आज जब मालदीव, सितंबर में होने वाले जटिल और कड़ी टक्कर वाले राष्ट्रपति चुनाव की ओर बढ़ चला है, तो इस वक़्त दांव पर सिर्फ़ राष्ट्रपति का पद नहीं, बल्कि बहुत सी अन्य चीज़ें भी है. पिछले एक दशक के दौरान, भारत और चीन इन द्वीपों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए एक दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे है. मालदीव की ज़रूरतों के लिए अहम मानी जाने वाली मूलभूत ढांचे की बड़ी परियोजनाएं और विकास के अन्य क्षेत्रों में मदद, दोनों देशों की होड़ का नया मोर्चा बन गई है, जहां चीन और भारत एक दूसरे को मात देने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा ही तय करेगा कि पलड़ा किसकी तरफ़ झुकेगा और इसलिए ये चुनाव हिंद महासागर की भू राजनीति की व्यापक राजनीति के लिहाज़ से बेहद अहम बन गए है.
राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा ही तय करेगा कि पलड़ा किसकी तरफ़ झुकेगा और इसलिए ये चुनाव हिंद महासागर की भू राजनीति की व्यापक राजनीति के लिहाज़ से बेहद अहम बन गए है.
इन परिस्थितियों में भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर के हालिया मालदीव दौरा की अहमियत बहुत बढ़ जाती है. जयशंकर के इस दौरे के दौरान भारत ने मालदीव को दो समुद्री एंबुलेंस सौंपी और विकास के तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए. जयशंकर ने ये भी कहा कि, ‘भारत, मालदीव और इस पूरे क्षेत्र की ज़रूरतें पूरी करने के लिए हमेशा तैयार है.’ ऐसे बयान इस बात का इशारा करते हैं कि भारत के सुरक्षा समीकरणों और उसकी हिंद प्रशांत की रणनीति में मालदीव का कितना महत्वपूर्ण स्थान है.
जब से मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP ) के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह सत्ता में आए हैं, तब से सुरक्षा के आयामों ने भारत को मालदीव पर और अधिक ध्यान देने के लिए प्रेरित किया है. उससे पहले जब प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव (PPM) की सरकार थी, उस वक़्त राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की अगुवाई में मालदीव की विदेश नीति में चीन के प्रति झुकाव देखा गया था. अब्दुल्ला यामीन की सरकार न केवल भारत की कड़ी आलोचक थी बल्कि उसने चीन को कई रियायतें भी दे दी थी. यामीन का कार्यकाल ख़त्म होने तक मालदीव, बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बन चुका था. चीन और मालदीव के बीच मुक्त व्यापार के समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर हो चुके थे और चीन ने मालदीव में मूलभूत ढांचे की कई परियोजनाएं पूरी कर डाली थी. इनमें सबसे अहम था मालदीव के मुख्य हवाई अड्डे का नवीनीकरण और माले को हुलहुमले द्वीप से जोड़ने वाले एक पुल का निर्माण शामिल था. कुल मिलाकर इन निवेशों से मालदीव पर चीन का 1.4 अरब डॉलर का क़र्ज़ लद गया था. सिर्फ़ 5.4 अरब डॉलर GDP वाले मालदीव पर ये ऋण का बहुत बड़ा भार था. यामीन के इन क़दमों की विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की थी और वो अपने देश की तुलना पड़ोसी देश श्रीलंका के बुरे हालात से करने लगे थे.
