Author : Anchal Vohra

Published on Dec 12, 2018 Updated 0 Hours ago

अमेरिका और सऊदी अरब के सामरिक और आर्थिक संबंध बेहद मजबूत हैं। जब अरबों के सौदे दांव पर हों, तो किसी एक असंतुष्ट पत्रकार की हत्या — कुछ खास मायने नहीं रखती!

खाशोज्जी हत्याकांड: अमेरिकी-सऊदी संबंधों में क्या बदलाव आएगा?

‘खाशोज्जी वे और वाटरगेट’ — वाशिंगटन DC | फ़ोटो: जो फ्लड © फ़्लिकर/CC BY-NC-ND 2.0

महीना भर पहले, वाशिंगटन पोस्ट के स्तम्भकार और असंतुष्ट सऊदी नागरिक जमाल खाशोज्जी के शरीर के आरी से टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए और उनके अवशेष एसिड में गला दिये गए। इस जघन्य हत्या को इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के भीतर अंजाम दिया गया, जहां वह कुछ दस्तावेज लेने गए थे। इस घटना से समूची दुनिया में गुस्से की लहर दौड़ गई, क्योंकि इस वारदात को किसी कस्बे की सुनसान गली या खाई में नहीं, ​बल्कि वाणिज्य दूतावास में अंजाम दिया गया था।

प्रमुख अमेरिकी अखबार ने अपने स्तम्भकार की हत्या पर रोष प्रकट किया और उसने राजनीतिक और वाणिज्यिक ताकतों से सऊदी साम्राज्य से दूरी बनाने की मांग की, क्योंकि तुर्की अधिकारियों के पास मौजूद ऑडियो रिकॉर्डिंग्स के अनुसार सऊदी साम्राज्य ने ही इस हत्या को अंजाम देने के लिए टीम भेजी थी।

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में साबित किया गया कि हत्या को अंजाम देने आई 15 सदस्यों की टीम के एक सदस्य माहर अब्दुलअजीज मुतरेब को अक्सर सऊदी शहजादे मोहम्मद बिन सलमान या एमबीएस के साथ सफर करते देखा गया है। मुतरेब पूर्व सऊदी राजनयिक है। वह लंदन में सऊदी अरब के दूतावास में तैनात रह चुका है। उसे सऊदी अरब के भावी शाह का करीबी माना जाता है। अखबार की हाल की एक रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि मुतरेब ने अपने किसी वरिष्ठ अधिकारी को फोन पर कहा था, “काम पूरा हो गया है,” “अपने बॉस को बता दो” फोन पर हुई इस बातचीत की रिकॉर्डिंग्स तुर्की के पास मौजूद है। कोई भी सऊदी अरब के शाह सलमान पर उंगली नहीं उठा रहा है या तभी से उन्हें बॉस नहीं समझ रहा है, जब से उनके पुत्र मोहम्मद बिन सलमान को शहजादा नियुक्त किया गया है और देश की वा​स्तविक कमान उनके हाथ आई है।

सम्पादकीयों में मांग की गई और विशेषज्ञों ने राय प्रकट की कि अमेरिका को हर हाल में, किसी भी तरीके से एमबीएस को दंडित करना चाहिए। अन्य लोगों ने जानना चाहा कि क्या खाशोज्जी की हत्या से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ​पश्चिम एशिया नीति पलट जाएगी? कुछ अन्य लोगों ने इस मामले का इस्तेमाल यमन की भलाई में करने की कोशिश की है और यमन-सऊदी अरब और ईरान की दुश्मनी के मैदान-युद्धग्रस्त यमन में भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके वहां के मासूम लोगों की ओर कुछ ध्यान दिया है। उस समय कुछ राहत की सांस ली गई, जब यमन के युद्ध में इस्तेमाल किए जा रहे लड़ाकू विमानों में ईंधन भरने के काम पर अमेरिका ने रोक लगा दी। जल्द ही, अनेक अधिकारियों ने संशोधन किया कि इसका प्रभाव बहुत सीमित होगा, क्योंकि सऊदी अगुवाई वाले गठबंधन के महज पांचवें हिस्से को ही अमेरिका से आसमान में ईंधन भरवाने की जरूरत है।

काफी टाल-मटोल के बाद, अमेरिकी राष्ट्र​पति अनोखे अंदाज में बोले, उन्होंने न तो एमबीएस पर आरोप लगाया है न ही आरोप वापस लिया है । उन्होंने कहा, “हो सकता है कि शहजादे को इस त्रासद घटना की जानकारी रही हो;हो सकता है कि उन्होंने किया हो; और हो सकता है कि उन्होंने न किया हो!” इस क्षेत्र और ट्रम्प की क्षेत्रीय नीतियों के पर्यवेक्षकों के लिए ट्रम्प का यह बयान चकरा देने वाला था, यह इस बात का स्पष्ट संकेत था कि अमेरिका ऐसा कुछ नहीं करेगा, जिससे सऊदी अरब के साथ उसके फायदेमंद आर्थिक संबंध खतरे में पड़ जाएं। मामूली रियायत के तौर पर, अमेरिका ने खाशोज्जी की हत्या में शामिल होने के आरोप में 17 सऊदी लोगों पर प्रतिबंध लगा दिए और उस शख्स को साफ बच निकलने दिया, जिसके बारे में व्यापक रूप से माना जा रहा है कि उसी ने खाशोज्जीकी हत्या का आदेश दिया था।

