साल 1991 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, मध्य एशियाई गणराज्य के रूप में कज़ाख़िस्तान (Kazakhstan) ने दो जनवरी 2022 को अपना सबसे बड़ा सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन देखा. पश्चिमी शहर ज़ानाओज़ेन के लोग तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) पर राज्य की सब्सिडी को रोकने के विरोध में सड़कों पर उतर आए. एलपीजी इस क्षेत्र में लोगों के लिए प्राथमिक रूप से वाहनों का ईंधन है. ईंधन की कीमतों में बढ़ोत्तरी गांवों, कस्बों और शहरों में रहने वाले कज़ाख़िस्तान के लोगों के लिए लंबे समय से चली आ रही सरकारी मनमानी के ख़िलाफ़ गुस्से के रूप में सामने आई और आम लोगों की शिकायतों के समाधान की मांग का एक ज़रिया बन गई. सरकार के ख़िलाफ़ लोगों के गुस्से के कारण के रूप में इनमें सत्तावादी शासन द्वारा किए गए अधूरे वादों, नागरिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंध, और राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और मानवाधिकार समूहों को लगातार हिरासत में लिए जाने जैसी गतिविधियां शामिल हैं. महामारी के दौरान कज़ाख़िस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था लगातार कम हुई और असमानता बढ़ी है, जिसके चलते कज़ाख़ नागरिकों के बीच असंतोष लगातार बढ़ा है.
ईंधन की कीमतों में बढ़ोत्तरी गांवों, कस्बों और शहरों में रहने वाले कज़ाख़िस्तान के लोगों के लिए लंबे समय से चली आ रही सरकारी मनमानी के ख़िलाफ़ गुस्से के रूप में सामने आई और आम लोगों की शिकायतों के समाधान की मांग का एक ज़रिया बन गई.
यही वजह है कि चार दिनों के भीतर, हज़ारों सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने हवाई अड्डों, टीवी स्टेशनों, सरकारी भवनों और व्यापारिक केंद्रों पर “शाल केत!” (बुज़र्गों को जाना होगा) के नारे के साथ धावा बोल दिया. इन विरोध प्रदर्शनों में हज़ारों लोग घायल हुए, दर्जनों मारे गए, और 3,000 से अधिक लोगों को अधिकारियों ने देश भर में फैली हिंसा को दबाने के लिए गिरफ़्तार किया. इस बीच 18 सुरक्षा बलों की मौत और 784 से अधिक के घायल होने के बाद, राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट तोकायेव को देशव्यापी आपातकाल और सामूहिक समारोहों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा. राष्ट्रपति ने इस हिंसा के पीछे विदेश में प्रशिक्षित “आतंकवादी गिरोह” के शामिल होने का भी आरोप लगाया और रूसी नेतृत्व वाली सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन यानी सीएसटीओ (Russian-led Collective Security Treaty Organisation, CSTO) से मदद मांगी. उन्होंने प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया और एलपीजी पर सब्सिडी को रोकने की नीति को वापस ले लिया. “बुज़र्गों को जाना होगा” के नारे के जवाब में राष्ट्रपति द्वारा अपने पूर्ववर्ती व शक्तिशाली नेता नूरसुल्तान नज़रबायेव को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद से हटाए जाने की कार्रवाई ने इन विरोध प्रदर्शनों को भड़काने का काम किया. इसी तरह नज़रबायेव के भतीजे समत अबीश को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख के पद से हटा दिया गया था. इसके बाद, अशांति को रोकने के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया और पूरे देश में कनेक्टिविटी का स्तर शून्य हो गया, जिससे वैश्विक स्तर पर बिटकॉइन संचालन को गंभीर झटका लगा.
कज़ाख़िस्तान में विद्रोह और विरोध
पिछले 30 वर्षों में, कज़ाख़िस्तान ने जीवाश्म ईंधन, तेल और गैस, यूरेनियम और कोयले के निर्यात के ज़रिए पर्याप्त आर्थिक विकास देखा. वैश्विक तेल संसाधनों के तीन फीसदी गैस, यूरेनियम और कोयला भंडार कज़ाख़िस्तान में हैं हालाँकि, अपनी अर्थव्यवस्था के स्वर्णिम दौर के बावजूद सरकार ने हर तरह के विरोध और असंतोष के प्रति शून्य-सहिष्णुता को अपनाया क्योंकि इस दौरान हज़ारों लोगों के रूप में बड़ी संख्या में उन लोगों को भी हिरासत में लिया गया जो पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रदर्शन कर रहे थे. यहां तक कि छोटे-छोटे स्तर पर किए जाने वाले विरोध प्रदर्शनों को भी निशाना बनाया गया और जिस किसी ने भी सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष दिखाने की कोशिश की उन्हें महीनों, यहां तक कि सालों तक जेल में रहना पड़ा. प्रेस की आज़ादी के मामले में देश 180 में से 158वें स्थान पर है. कई पत्रकारों को सलाख़ों के पीछे डाल दिया गया और स्वतंत्र प्रेस के कार्यालय बंद कर दिए गए.