[caption id="attachment_119010" align="aligncenter" width="660"] Note: Markings are approximate. Image Source: Google Earth[/caption]
भारत-मालदीव संबंध
भारत और मालदीव के रिश्तों के लिहाज़ से 2018 का साल बेहद अहम साबित हुआ था. राष्ट्रपति चुनाव में अब्दुल्ला यामीन के हारने और मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार बनने से सियासी हालात भी बदल गए. इब्राहिम सोलिह की सरकार ने ‘भारत सर्वप्रथम’ की नीति शुरू की और चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते से मालदीव को अलग कर लिया. मालदीव को भारत से मदद के तौर पर 1.4 अरब डॉलर की रक़म भी हासिल हुई. इस राहत पैकेज का सबसे अहम समझौता, ‘ग्रेटर माले कनेक्टिविटी’ परियोजना थी. जो मालदीव में मूलभूत ढांचे के विकास की सबसे बड़ी योजना थी. इस योजना के तहत मालदीव की राजधानी माले को समुद्र में पुलों और राजमार्गों के ज़रिए विलिमाले, थिलाफुशी और गुलहिफाल्हू द्वीपों से जोड़ा जाना है. इसके अतिरिक्त भारत, उत्तरी मालदीव में हानीमाधू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण में भी सहयोग दे रहा है, जो हर साल 13 लाख पर्यटकों को सेवाएं देने में सक्षम होगा. दक्षिणी शहर अड्डू में भारत की मदद वाली एक और परियोजना, एक पुलिस अकादमी का भी हाल ही में उद्घाटन किया गया था, और दोनों देशों ने अड्डू में भारत द्वारा एक वाणिज्य दूतावास खोलने का सैद्धांतिक समझौता भी किया है. इसके अतिरिक्त, हाई इम्पैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट योजना के तहत नौ सामुदायिक विकास परियोजनाओं को भी हाल ही में शुरू किया गया है. ये परियोजनाएं भारत सरकार से 56 करोड़ डॉलर की मदद के ज़रिए पूरी की जाएंगी.
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भारत से मालदीव को मिल रही मदद की कई ख़ूबियां उल्लेखनीय है. पहला, चीन के उलट भारत जो मदद दे रहा है वो या तो दान के तौर पर है या फिर बेहद कम ब्याज पर दिया जा रहा उधार है. पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद ने सार्वजनिक रूप से भारत की ‘बेहद कम लागत वाली विकास संबंधी सहायता’ और ‘देश को क़र्ज़ के गर्त में डालने वाले आंखों में धूल झोंकने सरीखे बेहद महंगे कारोबारी ऋणों’ के बीच तुलना की थी. दूसरा, भारत की मदद से बन रही मूलभूत ढांचे की परियोजनाएं, मालदीव के कई सियासी हलकों में ‘एक दोस्त की ईमानदार मदद’ के तौर पर देखी जाती हैं क्योंकि भारत पूरी पारदर्शिता के साथ मालदीव के मंत्रालयों और एजेंसियों को इन परियोजनाओं के फ़ैसले करने की इजाज़त देता है. जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकरने और मालदीव में भारत के उच्चायुक्त संजय सुधीर ने कई मौक़ों पर ज़ोर देकर कहा था कि भारतीय परियोजनाएं, ‘मालदीव के नागरिकों के लिए, उन्हीं के द्वारा तैयार की जा रही हैं.’ आख़िर में मालदीव के विकास में मदद के लिए भारत द्वारा दी जा रही मदद का मूल्यांकन, माले क्षेत्र के बाहर फैला हुआ है. उत्तरी और दक्षिणी मालदीव में भारत की सहायता से चल रही बड़ी परियोजनाएं ऐसे बयानों की पुष्टि करती है और ये दिखाती है कि भारत अपने पड़ोसी देश के विकास के लिए किस हद तक प्रतिबद्ध है.
मालदीव को भारत से मदद के तौर पर 1.4 अरब डॉलर की रक़म भी हासिल हुई. इस राहत पैकेज का सबसे अहम समझौता, ‘ग्रेटर माले कनेक्टिविटी’ परियोजना थी. जो मालदीव में मूलभूत ढांचे के विकास की सबसे बड़ी योजना थी.
