Author : Kabir Taneja

Published on Aug 01, 2023 Updated 0 Hours ago

इस क्षेत्र में कई तरह की चुनौतियों के उभरने के बावजूद, इज़रायल ने अरब के देशों के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की उम्मीद नहीं छोड़ी है.

अरब-इज़रायल के बीच संबंधों के उतार-चढ़ाव की व्याख्या है नेगेव शिखर सम्मेलन
अरब-इज़रायल के बीच संबंधों के उतार-चढ़ाव की व्याख्या है नेगेव शिखर सम्मेलन

इज़रायल ने साल 2020 में अब्राहम समझौते द्वारा शुरू की गई कोशिशों को और मज़बूत करने के मक़सद से अपने देश के बंजर क्षेत्र नेगेव में चार अरब देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के विदेश मंत्रियों की मेज़बानी की और अरब देशों के संघ और इज़रायल के बीच संबंधों को सामान्य बनाने में मदद की. इसके बाद से ही संबंधों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया में गति देखी गई है जबकि इसके साथ ही, लंबे समय से चली आ रही दरारों को पाटने की भी कोशिश की जा रही है जिसने दशकों से इज़रायल को उसके अरब के पड़ोसी देशों से अलग-थलग कर रखा है. इज़रायल, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र और मोरक्को के विदेश मंत्रियों और उनके समकक्षों ने नेगेव शिखर सम्मेलन को एक वार्षिक सम्मेलन के रूप में संस्था का रूप दिया है. यह एक ऐसा एक सूत्रीय शिखर सम्मेलन है जहां फ़िलिस्तीन से लेकर आतंकवाद विरोधी मुद्दों पर भी चर्चा की जा सकती है. कार्यक्रम स्थल, नेगेव, इनमें से कुछ बहुत लंबे समय से चले आ रहे विभाजित मुद्दों का प्रतिनिधित्व करता है. हालांकि यरुशलम में इस तरह के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने से अरब राज्यों की नाराज़गी तो बढ़ेगी लेकिन तेल अवीव में इसकी मेज़बानी करने से संभावित रूप से इज़रायल की जनता का गुस्सा और उसकी सियासत का तापमान बढ़ेगा.

इज़रायल, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र और मोरक्को के विदेश मंत्रियों और उनके समकक्षों ने नेगेव शिखर सम्मेलन को एक वार्षिक सम्मेलन के रूप में संस्था का रूप दिया है. यह एक ऐसा एक सूत्रीय शिखर सम्मेलन है जहां फ़िलिस्तीन से लेकर आतंकवाद विरोधी मुद्दों पर भी चर्चा की जा सकती है.

हाल ही में यूक्रेन पर रूस के हमले और खाड़ी में क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के असंवेदनशील दृष्टिकोण के साथ-साथ पत्रकार जमाल ख़ाशोगी हत्या मामले में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के समर्थन ने व्हाइट हाउस और खाड़ी देशों के बीच बढ़ते मतभेद के अंतर को मिटा दिया है. इन मतभेदों के बावजूद यह ईरान का तेज़ी से बढ़ता हुआ विवादास्पद मामला है और परमाणु समझौते की वापसी के बाद, जिसे ट्रम्प प्रशासन के तहत अमेरिका द्वारा अनजाने में छोड़ दिया गया था, इस विवाद के केंद्र में है जो अब सामने आ चुका है. इज़रायल शुरू से ही इस समझौते का विरोध करता रहा है जिसे लेकर साल 2006 में P5+1 समूह और तेहरान के बीच शुरुआती बातचीत हुई, जिसके बाद साल 2015 में संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जीसीपीओए) पर हस्ताक्षर किए गए और यह मौजूदा समय सीमा को इतिहास में एक दुर्लभ क्षण के रूप में देखता है, जहां यह क्षेत्रीय तनावों को इज़रायल-अरब के बजाय ईरान के ख़िलाफ़ इज़रायल-अरब की तह ले जा सकता है.

शिखर सम्मेलन में आतंकी हमले की निंदा

इस शिखर सम्मेलन से अलग, आतंकवादियों ने इज़रायल के कुछ टारगेट पर हमला कर दिया. यह तथाकथित इस्लामिक स्टेट से लेकर अल-अक्सा शहीद ब्रिगेड, हमास, हिज़बुल्लाह, फ़िलिस्तीनी इस्लामिक ज़िहाद (पीआईजे) जैसे आपस में युद्धरत जिहादी  समूहों के बीच एकता के दुर्लभ प्रदर्शन की ओर इशारा करता था. इज़रायल के विदेश मंत्री यायर लैपिड ने भी नेगेव शिखर सम्मेलन के मौक़े को अब तक इज़रायल जिस मक़सद को लेकर आगे बढ़ा रहा था उसे और बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया. लैपिड ने कहा कि “आतंकवादियों” का लक्ष्य हमें डराना, हमें एक दूसरे से मिलने से डराना और हमारे बीच संबंध और समझौते बनाने से डराना है. इसमें मैं अकेला नहीं हूं. यहां हर कोई इस भावना को साझा करता है. कल रात शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी विदेश मंत्रियों ने मज़बूत आवाज़ में आतंकी हमले की निंदा की. इज़रायल के लोगों की ओर से मैं इसके लिए आपको धन्यवाद देता हूं,”

पिछले साल अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौज की अचानक वापसी ने अमेरिकी सुरक्षा गारंटी के विचार को पहले के मुक़ाबले ग़लत साबित किया है, जिससे इस क्षेत्र में पारंपरिक सहयोगियों के लिए अधिक पारदर्शी रणनीतिक समर्थन की मांग उठी है और खाड़ी देश रूस, चीन, भारत के साथ आपसी समझौते के दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं.