अमेरिका और सऊदी अरब के सामरिक और आर्थिक संबंध बेहद मजबूत हैं। जब अरबों के सौदे दांव पर हों, तो किसी एक असंतुष्ट पत्रकार की हत्या — कुछ खास मायने नहीं रखती, भले ही उसे कितने ही अमानवीय तरीके से ही क्यों न अंजाम दिया गया हो।

सऊदी लॉबी भी इस डर से जूझती रही है, शहजादा के खिलाफ उठे किसी भी कदम से तेल बाजार में हलचल मच जाएगी और दुनिया की स्थिरता भंग हो जाएगी। आर्थिक लेन-देन के अलावा, ईरान से निपटने के लिए भी इन संबंधों को आवश्यक माना गया है। ईरान को मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका का विरोध करने, ​फिलीस्तीनी मामले पर निरंकुश रुख अख्तियार करने तथा हमास सहित सभी गुटों के मत का समर्थन करने तथा सऊदी वर्चस्व को चुनौती देते हुए क्षेत्रीय इस्लामिक ताकत बनने का ख्वाब देखने के लिए एक बहिष्कृत देश माना जाता है। ईरान की विदेश नीति, भी काफी हद तक, इस्राइल विरोधी है और अमेरिका की ट्रम्प सरकार प्रचंड इस्राइल-फिलीस्तीनी संघर्ष में इस्राइल समर्थक समझौते की प्रबल समर्थक है। ऐसे समझौते के लिए एमबीएस का समर्थन महत्वपूर्ण है। सऊदी अरब ने अनेक संकेत दिए हैं कि ईरान को सीमित करने के लिए वह फिलीस्तीनी नेतृत्व की सूचीबद्ध मांगों के विरुद्ध जा सकता है।

एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक ने पश्चिम एशिया की मौजूदा अव्यवस्था का सटीक विश्लेषण किया है। इस लेखिका के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि यह सोचना सरासर नादानी है कि किसी पत्रकार की हत्या से अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों में बदलाव आएगा । उन्होंने कहा कि “अगर ये रिश्ते 9/11 के बाद भी कायम रह सकते हैं, तो इस मामले के बाद क्यों नहीं कायम रह सकते?”

एमबीएस के सऊदी अरब की कमान संभालने को लेकर ट्रम्प प्रशासन ने बहुत सी उम्मीदे लगा रखी हैं और वह कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाने वाला, जिससे उनका उत्तराधिकार खतरे में पड़ जाए।

पिछले साल भर में, यमन में लड़ाई तेज करने, लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी को बंधक बनाकर रखने तथा कतर पर निरर्थक नाकाबंदी थोपने के लिए मखौल का पात्र बनने के बावजूद एमबीएस को उम्रदराज लोगों की अधिकता वाले सऊदी राजतंत्र के युवा चेहरे के तौर पर सराहा जाता है और उन्हें 21 वीं सदी में सऊदी अरब का नेतृत्व करने वाले सुधारक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। सिनेमा थिएटर खोलने, सऊदी महिलाओं को वाहन चलाने की इजाजत देने के लिए उनकी सराहना की गई है। बेशक, उन्होंने महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की परवाह नहीं की है और वे सऊदी अरबपतियों का निरंकुश तरीके से तब तक बचाव करते रहे हैं, जब तक वे उनकी इच्छाओं के आगे सिर झुकाते रहे हैं।

खाशोज्जी की हत्या और उनके अवशेषों को नष्ट किए जाने के डेढ़ महीने बाद, सऊदी अरब इस प्रश्न का उत्तर देने में विफल रहा है: अगर मंशा असंतुष्ट पत्रकार को गिरफ्तार करने की थी, तो सऊदी टीम में फोरेंसिक विशेषज्ञ को क्यों शामिल किया गया था? मुतरेब ने फोन पर किसको अपनी टीम की कामयाबी की जानकारी दी थी और यह घोषणा की थी कि ”काम हो चुका है”? और वह टीम आरे के साथ तुर्की क्यों आई थी?

खाशोज्जी की हत्या भी एमबीएस के उदय पर सवालिया निशान लगाने में विफल रही है। अमेरिकी, आर्थिक सौदों के लिए कोशिशें जारी रखेंगे, ईरान को झुकाने और मोटे तौर पर इस्राइलियों के पक्ष में ”शांति समझौता” करने के लिए सामरिक मोर्चों पर आगे बढ़ते रहेंगे।

लेकिन कुछ है, जो बदल गया है: अमेरिका की मानवाधिकारों के रक्षक की छवि को इस हद तक नुकसान पहुंचा है कि उसकी भरपाई नहीं हो सकती और अब यह जाहिर हो चुका है कि मोहम्मद बिन सलमान यकीनन सुधारक नहीं हैं।

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