व[iii] को अपनी विदेश नीति की बुनियाद बनाया और दुनिया के बाक़ी देशों से अलग दिखने की अपनी अपेक्षाएं पूरी करने की कोशिश की. उस दौर में भारत ने शीत युद्ध की विश्व कूटनीति से ख़ुद को अलग रखा और एक स्वतंत्र देश की स्वतंत्र विदेश नीति पर चलते हुए दुनिया को सामाजिक नेतृत्व देने की कोशिश की. भारत न तो सोवियत संघ के उग्र साम्यवाद का समर्थक था और न ही अमेरिका के उग्र पूंजीवाद का हामी बना.

जब 1998 में भारत ने एटमी टेस्ट किए और उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाबंदियों और झिड़कियों का सामना करना पड़ा, तब उस वक़्त के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने भारत के परमाणु परीक्षण को उपनिवेशवाद के बाद के दौर के एटमी नस्लवाद का जवाब बताया था.

स्वतंत्र भारत का ज़्यादातर इतिहास इन्हीं नैतिकतावादी अपेक्षाओं पर चलने का रहा है. यही वजह है कि भारत अपने गणराज्य बनने के शुरुआती दिनों में एटमी हथियारों का नफ़रत की हद तक विरोध करता था, और उसने परमाणु हथियार हासिल करने के लिए क़दम उठाने से गुरेज़ किया. जब 1998 में भारत ने एटमी टेस्ट किए और उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाबंदियों और झिड़कियों का सामना करना पड़ा, तब उस वक़्त के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने भारत के परमाणु परीक्षण को उपनिवेशवाद के बाद के दौर के एटमी नस्लवाद[iv] का जवाब बताया था. तब से भारत लगातार ख़ुद को एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति संपन्न ताक़त के तौर पर विश्व मंचों पर पेश करता रहा है. और इस आधार पर नैतिक रूप से ख़ुद को ऊंचे दर्ज़े की ताक़त मानता रहा है. हालांकि भारत ने औपचारिक रूप से परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर दस्तख़त नहीं किए हैं. न ही वो व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि यानी सीटीबीटी (CTBT) का सदस्य बना है. हालांकि भारत ने 2008 में अमेरिका के साथ सफ़ल सिविल न्यूक्लियर डील की थी. हाल ही में वो मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) और वासेनार व्यवस्था का हिस्सा भी बना है.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भारत में ‘समेकित विकास’ को अपना नया मानक बनाया. जिसमें आर्थिक विकास को अधिकारों पर आधारित बताया गया था. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी के किसी मानक का स्पष्ट रूप से उबरना अभी बाक़ी है.

मोदी और उनके क़रीबी सहयोगी, जैसे कि बीजेपी अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह बार-बार भारत को ‘विश्व गुरू’ बनाने की महत्वाकांक्षा का ज़िक्र करते हैं. इस बड़े लक्ष्य की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसे छोटे-छोटे क़दम उठाए जाते हैं. इन छोटी-मोटी बातों के अलावा एक राष्ट्र के तौर पर मोदी के नेतृत्व में भारत का नया नैतिक मानक क्या होगा, वो उभरना अभी बाक़ी है.

बहुत से विद्वानों का तर्क है कि प्रधानमंत्री मोदी, 19वीं सदी के भारतीय संन्यासी स्वामी विवेकानंद के कर्मयोग के सिद्धांत से प्रभावित और प्रेरित हैं, जिसमें सही नीयत से काम करने पर ज़ोर दिया जाता है.[v] मोदी अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में अपने निजी संबंधों की ताक़त का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, उनके कर्म योग के तहत अब तक कोई ऐसा ठोस बुनियादी सिद्धांत उभर कर सामने नहीं आया है, जिस पर नई नीति का निर्माण हो. कहा जाता है कि इसकी बड़ी वजह ये है कि जिस हिंदूवादी संगठन से मोदी और बीजेपी प्रेरित हैं, वो हिंदुत्व की धार्मिक और दार्शनिक आस्थाओं वाला संगठन है. उसका ध्यान मूल रूप से घरेलू मसलों पर रहता है, न कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर.

