कोविड-19 की वजह से चरमराया मुंबई का स्वास्थ्य संकट आने वाले मॉनसून के महीनों के दौरान और भी बिगड़ने की आशंका है। जून के मध्य में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के मुंबई के तट से टकराने की उम्मीद है। मॉनसून अपने साथ पानी जमा होने की परेशानी लाएगा। शहर और उपनगरीय इलाक़े के बड़े हिस्से पानी में डूबने से लोगों की मुश्किल बढ़ जाएगी। आने वाले महीनों में मुंबई का सामना फैलने और पानी से होने वाली बीमारी से भी होगा जो मुंबई की पुरानी स्वास्थ्य समस्या है।
महामारी की वजह से जो लॉकडाउन लगाया गया है, उसकी वजह से मॉनसून से पहले की महत्वपूर्ण तैयारियों को इस बार बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) अंजाम नहीं दे पाया है। जो तैयारियां नहीं की गई हैं उनमें मॉनसून से जुड़ी बीमारियों के लिए अस्पतालों को तैयार करना, मलेरिया निरोधी और डेंगू निरोधी जागरुकता अभियान, सभी जोखिम वाले इलाक़ों ख़ासतौर पर झुग्गियों में मच्छरों और कीड़ों को मारने के लिए छिड़काव, नालों की सालाना सफ़ाई, जर्जर इमारतों की मरम्मत और सड़कों और पुलों की मरम्मत और देखभाल शामिल हैं।
कर्मचारियों की कमी BMC के स्वास्थ्य विभाग के लिए सबसे बड़ी चिंता है। संक्रमण के डर की वजह से कर्मचारियों की गैर-हाज़िरी औसत से ज़्यादा है लेकिन जो कर्मचारी आते भी हैं, उन्हें महामारी से निपटने के काम में लगा दिया गया है।
मॉनसून से पहले के एहतियाती स्वास्थ्य उपाय का बुरा हाल
कर्मचारियों की कमी BMC के स्वास्थ्य विभाग के लिए सबसे बड़ी चिंता है। संक्रमण के डर की वजह से कर्मचारियों की गैर-हाज़िरी औसत से ज़्यादा है लेकिन जो कर्मचारी आते भी हैं, उन्हें महामारी से निपटने के काम में लगा दिया गया है। कर्मचारियों की इतनी कमी है कि टीकाकरण के अभियान के कोई नहीं बचा है। मलेरिया और डेंगू के ख़िलाफ़ जागरुकता अभियान ‘फाइट द बाइट’ जो हर साल बारिश शुरू होने से पहले पूरे शहर ख़ास तौर पर झुग्गियों में चलाया जाता है, उसके लिए भी कोई कर्मचारी नहीं है। उदाहरण के तौर पर BMC के कीटनाशक विभाग के लगभग सभी 600 कर्मचारियों को इस वक़्त पूरी तरह कोविड-19 की रोकथाम के लिए छिड़काव के काम में लगा दिया गया है। इनमें से कुछ कर्मचारियों को 2 महीने की देरी के बाद 14 मई से आगे कोविड-19 के काम से मुक्त कर दिया गया है। इन्हें मॉनसून से पहले बीमारी की रोकथाम के उपायों जैसे घर-घर निरीक्षण, फॉगिंग, कीटनाशक के छिड़काव, मच्छरों के पैदा होने की जगह की पहचान और चूहों को मारने इत्यादि काम में लगाया गया है।
कोविड-19 से लड़ने पर ध्यान देने की वजह से ये गैर-इरादतन लापरवाही पिछले दशक में मौसमी संक्रामक बीमारियों के फैलाव पर नियंत्रण में मिली कामयाबी पर पानी फेर सकती है। मुंबई ने मलेरिया के फैलने से रोकने में बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। 2010 में 80 हज़ार केस के मुक़ाबले 2019 में सिर्फ़ 4 हज़ार के क़रीब मलेरिया के मामले आए। यानी 95 प्रतिशत की कमी। इसके पीछे 2011 में ORF के सहयोग से तैयार ग्रेटर मुंबई नगर निगम (MCGM) का ‘फाइट द बाइट’ जागरुकता अभियान और कार्य योजना शामिल है। लेकिन इस उपलब्धि को इस साल झटका लग सकता है। हर साल अप्रैल से MCGM का स्वास्थ्य विभाग मॉनसून से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के काम में लग जाता है। इन कामों में फीवर क्लीनिक की स्थापना और हर निगम अस्पताल में 10 प्रतिशत बेड या एक पूरा वार्ड पूरी तरह से मॉनसून से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए रिज़र्व रखना शामिल है। 2011 से इस योजना के तहत सम्मिलित प्रयास का असर है कि 2017 में पहली बार मलेरिया से होने वाली मौत का आंकड़ा इकाई अंक में आ गया और इस बीमारी से सिर्फ़ छह लोगों की मौत हुई। 2018 में मौत का आंकड़ा और भी कम होकर तीन रह गया। 2019 में तो BMC ने मलेरिया से शून्य मौत का असाधारण कीर्तिमान हासिल कर लिया।
