Author : Anchal Vohra

Published on Aug 21, 2019 Updated 0 Hours ago

अगर समय रहते अंतरराष्ट्रीय समुदाय सीरियाई संकट का समाधान नहीं निकालता तो ऐसे शरणार्थियों की संख्या बढ़ सकती है. न ही तुर्की और न ही लेबनान इन शरणार्थियों का बोझ हमेशा के लिए उठाने की हालत में हैं.

सीरियाई शरणार्थियों पर लेबनान, तुर्की की कार्रवाई

सीरियाई शरणार्थियों के प्रति तुर्की और लेबनान के लोगों में गुस्सा बढ़ा है. फ़ोटो: Spencer Platt/Getty Images

लेबनान और तुर्की में जो सीरियाई शरणार्थी अवैध रूप से रह रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ दोनों देशों ने कार्रवाई शुरू कर दी है. वहां हजारों सीरियाई शरणार्थियों को हिरासत में लिया गया है और उन्हें वापस भेजा जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह बड़ी संख्या में सीरियाई शरणार्थियों को वापस भेजे जाने की शुरुआत है. असल में लेबनान और तुर्की की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है और स्थानीय लोगों में सीरियाई शरणार्थियों के ख़िलाफ़ गुस्सा भी बढ़ रहा है.

लेबनान की नेशनल न्यूज़एजेंसी के मुताबिक इस साल मई में 301 सीरियाई वापस भेजे गए. अधिकारियों ने बताया कि 24 अप्रैल के बाद सीरिया से जो लोग अवैध रूप से आए थे, सिर्फ उन्हें ही वापस भेजा गया है. उन्होंने बताया कि यह कदम सरकार के इस साल की शुरुआत में लिए गए फैसले के मुताबिक है. हालांकि, लेबनान के 8 स्वयंसेवी संगठनों (एनजीओ) ने सरकार के फैसले को चुनौती दी है और वे उसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इनमें लीगल एजेंडा नाम का एनजीओ भी शामिल है. उसका कहना है कि यह लेबनान की कानूनी प्रतिबद्धताओं के ख़िलाफ़ है, जिसमें कहा गया है कि अगर किसी की जिंदगी और आज़ादी को खतरा हो तो उसे जबरन उसके देश वापस नहीं भेजा जाना चाहिए. लीगल एजेंडा की मांग है कि भविष्य में वापस भेजे जाने के मामलों में सीरियाई शरणार्थियों को अपना बचाव करने का अधिकार मिलना चाहिए. उन्हें अदालत में अपना पक्ष रखने दिया जाए. वे अदालत को बता सकते हैं कि वे क्यों सीरिया नहीं लौटना चाहते.

यूं तो सीरिया के बड़े हिस्से में युद्ध खत्म हो गया है, लेकिन वहां की सरकार लौटने वाले शरणार्थियों को ज़बरदस्ती सेना में शामिल कर रही है या उन्हें मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया जा रहा है. इसलिए सीरियाई और अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि शरणार्थियों की वापसी अभी सुरक्षित नहीं है.

यूं तो सीरिया के बड़े हिस्से में युद्ध खत्म हो गया है, लेकिन वहां की सरकार लौटने वाले शरणार्थियों को ज़बरदस्ती सेना में शामिल कर रही है या उन्हें मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया जा रहा है. इसलिए सीरियाई और अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि शरणार्थियों की वापसी अभी सुरक्षित नहीं है. लेबनान ने हाल ही में अपने यहां रहने और काम करने के लिए लाइसेंस के नियमों में भी सख़्तीकी है, जिससे सीरियाई शरणार्थियों पर बुरा असर पड़ा है. लेबनान का कानून कहता है कि किसी भी विदेशी को लंबे समय तक देश में रहने और काम करने के लिए ये लाइसेंस लेने पड़ेंगे, लेकिन अधिकारी अभी तक सीरियाई शरणार्थियों के साथ इस मामले में नरमी बरत रहे थे और उनसे लाइसेंस की मांग नहीं की जा रही थी. 1993 में सीरिया और लेबनान के बीच आर्थिक और सामाजिक सहयोग के लिए द्विपक्षीय समझौता हुआ था. इसके मुताबिक, एक दूसरे के नागरिकों को बेरोकटोक आवाजाही, रुकने और काम करने की छूट दी गई थी. सीरिया संकट शुरू होने पर इस समझौते के मुताबिक लेबनान ने वहां से आने वाले शरणार्थियों को नहीं रोका और यूएनएचसीआर को उनका रजिस्ट्रेशन भी करने दिया. हालांकि, 2015 में जब शरणार्थियों की संख्या 10 लाख पहुंच गई, तब लेबनान ने उनके लिए अपने दरवाज़ेबंद कर दिए. इसके बावजूद युद्ध और सरकार की बदले की कार्रवाई से बचने के लिए सीरिया-लेबनान सीमा पर खतरनाक पहाड़ियों को पार करके वहां से लोग लेबनान आते रहे.

