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मालदीव सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच ने एकमत होकर करोड़ों के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल की सजा काट रहे मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को रिहाई प्रदान की तो इससे भारत के साथ मालदीव के संबंध और घेरलू राजनीति को लेकर एक नई उम्मीद जगी. इस रिहाई का तुरंत फायदा यह होने वाला है कि यामीन पर चुनाव लड़ने की पाबंदी हट जाएगी और वो 2023 के राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा ले सकेंगे. इससे पहले मनी लॉन्ड्रिंग केस में दोषी पाए जाने के बाद निचली अदालत ने उन्हें पांच साल जेल की सजा और 5 मिलियन डॉलर जुर्माना लगाया था लेकिन उनकी रिहाई से अब उनकी पार्टी पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ में नई ऊर्जा आएगी. भारत के ख़िलाफ़ चल रहे ‘इंडिया आउट’ अभियान जो बाद में ‘भारतीय सेना आउट’ अभियान का रूप ले चुकी है, उनमें नए बदलाव देखने को मिलेंगे.
अदालत के फैसले के बाद यामीन ने 732 दिनों के बाद – या कहें दो साल चार महीने बाद – आजादी में सांसें ली. हालांकि दंड कानून के तहत सज़ा के अंतिम महीनों में उन्हें हाउस अरेस्ट कर रखा गया था.
साल के अंत में छुट्टी से पहले 30 नवंबर को अदालत द्वारा सुनाए गए फैसले में न्यायाधीशों ने इसे ‘ घटिया जांच ‘ और यामीन के तीन उप-राष्ट्रपतियों में से दूसरे अहमद अदीब सहित दो मुख्य गवाहों की ‘ संदिग्ध विश्वसनीयता ‘ को लेकर दोषी ठहराया था, जिन्हें इस अपराध में उनकी भागीदारी के लिए दंडित भी किया गया. ख़ास तौर पर न्यायाधीशों ने अदालत में प्रस्तुत दो विभिन्न दस्तावेजों में यामीन के निजी खाते में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के हस्तांतरण के लिए इस्तेमाल किए गए चेक की संख्या में विसंगति का हवाला दिया था. संयोग से इस मामले में पुरानी दलीलों पर फिर से सुनवाई करने के लिए अदालत ने नवंबर में पहले निर्णय सुरक्षित कर लेने के बाद अदालत की एक ‘अतिरिक्त सुनवाई’ आयोजित की.
दोबारा छुआ नहीं जा सकता…
अदालत के फैसले के बाद यामीन ने 732 दिनों के बाद – या कहें दो साल चार महीने बाद – आजादी में सांसें ली. हालांकि दंड कानून के तहत सज़ा के अंतिम महीनों में उन्हें हाउस अरेस्ट कर रखा गया था. एक दिन बाद पीपीएम दफ्तर पर सार्वजनिक रूप से सामने आने के बाद यामीन ने ऐलान किया कि ‘उन्होंने मुल्क के धन को नहीं छुआ था, ना ही कभी दूसरी बार वो ऐसा करेंगे ’.
फैसले के बाद यामीन के वकील डॉ मोहम्मद ज़मील अहमद, जो कभी पहले निर्वासित उप राष्ट्रपति रह चुके हैं, ने दावा किया कि राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह की सरकार और उनकी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) ने मनी लॉन्ड्रिंग के दो अन्य मामलों में उनके क्लाइन्ट के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज़ की है, ‘इसलिए नहीं कि उनके पास इसे लेकर सबूत हैं बल्कि वो मेरे क्लाइंट की सार्वजनिक छवि को ख़राब करना चाहते हैं’. ज़मील ने जब पूर्व राष्ट्रपति यामीन की रिहाई के बाद उनके लिए सुरक्षा व्यवस्था मौजूद नहीं रहने की बात उठाई तब एमएनडीएफ ने सुरक्षा प्रोटोकॉल को सक्रिय किया.
अदालत के फैसले के बाद यामीन ने 732 दिनों के बाद – या कहें दो साल चार महीने बाद – आजादी में सांसें ली. हालांकि दंड कानून के तहत सज़ा के अंतिम महीनों में उन्हें हाउस अरेस्ट कर रखा गया था.
