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राजनीति में पैठ बना रही महिलाओं के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की पहली महिला उप-राष्ट्रपति के चुनाव का क्या मतलब है?
संयुक्त राज्य अमेरिका की चयनित उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस के सामने पहला सबसे कठिन काम है, राजनीतिक रूप से खंडित और विभाजित देश को ठीक करना और साथ लाना. जो बाइडेन के साथ मिलकर जैसे-जैसे वह अमेरिका की पहचान को पुनर्जीवित करने और उसे फिर से बनाने का प्रयास करेंगी, दुनिया भर की युवा महिलाएं उनकी ऐतिहासिक जीत में खुद की जीत को देखेंगी और उनकी पहचान के माध्यम से खुद की पहचान बनाने की कोशिश करेंगी. महिला राजनीतिक नेताओं के लिए दुनिया नई नहीं है, तो आखिर क्या है जो कमला हैरिस की जीत को ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है?
इसराइल और भारत जैसे देश पहले से ही दुनिया की पहली (और अपने देश की एकमात्र) महिला प्रधानमंत्रियों, गोल्डा मेयर और इंदिरा गांधी को लेकर गौरवान्वित महसूस करते रहे हैं. दोनों महिलाओं को मज़बूत और निर्णायक ‘आयरन लेडी’ के रूप में जाना जाता था, जिन्होंने अपने-अपने राष्ट्रों के आर्थिक, राजनीतिक और विदेश नीति से संबंधित परिदृश्यों को न सिर्फ आकार दिया बल्कि कई मायनों में हमेशा के लिए बदल दिया, अक्सर ‘क्रूर’ उपायों के ज़रिए भी. अपनी पार्टी के ‘सर्वसम्मत उम्मीदवार’ (तत्कालीन प्रधानमंत्री लीवाई ईशकोल की असामयिक मृत्यु के बाद) के रूप में इसरायल की चौथी प्रधानमंत्री बनने से पहले गोल्डा मेयर, इसराइल की स्वतंत्रता को लेकर तैयार किए गए घोषणा-पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थीं. इसके अलावा उन्होंने श्रम मंत्री और विदेश मंत्री के रूप में देश की कैबिनेट को खड़ा करने में भी अहम भूमिका निभाई. इंदिरा गांधी की भारतीय राष्ट्र को स्थापित करने में समान भूमिका रही. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी और उनकी पार्टी की निर्वाचित नेता के रूप में उन्होंने स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारतीय व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दोनों महिलाओं के नेतृत्व को, मतदाताओं के एक ऐसे विस्तार ने जन्म दिया, जो पार्टी की तर्ज पर सत्ता-विरोधी और विचारों पर आधारित विभाजनकारी राजनीति के प्रति रुझान नहीं रखते थे, जैसा कि आज हम देखते हैं. राष्ट्र-निर्माण के लिए उन्हें ऐसे नेताओं की ज़रूरत थी जो जाने-पहचाने हों और जिन्हें राष्ट्र-निर्माण का अनुभव हो; लिंग उनके लिए लगभग सतही मुद्दा था.
कमला हैरिस एक ऐसे समय में सत्ता में आई हैं, जब दुनिया भर में जाति, धर्म और लिंग के रूप में सांस्कृतिक दरारें गहरा रही हैं. इस तरह के उथल-पुथल से भरे समय में जमैका और भारतीय प्रवासियों की बेटी के रूप में उनकी जीत महत्वपूर्ण है
कमला हैरिस एक ऐसे समय में सत्ता में आई हैं, जब दुनिया भर में जाति, धर्म और लिंग के रूप में सांस्कृतिक दरारें गहरा रही हैं. इस तरह के उथल-पुथल से भरे समय में जमैका और भारतीय प्रवासियों की बेटी के रूप में उनकी जीत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दुनिया को बताती है कि इस कार्यालय में आख़िरकार महिलाओं का दबदबा हो सकता है, और भविष्य में और भी अधिक संख्य़ा में महिलाएं इन भूमिकाओं को निभाने के लिए आगे आ सकती हैं. इससे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी राष्ट्र ऐसे मतभेदों से ऊपर उठने की उम्मीद करता है.
