Author : Naghma Sahar

Published on Jul 18, 2018 Updated 0 Hours ago

नवाज़ की वापसी से पार्टी को हमदर्दी की एक लहर मिलेगी ऐसे भी एक उम्मीद है। लेकिन क्या ये पार्टी को चुनाव में जीत दिला पायेगी? ये सवाल इसलिए बड़ा और अहम् है क्यूंकि चुनाव क्या वाकई फ्री और फेयर होंगे? जब फ़ौज ने तय कर लिया है तो की वो नवाज़ की पार्टी को सरकार बनाने देगी?

कितनी शरीफ है पाकिस्तान की सियासत

पाकिस्तान के शायर हबीब जालिब का एक शेर जो एक ज़माने में पाकिस्तान में बहुत मशहूर हुआ था:

“पाकिस्तान दियां मौजां ही मौजां,

जित्थे देखो फौजां ही फौजां।”

पाकिस्तान की मौजूदा हालत क्या है ये पूछने पर भारत के पूर्व राजदूत और Durand’s Curse, A Line Across the Pathan Heart के लेखक राजीव डोगरा ने इसी शेर के ज़रिये इसका जवाब दिया।

पाकिस्तान में आने वाले चुनाव और उस से पहले नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी को जेल के बीच जिस सियासी शतरंज की बिसात बिछी है उसमें शह और मात का खेल फ़ौज के हाथों में है। इसलिए हबीब जालिब का ये शेर वाकई फिट बैठता है। फ़ौज ने अदालत के ज़रिये जुलाई २०१७ में नवाज़ शरीफ को पूरी ज़िन्दगी चुनाव लड़ने से रोका। NAB के ज़रिये उन्हें 11 साल की जेल की सज़ा मिली। इसमें फ़ौज ज़ाहिर तौर पर कहीं नहीं है लेकिन अदृश्य तौर पर हर जगह है। पाकिस्तान के जानने वाले ये जानते हैं कि नवाज़ शरीफ लन्दन जाने के पहले अपने कैम्पेन में जिस “खलाई मखलूक” की बात करते रहे वो आसमानी शक्ति यही है, पाकिस्तान की फ़ौज।

नवाज़ शरीफ ने अपने भाषणों में कहा था हमारा मुकाबला, हमारी लड़ाई न ज़रदारी से है न इमरान खान से, हमारी लड़ाई तो उस आसमानी शक्ति से है.. यानी फ़ौज पर वो सीधा निशाना साध रहे थे। कह रहे थे कि उन्हें मुशर्रफ के ट्रायल और भारत के साथ शांति की कोशिश की सजा दी जा रही है। आम आदमी और पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी पढ़ा लिखा तबका नवाज़ के फ़ौज विरोधी रुख में उनके साथ था, और ये भी सवाल उठ रहे थे कि भ्रष्टाचार के मामले में क्यूँ सिर्फ नवाज़ शरीफ पर ही निशाना साधा गया। 

ये न दिखाई देने वाला हाथ हर चीज़ पर इस तरह हावी है कि होने वाले चुनाव को एक नियंत्रित लोकतंत्र की कोशिश कहना ग़लत नहीं होगा। PML नवाज़ के १४० उम्मीदवारों ने अपनी उम्मीदवारी छोड़ कर एक आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर खड़े होने का फैसला किया है। क्या ये फैसला इन उम्मीदवारों का है या इनसे ये फैसला करवाया गया है? जवाब इस बात में साफ़ है कि सबको चुनावी चिन्ह के तौर पर जीप ही मिली है। जीप किसका निशाँ है इसे समझने के लिए कोई ख़ास हिकमत की ज़रूरत नहीं।

नवाज़ शरीफ ने अपने भाषणों में कहा था हमारा मुकाबला, हमारी लड़ाई न ज़रदारी से है न इमरान खान से, हमारी लड़ाई तो उस आसमानी शक्ति से है.. यानी फ़ौज पर वो सीधा निशाना साध रहे थे। कह रहे थे कि उन्हें मुशर्रफ के ट्रायल और भारत के साथ शांति की कोशिश की सजा दी जा रही है।

