सभी ब्रिक्स देशों में निवेश और सहयोग बढ़ाना ब्रिक्स का सदुपयोग करने का उपयुक्त तरीक़ा हो सकता है और फिर इसे विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रूढ़िवादिता के बरक्स खड़ा किया जा सकता है.
अपनी शुरुआत से ही ब्रिक्स देशों का सहयोग लचीला और उत्पादक साबित होता आया है. अपनी साझेदारी को मज़बूत करने, इस अनिश्चित दौर से उबरने और अभी चल और बढ़ रही संस्थागत बनाने की प्रक्रिया के बारे में ये सोचने के लिए कि इसे और मज़बूती से लागू करने की ज़रूरत है, ब्रिक्स देशों के लिए ये ज़रूरी है कि वो समूह के भीतर और अन्य क्षेत्रों में निवेश और निवेश की सुविधा देने को प्रोत्साहन दें. ब्रिक्स के सदस्यों के साथ संबंध बढ़ाने के इच्छुक देशों को प्रोत्साहन देना और सहयोग को बढ़ाना भी चतुराई होगी.
ब्रिक्स के पांच देश बड़ी सक्रियता से वैश्विक आर्थिक विकास में योगदान देते रहे हैं. इन देशों की आबादी मिला दें, तो ये 3.22 अरब बैठती है, जो दुनिया की कुल जनसंख्या के 40 प्रतिशत से अधिक है. ब्रिक्स के पांच देश, चार महाद्वीपों और धरती के 26 प्रतिशत इलाक़े में फैले हुए हैं और वो दुनिया के 25 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद, और वैश्विक व्यापार में 20 फ़ीसद की हिस्सेदारी रखते हैं. अपनी शुरुआत के साथ ही अपनी साझेदारियों और सहयोग से ब्रिक्स ने वैश्विक प्रशासन,, आर्थिक विकास और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लोकतांत्रिक बनाने पर न सिर्फ़ गहरा प्रभाव डाला है, बल्कि वो सहयोग विकसित करने और इसका दायरा बढ़ाने के लिए आकर्षक क़दम उठा रहे हैं. ये बात उन विकासशील देशों और उभरते हुए बाज़ारों से ज़ाहिर होती है, जिन्होंने ब्रिक्स समूह से संपर्क बढ़ाने में दिलचस्पी ज़ाहिर की है. हालांकि ब्रिक्स के हर देश की अपनी अनूठी घरेलू परिस्थितियां हैं; इसलिए, इन देशों को चाहिए कि वो असरदार तरीक़े से सहयोग करें ताकि इसकी राह में आने वाली बाधाओं और साझा चुनौतियों से पार पा सकें. ब्रिक्स देशों के मिलकर काम करने और उच्च स्तर की साझेदारियों को बढ़ावा देने की ज़रूरत आज, पहले से कहीं ज़्यादा है.
ब्रिक्स के हर देश की अपनी अनूठी घरेलू परिस्थितियां हैं; इसलिए, इन देशों को चाहिए कि वो असरदार तरीक़े से सहयोग करें ताकि इसकी राह में आने वाली बाधाओं और साझा चुनौतियों से पार पा सकें.
अपने सदस्य देशों के बीच ब्रिक्स, बड़ी तेज़ी से परिचर्चा एवं सहयोग के एक समर्पित समूह के रूप में उभरा है. अलग अलग सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था होने के बाद भी, ब्रिक्स देशों ने राजनीतिक विश्वास पैदा करने, अपने व्यावहारिक सहयोग को मज़बूत करने और अपने नागरिकों के बीच फ़ायदे वाला संपर्क बढ़ाने के लिए हमेशा मिलकर काम किया है. ब्रिक्स के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ इसकी सदस्यता का विस्तार होगा. 2021 में ब्रिक्स के नेशनल डेवलपमेंट बैंक (NDB) ने संभावित सदस्यों के साथ औपचारिक वार्ताएं की थीं. सफल वार्ताओं के बाद, ब्रिक्स के NDB ने संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, उरुग्वे और मिस्र को शामिल किए जाने की हरी झंडी दे दी. NDB के रूप में इन देशों के पास अब ब्रिक्स देशों और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों के साथ मूलभूत ढांचा क्षेत्र और टिकाऊ विकास के लिए सहयोग बढ़ाने का एक नया मंच उपलब्ध होगा. NDB के अध्यक्ष मार्कोस ट्रॉयजो और मिस्र के वित्त मंत्री डॉक्टर एच ई मुहम्मद माइत, 27वें जलवायु सम्मेलन (COP 27) के दौरान मिले थे और उन्होंने 2030 के एजेंडे के लक्ष्य आगे बढ़ाने के लिए सहयोग और साझा सामूहिक दृष्टिकोण बनाने की योजनाओं पर चर्चा की थी. मिस्र के विदेश मंत्री के मुताबिक़, हरित और टिकाऊ आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले लक्ष्य प्राप्त करने के लिए NDB के साथ काम करना, एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है.
