Author : Antara Sengupta

Published on Apr 02, 2018 Updated 0 Hours ago

उचित और आवश्यक कौशल सिखाने के लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उद्योग जगत की सार्थक भागीदारी जरूरी है।

कौशल-शिक्षा के लिए नवीनतम तरीकों की दरकार
स्रोत: पीटीआई

भारत की 1.3 बिलियन आबादी में आधे से भी ज्यादा लोगों की आयु 25 साल भी कम है। [1] अनुमान है कि 2020 तक भारत की आबादी की औसत आयु 29 साल होगी, जबकि इसकी तुलना में अमेरिका की औसत आयु 40 साल, यूरोप की 46 साल और जापान की 47 साल होगी। भारत चूंकि संतोषजनक रोजगार के अवसरों के सृजन और अपनी युवा श्रम शक्ति को उचित तरीके से तैयार करने की जद्दोजहद कर रहा है, ऐसे में यह जनसंख्यकीय लाभांश उसके लिए प्रगति के स्रोत की जगह नुकसानदाय​क साबित हो सकता है।

भारत, दुनिया की सबसे तेजी बढ़ने वाली विशाल अर्थव्यवस्था है। भारत की वृद्धि से मिलने वाले लाभ बेहद संकेंद्रित रहे हैं और देश की राष्ट्रीय आय का 22 प्रतिशत उसकी आबादी के महज एक फीसदी लोगों तक पहुंच रहा है और निचले 50 प्रतिशत लोगों की पहुंच इस आय के महज 15 प्रतिशत भाग तक है। [2] उचित वृद्धि हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि अपनी श्रम-शक्ति को रोजगार पाने लायक कौशलों और जानकारी से संपन्न किया जाए, ताकि वे देश के विकास में प्रभावी योगदान दे सकें और उसके लाभ उठा सकें।

ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2022 तक 104.62 मिलियन नए कामगार श्रम बाजार तक पहुंच जाएंगे। उचित कौशल का अभाव और बहुत कम शिक्षा प्राप्त करना भारत के​ लिए चुनौती प्रस्तुत कर सकता है। [3] वर्तमान में बेरोजगार युवाओं (15-24) की दर 10.1 प्रतिशत है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भारत के 43 प्रतिशत युवाओं की रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण तक पहुंच नहीं है। [4] इस श्रम-शक्ति को तैयार करना भारत की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। तीन चीजों की खासतौर पर जरूरत है — उचित और आवश्यक कौशलों की शिक्षा प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उद्योग जगत की सार्थक भागीदारी, स्पष्ट मापदंड और प्रमाणन प्रणाली तथा समुचित ढंग से डिजाइन और लागू की गई दीर्घकालिक कौशल विकास संबंधी कार्यनीति। कौशल विकास के लिए अनेक कदम पहले से उठाए जा चुके हैं जिनमें औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई), महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान, प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) द्वारा संचालित उन्नत प्रशिक्षण संस्थान और निजी कम्पनियों या सरकार द्वारा संचालित बेसिक ट्रेनिंग सेंटर और संबंधित इंस्ट्रक्शन सेंटर शामिल हैं। अन्य के अलावा केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), अनेक मंत्रालयों और विभागों जैसे कृषि, आवास एवं गरीबी उपशमन, महिला और बाल विकास, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रशिक्षणों का संचालन तथा मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा बैचलर ऑफ वोकेशन (बी.वोक) और डिप्लोमा ऑफ वोकेशन का संचालन किया जा रहा है।


सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भारत के 43 प्रतिशत युवाओं की रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण तक पहुंच नहीं है।


इन बहुआयामी प्रयासों के बावजूद, भारत लगभग 487 मिलियन की अपनी कुल श्रम-शक्ति (15-59 वर्ष की आयु वाले लोगों)में से औपचारिक रूप से महज 4.69 प्रतिशत को ही औपचारिक तौर पर प्रशिक्षित कर सका है। [5] सबसे हैरतंगेज बात तो यह है कि पिछले महीने टीमलीज़ सर्विसिज की ओर से जारी रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में भाग लेने वाले महज 18 फीसदी छात्रों को ही नौकरियां मिलीं, जिनमें से महज 7 फीसदी छात्रों को ही यह नौकरियां औपचारिक क्षेत्र में मिलीं। देश में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का आकलन करने के लिए सरकार की ओर से ऐसे और भी अध्ययन कराए जाने चाहिए।

तो आखिर कमी कहां है?

