Author : Naghma Sahar

Published on Oct 24, 2018 Updated 0 Hours ago

समस्या की बड़ी वजह है मध्य पूर्व में अमेरिकी विदेश नीति।

खाशोज्जी हत्याकांड, पश्चिमी एशिया में इस्लाम पर कब्जे की लड़ाई का नतीजा है

पत्रकार जमाल खाशोज्जी हत्याकांड पर टर्की के पोल खोलने के दावे का इंतज़ार था। जब राष्ट्रपति एर्दोआन बोले तो जो उनहोंने नहीं कहा वो उस से ज्यादा अहम् था जो कहा। ऑडियो टेप जो दूतावास के पास होना चाहिए था उसका कोई ज़िक्र नहीं, किसी का साफ़ नाम नहीं, प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की स्थिति उम्मीद के मुताबिक तटस्थ रही। सिर्फ यही कहा गया की ये हत्या सऊदी अरब ने एक योजनाबद्ध तरीके से करवाई है।

ज़ाहिर है इस हत्याकांड से कई देशों की कूटनीति जुडी है.. सऊदी अरब, टर्की अमेरिका सब के हाथ बंधे हैं।

हालाँकि इस से अलग थलग पड़े टर्की का रुतबा बढ़ा है। इसलिए वो कई सबूतों को दबा कर धीरे धीरे सामने ला रहा है। राष्ट्रपति एर्दोआन को अहमियत वापस हासिल करने का मौक़ा मिला।

तुर्की और अरब टकराव

खाशोज्जी की हत्या अरब और ओटोमन यानी तुर्क सल्तनत के पुराने टकराव को भी सामने लाती है जो शिया सुन्नी खाई के रूप में सर उठाती रहती है। ORF के साप्ताहिक कार्यक्रम India’s World में इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए ORF चेयरमैन संजय जोशी ने मुझे बताया की खाशोज्जी हत्याकांड की जड़ें कई साल पहले मिस्र में शुरू हुई क्रांति तक फैली हैं। ये टकराव है नए उभरते सियासी इस्लाम या इस्लामिक लोकतंत्र लाने की कोशिश करने वाले मुस्लिम ब्रदर हुड और सऊदी अरब के इस्लाम के बीच। मिस्र में शुरू हुई अरब क्रांति के बाद सऊदी अरब की कोशिश थी की मुस्लिम ब्रदरहुड को आगे नहीं बढ़ने दिया जाए। क़तर, तुर्की जैसे देश मानते थे कि पोलिटिकल इस्लाम ही भविष्य है लेकिन सऊदी सल्तनत को इस से खतरा नज़र आ रहा था। क़तर का बहिष्कार किया गया। गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल टूट गया। क़तर एक तरफ खड़ा था, सऊदी अरब दूसरी तरफ, टर्की बीच में था। क़तर और टर्की के ईरान से रिश्ते हैं जबकि सऊदी अरब और ईरान के बीच इस क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई है।

समस्या की बड़ी वजह है मध्य पूर्व में अमेरिकी विदेश नीति। ये दो खेमों में बंटी है। उसका पूरा मकसद है सिर्फ और सिर्फ ईरान को कण्ट्रोल करना, सऊदी अरब, कुवैत और UAE एक तरफ है।

सऊदी अरब इस विदेश नीति में इतना अहम् है कि ट्रम्प ने सऊदी अरब के साथ अपने हथियार का सौदा बनाये रखने का अच्छा बहाना भी ढूँढ लिया है और सऊदी नेतृत्व को ये कहने के बावजूद गले लगाने का भी कि सऊदी अरब झूठ बोल रहा है। लीरा के गिरने से बदहाल टर्की की अर्थव्यवस्था को भी शायद हत्या के राज़ लॉक करने की कीमत मिल जायेगी। लेकिन ये साफ़ है कि जो शख्स अब सऊदी अरब में अब दरअसल शासन चला रहा है उसकी इजाज़त के बग़ैर ये हत्या नहीं हुई होगी। प्रिंस सलमान के ख़ास शख्स सूद अल क़हतानी ने स्काइप के ज़रिये इसे मॉनिटर किया।

शहजादा सलमान की तानाशाही और क्रूरता इस घटनाक्रम में दुनिया के सामने आई, उसकी उदारवादी छवि को धक्का पहुंचा, सऊदी अरब में हो रहे आर्थिक सम्मलेन का कई पश्चिमी देशों और बड़ी कंपनियों ने बहिष्कार किया लेकिन जिस बात पर ध्यान कम गया है वो है सऊदी अरब और टर्की के बीच की दुश्मनी का इतिहास।

टकराव की जड़ है दोनों मुल्कों का अपना अपना सुन्नी इस्लाम। हालाँकि टकराव का इतिहास तो १८वीं सदी तक जाता है जब मध्य पूर्व जिसमें अरब का ज़्यादातर हिस्सा शामिल था, वो ओटोमन या तुर्क सल्तनत का हिस्सा था, जिसकी राजधानी इस्तांबुल थी। मक्का और मदीना की अहमियत धार्मिक ही थी, सियासी नहीं। १७४० में अब्द उल वहाब नाम के एक शख्स ने सच्चे इस्लाम को वापस लाने की क्रांति शुरू की। सुन्नी इस्लाम के ४ अलग अलग विचारधारा में से सब से कट्टर इस्लाम को चुना और शियाओं और तुर्की मूल के सुन्नियों पर हमला शुरू कट दिया। इसमें सूफी भी शामिल थे। इन सब पर इस्लाम से छेड़ छाड़ के आरोप थे।

