Author : Rasheed Kidwai

Published on Nov 06, 2018 Updated 0 Hours ago

सियासी मोर्चे पर,शिवराज सिंह चौहान काफ़ी सफल रहे हैं और एक संकोची इंसान से बड़ा नेता बनने तक लंबा सफ़र तय किए हैं।

मध्य प्रदेश: कामकाजी मुख्यमंत्री का अनिश्चित भविष्य

मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होनेवाले विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो गया है। बीजेपी यहां 2003 से विधानसभा चुनाव जीतती आ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में, बीजेपी ने 2008 और 2013 विधानसभा चुनावों में जीत का परचम लहराया और बड़ी संख्या में लोकसभा सीटों पर भी क़ब्ज़ा जमाया। स्थानीय निकाय चुनावों में भी बीजेपी लगातार अच्छा करती आई है।

चौहान की रणनीति

58 साल के चौहान कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्यवन में संवेदनशील दृष्टिकोण रखते हैं। पूरे मध्य प्रदेश में वो “मामा” नाम से मशहूर हैं। मुख्यमंत्री में सभी मत और विचारों के लोगों से मेल-जोल की अतिरेक भूख है। एक अनुमान के मुताबिक़, पिछले 13 सालों के अपने कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान ने 50 से ज़्यादा यात्राएं की हैं। अपनी यात्राओं के दौरान लोगों से मिलने में चौहान अक्सर खाना खाना भूल जाते थे। ये यात्राएं चौहान को ख़ूब भाती हैं क्योंकि इनके ज़रिए उन्हें जनता से सीधे जुड़ने का मौक़ा मिलता है और हाथों हाथ राजनीतिक प्रतिक्रिया मिलती है। मुख्यमंत्री चौहान किसी ख़ास विधानसभा क्षेत्र या ज़िले के राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बारे में जानने के लिए पार्टी नेतृत्व पर निर्भर नहीं रहते हैं। ज़्यादातर मामलों में, चौहान दो दर्जन से ज़्यादा प्रभावशाली लोगों को उनके पहले नाम से जान रहे होते हैं।

बड़े राजनीतिक पटल पर, यात्राएं बीजेपी की राजनीतिक सफ़र का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं। जन संघ और इसके सहयोगी संगठनों के भारतीय जनता पार्टी में पुनर्गठन के महज़ पांच साल बाद, 1984 लोकसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ़ 2 सीटें ही जीत सकी थी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े धुरंधर संसदीय चुनाव हार गए थे। 1990 में, लाल कृष्ण आडवाणी ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रति पार्टी का समर्थन दिखाने के लिए “रथ यात्रा” निकाली।इसके बाद 1991 लोकसभा चुनावों में बीजेपी 124 सीटों तक पहुंच गई। 1991 से 1998 के बीच और आधी दर्जन यात्राओं ने बीजेपी की संभावनाओं को इस क़दर बढ़ाया कि इंद्रधनुषी गठबंधन के साथ पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई।

यात्राओं के प्रति झुकाव

अपनी यात्राओं के ज़रिए, चौहान गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर “गौरव यात्रा” में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता का अनुकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी की “गौरव यात्रा” फ़रवरी 2002 में गोधरा ट्रेन जलने और परिणामस्वरूप राज्य में सांप्रदायिक नरसंहार के कुछ महीनों बाद शुरू हुई थी। सांप्रदायिक हिंसा में अपनी नाकामी को लेकर आलोचना से घिरे मोदी ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तीखा हमला करने के मक़सद से इस यात्रा की शुरुआत की थी, ये ज़ोर देते हुए कि विपक्ष के दुष्प्रचार ने गुजरात का नाम ख़राब किया है। “गुजराती लोगों के गौरव को फिर से स्थापित करने” की कल्पना के साथ गौरव यात्रा की शुरुआत की गई थी। मोदी ने 2012 में विवेकानंद युवा विकास यात्रा निकाली, जिसके तहत वो पूरे गुजरात में घूमे। 2014 लोकसभा चुनावों के नज़दीक आते ही मोदी ने 100 दिन की भारत यात्रा की, जिसमें वो देश भर के सभी इलाक़ों में गए। लेकिन मध्य प्रदेश गुजरात नहीं है, क्योंकि यह बहुभाषी राज्य नहीं है। गुजरात के विपरीत मध्य प्रदेश में विपक्ष बहुत मज़बूत और एकजुट है।