पहला, हाल ही में शारदा प्रसाद समिति (एसपीसी)ने ”अपर्याप्त इंडस्ट्री इंटरफेस” को भारत में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली के समक्ष मौजूद प्रमुख मसलों में से एक करार दिया है। [6] इसे अनेक सरकारी योजनाओं का विश्लेषण करने वाली विश्व बैंक की 2008 की एक रिपोर्ट में बल मिलता है। [7] जहां एक ओर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण व्यवस्था (वीईटी) तैयार किया जाना जरूरी है, वहीं इस संदर्भ में उद्योग जगत की भूमिका की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। वीईटी कोर्सेज के डिजाइन और पाठ्यक्रम तैयार करने में उद्योग जगत से पर्याप्त इनपुट नहीं लिए जाने के कारण अक्सर वहां सिखाए जाने वाले कौशल नियोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते।

लीप स्किल अकेडेमी की संस्थापक मेघा अग्रवाल का भी मानना है कि व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण में उद्योग जगत को शामिल नहीं किया जाना कौशल विकास क्षेत्र के समक्ष वर्तमान में आ रही प्रमुख चुनौतियों में से एक है। इसमें डिलिवरी,संस्थाओं के प्रबंधन और पाठ्यक्रम तैयार करने में उद्योग को ज्यादा शामिल नहीं किया जाना शामिल है। इन सभी पहलुओं में उद्योग जगत की कम भागीदारी से ऐसी परिस्थिति तैयार हुई है, जहां कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के बहुत से प्रतिभागी शिक्षा और प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद भी रोजगार पाने के योग्य नहीं रहते।

आईआईटी बेंगलौर द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया कि संस्थान प्रबंधन समितियों (आईएमसी) में नियोक्ता की भागीदारी सीमित है। इन समितियों का गठन 2007-08 में उद्योग जगत के निकायों के रूप में किया गया था और इन्हें नए कोर्स, कोर्स के पाठ्यक्रम शुरु करने तथा प्रशिक्षकों को नियुक्त करने का जिम्मा सौंपा गया था। [8] टीमलीज़ सर्विसिज द्वारा जारी रिपोर्ट में पाया गया कि राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद (एनएसडीसी) उद्योग जगत की जरूरतों के अनुरूप कोर्स की रूपरेखा और पाठ्यक्रम का तालमेल बिठाने में समर्थ नहीं रही। सर्वेक्षण में शामिल किए गए 78 प्रतिशत से ज्यादा छात्रों और 66 प्रतिशत नियोक्ताओं ने इन संस्थाओं और इनके द्वारा संचालित किए जा रहे कोर्सेज को औसत या खराब बताया है। [9] एक नए रास्ते की रूपरेखा तैयार किए जाने की जरूरत है, जो वीईटी के डिजाइन और डिलिवरी में उद्योग जगत को ज्यादा प्रभावी रूप से शामिल करे। इसकी जिम्मेदारी सरकार और साथ ही साथ निजी क्षेत्र, दोनों को उठानी होगी। उद्योग जगत के प्रतिनिधित्व के बगैर वीईटी व्यवस्था तैयार करना बेकार है।

दूसरा, देश में कौशल प्रशिक्षण के प्रमाणन मापदंड तय करने की तत्काल जरूरत है। वर्तमान में, डीजीटी और एनएसडीसी के साथ-साथ करीब 20 मंत्रालय व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का संचालन करते हैं। उपलब्ध कार्यक्रमों के बारे में स्पष्टीकरण के अभाव और विविध कार्यक्रमों के प्रावधान के कारण नियोक्ताओं को इस प्रशिक्षण की समग्रता और गुणवत्ता पर विश्वास नहीं है।

