Author : Hari Bansh Jha

Published on Sep 10, 2020 Updated 0 Hours ago

अब समय आ गया है कि बाढ़ संबंधी मसलों की नेपाल और भारत अनदेखी न करें.

भारत और नेपाल के बनते-बिगड़ते संबंधों की एक अहम् वजह बनी बाढ़ की समस्या

हर साल मॉनसून के सीज़न में नेपाल और सीमा के पार स्थिति उत्तरी भारत में बाढ़ क़हर ढाती है. पिछले तमाम वर्षों की तरह इस साल भी बाढ़ के कारण दोनों ही देशों को जन धन की भारी क्षति हुई है. परिवहन सेवाओं प्रभावित हुई हैं. क्योंकि, बाढ़ के कारण कई जगह सड़कें और पुल पानी में डूब गए हैं. बाढ़ के कारण दोनों ही देशों में फसलों को भी भारी नुक़सान हुआ है.

नेपाल में हर साल लगभग डेढ़ सौ लोग बाढ़ के चलते जान गंवाते हैं. इस साल 24 जुलाई 2020 तक बाढ़ की वजह से नेपाल में 132 लोगों की जान जा चुकी थी. जबकि 128 लोग ज़ख़्मी हो गए थे. और, भारी बारिश, भू-स्खलन और बाढ़ के चलते 998 परिवारों पर बुरा असर पड़ा था. अकेले नेपाल के दूसरे प्रांत में 87 हज़ार 629 हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन लगातार बारिश और उसके बाद अलग अलग नदियों में बाढ़ के चलते तबाह हो गई थी.

वहीं दूसरी ओर, नेपाल की सीमा से लगे भारत के बिहार राज्य के 38 में से 11 ज़िले बाढ़ की चपेट में थे. और, 28 जुलाई 2020 तक, इन ज़िलों के क़रीब 24 लाख लोग बाढ़ का क़हर झेल रहे थे. इन सभी ज़िलों में दरभंगा और समस्तीपुर बाढ़ से सबसे बुरी तरह प्रभावित थे.

नेपाल का कहना है कि भारत ने अपने यहां तमाम नदियों पर बांध बना लिए हैं. ऊंची सड़कें बना ली हैं. और, भारत में विकास के अन्य कार्यों के चलते उसके यहां से बहने वाली नदियों का क़ुदरती प्रवाह रुक गया है और इसी वजह से नेपाल में बाढ़ आ रही है.

वहीं, नेपाल से लगने वाले एक भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में 19 ज़िलों के 582 बाढ़ के क़हर के शिकार थे. हालांकि, इसी मॉनसून सीज़न में पूरे राज्य के औसत की बात करें, तो यूपी में बारिश पंद्रह प्रतिशत कम हुई थी. लेकिन, बाढ़ के चलते 10 अगस्त 2020 तक, 5.75 लाख लोग, 76 हज़ार 623 पालतू जानवर और 38 हज़ार 24 हेक्टेयर ज़मीन बुरा प्रभाव झेल रही थी. इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले के 61 गांव पानी में डूब गए थे. जिससे 171 मकान तबाह हो गए थे और क़रीब डेढ़ लाख लोगों की ज़िंदगी बाढ़ के चलते अस्त-व्यस्त हो गई थी.

पिछले कई वर्षों से नेपाल अपने यहां बाढ़ के क़हर के लिए भारत को दोषी ठहराता रहा है. नेपाल का कहना है कि भारत ने अपने यहां तमाम नदियों पर बांध बना लिए हैं. ऊंची सड़कें बना ली हैं. और, भारत में विकास के अन्य कार्यों के चलते उसके यहां से बहने वाली नदियों का क़ुदरती प्रवाह रुक गया है और इसी वजह से नेपाल में बाढ़ आ रही है. नेपाल के तराई इलाक़े हर साल बाढ़ में डूब रहे हैं. जिसके चलते जन धन और फ़सलों को हर साल नुक़सान हो रहा है.

इसी तरह, नेपाल की सीमा से लगे भारत के बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों के लोगों का कहना है कि नेपाल से आने वाले बाढ़ के पानी के चलते उनके जिगर ख़राब हो गए हैं. उत्तर प्रदेश की सरकार ने तो यहां तक इल्ज़ाम लगाया है कि उसके यहां बाढ़ आने की सबसे बड़ी वजह यही है कि नेपाल ने इस भौगोलिक क्षेत्र में लगभग 54 करोड़ की बाढ़ नियंत्रण की परियोजनाओं को लागू करने की इजाज़त नहीं दी. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के कुछ इलाक़े इसलिए बाढ़ के पानी में डूब गए क्योंकि नेपाल ने अपने यहां के कुछ बैराज से अचानक पानी छोड़ दिया.

आज से कुछ दशक पहले तक नदियों में आने वाली बाढ़ को नेपाल के तराई इलाक़ों और सीमा के इस पार यानी उत्तर प्रदेश और बिहार में अभिशाप नहीं बल्कि वरदान माना जाता था. जबकि, तब तो आज से कहीं ज़्यादा बरसात हुआ करती थी. ऐसा इसलिए था क्योंकि नेपाल से बह कर भारत आने वाली नदियां अपने साथ सिल्ट के बजाय उपजाऊ मिट्टी लाया करती थीं. जिसका फ़ायदा उत्तर प्रदेश और बिहार के तराई वाले इलाक़ों के किसानों को होता था. जिन इलाक़ों से नदियों का अतिरिक्त पानी गुज़रता था, उन खेतों में उत्पादन बढ़ता था. चूंकि नदियों के तल गहरे होते थे और चेक डैम, सड़कों और विकास संबंधी अन्य निर्माओं की तादाद कम हुआ करती थी. तो, नदियों में बाढ़ आती भी थी, तो पानी ठहरता नहीं था. मगर, नेपाल और भारत ने हाल के दशकों में तराई वाले इलाक़ों में विकास संबंधी कई प्रोजेक्ट पर काम किया है. जिससे नदियों में बाढ़ का पानी बहता नहीं, बल्कि ठहर जाता है.