मार्को रुबियो ने कहा है, “नेतृत्व को एक चुनाव या एक चुनाव के नतीजों से नहीं आंका जा सकता है। वास्तव में इसे सिर्फ़ समय के फ़ायदे के साथ ही देखा जा सकता है। 20 सालों के परिप्रेक्ष्य से, 20 दिन नहीं।”

29 नवंबर 2005 से अब तक शिवराज सिंह के बतौर मुख्यमंत्री कार्यकाल पर सरसरी निगाह डालें तो हमें उनकी छवि, विज़न और ज़मीन पर इसके प्रभाव की अच्छी झलक मिलती है। विचारों के सृजन और चुनावी सफलता के मामलों में चौहान आसानी से परीक्षा पास कर जाते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर के हालात कई ख़ामियों, कई गड़बड़ियों और चुनौतियों की ओर इशारा करती हैं।

मध्य प्रदेश को संदिग्ध बीमारू राज्य के तमगे से बाहर लाने का बड़ा श्रेय शिवराज सिंह चौहान को जाता है, ये ऐसा तमगा था जो कई उन हिंदी भाषी राज्यों को हासिल था (बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश भी इस लीग में थे) जो ज़्यादातर सामाजिक-आर्थिक पैमानों पर सबसे ज़्यादा पिछड़े हुए थे। हालांकि स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में अब भी सुधार की बड़ी गुंज़ाइश है।

लोकप्रिय योजनाएं

पिछले 13 सालों में, चौहान ने दर्जनों पंचायतें आयोजित कीं और असंगठित क्षेत्र के लिए कई लुभावने एलान किए।हफ़्ते के चार दिन गांवों में बिताना, ‘कन्यादान,’ के तहत लड़कियों की शादी कराना, ‘लाडली लक्ष्मी’ और महिलाओं और लड़कियों को लाभ पहुंचानेवाली दूसरी योजनाओं की वजह से चौहान बेहतर काम करनेवाले मुख्यमंत्रियों के बीच में लीडर के तौर पर उभरे।

जवाबदेही और पारदर्शिता लानेवाले क़ानूनों को लागू करने पर चौहान का फ़ोकस कुछ हद तक हाइलाइट करने के लायक है। वह स्पेशल कोर्ट बिल 2011 लेकर आए, जिसका मक़सद भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े गए लोगों का स्पीडी ट्रायल है। इस क़ानून ने राज्य सरकार को अवैध संपत्ति को छह महीने में ज़ब्त करने और आरोपी के ख़िलाफ़ एक साल में फ़ैसला देने का अधिकार दिया। ज़ब्त की गई संपत्ति का इस्तेमाल जनता के कल्याण के लिए किया जाता है। हालांकि व्यापम घोटाले के बादलों के साथ कुछ ख़ास मामलों में ज़ब्त संपत्ति और जनता के हित में उसके इस्तेमाल को दिखाने में उनकी सरकार की अक्षमता ने उनकी छवि को ख़राब किया है।

कुछ लोगों को याद होगा कि आठ साल पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिवराज सिंह चौहान से मिल कर मध्य प्रदेश पब्लिक सर्विसेज़ ऐक्ट 2010 की एक कॉपी मांगी थी, जो कि एक नियत समय सीमा के भीतर नागरिकों को बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं के वितरण की गारंटी देता है और ऐसा न होने पर सिस्टम में जवाबदेही तय करता है। इस क़ानून में ये भी प्रावधान किया गया है कि अगर तय समय सीमा में ये सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जाती हैं तो संबंधित अधिकारी को न सिर्फ़ ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा, बल्कि उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। जुर्माने की रक़म 250 रुपये प्रति दिन से शुरू होकर अधिकतम 5,000 रुपये प्रति दिन तक होती है जो कि प्रभावित शख़्स को सौंपा जाता है।

