ताइवान को खुद को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों से बाहर रखने में मुश्किल हो रही है. यह द्वीप देश, जिसमें केवल 23 मिलियन लोग रहते हैं, बीजिंग की नाराज़गी उत्तेजित वाकपटुता और ताइवानी हवाई क्षेत्र में सैन्य घुसपैठ के रूप में झेल रहा है. ताइवान के अनुसार, 1 से 4 अक्टूबर के बीच, चीनी एयरक्राफ्ट ने उसके एयर डिफेंस आईडेंटिफिकेशन ज़ोन (ADIZ) में करीब 150 बार घुसपैठ की है. इसके कुछ समय बाद ही, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक भाषण दिया था जिसमें “मातृभूमि के एकीकरण के ऐतिहासिक कार्य को निभाने” की कसम खाई थी. इसके जवाब में, ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने स्पष्ट किया था कि ताइपेई बीजिंग के दबाव के आगे नहीं झुकेगा और यह साफ़ कर दिया था कि ताइवान में बीजिंग से अलग खुद का रास्ता बनाने की तमन्ना बढ़ती जा रही है. इन तनावों ने, जिसे वैश्विक रूप से कथित चीनी आक्रामकता, एशिया में अमेरिका-चीन का मुकाबला और चीन की बेहतर सैन्य क्षमता को व्यापक संदर्भ में देखा जा रहा है, कइयों को इस बात को लेकर आश्वस्त कर दिया है कि बीजिंग ताइवान के मसले को बलपूर्वक निपटाने का इरादा ज़ाहिर कर रहा है. हालांकि, राष्ट्रपति शी जिनपिंग के वक्तव्य को व्यापक रूप से ऐतिहासिक संदर्भ में समझना ज़रूरी होगा. चीनी विद्वान बॉनी ग्लेसर (Bonnie Glaser) के मुताबिक, शी ने जो कुछ कहा वो ताइवान को लेकर उस पटकथा से बिल्कुल भी अलग नहीं था जिसका बीजिंग कुछ दशकों से अनुसरण कर रहा है. जब शी ने कहा था कि ताइवान के साथ एकीकरण निश्चित है, तो ऐसा कहने वाले वो अकेले चीनी राष्ट्रपति नहीं हैं.
2000 की शुरुआत में जब राष्ट्रपति चेन शुई बियान ने सरेआम ताइवानी स्वतंत्रता का नारा दिया था, तब चीनी मुख्य भूभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया था कि जलसंधि “बड़े खतरे के दौर में प्रवेश कर रही है.”
बेशक, सीसीपी के 100वें वर्षगांठ में अपने संबोधन के दौरान, उन्होंने राष्ट्रीय कायाकल्प से जोड़े बगैर शांतिपूर्ण एकीकरण की अपनी प्रतिबद्धता का ज़िक्र किया था. ग्लेसर आगे तर्क देते हैं कि ताइवान के लिए बीजिंग के साथ उत्तेजक मौखिक युद्ध नयी बात नहीं है. 2000 की शुरुआत में जब राष्ट्रपति चेन शुई बियान ने सरेआम ताइवानी स्वतंत्रता का नारा दिया था, तब चीनी मुख्य भूभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया था कि जलसंधि “बड़े खतरे के दौर में प्रवेश कर रही है.” इस तरह की वाकपटुता अब नज़र नहीं आती है क्योंकि राष्ट्रपति त्साई एक चतुर राजनेता हैं जिन्होंने पूर्ण आज़ादी की बात किये बगैर ताइवान के लिए एक स्वतंत्र मार्ग की रूपरेखा की दलील पेश की है. लेखक की नज़र में, बीजिंग के बढ़ते विद्वेष के लिए दो प्रबल कारण हैं: पहला ताइवान की घरेलू राजनीति और दूसरा कारण ताइवान को लेकर अंतरराष्ट्रीय समर्थन और रुचि है.