लेकिन, इस तर्क को दो बातों से चुनौती दी जा सकती है. पहली बात तो ये है कि सैद्धांतिक तौर पर घरेलू हालात का अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर असर[vi] पड़ता है, और हालिया मिसालों से ये भी कहा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों का घरेलू राजनीति पर भी असर पड़ता है. जैसे कि नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क जैसे देश, अपने घरेलू अनुभवों के आधार पर ही लैंगिक समानता बढ़ाने और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करने का लगातार प्रचार करते हैं. (नॉर्वे ने तो कोयला और तेल जैसे ईंधन का इस्तेमाल करने के लिए अपने यहां के पेंशन फंड से एक ख़रब डॉलर ख़र्च करने का फ़ैसला किया है).[vii]

मोदी ने वैदिक मंत्रों की मदद से 2015 में पेरिस में कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP21) दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन के मसले पर भारत के नैतिक नेतृत्व का प्रस्ताव रखा था.

प्रधानमंत्री मोदी ने घरेलू स्तर पर पर्यावरण नीति में बदलाव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के नए सिद्धातों के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया है. इसे भी उसी तरह देखा जाना चाहिए कि घरेलू मुद्दों का अंतरराष्ट्रीय विषयों पर असर पड़ता है. मेरा तर्क ये है कि ऐसा करके मोदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए एक नया नैतिक रोल तलाश रहे हैं. अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने जिन मोर्चों पर विश्व को एक नया नैतिक नेतृत्व देने की कोशिश की, उसमें भारत की पर्यावरण नीति को प्राचीन भारतीय ज्ञान[viii] के सागर यानी वेदों से जोड़ा गया है. मोदी ने वैदिक मंत्रों की मदद से 2015 में पेरिस में कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP21) दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन के मसले पर भारत के नैतिक नेतृत्व का प्रस्ताव रखा था. प्रधानमंत्री मोदी ने उस वक़्त आर्थिक नीतियों[ix] के नए दार्शनिक सिद्धांत[x] की मदद से मोदी ने अपने घरेलू श्रोताओं के साथ-साथ विश्व को ये समझाने की कोशिश की थी भारत अब ‘वीटो प्लेयर’ से एजेंडा तय करने वाला देश बनने के लिए तैयार है.[xi]

हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये प्रक्रिया तो अभी शुरू ही हुई है. लेकिन, कम से कम घरेलू मोर्चे पर तो मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में पर्यावरण केंद्रिय विकास के मॉडल पर चलने के मज़बूत संकेत दिए हैं, और ऐसा कर के भारत को विश्व में नए मानक तय करने का अगुवा बनाया जा सकता है.

भारत के जल संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में एक नया मंत्रालय बनाया है. इसकी ज़िम्मेदारी उन्होंने एक ऐसे किसान नेता को दी है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की भयंकर किल्लत का अच्छे से एहसास है. मोदी ने गजेंद्र सिंह शेखावत को जलशक्ति मंत्रालय देने के साथ वर्ष 2024 तक देश के सभी गांवों को पाइप से पीने के साफ़ पानी की आपूर्ति का बहुत ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. ये हर घर को बिजली पहुंचाने से छह गुना बड़ा लक्ष्य है. अपने लिए ऐसा लक्ष्य निर्धारित कर के मोदी ने दुनिया को ये संकेत दिया है कि वो घरेलू स्तर पर जलवायु परिवर्तन से उठ खड़ी हुई चुनौतियों का सामना करने के लिए कितना गंभीर है. इसी तरह शौचालयों के निर्माण और घर-घर बिजली पहुंचाने के अभियान को भी ‘मिशन मोड’ पर चलाया गया है. मिशन मोड के तहत कुछ योजनाओं पर ज़्यादा ध्यान और अहमियत दी जाती है.

घर-घर पाइप से पानी की आपूर्ति की इस महत्वाकांक्षी योजना का अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य भी पहले ही दिन से साफ़ दिखने लगा है. इस योजना को अभी से ही मोदी सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए मानक के तौर पर पेश कर रही है. जैसे कि न्यूयॉर्क में भारत के वाणिज्य दूत ने इस योजना का ज़िक्र करते हुए कहा कि, ‘भारत जल संरक्षण के मामले में दुनिया को नेतृत्व प्रदान कर सकता है’.[xii]

भारत ने 2030 तक अपने ज़्यादातर वाहनों को इको-फ्रेंडली यानी बिजली से चलने वाला बनाने का लक्ष्य रखा है. आज की तारीख़ में भारत दुनिया में सबसे सस्ती सौर ऊर्जा बनाने वाला देश पहले ही बन चुका है.