सिटीजन चार्टर की अवधारणा को सबसे पहले 1991 में यूके में एक सरल उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में अभिव्यक्त और कार्यान्वित किया गया था: देश के लोगों के लिए सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में निरंतर सुधार करना ताक़ि ये सेवाएं लोगों की ज़रूरतों और इच्छाओं की पूर्ति कर सकें। सिटीजन चार्टर का मूल्य उद्देश्य नागरिकों और सर्विस प्रदाताओं के बीच संबंधों को मज़बूत बनाना है।

सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखने में शिवराज सिंह चौहान का ट्रैक रिकॉर्ड असाधारण और प्रशंसनीय है। मध्य प्रदेश में बहुत कम सांप्रदायिक उपद्रव देखे गए हैं, और छोटे-मोटे दंगों के मामले में त्वरित, ठोस और निर्णायक कार्रवाई हुई है।

धर्मनिरपेक्षता पर संतुलित रुख़

चौहान की चीज़ों की योजना के बीच धर्मनिरपेक्षता और विकास बीजेपी शासित राज्य में अच्छा काम करती है। 2006 में शिवराज सरकार ने धार में सांप्रदायिक हिंसा को सफलतापूर्वक रोक दिया था, तब सांप्रदायिक दंगों की रोकथाम और सद्भाव के लिए सरकार को इंदिरा गांधी अवॉर्ड मिला था। बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कड़े विरोध के बावजूद चौहान सरकार 16 वीं शताब्दी के विवादित स्मारक में नमाज़कराने में कामयाब रही थी। जनवरी 2013 और फ़रवरी 2016 में चौहान एक बार फिर धार भोजशाला में दंगा रोकने में कामयाब रहे जब उपद्रवियों ने विवादित जगह पर नमाज़ रोकने की कोशिश की थी। उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करने में पुलिस ने हिचक नहीं दिखाई। वास्तव में, इस साल धार भोजशाला के एक दिन बाद बसंत पंचमी के मौक़े पर जुमे की नमाज़ और सरस्वती पूजा साथ-साथ की गई, इस दौरान उपद्रवियों ने स्थानीय आरएसएस कार्यालय में तोड़-फोड़ की।

धार भोजशाला को मध्य प्रदेश के“अयोध्या विवाद” की तरह माना जाता है, क्योंकि 11वीं शताब्दी में धार के महान वास्तुकार राजा भोज द्वारा बनवाई गई इस संरचना के इद-गिर्द कई विवाद हैं। स्थानीय मुसलमान भोजशाला को मस्जिद मानते हैं, जिसका नामकरण मशहूर सूफ़ी संत निज़ामुद्दीन के अनुयायी मुस्लिम संत कमालुद्दीन चिश्ती के नाम पर रखा गया है।

मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान अक्सर अल्पसंख्यकों के प्रति नरम, मिलनसार देखे गए हैं। जब कभी भी स्कूली पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने, सूर्य नमस्कार, भोजन मंत्र, वंदे मातरम गाने को लेकर विरोध हुआ, मुख्यमंत्री ने छात्रों और सरकारी कर्मचारियों को इसमें शामिल होने से छूट दे दी। चौहान सरकार ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता बिल 2013 पास किया, जिसके तहत धर्म परिवर्तन के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य है और जबरन धार्मिक परिवर्तन के लिए जेल की कड़ी सज़ा का प्रावधान है। लेकिन इस बिल का विरोध करनेवाले मुस्लिम और ईसाई समुदायों के पास इसके ग़लत इस्तेमाल की कोई शिकायत नहीं है। चौहान सरकार ने गोहत्या को रोकने के लिए एक और बिल पास किया, मध्य प्रदेश गोवंश वध प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक, जो अब क़ानून बनकर लागू हो चुका है। बिल के कुछ प्रावधानों को “निष्ठुर”बताया गया था, जैसे कि अगर कोई शख़्स गोकशी का दोषी पाया जाता है तो उसे 7 साल की सज़ा होगी। लेकिन एक बार फिर, इन क़ानूनों के दुरुपयोग की कोई शिकायत नहीं है।