बीजिंग को लेकर कड़ा रवैया
Zhongnanhai (चीनी रायसीना) के शीर्ष नेता, ऐसे समय में त्साई इंग वेन जैसे राजनेताओं को मिल रहे बढ़ते समर्थन से चिंतित हैं जब बीजिंग को समर्थन मिलना लगभग समाप्त हो गया है. 1992 Consensus की असफलता से यह बात और भी साफ हो जाती है. यद्यपि Consensus की व्याख्या मुश्किल है, और कुछ तो इसके अस्तित्व पर संदेह भी करते हैं, यह व्यापक रूप से बीजिंग और ताइपे के बीच सिर्फ वन चाइना को लेकर अनाधिकारिक सहमति का हवाला देता है. इसके अलावा, वन चाइना वास्तव में क्या है, Consensus इसकी विभिन्न विवेचना करने की अनुमति देता है. ताइपे (भूतपूर्व गणराज्य चीन) ने जायज़ चीनी सरकार होने का दावा किया था, बीजिंग ने भी ऐसा ही किया था. इससे बीजिंग को यह भरोसा मिला था कि ताइवान स्थायी से अलग होने का और औपचारिक स्वतंत्रता की घोषणा करने का प्रयास नहीं करेगा. हालांकि, राष्ट्रपति त्साई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DDP) का 1992 Consensus का विरोध करने का लंबा इतिहास रहा है, जबकि Kuomintang (KMT) ने इसका समर्थन किया है. 2020 में, त्साई ने प्रो-इंगेजमेंट KMT उम्मीदवार को आसानी से हराकर लगातार दूसरा कार्यकाल जीता था. त्साई की जीत चीन को लेकर ताइवानी जनता के बीच बढ़ते अविश्वास की पृष्ठभूमि में हुई है. हॉन्गकॉन्ग में विरोध को चीनी सुरक्षा बलों द्वारा कुचलने के बीच, ताइवान में कई लोगों ने मुख्य भूभाग के साथ अधिक सांठगांठ और एकीकरण की राय पर नाराज़गी ज़ाहिर थी. बीजिंग को लेकर त्साई के कड़े रवैये के कारण उनको लड़खड़ाती सरकार नहीं मिली और KMT के उन युवा सदस्यों के बीच संकट खड़ा हो गया जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर पार्टी को 1992 Consensus का समर्थन करने पर पुनर्विचार करने को कहा था. ताइवान के नागरिक ज़्यादातर खुद को केवल ताइवानी मानते हैं और चीन के साथ संबंधों को नहीं मानते जो उनसे पहले की पीढ़ियों की पहचान थी. तेज़ी से घट रहे एकीकरण के समर्थन का सामना कर रहे बीजिंग को चिंता है कि चीनी मुख्य भूभाग के साथ किसी भी तरह का संयोजन ताइवान में राजनीतिक असफलता बनने से पहले ही वो अवसर गंवा देगा.
दूसरा, बीजिंग के साथ ताइवान के झगड़े ने जबरदस्त ध्यान और अंतरराष्ट्रीय समर्थन आकर्षित किया है. ताइवान की तब काफी सराहना हुई जब कोविड-19 महामारी को लेकर औद्योगिक दुनिया के सबसे असरदार प्रतिक्रियाओं में से एक का इस छोटे द्वीप राष्ट्र ने नेतृत्व किया. इसको देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अधिकांश तबके को यह महसूस हुआ कि विश्व को ताइवान के ज्ञान और महामारी प्रबंधन के अनुभव से फायदा मिलेगा और विश्व स्वास्थ्य संगठन में उसके प्रवेश का समर्थन किया. यद्यपि ताइवानी सदस्यता को लेकर चीन के लंबे विरोध के कारण यह प्रयास असफल हो गया, लेकिन इससे ताइवान अंतरराष्ट्रीय स्पॉटलाइट में आ गया. इसके अतिरिक्त, ताइवान को लेकर बीजिंग की आक्रामकता उस समय उजागर हुई जब अपने पड़ोसियों के प्रति चीन की कथित आक्रामकता ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था. पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी अबॉट से लेकर ताइवान दौरे के लिए कतारबद्ध फ्रांसीसी सभासदों के एक वर्ग के साथ ही ताइवान के लिए समर्थन फूट पड़ा. अधिक संवेदनशील यूरोपीय भी ताइवान से एक आर्थिक प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी कर रहे हैं.
ताइवान के नागरिक ज़्यादातर खुद को केवल ताइवानी मानते हैं और चीन के साथ संबंधों को नहीं मानते जो उनसे पहले की पीढ़ियों की पहचान थी. तेज़ी से घट रहे एकीकरण के समर्थन का सामना कर रहे बीजिंग को चिंता है कि चीनी मुख्य भूभाग के साथ किसी भी तरह का संयोजन ताइवान में राजनीतिक असफलता बनने से पहले ही वो अवसर गंवा देगा.