पाकिस्तान ने नवाज़ शरीफ को तीन बार अपना वजीर आज़म चुना है। भ्रष्टाचार के केस में नेशनल एकाउंटेबिलिटी कोर्ट ने जो सजा उन्हें सुनायी उसके लिए मुल्क लौटते वक़्त नवाज़ शरीफ ने मुल्क को याद दिलाया कि जिस मुल्क ने उन्हें तीन दफह चुना वो उसका क़र्ज़ चुकाने आ रहे हैं। पाकिस्तान चाहे उन्हें जेल दे या फांसी वो मुल्क लौटेंगे। और वो अपनी बेटी, अपनी सियासी वारिस मरयम नवाज़ के साथ लाहौर लौटे जहाँ उनकी पार्टी के लोगों को अपने सदर के स्वागत की आजादी भी नहीं दी गयी। ३०० के करीब PML नवाज़ के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, मीडिया पर पाबन्दी रही और फ़ोन के नेटवर्क नदारद रहे। नवाज़ शरीफ के समर्थन में उठने वाली हर आवाज़ को कमज़ोर कर दिया गया जिस से ये शक होता है कि पार्टी की आम लोगों में अपील अभी बाक़ी है।

नवाज़ शरीफ और उनकी वारिस मानी जाने वाली बेटी मरयम नवाज़ को जेल की सजा होने से पहले ही सब को अंदाज़ा था की फैसला यही आने वाला है, इसलिए नहीं कि नवाज़ शरीफ का गुनाह इतना बड़ा था या वो भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे पहले सदर थे, या केस के खिलाफ उनका बचाव कमज़ोर था, बल्कि इसलिए कि इस केस का फैसला तो ट्रायल के पहले ही लिखा जा चुका था। कोर्ट की कार्यवाई एक दिखावा थी कि तमाम कायदे माने गए हैं। फैसला कुछ और आता तो ताज्जुब की बात होती।

एक और हैरानी तब हुई जब नवाज़ ने पाकिस्तान लौटने का फैसला किया। वो जेल जाने के लिए पाकिस्तान क्यूँ लौटे?

नवाज़ शरीफ खुद अपनी सियासत के आखिरी दौर में तो हैं, उनकी बेटी और वारिस के राजनीतिक कैरियर की अभी शुरुआत है। नवाज़ और मरियम का पाकिस्तान लौट कर जेल जाने का फैसला मरयम की सियासी कैरियर के नज़रिए से देखना चाहिए। आगे के रास्ते में जो रोड़े हैं उनमें अदालत में चल रहे केसेस सबसे आसान हैं जो कानूनी तरीके से लड़ जायेंगे, पाकिस्तान में अदालतों के फैसले हमेशा सियासती नतीजे के मुताबिक आते हैं। जब नवाज़ साल २००० में 18 साल पहले लौटे थे तो पार्टी को कोई अंदरूनी खतरा नहीं था। अब मरयम को नवाज़ ने अपनी विरासत सौंपी है अपने बाक़ी बच्चो के मुकाबले। मरयम ने हमजा शाहबाज़ की जगह ली है, लेकिन वो हमेशा के लिएअपने पिता शाहबाज़ शरीफ की तरह नंबर २ बन कर रहने को तैयार होंगे ऐसा मान लेना सही नहीं होगा। क्यूंकि मरयम नवाज़ की पार्टी में एंट्री के पहले आने पिता उअर चाचा के लिए हमजा ही काम करते रहे हैं। इसलिए मरयम नवाज़ की जगह बरक़रार रखने के लिए भी इस बार लौटना ज़रूरी था। बेनजीर जनरल जिया के दौर में भुट्टो की इकलौती वारिस थीं जो पाकिस्तान में थीं, मुर्तजा भुट्टो के लौटने तक उन्हों ने PPP पर पूरा क़ब्ज़ा कर लिया था।

नवाज़ शरीफ खुद अपनी सियासत के आखिरी दौर में तो हैं, उनकी बेटी और वारिस के राजनीतिक कैरियर की अभी शुरुआत है। नवाज़ और मरियम का पाकिस्तान लौट कर जेल जाने का फैसला मरयम की सियासी कैरियर के नज़रिए से देखना चाहिए।

