Author : Badri Chatterjee

Published on Dec 09, 2021 Updated 0 Hours ago

उत्तर भारत के वायु प्रदूषण संकट पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है, ऐसे में मुंबई के बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर पर क्या तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जब तक कि मुंबई में कोई स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति पैदा ना हो जाए.

मुंबई का वायु प्रदूषण: एक ज्वलंत समस्या

ये लेख कोलाबा एडिट सीरीज़ का हिस्सा है- Colaba Edit 2021.


कार्बन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण (air pollution)  हाल के वर्षों में चिंता का विषय रहा है, ख़ास कर महामारी के मद्देनज़र जिसमें बड़ी संख्या में लोग वायरस के शिकार हो गए क्योंकि उनकी श्वसन प्रणाली ऐसी बीमारी को संभाल नहीं सकती थी. इसके अतिरिक्त कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान कई अध्ययनों में पता चला कि ज़िला स्तर पर प्रदूषण के आंकड़े और कोरोना के मामलों में गहरा संबंध है. जिन इलाकों में फॉसिल फ्यूल का ज़्यादा इस्तेमाल होता है वहां कोरोना के मामले ज़्यादा सामने आए. हालांकि, हमलोग मानते हैं कि ख़राब रहन-सहन और संक्रमण सांस से संबंधित बीमारियों की मूल वजह है लेकिन सच्चाई यह भी है कि हमारे वातावरण में मौजूद जहरीली हवाएं भी सिगरेट से ज़्यादा नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती हैं.

हमलोग मानते हैं कि ख़राब रहन-सहन और संक्रमण सांस से संबंधित बीमारियों की मूल वजह है लेकिन सच्चाई यह भी है कि हमारे वातावरण में मौजूद जहरीली हवाएं भी सिगरेट से ज़्यादा नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती हैं.

ऐसे में वायु प्रदूषण को स्थानीय चिंता का विषय मानकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है ख़ास कर उत्तर भारत की घनी आबादी वाले शहरों में, जो इस तरह की समस्याओं की अहमियत की ओर इशारा करने वाली अधिकांश जानकारी के लिए ज़िम्मेदार हैं. बेहतर तो ये होगा कि इससे पहले कि ये लोगों के लिए स्वास्थ्य इमर्जेंसी बन जाए,इस समस्या का समाधान कर लेना चाहिए.

अपने औद्योगिक विस्तार और फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता के कारण मुंबई क्षेत्र पश्चिमी भारत के लिए एक बड़ा चिंता का विषय है. शहर का वित्तीय वर्चस्व, आसानी से उपलब्ध संसाधन और विशाल आबादी महाराष्ट्र सरकार के लिए मुंबई में कार्बन उत्सर्जन को  कम करने के लिए एक मज़बूत आधार का निर्माण करती है.

​वायु प्रदूषण दुनिया भर में प्रति मिनट 13 मौतों का कारण बनता है और मुंबई के स्वास्थ्य के लिए यह एक गंभीर ख़तरा बनता जा रहा है. स्विस वायु गुणवत्ता संगठन आई क्यू एयर  ने 2020-21 में लोगों के परिवेश में पाई जाने वाली वायु प्रदूषण की वजह से  2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नुकसान और 20,000 मृत्यु की बात को रेखांकित किया था.

प्रदूषक वैरिएबिलिटी में परिवर्तनशीलता, हॉटस्पॉट्स

2019 में एक चौंकाने वाली तुलना तब सामने आई जब केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली ने बताया कि समग्र PM10 पार्टिकल्स में बारीक PM 2.5 कणों के पार्टिकल्स दिल्ली के मुकाबले  मुंबई में बहुत ज़्यादा थे, जिसका मतलब यह हुआ कि मुंबई की हवा इतनी प्रदूषित नहीं भी हो सकती है लेकिन इसका ज़्यादा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ सकता है.

पिछले दो वर्षों के दौरान मुंबई जलवायु कार्य योजना के लिए इसके प्रभाव के मूल्यांकन के दौरान वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट इंडिया ने पाया कि एम (पूर्व) वार्ड में देवनार, गोवंडी, मानखुर्द और ट्रॉम्बे जैसे इलाकों में लगातार प्रदूषण का स्तर ज़्यादा दर्ज़ किया गया, जबकि इसके बाद माहुल, चेंबूर का स्थान रहा. इसके बाद एम (पश्चिम) वार्ड में और एफ (उत्तर), जिसमें एंटॉप हिल, सायन और घाटकोपर शामिल हैं उनका वायु प्रदूषण में स्थान रहा. जबकि पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) को प्राथमिक प्रदूषकों के रूप में पहचाना गया जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों से काफी ज़्यादा था जिसमें लगातार उतार-चढ़ाव देखा गया.