इसी तरह मीडिया रिपोर्ट्स के बाद बज़ट-2022 में यामीन के लिए पेंशन और अन्य लाभों का प्रावधान न करने की बात कही गई थी, क्योंकि तब जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति इसके हकदार नहीं थे, इसलिए सरकार ने साफ किया कि इसका भुगतान आकस्मिक निधियों से किया जाएगा. यामीन के वकीलों ने जेल में बंद अवधि के लिए पिछले विशेषाधिकारों के तहत 2.4 मिलियन एमवीआर का दावा किया. यामीन के पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के अन्य नेताओं ने इस फैसले को ‘ सत्य और न्याय की जीत ‘ बताया. जबकि सरकार की ओर से संसद अध्यक्ष और एमडीपी के अध्यक्ष मोहम्मद ‘ अन्नी ‘ नाशीद ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी विपक्ष ने ‘ न्यायपालिका में सुधार ‘ के लिए अपनी पार्टी के एजेंडे को स्वीकार किया है. गठबंधन सरकार में मंत्री यमना मौमून (एमआरएम) और अली सोलिह (जेपी) ने कहा कि फैसले से साबित हो गया कि राष्ट्रपति सोलिह ने न्यायपालिका में ‘ हस्तक्षेप ‘ नहीं किया.
स्थानीय मीडिया ने फरवरी 2018 के सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य फैसले से इसकी तुलना की जब मूल रूप से ब्रिटेन में ‘ जेल छुट्टी ‘ के तहत स्व-निर्वासित नाशीद को रिहा किया गया था. ब्रिेटेन में नशीद ने राजनीतिक शरण ले रखा था वो भी तब जबकि पूरी सुनवाई के बिना ही अदालत की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए एक आदेश में इसका ज़िक्र था. इसके बाद राष्ट्रपति यामीन द्वारा आपातकाल लागू करना, न्यायाधीशों में से एक की गिरफ़्तारी, और पहले के फैसले को नीचे स्तर की बेंच द्वारा बदल देना प्रमुख घटनाक्रम रहा. कोर्ट ने इस फैसले में तब बदलाव किया जब यामीन 2018 के राष्ट्रपति चुनावों में हार गए और इससे नाशीद की घर वापसी हो गई और उन्होंने संसदीय सीट जीता और इसके एक साल बाद उन्हें स्पीकर चुन लिए गया.
MDP पर दबाव
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सरकार यामीन के ख़िलाफ़ मामले की फिर से जांच करने के लिए स्वतंत्र थी लेकिन अब इससे जुड़े लोगों पर राजनीतिक दबाव बहुत ज़्यादा होगा. फैसले के बाद हालांकि, राजधानी माले की एक आपराधिक अदालत ने यामीन को विदेश यात्रा करने से रोक दिया था, जबकि अन्य दो मामलों को लंबित छोड़ दिया था. यही वजह है कि यामीन की रिहाई के बाद भी उन पर लटकने वाली ख़तरे की तलवार से इनकार नहीं किया जा रहा है.
यामीन की आज़ादी का तात्कालिक नतीजा सत्तारूढ़ एमडीपी और पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में उनके पीपीएम-पीएनसी विपक्षी गठबंधन के मुकाबले ज़्यादा महसूस किया जाएगा. पुराने दोस्तों सोलिह और नाशीद के साथ बढ़ी आंतरिक गुटबाज़ी ने गठबंधन को कई बार शर्मसार किया है.
यामीन की आज़ादी का तात्कालिक नतीजा सत्तारूढ़ एमडीपी और पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में उनके पीपीएम-पीएनसी विपक्षी गठबंधन के मुकाबले ज़्यादा महसूस किया जाएगा. पुराने दोस्तों सोलिह और नाशीद के साथ बढ़ी आंतरिक गुटबाज़ी ने गठबंधन को कई बार शर्मसार किया है और पार्टी के ‘ लोकतंत्र समर्थकों ‘को इस कदर निराश किया है कि कई समर्थक तो अप्रैल में राष्ट्रव्यापी स्थानीय सरकार के चुनावों से ख़ुद को अलग रखे थे और ऐसा कर वो पार्टी की पराजय में अपना योगदान दे रहे थे. इसके बाद सितंबर में एमडीपी के सांगठनिक चुनाव में ख़राब मतदान हुआ था. इतना ही नहीं इसके ख़िलाफ़ यह नहीं कहा जा सकता है कि साल 2018 में जब यामीन चुनाव हार गए तब से लेकर अब तक उनकी 42 फ़ीसदी ‘विकास केंद्रित’ वोट-शेयर में काफी कमी आई है.
