Author : Rasheed Kidwai

Published on Jul 16, 2019 Updated 0 Hours ago

कर्नाटक में कांग्रेस समर्थित सरकार अगर गिर भी जाती है, तो कांग्रेस को इस पर कोहराम मचाने के बजाय आत्मनिरीक्षण करना चाहिए.

कर्नाटक में सबके लिए सबक: सरकार बच भी सकती है और नहीं भी बच सकती

कर्नाटक विधानसभा में होने वाले फ्लोर टेस्ट में एच डी कुमारस्वामी की सरकार बच भी सकती है और नहीं भी बच सकती है. स्पीकर ने मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने का मौका दिया है. वह आगामी 18 जुलाई को सदन में बहुमत साबित करेंगे. सोमवार को सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने स्पीकर के साथ मुलाकात की थी, जिसके बाद स्पीकर ने यह फैसला लिया. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस-जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस), कांग्रेस के आलाकमान और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए कई सबक हैं.

गठबंधन धर्म के नियमों को सीखने में कभी देर नहीं होती, इन्हें कभी भी सीखा जा सकता है. लेकिन कांग्रेस और जेडीएस नेतृत्व ने हरसंभव तरीके से 2018 के विधानसभा चुनाव का मजाक बना दिया. कर्नाटक में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी केरल से कुछ सीख क्यों नहीं ले सकी, जहां देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पिछले पांच दशकों से गठबंधन सरकार का हिस्सा रही है?

23 मई, 2019 को आए लोकसभा चुनाव के नतीजे में कांग्रेस के बदतर प्रदर्शन के बाद भी कुमारस्वामी, सिद्धारमैया और कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व दीवार पर लिखी इबारत पढ़ पाने और सुधारात्मक कदम उठाने में विफल रहे. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गांधी अपने इस्तीफे पर अडिग रहे और कांग्रेस के प्रबंधकों ने पार्टी में बिखराव को रोकने के लिए बंगलूरू या पणजी के राजनीतिक हालात पर बहुत कम दिया या बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया.

कांग्रेस के लिए एकमात्र अच्छी बात यह रही कि डी के शिवकुमार और रमेश कुमार जैसे शक्तिशाली क्षेत्रीय नेताओं का उदय हुआ, जिन्होंने राजनीतिक कुशाग्रता के साथ तेजी से काम किया तथा कुमारस्वामी सरकार को बचाने की कोशिश की. स्पीकर रमेश कुमार ने इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, चाहे राज्य के राज्यपाल हों या सुप्रीम कोर्ट के साथ संपर्क हो, वह चट्टान की तरह अडिग खड़े रहे.

बेशक रमेश कुमार मणिपुर के बोरोबाबू सिंह की सीमा तक नहीं गए, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश न मानते हुए अपने लिए अदालती अवमानना की कार्यवाही आमंत्रित कर ली थी, लेकिन उन्होंने कांग्रेस और जेडीएस के उन विद्रोही विधायकों के सामने मुश्किलें जरूर खड़ी कर दी, जो कहां तो इस्तीफा देना चाह रहे थे, और कहां उन पर अयोग्य ठहराए जाने का खतरा मंडरा रहा था.

69 वर्षीय के आर रमेश कुमार फैसले की घड़ी में संविधान का अनुपालन करने के लिए जाने जाते हैं. इससे पहले 1994-99 में विधानसभा अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके रमेश कुमार ने दस विधायकों से मिलने के बाद मीडिया को बताया कि, “मैं नियमों से नहीं भटक सकता, भले इससे कुछ लोगों को फायदा हो और दूसरों को नहीं हो.” ये सभी विधायक उनसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मिले थे.

बहुत कम लोगों को पता होगा कि हेमंत बिस्व शर्मा की तरह (जिन्हें कड़वे अनुभव के बाद कांग्रेस से भाजपा में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा) रमेश कुमार को भी कांग्रेस आलाकमान के अपमान का सामना करना पड़ा था. कुछ वर्ष पहले वह 24, अकबर रोड, नई दिल्ली आए थे, लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने उन्हें इंतजार कराया और धैर्यपूर्वक उनकी बात सुने बिना उन्हें चले जाने के लिए कहा.

कर्नाटक के कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि यह एक सराहनीय काम है कि रमेश कुमार फिर भी कांग्रेस के प्रति वफादार बने रहे और हेमंत बिस्व शर्मा की तरह शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व को बदनाम करने तथा पार्टी छोड़ने का तरीका नहीं अपनाया.

डी के शिवकुमार का भी बार-बार कांग्रेस को बचाने का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड है. कर्नाटक की राजनीति में 57 वर्षीय शिवकुमार को कोतवाल के रूप में संबोधित किया जाता है. कर्नाटक में कांग्रेस का झंडा उठाए रखने के लिए उन्हें मिले तमाम इनामों के बावजूद, जब शीर्ष पद देने या यहां तक कि उप-मुख्यमंत्री बनाने का वक्त आया, तो उनकी अनदेखी कर दी गई. कर्नाटक का चाहे जो भी फैसला हो, कांग्रेस को शिव कुमार को राष्ट्रीय स्तर का पदाधिकारी बनाने पर विचार करना चाहिए.

भाजपा के पास भी कर्नाटक के घटनाक्रम पर विचार करने और काफी कुछ सीखने के लिए है. यदि बीएस येदियुरप्पा कुमारस्वामी की सरकार को पटखनी देने में सफल रहते हैं, तो वैकल्पिक शासन के पास बहुत मामूली बहुमत तो होगा ही, सरकार गिराने के कारण उनकी आलोचना भी होगी. उम्र और छवि भी, जाहिर है, येदियुरप्पा के पक्ष में नहीं है. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका विश्लेषण करना चाहिए कि क्या यह वास्तव में भाजपा के लिए मददगार हो सकता है.

भाजपा के पास कर्नाटक में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड जैसे उन राज्यों के साथ चुनाव कराने का विकल्प है, जहां, 2019 के लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखते हुए, भाजपा स्पष्ट विजेता प्रतीत होती है. एक निर्णायक और प्रत्यक्ष जीत दलबदल या अवैध शिकार के माध्यम से गठित सरकार की तुलना में बेहतर है.

यह सच है कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों के दौर में कई गैर-कांग्रेस राज्य सरकारें गिराई गईं. राजीव के गृह मंत्री बूटा सिंह को राजीव की कुल्हाड़ी के रूप में अपनी प्रतिष्ठा से प्यार था. 1885 से 1989 के बीच उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में इतनी राज्य सरकारें गिराईं कि राजीव को उनसे मजाक में कहना पड़ा, “बूटा सिंह जी, अब आप कृपाण अंदर रखिए.”

इस तरह की संदिग्ध विरासत और ट्रैक रिकॉर्ड के होते हुए अगर कर्नाटक में कांग्रेस समर्थित सरकार गिर भी जाती है, तो कांग्रेस को इस पर कोहराम मचाने के बजाय आत्मनिरीक्षण करना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी इस तरह के गैर जिम्मेदार और अलोकतांत्रिक रास्ते पर चलने से उपजी प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखना चाहिए.


ये लेख मूल रूप से अमर उजाला में प्रकाशित की गई थी.

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