अशांति को रोकने के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया और पूरे देश में कनेक्टिविटी का स्तर शून्य हो गया, जिससे वैश्विक स्तर पर बिटकॉइन संचालन को गंभीर झटका लगा.
सरकार की सख़्ती के बावजूद, कज़ाख़िस्तान ने समय-समय पर छिटपुट विरोध देखा है. साल 2011 में, ज़ानाओज़ेन शहर में श्रमिक अशांति भड़क उठी, जब ओज़ेनमुनाइगास (Ozenmunaigas) तेल क्षेत्र के श्रमिकों ने अपने ख़राब वेतन और काम करने की बदतर स्थितियों का विरोध किया. इस के परिणाम स्वरूप सरकार की ओर से की गई कार्रवाई के कारण कम से कम 14 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई. इसी तरह, चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रति नाराज़गी साल 2016 के बाद से बढ़ी है, जब लोगों ने देश की भूमि संहिता क़ानून के ख़िलाफ़ भारी संख्या में विरोध किया, जिस के तहत सरकार को 25 साल की अवधि के लिए विदेशियों/ चीनी लोगों को कृषि भूमि बेचने या पट्टे पर देने की छूट मिली थी. यह विरोध प्रदर्शन आम लोगों के बीच इस बढ़ती धारणा से उपजे हैं कि चीनी निवेशक कज़ाख़िस्तान में भूमि के स्वामित्व का उपयोग धीरे-धीरे आंतरिक मामलों पर अपने प्रभाव और प्रभुत्व जमाने के लिए करेंगे. सरकार की कार्रवाई में, पर्यावरण कार्यकर्ता मैक्स बोकायेव और तलगट अयानोव सहित सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया.
साल 2019 में, अस्ताना में पांच लड़कियों की दुखद मौत ने भी बेहतर सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल और बेहतर आवास के मुद्दे पर लोगों को लामबंद किया और विरोध प्रदर्शन हुए. इस के साथ ही चीन से संबंधित मुद्दा बाद के वर्षों में विरोध का एक महत्वपूर्ण आयाम बन गया. कज़ाख़िस्तान पर चीन के आर्थिक कब्ज़े और शिनजियांग में रहने वाले जातीय क़ज़ाकों और उइगरों के प्रति उसके मानवाधिकारों के हनन ने देश भर में विरोध प्रदर्शनों को और बढ़ावा दिया है. 21 सितंबर 2019 को, अधिकारियों ने अल्माटी और नूर-सुल्तान में 57 चीन विरोधी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया. इस बीच 55 नई औद्योगिक इकाईयों के निर्माण के लिए चीनी सहायता प्राप्त करने की योजना का भी ज़ोरदार विरोध हुआ है.
नज़रबायेव से तोकायेव तक कुछ नहीं बदला
कज़ाख़िस्तान के पहले और एकमात्र राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव ने 19 मार्च 2019 को इस्तीफ़ा दे दिया और उनकी जगह कासिम जोमार्ट तोकायेव ने ली, जो पहले प्रधान मंत्री थे और विदेश मंत्रालय के प्रभारी भी थे. नए राष्ट्रपति का चुनाव जुलाई 2019 में बिना किसी विरोध के हुआ. चुनाव के दिन देश भर में प्रदर्शन हुए और पत्रकारों सहित लगभग 500 विपक्षी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. इन प्रदर्शनकारियों ने चुनावों के बहिष्कार का आग्रह करते हुए दावा किया कि नज़रबायेव के भरोसेमंद सहयोगी को सत्ता का हस्तांतरण “योजनाबद्ध” था और चुनाव केवल एक दिखावा था.
प्रेस की आज़ादी के मामले में देश 180 में से 158वें स्थान पर है. कई पत्रकारों को सलाख़ों के पीछे डाल दिया गया और स्वतंत्र प्रेस के कार्यालय बंद कर दिए गए.