एक अनुमान के मुताबिक, लेबनान में अभी 15 लाख सीरियाई रह रहे हैं. लेबनान को लगा था कि अगर वह नए शरणार्थियों का रजिस्ट्रेशन बंद कर देगा और रेजिडेंसी परमिट यानी वहां रहने के लिए जरूरी लाइसेंस को महंगा बना देगा तो सीरिया से आने वालों का सिलसिला रुक जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दूसरी तरफ, रेजिडेंसी परमिट के महंगा होने के कारण लेबनान में रह रहे 74 प्रतिशत सीरियाई इसे नहीं ले पाए.

सीरिया में युद्ध का यह 9वां साल है. इससे 60 लाख लोग शरणार्थी बने हैं, जिनमें से 50 लाख लेबनान और तुर्की में रह रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि शरणार्थियों की वजह से दोनों देशों के सिविक इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव बना है. इधर उनके प्रति स्थानीय लोगों का आक्रोश भी बढ़ रहा है. तुर्की और लेबनान में इस डर को हवा दी गई कि सीरियाई शायद कभी भी यहां से नहीं जाएंगे और वे उनकी नौकरियों पर डाका डाल रहे हैं. इससे सीरियाई शरणार्थियों के प्रति तुर्की और लेबनान के लोगों में गुस्सा बढ़ा है. हाल ही में तुर्की ने करीब हजार सीरियाई को हिरासत में लिया था और उनमें से कई लोगों को उसने उनके देश भेज दिया. अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि तुर्की ने सीरियाई शरणार्थियों से जबरन ऐसे फॉर्म पर दस्तखत ले लिए, जिन पर लिखा था कि वे स्वेच्छा से सीरिया लौटना चाहते हैं. लेबनान की तरह तुर्की भी सीरियाई शरणार्थियों को वापस भेजने पर होने वाली अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचना चाहता है. इसलिए वहां के अधिकारी कथित तौर पर सीरियाई शरणार्थियों से ज़बरदस्ती इन फॉर्म्स पर दस्तखत ले रहे हैं.

तुर्की और लेबनान में इस डर को हवा दी गई कि सीरियाई शायद कभी भी यहां से नहीं जाएंगे और वे उनकी नौकरियों पर डाका डाल रहे हैं.

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “तुर्की सरकार के अधिकारी सीरियाई लोगों को हिरासत में ले रहे हैं और उन पर ऐसे फॉर्म पर साइन करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, जिनमें लिखा है कि वे अपनी मर्जी से सीरिया लौटना चाहते हैं.” एनजीओ ने ऐसे चार सीरियाई लोगों से फोन पर बात की, जिन्हें तुर्की में पहले हिरासत में लिया गया और बाद में उन्हें ज़बरदस्ती सीरिया भेज दिया गया. कई सीरियाई शरणार्थियों को तुर्की की सीमा से लगे इदलिब में ज़बरदस्ती भेजा गया है. यह सीरिया का अकेला प्रांत है, जहां आईएसआईएस का कब्जा खत्म किए जाने और देश के दूसरे हिस्सों से असद विरोधियों को भगाए जाने के बाद युद्ध जारी है. अप्रैल के बाद से सीरियाई सेना रूस से लड़ाकू विमानों के साये में 2,000 से अधिक लोगों की हत्या कर चुकी है. द गार्डियन में सीरियाई एनजीओ के हवाले से छपी एक खबर के मुताबिक, पिछले दो साल में तुर्की से करीब 2,600 सीरियाई लोगों को वापस भेजा गया है. तुर्की के गृह मंत्री सुलेमान सोयलु ने सीरियाई शरणार्थियों को जबरन वापस भेजे के आरोप को गलत बताया था. उन्होंने दावा किया कि जो लोग खुद सीरिया लौटना चाहते हैं, सरकार सिर्फ उनकी मदद कर रही है. पिछले कुछ हफ्तों से तुर्की की राजधानी इस्तांबूल में अनरजिस्टर्ड सीरियाई लोगों के ख़िलाफ़ एक अभियान शुरू हुआ है. इस्तांबूल में करीब 10 लाख सीरियाई रह रहे हैं, जिनमें से आधे ही रजिस्टर्ड हैं. माइग्रेंट सॉलिडेरिटी एसोसिएशन के मुताबिक, तुर्की के अन्य शहरों में करीब 3.5 लाख रजिस्टर्ड शरणार्थी हैं. तुर्की सरकार ने सीरियाई शरणार्थियों से कहा है कि वे इस्तांबूल से उन शहरों में लौट जाएं, जहां उन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है. अधिकारियों का कहना है कि जो लोग इस्तांबूल में अवैध तरीके से रह रहे हैं, उन्हें बाहर किया जाएगा. इससे शरणार्थियों की बेचैनी बढ़ गई है. ये लोग इस्तांबूल में काम की तलाश में आए थे. यहां आने का उनका मकसद अपने परिवार के गुज़र-बसर के लिए पैसा कमाना है.

अभी तक लेबनान और तुर्की से बड़ी संख्या में सीरियाई शरणार्थियों को वापस नहीं भेजा गया है. अगर समय रहते अंतरराष्ट्रीय समुदाय सीरियाई संकट का समाधान नहीं निकालता तो ऐसे शरणार्थियों की संख्या बढ़ सकती है. न ही तुर्की और न ही लेबनान इन शरणार्थियों का बोझ हमेशा के लिए उठाने की हालत में हैं.

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