हालांकि, हाल के महीनों में भारत के सहयोग से चलाई जा रही कुछ परियोजनाओं का विरोध भी हो रहा है. आरोप लग रहे हैं कि इन परियोजनाओं से मालदीव के पर्यावरण को नुक़सान पहुंच रहा है. अभी हाल ही में भारत की एफकॉन (AFCONS) इंफ्रास्ट्रक्चर पर विलीमाले मूंगे की चट्टान को नुक़सान पहुंचाने पर 6.9 करोड़ मालदीव रुपये का जुर्माना लगाया गया है. इन घटनाओं के साथ साथ चीन ने मालदीव के साथ सौर ऊर्जा की कई परियोजनाओंपर दस्तख़त किए हैं. जलवायु परिवर्तन के मामले में मालदीव की कमज़ोरियों और उसकी संवेदनशील पारिस्थितिकी के कारण उसके लिए पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटना सबसे बड़ी प्राथमिकता है. ये घटनाएं ये भी संकेत देती है कि हो सकता है कि भारत ने मालदीव में अपना खोया हुआ प्रभाव दोबारा हासिल कर लिया हो, लेकिन चीन अभी भी फ़िराक़ में है और वो भारत की किसी भी ग़लती का फ़ायदा उठाने से नहीं चूकेगा.
हो सकता है कि मालदीव की मौजूदा सियासी हवा भारत के लिए फ़ायदेमंद हो. लेकिन, अगर राष्ट्रपति चुनाव में MDP की जीत नहीं होती, तो हालात बड़ी तेज़ी से बदल सकते है. 2018 से जो हाल चीन का है, अचानक वही स्थिति भारत की भी बन सकती है, अगर PPM और उसके सहयोगी दल राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं. अब्दुल्ला यामीन और दूसरे विपक्षी दल पूरी शिद्दत से ‘भारत को बाहर निकालो अभियान’ चला रहे हैं, जिससे मालदीव में भारत विरोधी जज़्बात भड़काकर उनका फ़ायदा उठाया जा सके. इस अभियान का मुख्य बिंदु मालदीव में भारत के निवेश, रक्षा क्षेत्र में साझेदारी और भारत द्वारा संपूर्ण सुरक्षा कवच देने का वादा है. विरोधी दल ये दावा करते हैं कि भारत, धीरे धीरे मालदीव की संप्रभुता को ख़त्म कर रहा है. वैसे तो ये आंदोलन कुछ कुछ सियासी मौक़ापरस्ती का नतीजा है. लेकिन, इससे ये भी ज़ाहिर होता है कि चीन ने किस तरह PPM के नेतृत्व पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है. भारत विरोधी अभियान पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी, आशंका है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी दल ‘भारत बाहर जाओ’ के नारे को और हवा देंगे. मालदीव में भारत की परियोजनाओं और सुरक्षा के प्रावधानों के राजनीतिकरण का लंबा इतिहास रहा है. पहले भी इन कारणों से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हुए हैं. ऐसे राजनीतिक अभियानों से भारत की चिंता बढ़ सकती है.
राष्ट्रपति चुनाव
मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के एक मामले में अब्दुल्ला यामीन को हाल ही में सज़ा सुनाई गई है. ऐसे में वो राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेने के अयोग्य करार दिए जा सकते हैं, जिससे भारत की कुछ चिंताएं तो दूर होंगी. हालांकि, पीपुल्स पार्टी ऑफ़ मालदीव (PPM) द्वारा कोई वैकल्पिक उम्मीदवार उतारने से इनकार करने और ऊंची अदालतों में यामीन पर लगे आरोपों को चुनौती देने की ज़िद के कारण, राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का अंदाज़ा लगा पाना और मुश्किल हो गया है. अगर अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति चुनाव में शामिल होने के लिए ठीक समय पर बरी हो गए, तो इससे विपक्षी दलों के अभियान को बहुत ज़बरदस्त ताक़त मिल जाएगी.
वहीं दूसरी तरफ़, मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) इस वक़्त बिखरी हुई है. राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह और कभी उनके गुरू रहे और अब पार्टी के मुखिया मुहम्मद नशीद के बीच, राष्ट्रपति चुनाव का उम्मीदवार बनने के चुनाव में कड़ा मुक़ाबला हुआ था. इसमें इब्राहिम सोलिह ने मुहम्मद नशीद को मात दे दी थी. दोनों के बीच ये बेलगाम मुक़ाबला दिखाता है कि MDP में पड़ी दरार कितनी गहरी है. चुनाव के नतीजे आने के बाद, नशीद के गुट मतदाताओं के फ़र्ज़ीवाड़े और मतदान में धांधली के इल्ज़ाम लगाते हुए नतीजों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. ऐसे हालात में मुहम्मद नशीद के पार्टी से अलग होने और स्वतंत्र रूप से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की आशंका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता. MDP के समर्थकों के बंटवारे का फ़ायदा होने की आशंकाएं वाजिब रूप से जताई जा रही हैं. वैसे तो ये दोनों ही उम्मीदवार, भारत के प्रति सकारात्मक रवैया रखते हैं. लेकिन, उनकी आपसी लड़ाई से भारत के हितों को नुक़सान पहुंचने का डर है.
