Author : Simran Walia

Published on Apr 02, 2019 Updated 0 Hours ago

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान को कुछ समय से डेमोग्राफ़ि‍क (आबादी से जुड़ी) चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जापान में बुज़ुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है और कुल जनसंख्या सिमटती जा रही है, इस वजह से जापान में मज़दूरों की कमी को दूर करने की ज़रूरत और बढ़ गई है।

जापान का नया आप्रवासी क़ानून: प्रधानमंत्री शिंजो आबे का एक अहम कदम

जापान की कुल आबादी में 20 फ़ीसदी लोग 65 साल से ज़्यादा उम्र के हो चुके हैं। दुनिया भर के देशों में बुज़ुर्गों का यह हिस्सा जापान में सबसे ज़्यादा है। नवंबर 2018 में जापानी संसद ने एक नियम पारित किया है जिसमें विदेशी कामगारों के देश में आने को मंज़ूरी दी गई है। यह प्रस्ताव आने वाले अप्रैल से लागू किया जाएगा लेकिन विपक्ष इसका यह कहकर विरोध कर रहा है कि इस क़ानून में विदेशियों के शोषण होने का ख़तरा है।

जापान एक ऐसा देश है जो बाहरी लोगों का अपने देश में स्वागत न करके अपनी संस्कृति और एकरूपता को बढ़ावा देता है। जापान ने लंबे समय से दुनिया में अपनी पहचान एकल-संस्कृति वाले देश के रूप में बनाई है। 1990 के दशक में जापान को कामगारों की कमी की समस्या का गंभीर सामना करना पड़ा था, तब उस समय जापान ने दूसरे विश्वयुद्ध के समय लैटिन अमेरिका जा बसे जापानियों से संबंधित नियम-क़ानूनों में बदलाव किए थे, तब उनके लिए ख़त्‍म हो चुके वीज़ा को नए सिरे से जारी किया गया और लंबे समय तक के‍ लिए वीज़ा दिया गया।

अब जबकि फिर से जापान की जनसंख्या सिमट रही है, आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा बूढ़ा हो रहा है तो ऐसे में प्रशासन के लिए आप्रवासियों को लेकर पारंपरिक (रूढ़िवादी) सोच और जापानी अर्थव्‍यवस्था के लिए ज़रूरी हुनरमंद नौजवानों की ज़रूरत के बीच तालमेल बैठाना मुश्किल हो रहा है इसीलिए जापान और अधिक विदेशी कामगारों को अपने यहां आने की अनुमति देने का ये आइडिया लेकर आया है।

अप्रैल 2019 में लागू होने वाले इस रेग्युलेशन में मजदूरों की कमी वाले सेक्‍टर के लिए दो तरह के वीज़ा स्टेटस बनाए गए हैं। पहली कैटेगरी में वीज़ा को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है, इसके तहत काम करने वाले को उस सेक्‍टर में एक स्‍तर तक काम का अनुभव और हुनर होना चाहिए हांलाकि इस श्रेणी के कामगारों को देश में अपना परिवार लाने की इजाज़त नहीं होगी।

दूसरी कैटेगरी में अनिश्चितकालीन वीज़ा का प्रावधान है, जिसकी वैधता समय-समय पर बढ़ाई जाती रहेगी। इसके लिए ऊंचे दर्जे का कौशल और रोज़गार का वैध कॉन्ट्रैक्‍ट होना चाहिए। इस श्रेणी के मजदूरों को अपने साथ परिवार लाने की इजाज़त होगी। जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव योशिहिदे सूगा के मुताबिक देश की जनसंख्या ढलान पर है, लोगों की कमी के कारण व्यापार को नुकसान उठाना पड़ रहा है, ऐसे में विदेशी कामगारों को नया रेसीडेंस स्‍टेटस यानी देश में रहने का दर्जा देना बहुत ज़रूरी हो गया है।

माना जाता रहा है कि अगर नई इमीग्रेशन पॉलिसी लागू की जाती है तो विदेशियों को कंस्‍ट्रक्शन, खेती, नर्सिंग, ट्रेड और फाइनेंस जैसे सेक्टर में काम करने काम करने का मौका मिलेगा। ये वो सेक्टर हैं जिनमें काम करने वालों की सबसे ज़्यादा कमी है। इसके अलावा इस पॉलिसी से अधिक हुनर वाले पेशेवरों का आना मुमकिन होगा, जो पहले संभव नहीं था। इस नीति के तहत प्रधानमंत्री शिंजो आबे को ऐसा कदम लेना पड़ा जो पहले नहीं उठाया गया था, अब कामगारों की कमी को दूर करने के लिए और ज़्यादा विदेशियों को आने दिया जाएगा। वो ये भी मानते हैं कि जिन सेक्टर में कामगारों की कमी है, उनमें विदेशों से आए कामगार एक निश्चित समय के लिए ही काम करेंगे। इस नई नीति से कामगारों की कमी दूर होगी लेकिन विपक्ष और विशेषज्ञ नई वीज़ा नीति की आलोचना कर रहे हैं। विपक्ष की दलील है कि ऐसा होने से जहां विदेश से आए कामगारों को शोषण होगा वहीं वेतन में कमी भी आ सकती है।