ब्रिक्स के नेशनल डेवलपमेंट बैंक की सदस्यता का विस्तार इसके विकासशील बाज़ार की अर्थव्यवस्थाओं के एक अग्रणी विकास संस्थान बनने के लक्ष्य के अनुरूप है. ब्रिक्स की संभावनाओं का पूरा लाभ उठाने के लिए पूरी बातचीत और आम सहमति आवश्यक है. सितंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77 वें सत्र के दौरान, ब्रिक्स देशों के विदेशी मामलों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मंत्रियों की बैठक हुई थी. इस दौरान ब्रिक्स के सदस्य देशों ने अपने विस्तार की प्रक्रिया को लेकर चर्चा जारी रखी. ब्रिक्स के भीतर ये बातचीत शेरपा के ज़रिए होती है, जिसका आधार सदस्यों के बीच पूर्ण मशविरा और आम सहमति होती है. ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए ईरान और अर्जेंटीना ने औपचारिक रूप से अर्जी दी है और अल्जीरिया ऐसा देश बन गया है, जिसने ब्रिक्स में शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है. इसके अतिरिक्त, सऊदी अरब और बहरीन ने भी ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा औपचारिक रूप से ज़ाहिर की है.
कोविड-19 से वैश्विक आर्थिक संकट पैदा हुआ और इसने बेरोज़गारी, ग़रीबी और असमान जैसी कमजोरियों को और बढ़ा दिया. दुनिया अभी भी महामारी के असर, आपूर्ति श्रृंखलाओं में आई बाधाओं और उसकी वजह से आई महंगाई से उबर ही रहा है. ब्रिक्स के सदस्य देशों ने एक दूसरे का मदद किया है. जैसे भारत और दक्षिण अफ्रीका ने मिलकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इस बात की वकालत की कि कोविड-19 के इलाज से जुड़ी चीजों और टीकों के बौद्धिक संपदा के अधिकार अस्थायी रूप से निलंबित कर दिए जाएं. वहीं, ब्रिक्स वैक्सीन रिसर्च ऐंड डेवेलपमेंट सेंटर की शुरुआत भी हुई, जिससे सहयोग को मज़बूती दी जा सके और विकासशील देशों के लिए सस्ते टीके मुहैया कराना, टीकों के बाज़ार तक पहुंच बढ़ाना, जांच और इलाज को बढ़ावा दिए जाने जैसे काम हो सकें. इन साहसिक कोशिशों के बाद भी आज जब ब्रिक्स, महामारी पर क़ाबू पाने और वैश्विक आर्थिक प्रगति दोबारा हासिल करने में मदद कर रहा है, तो उसे आगे बहुत से काम करने हैं. अभी भी ब्रिक्स देशों को व्यापक आर्थिक नीतिगत समन्वय और बहुपक्षीय सहयोगके जरिए आर्थिक बहाली को बढ़ावा देना है. एक मैक्रोइकोनॉमिक सूचकांक दर्शाता है कि चीन को छोड़ दें तो ब्रिक्स के बाक़ी देशों पर कोविड-19 का नकारात्मक असर पड़ा था. नीचे Figure 1 ये दिखाता है कि 2020 में ब्राज़ील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका की GDP कम हो गई थी. इन चारों देशों को कोविड-19 के कारण काफ़ी आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ा था, और महामारी के चलते दक्षिण अफ्रीका में बेरोज़गारी, ग़रीबी और असमानता बहुत बढ़ गई थी. 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान चीन की GDP 408 अरब डॉलर बढ़ गई थी और 2019 के 14,280 अरब डॉलर की तुलना में 2020 में बढ़कर 14,688 अरब डॉलर हो गई थी. जबकि, बाक़ी के चार देशों की GDP में गिरावट दर्ज की गई थी. हालांकि 2020 में गिरावट के बाद भी 2021 में ब्रिक्स देशों की GDP में वृद्धि दर्ज की गई. 2021 में ब्रिक्स के सभी देशों की GDP में इज़ाफ़ा दर्ज किया गया था. चीन तो कोविड-19 महामारी का केंद्र ही था, लेकिन वो उस पर उचित रूप से क़ाबू पाने में सफल रहा था, जिससे उसका आर्थिक प्रदर्शन और बेहतर हो गया था.