मालदीव में अब तक के इतिहास में किसी भी उम्मीदवार ने पहली बार में इतने वोट हासिल नहीं किए कि दोबारा चुनाव न कराने पड़ें. ऐसे में चुनाव जीतने के लिए असरदार गठबंधन बनाना बहुत अहम होता है.
अगर MDP के भीतर नशीद और सोलिह गुटों के बीच की ये लड़ाई लंबी खिंची तो इसका असर उसके गठबंधन के दूसरे साझादीरों के साथ रिश्तों पर भी पड़ सकता है. सत्ताधारी गठबंधन के अन्य प्रमुख सियासी दलों, जम्हूरी पार्टी (JP) और अदालत पार्टी (AP) ने अब तक चुनाव को लेकर अपनी अंतिम योजनाओं का ऐलान नहीं किया है. हालांकि, वो MDP के साथ गठबंधन से अलग होकर, राष्ट्रपति चुनाव में कूदने के विचार को सिरे से ख़ारिज नहीं कर रही हैं. जम्हूरी पार्टी ने पहले ही राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. उसकी परिषद के सदस्यों ने पार्टी के नेता क़ासिम इब्राहिम को इसकी अगुवाई करने की शुभकामनाएं दी हैं. वैसे तो अदालत पार्टी ने अब तक इस मामले में कुछ नहीं कहा है, लेकिन, योग दिवस में बाधा डालने की घटना पर उनकी चुप्पी और बीजेपी शासित भारत में बढ़ते इस्लामोफोबिया को लेकर पार्टी की नाराज़गी को देखते हुए, PPM के साथ उनके गठबंधन की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. इन दोनों दलों के अलावा नई बनी मालदीव नेशनल पार्टी ने भी अपने संस्थापक नेता रिटायर्ड कर्नल मुहम्मद नाज़िम को राष्ट्रपति चुनाव का प्रत्याशी नामांकित किया है. मालदीव में अब तक के इतिहास में किसी भी उम्मीदवार ने पहली बार में इतने वोट हासिल नहीं किए कि दोबारा चुनाव न कराने पड़ें. ऐसे में चुनाव जीतने के लिए असरदार गठबंधन बनाना बहुत अहम होता है. इसका नतीजा ऐसे जटिल राष्ट्रपति चुनाव के रूप में आया है, जहां मामूली सा अंतर भी पलड़ा किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में झुका सकता है, जिससे इस इलाक़े की भू-राजनीति बदल सकती है.
निष्कर्ष
अभी जो स्थितियां है, उनमें भारत की असैनिक विकास परियोजनाओं को मालदीव को चीन से मिलने वाली मदद पर बढ़ हासिल है. क्योंकि, पिछले कई वर्षों से भारत द्वारा किए जा रहे प्रयासों से मालदीव में उसके प्रति अच्छा माहौल बना है. हालांकि, इस क्षेत्र में चीन के साए की मौजूदगी से इनकार करना ग़लत होगा. PPM से अपने लगातार संपर्क के चलते चीन, मालदीव में अपने पांव जमाने में सफल रहा है. ऐसे नाज़ुक मोड़ पर मालदीव की उथल-पुथल भरी राजनीति से राष्ट्रपति चुनाव का रुख़ बदल सकता है और इसके साथ एक झटके में मालदीव में मूलभूत ढांचे के विकास की बड़ी परियोजनाओं का भविष्य भी बदल सकता है. इस राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों की तरह चीन और भारत भी बड़ी आतुरता से ये उम्मीद कर रहे होंगे कि आने वाले सितंबर में पलड़ा उनके हक़ में झुक जाएगा.
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