मंत्रीस्तरीय भ्रष्टाचार के आरोपों के अलावा, जहां वह फिर से चुनावी योद्धा की भूमिका में नज़र आ रहे हैं, नाशीद 2023 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले जनमत संग्रह की मांग कर रहे हैं, जिससे शासन व्यवस्था में राष्ट्रपति से संसदीय चुनाव व्यवस्था बन सके, वह काफी समस्याओं से भरी है. एमआरएम, जेपी और धर्म केंद्रित अधालथ पार्टी (एपी) के सहयोगी, राष्ट्रपति चुनाव व्यवस्था को जारी रखने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. 2018 में राष्ट्रपति सोलिह के 58 प्रतिशत वोट-शेयर जिसे 2019 के संसदीय चुनाव में एमडीपी के अकेले 46 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ देखा जाना चाहिए वह यह बताता है कि तब समर्थकों और पार्टी काडरों का हौसला बेहद कम था और अब 2023 के चुनावों में पार्टी को पहले के मुकाबले गठबंधन की ज़्यादा ज़रूरत है,या फिर यह ऐसा ही है.
‘मालदीव की रक्षा’ अभियान
यामीन की रिहाई के बाद माले में भी देश के भारत के साथ संबंधों को लेकर अब भौंहें तनने लगी हैं. पिछले एक साल में पीपीएम-पीएनसी विपक्ष ने सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे ‘ इंडिया आउट ‘के मुद्दे को हाईजैक कर लिया है, जो पड़ोसी राष्ट्र के साथ मालदीव के रक्षा संबंधों पर निशाना साधता है और सोलिह के राष्ट्रपति काल के तहत 140 मिलियन अमेरिकी डॉलर की विकास सहायता को लेकर भी आलोचनात्मक रवैया अपनाता है. इस बात की कोई पहचान नहीं है कि भारतीय सहायता पैकेज़ यामीन के राष्ट्रपति शासनकाल के दौरान भी उपलब्ध था लेकिन उस समय सरकार भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर मेजर कंपनी जीएमआर को हटाने में ज़्यादा व्यस्त थी. इसके बाद नई दिल्ली द्वारा भारतीयों के साथ डोर्नियर विमान जिसे तौहफे के तौर पर दिया गया था उसे वापस लेने की बात सामने आई थी जो मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) की विशेष कमान को दी गई थी. इसके लिए विपक्ष ने हाल ही में उथुरु थिला फाल्हू द्वीप में मालदीव के तटरक्षक बल के लिए एक विशेष डॉकयार्ड का निर्माण करने के लिए भारत के साथ यूटीएफ समझौते को अंजाम दिया है.
अपने सम्मान में पीपीएम-पीएनसी रैली में अपने डेढ़ घंटे के भाषण में यामीन ने बाद में जेल से ‘ इंडिया आउट ‘ अभियान के लिए ख़ुद की पीठ थपथपाई और इस मुद्दे को उठाने का दावा किया और ‘ मालदीव की रक्षा ‘ अभियान की शुरुआत की.
अपने सम्मान में पीपीएम-पीएनसी रैली में अपने डेढ़ घंटे के भाषण में यामीन ने बाद में जेल से ‘ इंडिया आउट ‘ अभियान के लिए ख़ुद की पीठ थपथपाई और इस मुद्दे को उठाने का दावा किया और ‘ मालदीव की रक्षा ‘ अभियान की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि “हम भारत के दोस्तों का सम्मान करते हैं लेकिन मालदीव एक स्वतंत्र राष्ट्र है”. उन्होंने ऐलान किया कि “यह मैं आधिकारिक तौर पर कह रहा हूं कि भारतीय सेना को मालदीव छोड़ना होगा…हम एक भी भारतीय सेना के जवान नहीं चाहते हैं, हम अपनी ज़मीन पर ना सिर्फ उनके बूट बल्कि उनके जुराब भी नहीं देखना चाहते”. कई बयानों में से एक बयान जिसकी कई प्रकार से व्याख्या की जा सकती है उन्होंने अपने एमएनडीएफ समर्थकों की याद दिलाई और कहा कि वे भी मालदीव के हैं और उनकी वफादारी सरकार के प्रति नहीं है बल्कि इस्लाम के प्रति है, जैसा कि उन्होंने अल्लाह के नाम पर शपथ ली थी और जैसा कि उनके शपथ में कहा गया है कि वो लोग और राष्ट्र के लिए शपथ ले रखे हैं. भारत को निशाना बनाकर और इस्लाम के नाम पर शपथ ग्रहण करके यामीन को उम्मीद है कि वह लंबे समय तक ‘इस्लामी राष्ट्रवादी ‘ मुद्दे के भरोसे राष्ट्रपति चुनाव में अपना वर्चस्व बनाए रखना सकेंगे.