टकराव की जड़ है दोनों मुल्कों का अपना अपना सुन्नी इस्लाम। हालाँकि टकराव का इतिहास तो १८वीं सदी तक जाता है जब मध्य पूर्व जिसमें अरब का ज़्यादातर हिस्सा शामिल था, वो ओटोमन या तुर्क सल्तनत का हिस्सा था, जिसकी राजधानी इस्तांबुल थी।

वहाब और इब्न सउद के साथ ने सऊदी वंश की शुरुआत की, उस सउद घराने की नींव रखी जो शाही घराना है। वहाबी इस्लाम और शियाओं में कई टकराव हुए। तुर्की के मुसलमानों पर आरोप लगा की वो काफ़िर हो गए हैं क्यूंकि उनहोंने औरतों को हिजाब से आजादी दी और साथ ही ग़ुलाम प्रथा भी बंद की।

तो ये टकराव पुरना है लेकिन अब समस्या है कि उदारवादी टर्की मौजूदा राष्ट्रपति एर्दोआन के तहत रूढ़िवादी और इस्लामिक बनने की कोशिश में है जबकि प्रिंस सलमान सऊदी अरब में दिखावे के लिए ही सही ऐसे उदारवादी बदलाव ला रहे हैं जिस से पश्चिमी देश खुश हैं। साथ ही तुर्की जिस की कुछ साल पहले तक मध्य पूर्व में दिलचस्पी नहीं थी क्यूंकि वो यूरोप का हिस्सा बनने की कोशिश में था, अब मिडिल ईस्ट में वर्चस्व स्थापित करने का दावेदार बन रहा है। सऊदी अरब से बढ़ते टकराव की एक वजह ये भी है।

दरअसल ये टकराव सऊदी अरब और ईरान का टकराव है। जैसे जैसे ईरान का असर बढ़ रहा था, सऊदी अरब ने वहाबी इस्लाम को और मज़बूत किया। और हाल में जब प्रिंस सलमान ने सऊदी अरब में एक नर्म या मॉडरेट इस्लाम की बात की तो उसमें ईरान की जगह कूद पड़े टर्की के एर्दोआन, जिन्हों ने कहा की मॉडरेट इस्लाम कोई चीज़ नहीं होती। इस्लाम एक है। ये इस्लाम को कमज़ोर करने की कोशिश है और ऐसा करने वाला शख्स खुद को इस्लाम का गार्डियन मानता है जो सही नहीं है। हमला प्रिंस सलमान पर था और ऐसा कर के अब तक इस्लाम के ठेकेदार बने सऊदी अरब को भी एर्दोआन ने चुनौती दी।

इसलिए जमाल खाशोज्जी की हत्या ने सऊदी अरब और टर्की के बीच इस्लाम पर कब्जे की इस लड़ाई को भी सामने ला दिया और मध्य पूर्व में शिया ईरान और सुन्नी सऊदी अरब की खाई भी साफ़ नज़र आ रही है। अमेरिका के लिए सऊदी अरब का साथ ईरान के खिलाफ खड़े मोर्चे के लिए भी ज़रूरी ह। यहाँ उसका इकलौता मकसद है ईरान को काबू में रखना जिस के लिए सऊदी अरब ज़रूरी है। साथ ही सऊदी अरब ज़रूरी है हथियारों के बाज़ार के तौर पे, अमेरिका की नौकरियों के लिए, तेल के लिए।

खाशोज्जी की हत्या से सऊदी सल्तनत के राजकुमार कमज़ोर ज़रूर हुए हैं और फिलहाल के लिए टर्की और एर्दोआन की मोल भाव करने की ताक़त बढ़ी है। अमेरिका की कोशिश है कि सऊदी अरब और तुर्की के बीच का ये टकराव कम किया जाए क्यूंकि दोनों ही उसके सहयोगी हैं। दोनों का साथ होगा तभी ईरान के खिलाफ मोर्चा जमा रहेगा। एर्दोआन ने प्रिंस सलमान की तरफ इस हत्या में संलिप्त होने का साफ़ इशारा तो नहीं किया है लेकिन मांग की है की सभी 18 सऊदी अधिकारीयों पर टर्की में कार्यवाई हो। इस बीच मामले की नजाकत देखते हुए अमेरिकी विदेस मंत्री के बाद अब CIA डायरेक्टर को भी टर्की भेजा गया है। अमेरिका की कोशिश के बावजूद ये देखना होगा कि अगर पश्चिमी देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस या फिर खुद अमरीकी कांग्रेस की तरफ से दबाव बढ़ता है तो क्या ट्रम्प कोई सख्त क़दम उठा पायेंगे, और अगर कोई कार्यवाई हुई तो फिर सऊदी अरब क्या पलटवार करेगा।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.