लेकिन फिलहाल नगर निगम के ध्यान में मॉनसून से जुड़ी तैयारी आख़िरी चीज़ होगी। इस वक़्त तक अस्पतालों के कुछ ही वार्ड और क्रिटिकल केयर यूनिट गैर-कोरोना वायरस मरीज़ों के इलाज के लिए तैयार हैं। अस्पतालों के बाक़ी वार्ड या तो बंद हैं या कोविड-19 मरीज़ों के लिए पूरी तरह रिज़र्व हैं। शहर के सबसे बड़े निगम अस्पताल KEM ने फिलहाल बंद चल रहे अपने कुछ वार्ड में धीरे-धीरे जून के दूसरे हफ़्ते से डेंगू और मलेरिया के मरीज़ो को भर्ती करने की योजना तैयार की है। डॉक्टर अभी भी इस बात से बेख़बर हैं कि कोविड-19 किस तरह दूसरी जानलेवा और मॉनसून से जुड़ी बीमारियों पर असर डालेगा।
नालों की सफाई का काम ठप
हालांकि, सरकार ने नालों की सफ़ाई के काम को लॉकडाउन से छूट दी थी लेकिन इसके बावजूद इस काम पर काफ़ी ख़राब असर पड़ा। ये बेहद ज़रूरी काम है जो निचले इलाक़ों में जल जमाव को रोकने में मदद करता है। MCGM ने 140 करोड़ रुपये की लागत से ठेकेदारों को नियुक्त किया था जिनका काम 30 मई की डेडलाइन से पहले नालों के 715 किमी लंबे जाल से 5 लाख टन से ज़्यादा गाद निकालना था। लेकिन मई के मध्य तक ठेकेदार सिर्फ़ 15 किमी नाले को साफ़ कर पाने में कामयाब हो पाए थे। जुलाई 2005 की बाढ़ के लिए ज़िम्मेदार 21 किमी लंबी मीठी नदी भी 30 मई की डेडलाइन तक सफाई से काफ़ी दूर थी। अभी तक सिर्फ 4 किमी नदी के हिस्से को साफ़ किया जा सका है।
लॉकडाउन की वजह से ट्रेनों की सेवा बंद होने का फ़ायदा उठाकर पश्चिमी रेलवे और मध्य रेलवे- दोनों ने दावा किया है कि उन्होंने न सिर्फ़ लंबित रखरखाव का काम पूरा कर लिया है बल्कि MCGM की मदद से पटरी के नीचे, पुल और रेल लाइन के साथ गुज़रने वाले नालों से 2,50,000 क्यूबिक मीटर कूड़ा भी उठाया है।
एकमात्र अच्छी ख़बर मुंबई के उपनगरीय ट्रेनों को संचालित करने वाले भारतीय रेलवे के 2 ज़ोन- पश्चिमी रेलवे (WR) और मध्य रेलवे (CR) से है। लॉकडाउन की वजह से ट्रेनों की सेवा बंद होने का फ़ायदा उठाकर पश्चिमी रेलवे और मध्य रेलवे- दोनों ने दावा किया है कि उन्होंने न सिर्फ़ लंबित रखरखाव का काम पूरा कर लिया है बल्कि MCGM की मदद से पटरी के नीचे, पुल और रेल लाइन के साथ गुज़रने वाले नालों से 2,50,000 क्यूबिक मीटर कूड़ा भी उठाया है। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि रेलवे ने कोई पहली बार इस तरह का दावा नहीं किया है। MCGM और रेलवे- दोनों हर साल इस तरह की गारंटी देते हैं। इन दावों का पर्दाफ़ाश उस वक़्त होता है जब शहर के कुछ हिस्से पानी में डूब जाते हैं और लोकल ट्रेन सेवा रुक जाती है।
इस साल पानी में डूबने वाली परंपरागत जगहों को बाढ़ से बचाने की BMC की रणनीति भी नहीं बन पाई। फरवरी और मार्च में हुए एक सर्वे के दौरान शहर में 69 ऐसी जगहों की पहचान की गई जहां पानी जमा होता है। शहर भर में चल रहे बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन साइट जैसे मेट्रो प्रोजेक्ट में भी उन जगहों की पहचान की गई जो पानी में डूब सकते हैं। लॉकडाउन की वजह से 45 साइट पर निर्माण का काम जो ख़त्म होने के कगार पर था, अचानक रुक गया। बाक़ी बचे 24 साइट जिनके पानी में डूबने की आशंका है, वहां कोई काम नहीं हुआ है। जलजमाव की आशंका वाले इलाक़ों में पानी निकालने के लिए पंप भी नहीं लगाए गए हैं।