हालाँकि नवाज़ शरीफ वो नवाज़ शरीफ नहीं रहे जो सऊदी अरब से लौटे थे, मुशर्रफ और सऊदी गारंटी के साथ जब पाकिस्तान लौटते ही उन्हों ने आर्मी के कुछ अफसर जो उन्हें लेने आये थे, उन्हें थप्पड़ मरना शुरू कर दिया था। यानी नवाज़ अब सियासत और उम्र के जिस दौर में हैं वहां वो कुछ कम आक्रामक होंगे। फिर भी अगर नवाज़ की वापसी से PML नवाज़ के उम्मीदवारों को सहारा मिलता है, हालाँकि कहा जा रहा है कि पंजाब में पार्टी का बेस बरक़रार है तो पार्टी की अहम् इलाकों में जीत नवाज़ की अदालती जंग को मज़बूत करेगी। दुसरे नवाज़ की वापसी से पार्टी को हमदर्दी की एक लहर मिलेगी ऐसे भी एक उम्मीद है। लेकिन क्या ये पार्टी को चुनाव में जीत दिला पायेगी? ये सवाल इसलिए बड़ा और अहम् है क्यूंकि चुनाव क्या वाकई फ्री और फेयर होंगे? जब फ़ौज ने तय कर लिया है तो की वो नवाज़ की पार्टी को सरकार बनाने देगी?

नवाज़ शरीफ ने कुछ सियासी ग़लतियाँ भी की जिसका फायदा इमरान खान और फ़ौज ने उठाया। लोगों का भरोसा जीतने का पहला सुनहरा मौक़ा पनामा गेट के सार्वजनिक होते ही मिला था। अगर नवाज़ शरीफ संसद में अपनी बेग़ुनाही और पनामा से अपने संबंध न होने का दावा करने के बजाए उसी भाषण में कह देते कि मैं जिस ओहदे पर तीसरी बार चुना गया उसके बाद जनता के भरोसे का तकाज़ा है कि मेरे ऊपर ज़रा सा भी छींटा पड़े तो मुझे उस पद पर रहने का कोई हक़ नहीं। मैं दोबारा आऊंगा मगर उस वक़्त जब ख़ुद को बेग़ुनाह साबित कर दूंगा। उन चंद जुमलों के साथ की सियासी लोकप्रियता तेज़ हो सकती थी।

नवाज़ शरीफ के लिए ये एक बेहद जज्बाती मौक़ा है, उन्हों ने लोगों को इस का एहसास दिलाया है। लन्दन में कैंसर से जूझ रही बेगम नवाज़ को वेंटीलेटर पर अल्लाह के भरोसे छोड़ आना जब जेल का कैदखाना तय है, एक बहादुरी भरा क़दम है जिसे एक सियासी जुए की तरह देखा जा सकता है। उनकी वापसी PML नवाज़ के लिए हमदर्दी की लहर खड़ी कर सकती है। नवाज़ शरीफ की गैर मौजूदगी ने इमरान खान की राह आसान ज़रूर की थी लेकिन वापसी उनकी रह में रोड़ा बन सकती है। ये एक गुंजाइश है। दूसरी तरफ ये भी हो सकता है कि ये लहर वोटों में न बदले, चूँकि फ़ौज ने अगर इमरान खान का साथ देने का फैसला कर लिया है तो फिर उससे बड़ी क्या ताक़त है। फ़ौज का इरादा इस बात से भी साफ़ है कि PML नवाज़ के ४० उम्मीदवार पार्टी छोड़ आज़ाद तौर पे चुनाव लड़ रहे है, १४० की ये फ़ौज इसलिए तैयार की गयी है कि ये फ़ौज की पसंद की सरकार बनाने को तैयार रहे।

नवाज़ शरीफ की गैर मौजूदगी ने इमरान खान की राह आसान ज़रूर की थी लेकिन वापसी उनकी रह में रोड़ा बन सकती है। ये एक गुंजाइश है। दूसरी तरफ ये भी हो सकता है कि ये लहर वोटों में न बदले, चूँकि फ़ौज ने अगर इमरान खान का साथ देने का फैसला कर लिया है तो फिर उससे बड़ी क्या ताक़त है।