जो लोग काम के लिए जापान आ रहे हैं उनके सामने कुछ चुनौतियां हैं। उनमें से एक है जापानी भाषा की जानकारी। जो लोग जापान में रहकर काम कर रहे हैं, उनके लिए जापानी भाषा मुश्किल पैदा करती है। ऐसे में जब नई पॉलिसी के तहत नए लोगों को लाने की तैयारी की जा रही है तो टोक्यो के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वो ऐसा माहौल तैयार करे जहां बाहरी लोग आसानी से जापानी भाषा और संस्कृति से रूबरू हो सकें, उसे सीख सकें। जापान में काम करने के मुश्किल हालात और आप्रवासियों का शोषण भी एक चुनौती है। बाहर से आए लोगों को टेक्निकल इंटर्न ट्रेनी प्रोग्राम (TITP) में बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ता है। विदेशियों, खासकर चीन और दक्षिण एशिया से आने वालों के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत साल 1993 में हुई थी लेकिन सस्ता श्रम उपलब्ध कराने के लिए इसका ग़लत इस्‍तेमाल किया गया। इसके अलावा मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी सामने आए, जिसमें काम देने वालों का कम मज़दूरी देना, डराना-धमकाना, यौन-शोषण और निर्धारित समय से ज़्यादा काम कराना शामिल है। कम्युनिकेशन स्किल की कमी और टोक्यो में काम करने के मुश्किल हालात मिलकर एक निराशाजनक माहौल बना देते हैं। इससे भी ज़्यादा ज़रूरत इस बात की है कि बाहरी मज़दूरों से किस तरह व्यवहार किया जाए और उन्हें किस प्रकार उनके अधिकार बताए जाएं। प्रधानमंत्री शिंजो आबे ज़ोर देकर कह चुके हैं कि “ये क़ानून कोई जापान की अप्रवासी नीति नहीं है बल्कि जापान सिर्फ़ उन लोगों को स्वीकार करने जा रहा है जो किसी क्षेत्र में काम करने की विशेष दक्षता रखते हैं और जिन सेक्टर्स में काम करने वाले लोगों की कमी है, वहां तत्काल इस कमी को पूरा कर सकते हैं।”

इससे पहले अप्रवासियों को स्वीकार न करने के प्रति जापान की मंशा इस बात की रेखांकित करती है कि न तो अप्रवासियों के प्रति होने वाले भेदभाव के प्रति कोई क़ानून था और न ही उनके लिए किसी फंड का प्रावधान किया गया था। इसमें कोई शक नहीं कि जापान को मज़दूरों की कमी से निपटने के लिए ठोस उपाय की ज़रूरत है। विदेश से आने वाले उत्साहित और सुरक्षित महसूस करें इसके लिए ज़रूरत है कि जापानी कंपनियों को उनके साथ भी वही बर्ताव करना होगा, जो वे घरेलू कामगारों के साथ करती हैं।

टोक्यो में होने वाले 2020 ओलंपिक को देखते हुए आबे प्रशासन आंतरिक पर्यटन पर ज़ोर दे रहा है जिससे वे अधिक से अधिक विदेशियों को आकर्षित कर सकें और इसीलिए कामगारों की कमी को पूरा करने की दिशा में ये सब किया जा रहा है। विदेशी कामगारों को लेकर जापानी की सरकारों का अभी तक रवैया नकारात्मक रहा है, लेकिन देश में बुज़ुर्गों की बढ़ती संख्या और घटती जनसंख्या ने अब ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिसे अनदेखा कर पाना अब सरकार के लिए संभव नहीं रह गया है। अब जब ये बिल पास हो गया है तो सारा ध्‍यान इस बात पर होना चाहिए कि जापानी और विदेशी कामगारों के बीच समन्वय वाला माहौल बने। यह बहुत ज़रूरी है कि ऐसे माहौल का निर्माण किया जाए जहां विदेशी भी बिना किसी भेदभाव के रह सकें, सुरक्षित और स्थाई जीवन जी सकें। इस बीच ये चिंता बनी हुई है कि सरकार ने ठीक से अभी तक यह नहीं बताया कि वो विदेशी कामगारों को कैसे स्वीकार करेगी। सरकार का अनुमान है कि अप्रैल में क़ानून लागू होने के बाद अगले पांच साल में लगभग 3 लाख 40 हज़ार विदेशी कामगार जापान आएंगे। अब देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री आबे इस नीति को कैसे लागू कर पाते हैं, जिसके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.