पाठ्यक्रम और प्रमाणन के मापदंड तय करने के लिए सरकार को चाहिए कि वह नेशनल स्‍किल्स क्‍वालिफिकेशन फ्रेमवर्क के तहत गुणवत्ता या क्वालिटी पैक्स के आकलन की जिम्मेदारी औद्योगिक इकाइयों को सौंपे, ताकि उन्हें उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप बनाया जा सके। क्वालिटी पैक्स व्यावसायिक मापदंड हैं, जो नौकरी की भूमिका के अनुरूप उद्योग जगत की अगुवाई वाली क्षेत्र कौशल परिषदों द्वारा तैयार किए जाते हैं। इसके बाद यह पता लगाने के लिए नियमित रूप से तीसरे पक्ष द्वारा इनका आकलन किया जाना चाहिए कि प्रशिक्षण संस्थानों या प्रदाताओं द्वारा एनएसक्यूएफ का पालन किया जा रहा है या नहीं।


देश में कौशल प्रशिक्षण के प्रमाणन मापदंड तय करने की तत्काल जरूरत है। वर्तमान में, डीजीटी और एनएसडीसी के साथ-साथ करीब 20 मंत्रालय व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का संचालन करते हैं।


वर्तमान में, प्रशिक्षण में सहभागी बनने वाली इकाइयों को छात्रों को नौकरी पर लगाने के लक्ष्य दिए गए हैं — उन्हें दाखिला लेने वाले शत-प्रतिशत छात्रों को नौकरी दिलानी होगी। इस मॉडल के दो प्रमुख जोखिम हैं — पहला —प्रशिक्षुओं को ऐसे पद पर और ऐसे नियोक्ताओं के यहां नौकरी पर रखवा दिया जाता है, जो शायद उनकी दिलचस्पी या कौशलों के अनुरूप न हो। दूसरा — नौकरी दिलाने के लक्ष्यों में कौशलों की गुणवत्ता तथा कार्यक्रमों के प्रभावी होने के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है। इसकी बजाए, उद्योगों को कुछ आईटीआई को (या किसी भी मौजूद प्रशिक्षण संस्थान)पाठ्यक्रम तैयार करने में सहायता देनी चाहिए, छात्रों को प्रशिक्षण देना चाहिए और आखिर में उन्हीं में से कुछ प्रतिभागियों को नौकरी पर रख लेना चाहिए।

तीसरा, राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यनीति को मौजूदा कार्यक्रमों के मूल्यांकनों तथा उनके प्रभाव के प्रमाण के अभाव सहित अनेक मामलों पर गौर करने की जरूरत है। भविष्य के लिए प्रभावी रास्ता तैयार करने के लिए मौजूदा प्रयासों का सही आकलन करना आवश्यक होगा।

इसके अलावा, अन्य संदर्भों में किए गए अनेक मूल्यांकनों से इन कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव करने की प्रकृति का पता चला है। इसके महिलाओं और पुरुषों के वेतन में अंतर की प्रवृत्ति दोबारा शुरू होने सहित दूरगामी परिणाम होंगे, क्योंकि महिलाओं को अक्सर कम तनख्वाह वाले व्यवसायों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। भारत की कौशल प्रशिक्षण व्यवस्था को अधि​क से अधिक महिलाओं को श्रमशक्ति में, विशेषकर उच्च—कौशल वाली, फुल—टाइम, उच्च—वेतन वाले व्यवसायों में लाने के तरीके तलाशने होंगे। पिछले साल प्रकाशित अध्ययन में एविडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन (ईपीओडी) ने कौशल भारत के अंतर्गत सबसे बड़े सरकारी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में से एक के 2,610 से ज्यादा पूर्व कौशल प्रशिक्षुओं का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि प्रशिक्षण के बाद, पुरुष प्रतिभागियों को नौकरी का प्रस्ताव मिलने की संभावना महिलाओं से 13 प्रतिशत अधिक थी। 15 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में लगभग एक-तिहायी महिलाओं को नौकरी का प्रस्ताव नहीं मिला। [10]