कासिम जोमार्ट तोकायेव के शासन काल में लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभाव और शांतिपूर्ण सभाओं पर प्रतिबंध जारी रहा. क़ज़ाक न्यायिक प्रणाली के भीतर भ्रष्टाचार पाया जाता है, जो सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग से प्रभावित है. इसलिए, कानून का शासन कुलीनों और उनके व्यवसायों की सेवा करता है, न कि आम जनता की. कज़ाक़ सरकार ने नागरिक समाज को नियंत्रित करने के लिए कई क़ानून पारित किए, और सरकार के लिए विरोधियों की निगरानी करना आसान बना दिया. तोकायेव एक पारदर्शी और समावेशी सरकार बनाने में भी विफल रहे जिसने लोगों और सरकार के बीच असंपर्क और अशांति को और बढ़ा दिया.
कोविड-19 की महामारी ने नई कमज़ोरियों को कज़ाख़िस्तान के सामने रखा और देश को राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभावित किया. साल 1998 के बाद पहली बार अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में पहुंच गई, जिससे कई कज़ाक़ नागरिकों को वेतन में ठहराव के चलते व्यक्तिगत ऋण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस मायने में वह ऋण के दलदल में फंसते गए. साल 2020 में व्यक्तिगत ऋणों की राशि बढ़कर 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई. दूसरी ओर, धनी अभिजात वर्ग ने अपनी संपत्ति को दूसरे देशों और बैंकों में अर्जित किया जिस से आम लोगों के बीच असंतोष और नाराज़गी और बढ़ी. महामारी के कारण महंगाई भी बढ़कर नौ प्रतिशत हो गई, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक है, जिससे केंद्रीय बैंक को ब्याज़ दरों को 9.7 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा. राजनीतिक रूप से, महामारी ने कज़ाख़िस्तान की कम, भ्रष्ट और अप्रभावी स्वास्थ्य प्रणाली को उजागर कर दिया. स्वास्थ्य मंत्री येलज़ान बिर्तानोव ने जून में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और बाद में “डैमम्ड” नामक एक स्वास्थ्य डिजिटलीकरण परियोजना में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
प्रदर्शनों के परिणाम
पद संभालने के बाद, तोकायेव ने सुधारों का वादा किया और देश भर में “सुनने के दौरे” (listening tour) पर चले गए. हालांकि यह केवल एक दिखावा था, क्योंकि उन्होंने असहमति व विरोध के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस यानी उनका दमन जारी रखा. व्यापक स्तर पर फैले विरोध ने उनकी सरकार को कई ख़राब फैसलों को वापस लेने के लिए मजबूर किया और तोकायेव को अपने पूर्ववर्ती से राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का पद वापस लेने के लिए मजबूर किया. इस के साथ ही उन्होंने नज़रबायेव के भतीजे को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पहले उप प्रमुख के पद से बर्ख़ास्त कर दिया.
नए राष्ट्रपति का चुनाव जुलाई 2019 में बिना किसी विरोध के हुआ. चुनाव के दिन देश भर में प्रदर्शन हुए और पत्रकारों सहित लगभग 500 विपक्षी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. इन प्रदर्शनकारियों ने चुनावों के बहिष्कार का आग्रह करते हुए दावा किया कि नज़रबायेव के भरोसेमंद सहयोगी को सत्ता का हस्तांतरण “योजनाबद्ध” था और चुनाव केवल एक दिखावा था.
हालांकि, हाल के हिंसक विरोधों के दौर ने तोकायेव के लिए नई समस्याएं पैदा कर दी हैं, जिनमें से कई ने खुद ऐसा किया है. राष्ट्रपति ने अपने लिए पहली समस्या रूसी नेतृत्व वाली सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन और अन्य पड़ोसी देशों को छह जनवरी को कज़ाख़िस्तान में सेना भेजने की अनुमति देकर खड़ी की है. हालांकि सीएसटीओ सदस्य देशों के आंतरिक संघर्षों से दूर रहा है, इसके चार्टर के अनुच्छेद-4 के अनुसार, कज़ाख़िस्तान की धरती पर विदेशी सैनिकों का आगमन निश्चित रूप से तोकायेव को जनता के बीच अधिक अलोकप्रिय बना देगा. लोगों ने इस क़दम को देश की संप्रभुता पर आघात के रूप में देखा है और इस निर्णय की वैधता पर सवाल उठाया है. सीएसटीओ से संपर्क करने के कदम की कज़ाख़िस्तान में पूर्व अमेरिकी राजदूत विलियम कर्टनी ने आलोचना की थी. दूसरे, बढ़ती अशांति विदेशी निवेशकों को कज़ाख़िस्तान में निवेश करने से पीछे हटाएगी, जो देश के स्थिर आर्थिक विकास का आधार रहा है. लोगों की चीन विरोधी भावना के बावजूद उठाया गया यह क़दम कज़ाख़िस्तान अर्थव्यवस्था को चीनी हाथों में धकेलने की संभावनाएं लिए है.
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