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जून महीने की शुरुआत में अमेरिका के रक्षा मंत्री के भारत दौरे ने प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे की ज़मीन तैयार की, जिसमें कुछ बड़े समझौतों का एलान होने की उम्मीद है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत और अमेरिका रिश्तों में ज़बरदस्त गति देखने को मिली है. इस रफ़्तार की मुख्य वजह उनके रक्षा संबंध है. अमेरिका केरक्षा मंत्रा लॉयड ऑस्टिन चार और पांच जून को भारत के दौरे पर आए थे. उनकी इस यात्रा का मक़सद बड़ी रक्षा साझेदारियों को मज़बूत करना औरअहम क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाना था. उल्लेखनीय रूप से लॉयड ऑस्टिन के दौर में रक्षा औद्योगिक सहयोग के रोडमैप को लेकर एक समझौताहुआ. ये समझौता अमेरिका और भारत के बीच इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) के तहत हुआ, जिसका ऐलान मई 2022 में किया गया था, और जिसकी पहली बैठक इस साल जनवरी में हुई थी. इस रोडमैप में अधिक तकनीकी सहयोग से भारत में रक्षा निर्माण को बढ़ावादेने की परिकल्पना की गई है. वैसे तो इसके मक़सद, भारत के अपने आत्मनिर्भरता के मिशन में सहयोग करने और आयात पर निर्भरता कम करने कीख़्वाहिश पूरी करने वाले हैं. लेकिन, इस रोडमैप में, अमेरिका और भारत के व्यापक सामरिक संबंधों में अमेरिका की स्थिति को काफ़ी हद तक बदल देनेवाले हैं.
इस रोडमैप में अधिक तकनीकी सहयोग से भारत में रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है. वैसे तो इसके मक़सद, भारत के अपने आत्मनिर्भरता के मिशन में सहयोग करने और आयात पर निर्भरता कम करने की ख़्वाहिश पूरी करने वाले हैं.
अमेरिकी रक्षा मंत्री के दौरे के मक़सद के दो बड़े पहलू थे: तकनीकी आविष्कार और बढ़ता सैन्य सहयोग. इस दौरे में द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मज़बूतकरने के लिए जो सबसे अहम क़दम उठाए गए, उनमें रक्षा उद्योग में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक रोडमैप तैयार करना था. इस रोडमैप का लक्ष्यमिलकर विकास और उत्पादन करने के महत्वपूर्ण क़दमों को तेज़ करना, और दोनों देशों के रक्षा क्षेत्रों के बीच और अधिक मज़बूत संबध क़ायम करनाशामिल है.
इस दौरान इंडस-एक्स (Indus-X) नाम की एक नई पहल भी की गई, जो दोनों देशों के बीच रक्षा आविष्कार के मामले में संपर्क को नई गति प्रदानकरेगी. ये नई पहल 2022 में भारत और अमेरिका के बीच हुए स्पेस सिचुएशन अवेयरनेस अरेंजमेंट के ऊपर आधारित है, जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में सूचना केआदान प्रदान और सहयोग को बढ़ाने का वादा करती है. इसके अलावा, अमेरिका की स्पेस कमान और भारत की रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी के बीच सहयोग केआधार पर रक्षा अंतरिक्ष के क्षेत्र में सूचनाओं के आदान-प्रदान के नए क्षेत्रों की पहचान भी की गई है.
भारत का ‘प्रमुख रक्षा साझेदार’ (MDP) का दर्जा और अमेरिका के साथ किए गए चार बुनियादी समझौते अब तकनीक साझा करने और अधिकसहयोग की इजाज़त देते हैं. इन समझौतों ने न केवल भारत के दोस्त बने बग़ैर उसके साथ संवेदनशील तकनीकों को साझा करने का रास्ता खोला है, बल्कि प्रक्रियागत समस्याओं या संरचनात्मक मतभेदों के कारण सहयोग की गति धीमी होने से रोकने में भी असरदार भूमिका अदा की है.
अप्रैल 2022 में 2+2 संवाद के दौरान अमेरिका के रक्षा मंत्री ने भारत और अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी को हिंद प्रशांत क्षेत्र में उनके संवाद कीबुनियाद बताया था. उन्होंने हिंद प्रशांत के व्यापक पहलुओं को रेखांकित किया था, जिनमें चीन द्वारा दबाव बनाने के लिए उठाए जा रहे क़दम; ताक़तके दम पर सीमा बदलने के लिए यूक्रेन पर रूस का हमला, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता को चोट पहुंची; आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे अंतरराष्ट्रीयमामले शामिल थे. इस क्षेत्र के ख़तरों को लेकर अमेरिका और भारत द्वारा किए गए साझा मूल्यांकन में चीन के साझा और सबसे बड़ी चुनौती होने कीतरफ़ इशारा किया गया है. जैसा कि अमेरिका द्वारा जारी की गई चीन की मिलिट्री पावर रिपोर्ट 2022 से ज़ाहिर है कि जहाज़ों की संख्या के मामले मेंचीन की नौसेना दुनिया में सबसे बड़ी है. चूंकि, हिंद प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियां और विवाद बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में ये अनुमान लगाया जा रहा है कि हिंद औरप्रशांत महासागरों में चीन की पनडुब्बियों की मौजूदगी और बढ़ेगी.