चार प्रमुख क्षेत्रीय चुनौतियां और संभावित समाधान

मुंबई में यातायात उत्सर्जन, निर्माण कार्य, पक्की और कच्ची सड़क की धूल, लैंडफिल, खुले में कचरा जलाना और औद्योगिक उत्सर्जन प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं.

यातायात और उद्योग उत्सर्जन

मुंबई के फॉसिल फ्यूल में ईंधन उत्सर्जन का हिस्सा 80 फ़ीसदी सड़क यात्रा का है. प्रदूषण नियंत्रण केंद्रों (पीयूसी) को हर छह से सात महीने में ऑटोमोबाइल का निरीक्षण करना चाहिए. आदर्श स्थिति के तौर पर पुराने वाहनों पर रोक लगाने की नीति स्वच्छ ऊर्जा, गैर मोटर चालित परिवहन और इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को सुनिश्चित करने में राज्य सरकार की रिन्यूवेबल ऊर्जा नीतियों को बनाने में मदद कर सकती है.  मुंबई के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 71 प्रतिशत योगदान देने वाले बिजली क्षेत्र के उद्योगों को भी पुराने बिजली संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से हटाकर और केंद्र द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार उनके उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ईंधन में बदलाव करने की ज़रूरत है.

आबादी बढ़ने की वजह से बड़े पैमाने पर रिएलिटी सेक्टर और सड़क निर्माण गतिविधियों में तेजी आई जिसके चलते मुंबई की हवा में 71 प्रतिशत से अधिक पार्टिकुलेट मैटर की मौजूदगी बढ़ी, जो 2010 के 28 प्रतिशत से कहीं ज़्यादा है

धूल

आबादी बढ़ने की वजह से बड़े पैमाने पर रिएलिटी सेक्टर और सड़क निर्माण गतिविधियों में तेजी आई जिसके चलते मुंबई की हवा में 71 प्रतिशत से अधिक पार्टिकुलेट मैटर की मौजूदगी बढ़ी, जो 2010 के 28 प्रतिशत से कहीं ज़्यादा है. इस लगातार बढ़ती समस्या को कम करने के लिए पहला कदम कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 को सख्ती से लागू करना है, जो एक सुरक्षित और प्रभावी तरीके से अपशिष्ट के निपटारे का तरीका बताता है. ख़राब वायु गुणवत्ता के बारे में जानकारी देने के लिए भी एक निर्माण स्थल-विशिष्ट वायु गुणवत्ता निगरानी योजना की ज़रूरत है.

वेस्ट मैनेजमेंट (अपशिष्ट या कचरे का प्रबंधन)

डंपिंग ग्राउंड मुंबई के लिए एक बड़ी समस्या है, ख़ासकर इस वजह से क्योंकि वहां कचरे को बड़े पैमाने पर जलाया जा रहा है जो हवा को प्रदूषित करता है. जबकि कचरा और फसल अवशेषों को अंधाधुंध जलाए जाने के ख़िलाफ़ वार्ड, पड़ोस और सामुदायिक स्तर पर साइट-विशिष्ट अभियान चलाए गए हैं. इस वजह से खुले में कचरा जलाने को रोकने के लिए वार्ड-स्तरीय कार्य योजना विकसित करना महत्वपूर्ण है.

सरकार को संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए और अधिक लोगों की भर्ती करनी चाहिए क्योंकि शहर के दूरदराज़ के इलाकों में अभी भी कचरा प्रबंधन को लेकर जागरूकता की कमी है. अधिकारियों को एक ऐसी योजना बनानी चाहिए जो हवा में उच्च स्तर के कणों वाले आवश्यक वार्डों के साथ-साथ कचरा पृथक्करण, परिवहन और रीसाइक्लिंग की रूपरेखा तैयार की जा सके जिसका फायदा पर्यावरण के लिए सुनिश्चित हो सके.