कोई समझौता नहीं
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन पहले, हालांकि, संसद ने हाउस सुरक्षा सेवा समिति (241 समिति) के निष्कर्षों के पक्ष में मतदान किया कि यूटीएफ समझौते के तहत राष्ट्र की संप्रभुता और सुरक्षा से समझौता नहीं किया गया. 87 सदस्यीय सदन में अध्यक्ष को छोड़कर 27 सदस्यों द्वारा भागीदारी न करने से पता चला कि 53 के मुकाबले 6 वोट ने भी सोलिह के इस दावे को साबित किया कि मुख्यधारा का मालदीव इस मुद्दे के साथ जुड़ा हुआ है और केवल कुछ लोग ही शोर मचा रहे हैं. समिति के अध्यक्ष मोहम्मद असलम ने दोहराया है कि भारत के साथ समझौतों में ‘कोई जोख़िम नहीं’ था लेकिन इसके बजाय ‘ इंडिया आउट ‘ अभियान जोख़िम से भरा था.
कुछ हलकों में यह धारणा भी गलत रूप से फैली हुई है कि मालदीव के साथ भारत के संबंध व्यक्तित्व और पार्टी केंद्रित आधारित हैं. सोशल मीडिया के अप्रमाणित दावों से इतर, भारतीय नौसेना ने किसी विदेशी मुल्क के रक्षा मंत्री को पहली बार निमंत्रण दिया, रक्षा मंत्री मारिया अहमद दीदी जिन्हें ऐजीमाला के नैवल एकेडमी के पासिंग आउट पैरेड में मुख्य अतिथि के तौर पर निमंत्रण दिया गया, वो नई दिल्ली की ‘ नेबरहुड फर्स्ट ‘ नीति का ही एक तरह से विस्तार था. औपचारिक सलामी के बाद, मंत्री मारिया, जिन्होंने अकादमी में मालदीव के प्रशिक्षुओं के साथ भी मुलाकात की, ने घोषणा की – कि द्विपक्षीय रक्षा सहयोग ‘ पारस्परिक रूप से लाभप्रद ‘ (और एक तरफा नहीं) है.
रक्षा मंत्री मारिया अहमद दीदी जिन्हें ऐजीमाला के नैवल एकेडमी के पासिंग आउट पैरेड में मुख्य अतिथि के तौर पर निमंत्रण दिया गया, वो नई दिल्ली की ‘ नेबरहुड फर्स्ट ‘ नीति का ही एक तरह से विस्तार था.
इससे पहले, माले में पड़ोसी श्रीलंका को शामिल करते हुए त्रि-राष्ट्र ‘ धोस्ती एक्सवी ‘ तटरक्षक युद्धाभ्यास को हरी झंडी दिखाकर रक्षा मंत्री ने इस क्षेत्र के पावर-हाउस, भारत के साथ रक्षा सहयोग की बढ़ती प्रासंगिकता को रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि कैसे राष्ट्रों को क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए मिलजुल कर काम करना होगा.धोस्ती (दोस्ती) मिलिट्री एक्सरसाइज़ का इतिहास मंत्री को सही साबित कर सकता है. 1991 में भारत और मालदीव द्वारा इस मिलिट्री एक्सरसाइज़ को शुरू किए जाने के तीन साल पहले भारतीय सेना ने(‘ऑपरेशन कैक्टस’) राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उखाड़ फेंकने के लिए श्रीलंकाई तमिल भाड़े के आतंकवादियों द्वारा तख़्तापलट की कोशिश को सैन्य रूप से नाकाम कर दिया था. दशकों बाद, टोपोग्राफी और डेमोग्राफी को देखते हुए मालदीव अंतरराष्ट्रीय दवा गिरोहों, भविष्य के संभावित समुद्री आतंकवादियों से अपने विशाल EEZ को सुरक्षित करने की क्षमता से दशकों नहीं तो सालों दूर है , बाहरी सहायता के बिना ये संभव नहीं है.
दोनों आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और प्रति व्यक्ति नशीली दवाओं की खपत और आईएसआईएस के आतंक में भागीदारी, मालदीव में जनसंख्या के अनुपात में दुनिया में सबसे ज़्यादा है. स्पीकर नाशीद पर निशाना बनाकर 6 मई को किए गए बम हमले जैसी घटनाओं ने इस बात को स्पष्ट किया है कि किस तरह क्षेत्रीय सहयोग को समुद्री क्षेत्र से आगे बढाना ज़रूरी है जिसमें साझा आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को शामिल किया जा सके लेकिन अपने भू-रणनीतिक एजेंडे के साथ ‘ गैर-क्षेत्रीय खिलाड़ियों ‘ से अलग होकर जो ख़ास तौर पर मालदीव के हितों को ध्यान में रखता हो, उसे पूरा किया जा सके.
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