फ़ौज ने अदालत के ज़रिये साल २०१७ में नवाज़ को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया। ११ साल की सजा अवेंफिल्ड मामले में दी गयी जिसमें लन्दन में ४ फ्लैट खरीदने का आरोप है। अभी अल अजीजिया स्टील मिल और फ्लैगशिप इन्वेस्टमेंट के दो और केस NAB में चल रहे हैं। नवाज़ शरीफ ने कहा कि वो एक मकसद लौटे हैं और जनता ये मकसद जानती है। NAB अदालत की तरफ से मिली सजा ने वो स्टेज तैयार कर दी है जहाँ नवाज़ शरीफ खुद को डेमोक्रेसी के लिए, पाकिस्तान की अवाम के लिए शहीद बताएँगे.. उन्हों ने कहा भी कि “मैं इस मुल्क का क़र्ज़ चुकाने लौटा हूँ, मैं ने अपना फ़र्ज़ निभाया, अब आप की बारी है।” नवाज़ शरीफ ने अपने पर लगे हर इलज़ाम को सीधे फ़ौज की चाल बताया है। क्या ये पाकिस्तान की अदृश्य सरकार यानी फ़ौज से नज़र मिला कर बात करने की सजा मिल रही है? नवाज़ शरीफ ने कहा है की ये भ्रष्टाचार की सजा नहीं फ़ौज की मर्ज़ी से अलग आज़ाद हो कर सरकार चलने की कोशिश की सजा है। १९५८ से पाकिस्तान की फ़ौज और ख़ुफ़िया एजेंसी पाकिस्तान की सियासत पर हावी रही है। लेकिन अभी जिस फ़ौज की नज़र का काँटा बने हुए हैं नवाज़ शरीफ, मत भूलिए की उसी फ़ौज और ख़ुफ़िया एजेंसी ने नवाज़ को खड़ा किया था। और शरीफ परिवार की सियासत में आने के बाद संपत्ति में बढ़ोतरी में भी सच्चाई है लेकिन फ़ौज ने हमेशा कुछ इस तारक का बहाना इस्तेमाल करते हुए चुनी हुई सरकार के काम में हस्तक्षेप किया है कि सिविलियन सरकार भ्रस्त है और इस लायक नहीं की सरकार चला पाए, इसलिए फ़ौज का दखल ज़रूरी है।

इमरान खान ने भी पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली के लिए सिविलियन के भ्रष्टाचार को निशाना बनाया है। वजह इतनी सुलझी हुई नहीं जैसा कि पेश किया जा रहा है। अगर इमरान खान कुछ इस्लामिक तंजीमों और पाकिस्तान की अदृश्य ताक़त के सहारे जीत भी जाते हैं तो ऐसी सरकार पाकिस्तान को और अस्थाई बनाएगी, इस्लामिक तंजीमें, जैसे अल्लाह हो अकबर हाफिज सईद की, लब्बैक सूफियों की, अगर इमरान खान से मिल कर सत्ता में आ गए तो ये पूरी तरह एक्स्पोज़ हो जायेंगे।

लेकिन फ़ौज, अदालत , विपक्ष और कुछ मज़हबी पार्टियाँ मिल कर इमरान खान के हक में इस मैच को फिक्स करने की तय्यारी में हैं। इन तमाम कोशिशों के बाद भी पार्टी फिर भी चुनावी जंग में है। लेकिन PML नवाज़ सभी रुकावटों के बावजूद जीत भी जाती है तो भ्रष्टाचार के मामलों की छाप उन पर रहेगी।

ये चुनाव बेहद दिलचस्प और अजीब हैं.. इसलिए की जब नवाज़ भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं तो ओपिनियन पोल ये बता रहे हैं कि अगर चुनाव निष्पक्ष तरीके से कराये गए तो उनकी पार्टी जीतेगी। और इसी चुनाव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकी घोषित किये गए उम्मीदवारों की भी लम्बी फेहरिस्त है। ये जो विरोधाभास है इसी वजह से पाकिस्तान के इस चुनाव के नतीजे जो भी हों पाकिस्तान मज़बूत कम कमज़ोर ज्यादा होगा।

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