सामाजिक मोर्चे पर शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई ज़्यादातर पहलों में मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है। मिसाल के तौर पर, राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित एक योजना जिसके तहत वरिष्ठ नागरिक (60 से ऊपर के) अजमेर दरगाह, तमिलनाडु केनागपट्टनम के वेलनकन्नी चर्च, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर, बोध गया, पारसनाथ (झारखंड) के साथ रामेश्वरम, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार और धार्मिक महत्व के कई दूसरे स्थलों पर मुफ़्त दर्शन के लिए जाते हैं। हज़ारों मुस्लिम, ईसाई, जैन और दूसरे लोग सरकार की इस योजना का फ़ायदा उठाते हैं। सरकार की एक और लोकप्रिय योजना ‘कन्यादान’ है, जिसके तहत नए शादी-शुदा जोड़ोंको नक़द अनुदान मिलता है। अब तक 15 लाख से ज़्यादा जोड़े इस योजना से लाभान्वित हुए हैं, और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ इनमें क़रीब एक लाख मुस्लिम जोड़े हैं। 2008 में शुरू हुई कन्यादान योजना के अंतगर्त आर्थिक, धार्मिक और जातिगत स्थिति देखे बिना शादी करनेवाले हर जोड़े को नक़द अनुदान दिया जाता है। शुरुआत में, सरकार 5,000 रुपये नक़द देती थी, जिसे बाद में 10,000 और फिर 15,000 कर दिया गया।

अनिश्चित भविष्य

सियासी मोर्चे पर,शिवराज सिंह चौहान काफ़ी सफल रहे हैं और एक संकोची इंसान से बड़ा नेता बनने तक लंबा सफ़र तय किए हैं।

जॉन ओट्सने कहा था,अगर आप साल दर साल देखें तो, स्टाइल बदले हैं-कपड़े, बाल, उत्पादन, गानों के प्रति नज़रिया और सबकुछ। सजावट के लिए केक पर की गई सफेद तह ने फ़्लेवर को बदल दिया है। लेकिन अगर आप वास्तव में सिर्फ़ केक को देखें तो सही मायने में ये जस का तस है।”

चौहान, कई मायनों में उसी केक की तरह जस के तस बने हैं — नम्र, काम करने के धुनी और काम के लिए समर्पित।

लेकिन इस लंबे सफ़र में, कई मौक़ों पर वो ऐसे कुछ निहित हितों को ज़रूरत से ज़्यादा महत्व देते नज़र आए हैं, जिन्होंने किसी मायने में उनके शासन का मान नहीं बढ़ाया। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस, क़ानून के शासन को महत्व, नागरिक स्वतंत्रता का सम्मान, प्रति ज़ीरो टॉलरेंस, क़ानून के शासन को महत्व, नागरिक स्वतंत्रता का सम्मान, असहमति का अधिकार और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार महज़ नारे नहीं, बल्कि जीवंत और सहभागी लोकतंत्र की अत्यंत ज़रूरी आवश्यकताएं हैं। शिवराज चौहान को इन पहलुओं को मज़बूत करने के लिए ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। दो सालों से चौहान सरकार के ख़िलाफ़ किसानों का ग़ुस्सा उबल रहा है। इसके अलावा पहली बार वोट डालने जा रहे और नए वोटरों के दिमाग़ में व्यापम की यादें ताज़ा हैं, जिसके तहत करोड़ों का नौकरी और व्यावसायिक परीक्षा घोटाला हुआ।

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