हालांकि, यह जीत इस तथ्य को नहीं छिपाती है कि ध्रुवीकरण (polarisation) अभी भी गहरा है; महामारी से पैदा हुए संकट और आर्थिक अनिश्चितता ने मिलकर, क्रोधी गुटों के लिए कमला हैरिस की नस्ल, जाति और उनके महिला होने को एक निशाने के रूप में स्थापित किया है. पिछले चार सालों में परिवार नियोजन और प्रजनन सेवाओं के लिए आर्थिक सहायता में कमी देखी गई है, कंपनियों द्वारा लिंग वेतन अंतराल पर नज़र रखने के लिए कर्मचारियों के वेतन संबंधी डेटा की अनिवार्य रिपोर्टिंग को रद्द किया गया है, और ऐसी कई अन्य नीतियां हैं जो तकनीकी रूप से महिला वोटरों को कमला हैरिस के पक्ष में कर सकती थीं. हालांकि, लिंग, नस्ल, और उम्र के आधार पर मतदाताओं का विभाजित मतदान डेटा अभी भी सीमित रूप में सामने आया है, प्रारंभिक रुझान यह बताते हैं कि कम उम्र के लोगों ने महिलाओं की तुलना में बाइडेन व हैरिस को अधिक मात्रा में वोट दिया है.
इसलिए, कमला हैरिस को अपनी प्रतीकात्मक जीत को कार्य-योजना में ढालकर ऐसे सुधार करने की आवश्यकता है, जो राजनीतिक रूप से विभाजित मतदाताओं को बेहतर प्रतिनिधित्व, बेहतर एकता और बातचीत को संभव बनाने वाला एक बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध कराए. उन्होंने एक प्रगतिशील मंच पर अपना चुनावी अभियान चलाया, जो कि अवलंबी राष्ट्रपति की नीतियों के उलट था. उन्होंने जलवायु परिवर्तन को लेकर एक नई डील की बात कही (new green-deal), बंदूकों पर नियंत्रण (gun-control) की बात कही, करदाताओं द्वारा वित्त पोषित गर्भपात की नीति अपनाने पर ज़ोर दिया, बड़ी कंपनियों के लिए समान वेतन प्रमाणपत्र जारी करने की बात कही और अनिर्दिष्ट नागरिकों के लिए नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करने का समर्थन किया. चुनावी अभियान के तहत कही गई यह सभी बातें अगर लागू की जाती हैं, तो रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों की ओर से बड़े पैमाने पर विरोध होगा, भले ही जनवरी में होने वाले रन-ऑफ चुनावों (run-off elections) में डेमोक्रेट पार्टी अपने पक्ष में सत्ता के संतुलन को स्विंग करने का प्रबंध कर ले. यदि शक्ति संतुलित है, तो कमला हैरिस की भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण होगी एक टाई-ब्रेकर के रूप में, जिसका इस्तेमाल कर वह इस कानून को पारित करने में उप-राष्ट्रपति के तौर पर अपनी ताक़त का इस्तेमाल कर सकेंगी.
कमला हैरिस को अपनी प्रतीकात्मक जीत को कार्य-योजना में ढालकर ऐसे सुधार करने की आवश्यकता है, जो राजनितिक रूप से विभाजित मतदाताओं को बेहतर प्रतिनिधित्व, बेहतर एकता और बातचीत को संभव बनाने वाला एक बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध कराए.
कमला हैरिस के लिए आगे का रास्ता मिलेजुले रूप से, चुनौतीपूर्ण और पुरस्कृत करने वाला होगा. अमेरिका के 21 टेलिविज़न नेटवर्क पर 56.9 मिलियन लोगों द्वारा अत्यधिक रूप से देखे जाने वाले चुनाव के बाद उनका विजय भाषण लंबे समय तक लोगों के बीच गूंजता रहेगा और उन्हें प्रेरणा देगा. इस कठिन दौर से निकलने की उनकी यात्रा दुनिया भर में देखी जाएगी. ऐसे में महिला राजनीतिकों के नेतृत्व परिदृश्य के संदर्भ में उनकी जीत को कैसे देखा जाना चाहिए?
पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में महिलाओं ने अथाह प्रगति की है और इन क्षेत्रों में महिलाओं के नज़रिए से महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे गए हैं. अकेले 2019 में, ज़ुज़ाना कैपुटोवा को स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में चुना गया, और गीता गोपीनाथ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की पहली महिला मुख्य अर्थशास्त्री बनीं. साल 2020 की शुरुआत में फिनलैंड में दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री, सना मारीन के चुनाव के साथ हुई जो एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने महिलाओं के नेतृत्व वाले एक राजनीतिक गठबंधन का नेतृत्व भी किया. साल का अंत न्यूज़ीलैंड की जेसिंडा आर्डर्न के साथ हो रहा है, जिन्होंने लगभग 50 प्रतिशत वोट हासिल करके दूसरा कार्यकाल जीता और इस सबके बीच कमला हैरिस अमेरिका की पहली अश्वेत अमेरिकी उप-राष्ट्रपति चुनी गईं.