सड़क और पुल की मरम्मत से समझौता
360 सड़कों और 235 पुलों और फ्लाइओवर की छोटी-मोटी और बड़ी मरम्मत का काम मार्च के आरंभ में शुरू हुआ। इसमें उन 11 जर्जर पुलों का पुनर्निर्माण भी शामिल है जिन्हें MCGM के एक सर्वे में लोगों के इस्तेमाल के लिए ख़तरनाक माना गया था। ये सर्वे जुलाई 2018 में अंधेरी के गोखले पुल के आंशिक रूप से गिरने और मार्च 2019 में डीएन रोड पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में एक फुट ओवरब्रिज के गिरने के बाद किया गया था। लेकिन कुछ दिनों की गतिविधि के बाद ही काम रोकना पड़ा। इसके अलावा 224 छोटे पुलों की मरम्मत का जो काम अक्टूबर 2019 में शुरू किया गया था, वो भी रुका हुआ है।
अधिकारी शहर में भारी बारिश होने से पहले काम शुरू करने को लेकर अनिश्चित हैं। ठेकेदारों ने जिन प्रवासी मज़दूरों को इस काम के लिए रखा था उनमें से ज़्यादातर अपने घर लौट चुके हैं और हालात सामान्य होने के बाद भी लौटने में उन्हें महीनों लगेंगे। सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित होने की वजह से ठेकेदार कच्चे माल ख़ास तौर पर सीमेंट और स्टील की उपलब्धता को लेकर भी अनिश्चित हैं।
मुंबई की हिफ़ाज़त– ये अभी भी मुमकिन है
बारिश की शुरुआत में अब कुछ ही हफ़्ते बचे हैं। ऐसे में राज्य सरकार शहर को मॉनसून के प्रकोप से बचाने के लिए, जो इस बार और बढ़ने की आशंका है, अभी भी कुछ ज़रूरी फ़ैसले ले सकती है।
पहला और सबसे महत्वपूर्ण संकल्प जो सत्ताधारी गठबंधन को ज़रूर लेना चाहिए वो है वायरस के ख़तरे से मुक़ाबले में असहमति की वजह से सरकार में जो दरार आई है, उसको जल्दी से भरे। सरकार को एकजुट होकर काम करना चाहिए। उसे दिल से BMC का साथ देना चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि मुंबई के शासन से जुड़ी सभी इकाइयां नगर निगम की कोशिशों के साथ हो। दूसरी तरफ़ विपक्ष सरकार के अंदरुनी मतभेदों का अनावश्यक लाभ बिल्कुल नहीं उठाएं। अगर वो संकट की इस घड़ी में सरकार की मदद नहीं कर सकता है तो दो मोर्चों- महामारी और मॉनसून की आने वाली अफरा-तफरी- पर लड़ रही सरकार के काम में रुकावट भी खड़ी न करे।
MMRDA को ये आदेश देना चाहिए कि वो तुरंत मेट्रो लाइन का काम बंद करे जिसे एक महीने के लॉकडाउन के बाद शुरू किया गया था। MMRDA को निर्देश देना चाहिए कि वो 11 हज़ार कर्मचारियों की अपनी टीम और भारी मशीनों को BMC के मॉनसून से जुड़े इंतज़ाम में मदद करने में लगाए। नाले की सफ़ाई में लगाए गए ठेकेदारों के काम का बोझ मेट्रो के काम में लगे मज़दूरों के ज़रिए कम किया जा सकता है और इसे 10 जून तक पूरा किया जा सकता है।
इसी तरह BMC को निश्चित रूप से मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले स्थानीय एसोसिएशन, जिनमें एसोसिएशन ऑफ मेडिकल कंसल्टेंट्स मुंबई, जनरल प्रैक्टिसनर्स एसोसिएशन ऑफ ग्रेटर बॉम्बे और एसोसिएशन ऑफ फिज़िशियन्स ऑफ इंडिया शामिल हैं, से आस-पड़ोस में क्लीनिक स्थापित करने के लिए साझेदारी करनी चाहिए। इनमें मॉनसून से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित लोगों का इलाज किया जाना चाहिए। ऐसे भागीदारी वाले दृष्टिकोण से निगम के अस्पतालों पर ज़्यादा दबाव नहीं पड़ेगा और वो असरदार ढंग से कोविड-19 से मुक़ाबला कर पाएंगे। BMC को बोझ घटाने के लिए इस काम में रिटायर्ड डॉक्टरों को भी जोड़ना चाहिए।
आने वाले महीने कारोबार की दुनिया के नेतृत्व के लिए भी एक मौक़ा है। वो अपने CSR फंड का एक छोटा सा हिस्सा कोविड-19 से लड़ाई की जगह मौसमी सेहत की चुनौती से पार पाने में लगा सकते हैं।
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