एक अन्य मामला जिस पर ध्यान देने की जरूरत है—वह है कौशल संबंधी पहल का युवाओं की महत्वाकांक्षाओं और प्राथमिकता के साथ संयोजन। जिस ईपीओडी के अध्ययन का उल्लेख ऊपर किया गया है, में पाया गया कि उसमें शामिल 74 प्रतिशत युवा सर्वेक्षण के समय (जो प्रशिक्षण कार्यक्रम समाप्त होने के औसतन नौ महीने बाद किया गया था) अपनी नौकरी छोड़ चुके थे। इतना ही नहीं, नौकरी छोड़ने वालों में से महज 20 प्रतिशत को नई नौकरी मिल चुकी थी।[11] इससे कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के डिजाइन तथा प्रतिभागियों की इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं, स्वतंत्रता तथा क्षमताओं के बेमेल होने की संभावना उजागर होती है।

अंतत:, नौकरी से संबंधित विशिष्ट कौशल उपलब्ध कराने का प्रमुख दृष्टिकोण होने के बावजूद, उन कौशलों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, जो युवाओं को तालमेल कायम करने में समर्थ बनाएं। इसके साकार करने तथा युवाओं को अपने पूरे सामर्थ्य का इस्तेमाल करने में समर्थ बनाने के लिए बुनियादी शिक्षा अनिवार्य है। सबसे बढ़कर, श्रम बाजार के ढांचे में बदलावों और तकनीके अपनाने के क्रम में आई तेजी के कारण, सॉफ्ट स्किल्स, इंटरपर्सनल स्किल्स, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण चिंतन के क्षेत्र में कुशल और अकुशल श्रमिक के वेतन में अंतर देखा जा सकता है। भविष्य में यही सब कौशल विकास कार्यनीतियों का केंद्र बिंदु होना चाहिए।

रोजगार संबंधी चुनौतियों को देखते हुए, भारत को हर हाल में अपनी आबादी को कौशल और शिक्षा प्रदान करने के नवीनतम तरीके तलाशने होंगे। भविष्य की कार्यनीति में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उद्योग कौशल विकास कार्यक्रमों को आकार देने में अहम भूमिका निभाएं। इतना ही नहीं, डिलिवरी की गुणवत्ता और नियोक्ताओं के बीच विश्वास सुनिश्चित करने के लिए भारत में कौशल प्रशिक्षण के प्रमाणन के मानक तय किए जाने चाहिए। इसके अलावा, प्रशिक्षण और श्रमशक्ति में महिलाओं और पुरुषों के बीच बरकरार अंतर, साथ ही साथ युवाओं की महत्वाकांक्षाओं तथा मजबूत मूलभूत शिक्षा की जरूरत के लिए दीर्घकालिक कौशल विकास कार्यनीति को आवश्यक रूप से जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने तथा समावेशी वृद्धि का रास्ता तैयार करने के लिए अपनी बढ़ती युवा आबादी को कौशल प्रदान करने, कौशलों को उन्नत बनाने तथा नए कौशल प्रदान करने के कारगर तरीके तलाशने होंगे।


[1] Ministry of Skill Development and Entrepreneurship

[2] World Wealth and Income Database, http://wid.world/country/india/ National income=pre-tax income + pretax capital gains

[3] National Policy on Skills Development and Entrepreneurship 2015 http://www.skilldevelopment.gov.in/National-Policy-2015.html

[4] The World Bank 2012 https://data.worldbank.org/indicator/SL.UEM.NEET.ZS?locations=IN 2012 numbers

[5] Ministry of Skill Development and Entrepreneurship

[6] Report of the committee for rationalization & optimization of the functioning of the sector skill councils http://msde.gov.in/report-ssc.html 2017

[7]The World Bank, 2008 http://documents.worldbank.org/curated/en/798621468041438738/Skill-development-in-India-the-vocational-education-and-training-system

[8] https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0970389616300209

[9] Team Lease Services 2018

[10] Soledad Artiz Prillman et al, 2017, “What Constrains Young Indian Women’s Participation? Evidence form a Survey of Vocational Trainees. https://epod.cid.harvard.edu/files/epod/files/pandeprillamanmooresingh_skillspolicybrief.pdf

[11] Soledad Artiz Prillman et al, 2017, “What Constrains Young Indian Women’s Participation? Evidence form a Survey of Vocational Trainees. https://epod.cid.harvard.edu/files/epod/files/pandeprillamanmooresingh_skillspolicybrief.pdf

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