बीजिंग की सैन्य घुसपैठ
अब जबकि यह बीजिंग के बढ़ते हुए खतरे की धारणा को स्पष्ट करता है, फिर भी इस बात पर प्रकाश नहीं डालता कि उसने अपनी बात रखने के लिए सैन्य उकसावे को क्यो चुना है? चीनी विचार को समझने के लिए 1990 के दौर में जाना होगा. इस दौरान, नवीन प्रजातंत्रीकरण वाले ताइवान ने बीजिंग से स्वतंत्रता का एलान करने की योजना को खुलेतौर पर ज़ाहिर किया था. जलसंधि के पार हो रहे घटनाक्रम को देखकर परेशान बीजिंग ने वहां अपनी सैन्य गतिविधियों को बढ़ा दिया था. विभिन्न सैन्य अभ्यासों और एक ताइवान जलसंधि संकट के बाद, ताइवान के लोग इस नतीजे पर पहुंचे की आज़ादी के कंटीले मसले को टाल देना चाहिए. 1996 के राष्ट्रपति चुनावों में यह और भी साफ हो गया जब आज़ादी की मांग उठाने वाले डीपीपी उम्मीदवार को गंभीर नाकामयाबी झेलनी पड़ी. स्वतंत्रता समर्थक राजनेताओं ने इससे सबक लिया और यह मुद्दा टाल दिया गया. ताइवान के नागरिकों को यह समझ आ गया कि यद्यपि बीजिंग एकीकरण को एक व्यावहारिक लक्ष्य नहीं मान रहा है, लेकिन वह पूरी तरह से स्वतंत्रता की घोषणा को सहन नहीं करेगा. अपने सैन्य दबाव के ज़रिए, शायद बीजिंग आज़ादी के लिए उत्साह को दबाने में अपनी पहले ही सफलता को दोहराने की कोशिश कर रहा है.
अगर बीजिंग ज़ोख़िम उठाता है, युद्ध करता है और हारता है, तो चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी को अस्तित्व संबंधी संकट का सामना करना पड़ सकता है जिससे उबरना उसके लिए मुश्किल होगा. वैसे भी, शी के चीन के पास सैन्य कार्रवाई के ज़रिए अपनी बात मनवाने के लिए शायद ही कोई वजह है.
एक फायरब्रैंड के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय साख के बावजूद, राष्ट्रपति त्साई इंग वेन को बीजिंग की स्थिति का अंदाज़ा है. 1992 Consensus को लेकर उनका और उनकी पार्टी का विरोध बरकरार है और स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं, लेकिन यह कोई राज़ नहीं है कि ताइवान की आज़ादी बीज़िंग को सैनिक हस्तक्षेप के लिए बाध्य करेगी. त्साई यह भी जानती हैं कि बीजिंग में उनके समकक्ष के समक्ष चीन में बढ़ती असमानता, ठोस जनसांख्यिकीय चुनौती और अमेरिका के साथ भूराजनीतिक मुक़ाबला जैसी अन्य कई गंभीर चुनौतियां हैं. ताइवान के साथ युद्ध में जाने का ज़ोखिम चीन को लेकर शी जिनपिंग के घरेलू लक्ष्यों को प्रभावित करेगा, साथ ही विदेशों में चीन के पहले से ही खराब हो चुके प्रतिष्ठा को और कलंकित करेगा. अगर बीजिंग ज़ोख़िम उठाता है, युद्ध करता है और हारता है, तो चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी को अस्तित्व संबंधी संकट का सामना करना पड़ सकता है जिससे उबरना उसके लिए मुश्किल होगा. वैसे भी, शी के चीन के पास सैन्य कार्रवाई के ज़रिए अपनी बात मनवाने के लिए शायद ही कोई वजह है.
वर्तमान में जारी संकट के किसी भी संभव समाधान के लिए दोनों पक्षों में बातचीत की उसी प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता की ज़रूरत होगी जिसने 1992 Consensus की उत्पत्ति की थी. यद्यपि यह संभावना कम ही है कि ताइवान का राजनीतिक नेतृत्व आज़ादी के लिए दबाव डालेगा, लेकिन यह साफ है कि अंतिम एकीकरण के आधार पर बने राजनीतिक फॉर्मूले को आंतरिक रूप से ज़बरदस्त विरोध का सामना करना पड़ेगा. अपनी खुद की पहचान बनाने और एक पताका के तहत चीन को दोबारा जीतने की पुरानी चीनी पीढ़ियों के सपने को साकार करने के बोझ से आज़ाद होने की ताइवान की उम्मीद और मज़बूत हो रही है. अंतत: राष्ट्रपति त्साई और शी जिनपिंग तनाव को कम करने और नयी सहमति पर पहुंचने को तरजीह देना चाहेंगे ताकि ताइवान में नई राजनीतिक वास्तविकताओं पर चिंतन किया जा सके. यद्यपि दोनों नेताओं को यह उम्मीद होगी कि यह मामला टल जाए और आज़ादी को एक लक्ष्य के तौर पर प्राथमिकता न दी जाए, लेकिन त्साई की वन चाइना के सिद्धांत को अपनाने में हिचक एक महत्वपूर्ण बिंदु बना रहेगा. विश्व को इंतज़ार करना और नज़र बनाए रखना होगा.
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