इन समझौतों ने न केवल भारत के दोस्त बने बग़ैर उसके साथ संवेदनशील तकनीकों को साझा करने का रास्ता खोला है, बल्कि प्रक्रियागत समस्याओं या संरचनात्मक मतभेदों के कारण सहयोग की गति धीमी होने से रोकने में भी असरदार भूमिका अदा की है.
हिंद प्रशांत क्षेत्र से इतर, रक्षा क्षेत्र में अमेरिका और भारत की कंपनियों के बीच एक व्यापक औद्योगिक सहयोग, भारत में अमेरिकी निवेश का मौजूदापैमाना है. इसके पीछे अमेरिकी सरकार द्वारा अपनी कंपनियों को दिया गया ये निर्देश है कि वो भारत के रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण में सहयोग करें. आगे चलकर अमेरिका और भारत के रक्षा सहयोग के व्यापक दायरे में तीन प्रभावी ट्रेंड देखने को मिल सकते हैं: कंपनियों के बीच साझा उद्यमों केइकोसिस्टम का विकास और उनका पोषण; अमेरिका द्वारा धीरे धीरे भारत के रक्षा निर्माण में अधिक हिस्सेदारी हासिल करना, और दोनों देशों द्वारासाझा विकास, और साझा उत्पादन की राह में आने वाले रोड़ों को मिलकर दूर करना. बोइंग, लॉकहीड मार्टिन, BAE सिस्टम्स, हनीवेल एयरोस्पेस, रेथियॉन, टेक्स्ट्रॉन और अन्य की अगुवाई में अमेरिकी कंपनियां, रक्षा क्षेत्र में निर्माण की तमाम गतिविधियों में भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी कररही हैं. इनमें सबसे अहम हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड और टाटा ग्रुप हैं. iCET समझौते के तहत घोषित किए गए ‘इनोवेशन ब्रिज’ के ज़रिए दोनोंदेशों की डिफेंस स्टार्टअप से जोड़कर इन साझेदारियों में और योगदान दिए जाने की उम्मीद है.
डिफेंस टेक्नोलॉजी ऐंड ट्रेड इनिशिएटिव (DTTI) की अक्सर ये कहते हुए आलोचना की जाती है कि ये बहुत ही महत्वाकांक्षी है और इस वक़्तअफ़सरशाही के विरोध, तकनीक के आदान-प्रदान के नुस्खे और ऐसे संरचनात्मक मतभेदों के भंवर में फंसी है कि भारत और अमेरिका के डिफेंसइकोसिस्टम कैसे काम करते हैं. हालांकि, रक्षा क्षेत्र में मिलकर विकास और उत्पादन के ख़ास क्षेत्रों को रफ़्तार देने के लिए उठाए गए ख़ास क़दमों सेDTTI को फिर से रफ़्तार मिलने की उम्मीद जगी है. इस मामले में iCET समझौते के ज़रिए अमेरिका और भारत की सामरिक साझेदारी को नई ऊंचाईदेने की कोशिश बिल्कुल अलग ही नज़र आती है.
रक्षा क्षेत्र में मिलकर विकास और उत्पादन के ख़ास क्षेत्रों को रफ़्तार देने के लिए उठाए गए ख़ास क़दमों से DTTI को फिर से रफ़्तार मिलने की उम्मीद जगी है. इस मामले में iCET समझौते के ज़रिए अमेरिका और भारत की सामरिक साझेदारी को नई ऊंचाई देने की कोशिश बिल्कुल अलग ही नज़र आती है.
अमेरिका के रक्षा मंत्री के भारत दौरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजकीय यात्रा की ज़मीन तैयार की है. इस दौरान कई बड़े ऐलान हो सकते हैं. ख़ास तौरसे रक्षा सहयोग के क्षेत्र में. ऐसा लग रहा है कि दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच उभरती रक्षा साझेदारी के लिए अब संभावनाओं का साराआकाश खुला है.
ये टिप्पणी मूल रूप से द हिंदू में प्रकाशित हुई थी.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
Read More +Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...
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