कार्य योजना

मुंबई जैसी घनी आबादी वाले शहर के लिए वायु प्रदूषण एक बड़ा ख़तरा है क्योंकि प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी का घनत्व अधिक है और एक जगह ज़हरीली हवा बड़ी संख्या में लोगों के लिए समस्या का कारण बन सकती है. सब शहर स्तर के अधिकारियों के लिए पॉल्यूटेंट स्ट्रेन्स, वायुमंडलीय संरचना और वायु प्रदूषण के स्रोतों में परिवर्तन के प्रति हमेशा सतर्क रहना महत्वपूर्ण है. महाराष्ट्र पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड इस दिशा में नीतियों के निर्धारण में अहम भूमिका निभा रहा है. यह कई तरह से प्रभावी है लेकिन यह लोगों की कमी से जूझ रहा है. इसलिए आवश्यकता है कि इसे प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए ज़रूरी चीजें मुहैया कराई जाएं.

सरकार को संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए और अधिक लोगों की भर्ती करनी चाहिए क्योंकि शहर के दूरदराज़ के इलाकों में अभी भी कचरा प्रबंधन को लेकर जागरूकता की कमी है. 

दूसरी, वायु गुणवत्ता निगरानी को मजबूत और नियमित बनाने की ज़रूरत है जिसमें स्वास्थ्य संबंधी जानकारी के साथ-साथ ख़तरनाक वायु पॉकेट्स और प्रदूषण के स्रोतों के बारे में रीयल-टाइम अपडेट देना शामिल है. डेटा का प्रसार फौरन, क्रमबद्ध, जटिल और प्रभावी तरीके से होना चाहिए ताकि इनके निपटारे और नीति निर्माण के लिए स्थितियों का विश्लेषण आसान हो सके. ज़्यादा लोगों की भागीदारी यह सुनिश्चित कर सकेगी कि लोकप्रिय चौराहों से लेकर मुश्किल से पहुंच पाने वाली मलिन बस्तियों तक और  शहर भर में ज़्यादा जागरूकता अभियान चलाई जा सके.

ज़्यादा लोगों की भागीदारी यह सुनिश्चित कर सकेगी कि लोकप्रिय चौराहों से लेकर मुश्किल से पहुंच पाने वाली मलिन बस्तियों तक और  शहर भर में ज़्यादा जागरूकता अभियान चलाई जा सके.

तीसरी बात यह है कि, औद्योगिक क्षेत्रों के लिए उत्सर्जन मानदंडों को कड़ा किया जाना चाहिए. फ़ैक्टरी के धुएँ को हवा में छोड़ने से पहले ट्रीट किया जाना चाहिए. कारखानों और वाहनों दोनों को कम उत्सर्जन वाले ईंधन का इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखना चाहिए. बीएस-IV स्तर से नीचे के इंजन वाले वाहनों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाना चाहिए. हालांकि यह एक बड़ा काम है और जब तक कि नियमित कार्रवाई ना की जाए यह लक्ष्य प्राप्त कर पाना मुमकिन नहीं है.

अंत में, एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम का समावेश किया जाना चाहिए और वह यह है कि निर्णय लेने के चरण में सभी को शामिल किया जाना चाहिए. सरकार राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत मुंबई स्वच्छ वायु कार्य योजना के अंतर्गत एक शहर-स्तरीय समिति बना सकती है, जिसमें नागरिक और सिविल सोसाइटी के विशेषज्ञ शामिल हों. वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों को संबोधित करते समय यह समिति हर तरह के इनपुट को ध्यान में रख सकती है.

सरकार राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत मुंबई स्वच्छ वायु कार्य योजना के अंतर्गत एक शहर-स्तरीय समिति बना सकती है, जिसमें नागरिक और सिविल सोसाइटी के विशेषज्ञ शामिल हों. 

निष्कर्ष 

वातावरण में प्रदूषकों का स्तर कम होने से अधिकांश शहर के लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होगा लेकिन इसका प्रभाव निम्न-आय वाले लोगों, अनौपचारिक समुदायों (निवासियों और श्रमिकों), प्रवासी मजदूरों और बाहरी श्रमिकों में सबसे अधिक होगा क्योंकि ऐसे लोग ही सबसे ज़्यादा अपने आस-पास के हानिकारक वायु प्रदूषण के प्रभाव का शिकार होते हैं.

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