आज से कुछ दशक पहले तक नदियों में आने वाली बाढ़ को नेपाल के तराई इलाक़ों और सीमा के इस पार यानी उत्तर प्रदेश और बिहार में अभिशाप नहीं बल्कि वरदान माना जाता था.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान नेपाल की ओर से आने वाला बाढ़ का पानी एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. नेपाल के तराई इलाक़े के कई हिस्से हर साल पानी में डूब जाते हैं. क्योंकि, बारिश का पानी बहने के बजाय ठहर जाता है. इसके कारण, सीमा पार के भारतीय तराई इलाक़े में बने चेक डैम, सड़कें, रेल ट्रैक और विकास के अन्य प्रोजेक्ट हैं. ये प्रोजेक्ट बनाते समय कभी इस बात की चिंता नहीं की जाती कि नदियों के ज़रिए आने वाले बाढ़ के पानी को किस तरह आगे बह जाने की व्यवस्था की जाए.

इसके साथ साथ हमें ये भी मानना होगा कि नेपाल के तराई क्षेत्र से भारत की ओर बहकर आने वाले पानी को लेकर भारत की चिंताएं भी वाजिब हैं. पहले तो नदियों में आने वाली भयंकर बाढ़ भी भारतीय क्षेत्र पर इतना क़हर नहीं ढाती थी. लेकिन, अब तो बाढ़ के पानी का छोटा मोटा प्रवाह ही लोगों की ज़िंदगी तबाह कर रहा है.

इसकी बड़ी वजह ये है कि नेपाल के तराई और भावर इलाक़े में वनों की कटाई का काम अभूतपूर्व स्तर पर हो रहा है. ऐसे में नेपाल से बह कर भारत आने वाली नदियों के पानी का प्रवाह रोकने के लिए जो क़ुदरती व्यवस्थाएं थीं, वो ख़तम हो गई हैं. इसके अलावा, हिमालय पर्वत श्रृंखला के सबसे निचले क्षेत्र यानी चुरे और शिवालिक रेज में अवैध बसावट के चलते पहाड़ी इलाक़ों में ज़बरदस्त अतिक्रमण हो रहा है. सबसे डराने वाली बात ये है कि इस क्षेत्र में बिना किसी योजना के सड़कों अस्त-व्यस्त तरीक़े से निर्माण किया जा रहा है. पर्वतों, पहाड़ियों और तराई क्षेत्र में धड़ाधड़ निर्माण कार्य चलाया जा रहा है. इन सभी गतिविधियों के कारण भू-स्खलन हो रहा है. नेपाल के पहाड़ी इलाक़ों में भू-क्षरण हो रहा है. और इसी कारण से जब नदियों में बाढ़ आती है, तो उसके साथ भारी मात्रा में उपजाऊ मिट्टी के बजाय सिल्ट बह कर आती है. जिससे नेपाल के तराई क्षेत्र ही नहीं, भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों की उपजाऊ ज़मीनों पर भी बुरा असर पड़ता है.

इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालय पर्वत के ग्लेशियर पिघलने की आशंका भी बढ़ रही है. जब भी ऐसा होगा तो इससे नदियों में अचानक भयंकर बाढ़ आएगी. और नेपाल के एक बड़े इलाक़े से मिट्टी बहकर भारत की ओर जाएगी. भारत को भी अचानक आई इस बाढ़ का बहुत बुरा असर झेलना पड़ेगा. इस साल जुलाई महीने में नेपाल के स्थानीय प्रशासन ने राजधानी काठमांडू के पास स्थित सिंधुपालचौक ज़िले के लोगों को आगाह किया था कि चीन के तिब्बत इलाक़े में स्थित केरुंग श्यो ग्लेशियर झील फट सकती है. इससे कुछ वर्षों पहले हिमालय के ग्लेशियर पिघलने के कारण नेपाल के दोलाखा ज़िले में स्थित शो रोल्पा ग्लेशियर झील के फटने की आशंका ने नेपाल में बहुत से लोगों को भयभीत कर दिया था.

बाढ़ की समस्या हर बीतते साल के साथ बढ़ती ही जा रही है. कई लोग बाढ़ की आड़ में नेपाल और भारत के संबंधों में नई दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि, दोनों ही देशों के बीच खुली सीमा है.

हालांकि, बाढ़ संबंधी ये मसले बार बार इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि नेपाल और भारत दोनों ही देशों की सरकारें इस चुनौती को गंभीरता से नहीं ले रही हैं. जबकि, बाढ़ की समस्या हर बीतते साल के साथ बढ़ती ही जा रही है. कई लोग बाढ़ की आड़ में नेपाल और भारत के संबंधों में नई दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि, दोनों ही देशों के बीच खुली सीमा है. और ऐतिहासिक रूप से भी भारत और नेपाल काफ़ी क़रीब रहे हैं.

अब समय आ गया है कि बाढ़ संबंधी मसलों की नेपाल और भारत अनदेखी न करें. क्योंकि, भौगोलिक कारणों के चलते न तो नेपाल और न ही भारत, इस समस्या का अकेले स्थायी समाधान निकाल सकते हैं. उन्हें एक ऐसी रणनीति बनानी होगी ताकि बाढ़ की चुनौती पर लंबी अवधि के लिए क़ाबू पाया जा सके. यही दोनों देशों की जनता के हित में भी होगा.

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