इसी तरह, दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में मोदी सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के मालिकों को इनकम टैक्स में छूट देने का ऐलान किया. इस क़दम से भी भारत दुनिया को ये संदेश देना चाहता है कि वो जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ युद्ध में ऐसे क़दम उठाकर इसका अगुवा बनना चाहता है. भारत ने 2030 तक अपने ज़्यादातर वाहनों को इको-फ्रेंडली यानी बिजली से चलने वाला बनाने का लक्ष्य रखा है. आज की तारीख़ में भारत दुनिया में सबसे सस्ती सौर ऊर्जा बनाने वाला देश पहले ही बन चुका है.[xiii] ऐसे संकेत है हैं कि मोदी की निगरानी में भारत जीवाश्म ईंधन की जगह स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्य को वर्ष 2030 से पहले ही हासिल कर लेगा. मौजूदा मूल्यांकन के मुताबिक़ पुनर्नवीनीकृत यानी रिसाइकल किए गए ऊर्जा के स्रोत 2030 तक भारत की आधी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करेंगे. हालांकि मोदी सरकार ने इसके लिए 40 प्रतिशत का ही लक्ष्य निर्धारित किया है.[xiv]

दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में से सात भारत मे हैं.[xv] भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा जल संकट झेलने वाला देश है. हमारे देश के ज़्यादातर बड़े शहर पानी की भारी किल्लत झेल रहे हैं. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु परिवर्तन के इस संकट से निपटने की दिशा में बड़े बदलाव लाने में सफल होते हैं. अगर वो भारत 1.3 अरब लोगों की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के माध्यमों और उनकी आदतों में बदलाव लाकर प्रदूषण कम करने में क़ामयाब होते हैं, तो वो विश्व के लिए ऐसा मानक तैयार कर सकते हैं, जिसे वो अपना बता सकते हैं और इस मोर्चे पर दुनिया के अगुवा बनने का दावा कर सकते हैं. अब हमारे सामने इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि यही भारत के प्रधानमंत्री का लक्ष्य है.


[i] Sullivan de Estrada, Kate (2014), Exceptionalism in Indian Diplomacy: The Origins of India’s Moral Leadership Aspirations, South Asia: Journal of South Asian Studies, 2014 Vol. 37, No. 4, p. 640

[ii] Hall, Ian (2017), Narendra Modi and India’s normative power, International Affairs, 93:1, p. 113

[iii] Sullivan de Estrada, Kate (2014), Exceptionalism in Indian Diplomacy: The Origins of India’s Moral Leadership Aspirations, South Asia: Journal of South Asian Studies, 2014 Vol. 37, No. 4, p. 640

[iv] ‘Against Nuclear Apartheid’, Jaswant Singh, Foreign Affairs, September/October 1998

[v] Hall, Ian (2017), Narendra Modi and India’s normative power, International Affairs, 93:1, p. 120

[vi] Cortell, Andrew P. and Davis, Jr., James W. (1996), How Do International Institutions Matter? The Domestic Impact of International Rules and Norms, International Studies Quarterly, Vol. 40, p. 451-478

[vii] Norway’s $1 Trillion Fund Wins Go-Ahead for Oil Stock Divestment’, Mikael Holter and Sveinung Sleire, Bloomberg, June 12, 2019

[viii] Hall, Ian (2017), Narendra Modi and India’s normative power, International Affairs, 93:1, p. 129

[ix] ‘India’s climate leadership at Paris’, Vaibhav Chaturvedi and Kanika Chawla, Mint, December 17, 2015

[x] Narlikar, Amrita (2017), India’s role in global governance: a Modi-fication?, International Affairs, 93:1, p. 105

[xi] Ibid.

[xii] India could yet lead the world in water conservation’, Sandeep Chakravorty, Mint, June 27, 2019

[xiii] India is now producing the world’s cheapest solar power’, Johnny Wood, World Economic Forum, June 28, 2019

[xiv] India sees boosting green power by 2030, exceeding Modi’s climate target’, Anindya Upadhyay and Rajesh Kumar Singh, Bloomberg, July 2, 2019

[xv] 7 of the 10 most polluted cities in the world are in India’, Alex Thornton, World Economic Forum, March 5, 2019

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