दुनिया भर में, महिलाएं राजनीति में अपनी पैठ बना रही हैं. रवांडा जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में महिलाएं संसद में 61 प्रतिशत हिस्सा रखती हैं. क्यूबा और बोलीविया की संसद में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं हैं, यानी 53.1 प्रतिशत की तुलना में 53.2 प्रतिशत. भारत में 2014 में सांसदों के रूप में महिलाओं की संख्या 11.3 प्रतिशत थी, जो 2019 में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है. इस बीच, भले ही महिलाओं ने 2018 में संयुक्त राज्य में हुए मध्यावधि चुनाव में सीटों के प्रतिनिधित्व में एक विशाल बढ़त हासिल की यानी महिलाओं ने 435 में से 102 सीटें जीतीं, फिर भी वैश्विक रूप से आंकड़ों की तुलना करें तो अमेरिका इस मायने में अभी भी पिछड़ा हुआ है, और उसका प्रदर्शन बेहद ख़राब है. वह निचले सदन पर महिलाओं के कब्ज़े को लेकर, 24.1 प्रतिशत की वैश्विक औसत से अभी भी बहुत दूर है. भले ही यह उत्साहजनक है कि महिला राजनीतिज्ञों का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है, लेकिन यह ज़रूरी है कि महिला राजनीतिज्ञों की यह उत्साहजनक भागीदारी वास्तव में सशक्तिकरण की बानगी पेश करे और केवल लिंग अनुपात की औपचारिकता बन कर न रह जाए. महिलाओं को निर्णय लेने और नियोजन प्रक्रिया का हिस्सा बनाए जाने की ज़रूरत है, न सिर्फ कानून पारित करने और विफल होने के दौरान उन्हें मतदान प्रक्रिया का हिस्सा मान लेने की. ऐसी नीतियां और बजट जो पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग रूप से प्रभावित करते हैं, उन्हें पुरुषों और महिलाओं द्वारा अलग-अलग विश्लेषित करने और सत्यापित करने की ज़रूरत है.
अकेले 2019 में, ज़ुज़ाना कैपुटोवा को स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में चुना गया, और गीता गोपीनाथ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की पहली महिला मुख्य अर्थशास्त्री बनीं.
हम एक समान दुनिया में रहने का दावा तभी कर सकते हैं जब राजनीतिक मंच पर महिलाओं की उपलब्धियों व उनके योगदान को सहज, नियमित व सामान्य घटनाओं के रूप में देखा जाता हो, बजाय इसके कि महिलाओं के ‘दुर्लभ’ चयन को एक उल्लेखनीय व अनोखी घटना रूप में देखा जाए. इसके लिए शिक्षा और रोज़गार जैसे क्षेत्रों में बड़े बदलाव किए जाने की ज़रूरत है. महिलाओं के बीच, संगठित रूप से नेतृत्व की क्षमता पैदा करना, हमारे घरों और स्कूली शिक्षा प्रणालियों में समान अवसर प्रदान करने से शुरू होता है और यह क़दम उठाना आवश्यक है. नए दशक की शुरुआत सुरक्षित कार्यस्थलों के माध्यम से अपने उत्थान की शुरुआत करने वाली महिलाओं से होगी और इसके लिए महिला नेताओं की क्षमताओं को खंगालने और उनका इस्तेमाल किए जाने की ज़रूरत है. जैसा कि कमला हैरिस की अप्रवासी मां ने उनसे कहा था: “आप कई काम करने वाले पहले व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन सुनिश्चित करें कि आप अंतिम नहीं हैं.” कमला हैरिस की जीत भले ही ऐतिहासिक और असाधारण हो लेकिन, हमें एक ऐसे समाज के लिए प्रयास करना चाहिए जहां ऐसी जीत वास्तव में बेहद सामान्य और बारंबार मानी जाती हो.
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Aditi Ratho was an Associate Fellow at ORFs Mumbai centre. She worked on the broad themes like inclusive development gender issues and urbanisation.
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