ब्रिक्स के भीतर ये बातचीत शेरपा के ज़रिए होती है, जिसका आधार सदस्यों के बीच पूर्ण मशविरा और आम सहमति होती है. ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए ईरान और अर्जेंटीना ने औपचारिक रूप से अर्जी दी है और अल्जीरिया ऐसा देश बन गया है.
Figure 1: GDP (मौजूदाअरबडॉलरमें), 2020-21
कोविड-19 के नकारात्मक प्रभाव के बाद भी ब्रिक्स देशों ने महामारी के बाद के भविष्य की दिशा में काम करने के लिए अपने रिश्तों को मज़बूत बनाया है. हालांकि, पहले और हाल के दिनों में भी दुनिया ने ये देखा है कि आर्थिक गिरावट से आर्थिक राष्ट्रवाद बढ़ता है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में दरारें पड़ जाती हैं. फिर भी इसे बदलने का एक अवसर ब्रिक्स के सामने है, जिससे वो आर्थिक सहयोग को गहरा बना सके, बढ़ा सके. इसके पूरक सहयोग के तौर पर अवसरों की पहचान कर सके. दुनिया पहले ही एक दूसरे पर निर्भर है. ऐसे में महामारी और आपूर्ति श्रृंखलाओं में पड़े खलल ने दिखाया है कि देशों के बीच दरारें और बढ़ने से ज़्यादा बड़ी सुस्ती और दुनिया पर महंगाई की और भारी मार पड़ सकती है. वैश्विक आर्थिक प्रकाशन बेहतर बनाने के लिए सामूहिक प्रयास करने के लिए ब्रिक्स देशों को चाहिए कि वो अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं से और नज़दीकी से तालमेल बनाएं और G20, विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे मंचों पर भी आपसी सहयोग में इज़ाफ़ा करें.
आपसी सहयोग को मज़बूती देने से बहुपक्षवाद की ऐतिहासिक सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकेगा. इसके अलावा, गहराई से संपर्क होने से अधिक सकारात्मक माहौल में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को काफ़ी मज़बूती मिलती है. इसके अतिरिक्त ब्रिक्स देशों और NDB के मौजूदा और इसके सदस्य बनने के आकांक्षी के बीच निवेश और सहयोग बढ़ने से ब्रिक्स का अधिकतम सदुपयोग हो सकेगा और इसे विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की रूढ़िवादिता की तुलना में बेहतर विकल्प के तौर पर खड़ा किया जा सकेगा. ब्रिक्स में निवेश और निवेश की सुविधा देना, सहयोग के अहम क्षेत्र रहे हैं. निवेश से समान विकास और टिकाऊ तरक़्क़ी को प्रोत्साहन मिल सकता है. निवेश की सुविधा बढ़ाने से निवेश को बढ़ावा मिल सकता है, और अगर इसे राष्ट्रीय विकास की योजनाओं और लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाए, तो निवेश पाने वाले देशों में औद्योगीकरण और संरचनात्मक बदलाव की रफ़्तार तेज़ हो सकती है. ब्रिक्स देशों ने आपस में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई समझौतों और संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं. आर्थिक अनिश्चितता के इस दौर में वैश्विक संकट से उबरने के लिए इन समझौतों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. इसके अतिरिक्त ब्रिक्स समूह का विकास इसे और वैधानिकता देता है और इस विश्वास को भी मजबूती देता है कि ये संबंध उपयोगी है.
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