हालांकि, हाउती उग्रवादियों द्वारा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के ख़िलाफ़ हमलों में लगातार इज़ाफ़ा करना, सऊदी के नेतृत्व वाले अरब गठबंधन और ईरान समर्थित मिलिशिया के बीच यमन में युद्ध का विस्तार करना, ना केवल इससे अबू धाबी और रियाद को सापेक्ष द्विपक्षीयता से बाहर लाया है, बल्कि दोनों ने सामूहिक रूप से अमेरिका पर ईरान के साथ जेसीपीओए समझौते की वापसी की सफलता को अन्य सभी क्षेत्रीय हितों से ऊपर रखने के लिए दबाव डाला है. पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) में अमेरिका की स्थिति हाल के दिनों में ख़राब हुई है. पिछले साल अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौज की अचानक वापसी ने अमेरिकी सुरक्षा गारंटी के विचार को पहले के मुक़ाबले ग़लत साबित किया है, जिससे इस क्षेत्र में पारंपरिक सहयोगियों के लिए अधिक पारदर्शी रणनीतिक समर्थन की मांग उठी है और खाड़ी देश रूस, चीन, भारत के साथ आपसी समझौते के दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं, जबकि तुर्की  इनके बीच अपने सुरक्षा दांव को भरोसेमंद बताने में लगा है. नेगेव में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन की मौजूदगी शायद सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक रही, जबकि वाशिंगटन और संयुक्त अरब अमीरात के बीच रिश्तों की बर्फ़ का पिघलना अब दोनों सहयोगियों के बीच तनाव को कम करने के बाद ज़्यादा मुमकिन लगती है.

अपनी आख़िरी बाधाओं पर अटका जेसीपीओए

संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब के साथ एक पुनर्विचार की मांग कर रहा है जैसा कि अमोस याडलिन और असफ़ ओरियन इसे “बिना छोड़े अनुपस्थित” होने की अमेरिकी स्थिति से दूर होना बताते हैं. संक्षेप में, खाड़ी देश और इज़रायल कार्रवाई का नेतृत्व करने वाला अमेरिका चाहते हैं. इज़रायल के दृष्टिकोण से शिखर सम्मेलन यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि अरब देशों की ताक़त और अमेरिका के बीच दूरियां इतनी ना बढ़ जाए जिससे यह स्वीकार्य सीमा से भी आगे चली जाए. हालांकि यूक्रेन संकट के बीच, अमेरिका ने अपनी नौसेना और एफ़-22 लड़ाकू विमान संयुक्त अरब अमीरात को भेजे, जो एक तरह से सऊदी और अमीरात शहरों और सुविधाओं पर मिसाइल हमलों के बाद ताक़त के प्रदर्शन के रूप में देखा गया. हालांकि अबू धाबी ने इसे पर्याप्त नहीं माना और ईरान और हाउती विद्रोहियों दोनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई और पाबंदियों का रास्ता ढूंढा. एक धारणा यह भी है कि जेसीपीओए अपनी आख़िरी बाधाओं पर अटका हुआ है जो अमेरिका को ईरान पर नरम होने के लिए प्रेरित कर रहा है और उसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इज़रायल के हितों पर हमलों से दूर होने की अनुमति दे रहा है. ईरान ने दावा किया कि उसने उत्तरी इराक़ के इरबिल में हाल ही में मिसाइल हमले किये हैं, जिसे लेकर अमेरिका ने अपेक्षाकृत शांत प्रतिक्रिया दी. ईरान के शक्तिशाली इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) ने कहा कि यह हमला इज़रायली “साज़िश के रणनीतिक केंद्र” के ख़िलाफ़ था. इसके साथ ही ज़्यादा विवादास्पद मुद्दों में से एक, आईआरजीसी के ख़िलाफ़ सख़्त पाबंदी लगाने की खाड़ी देशों की मांग और आईआरजीसी को प्रतिबंध सूची से नहीं हटाए जाने पर तेहरान की बातचीत को रोकने की धमकी भी है. फिलहाल खाड़ी देश व्हाइट हाउस में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहे हैं क्योंकि अमेरिका ने ईरान में ऐसे व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है जो भी लोग देश के मिसाइल कार्यक्रम में शामिल हैं. हालांकि इसे इस तथ्य से कुछ भी अलग नहीं करता है कि अमेरिका वास्तव में वर्तमान समय सीमा को ईरान के साथ एक समझौते को निपटाने के लिए सबसे सही समय के रूप में देखता है.

ईरान के शक्तिशाली इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) ने कहा कि यह हमला इज़रायली “साज़िश के रणनीतिक केंद्र” के ख़िलाफ़ था. इसके साथ ही ज़्यादा विवादास्पद मुद्दों में से एक, आईआरजीसी के ख़िलाफ़ सख़्त पाबंदी लगाने की खाड़ी देशों की मांग और आईआरजीसी को प्रतिबंध सूची से नहीं हटाए जाने पर तेहरान की बातचीत को रोकने की धमकी भी है.

नेगेव शिखर सम्मेलन इज़रायल के दृष्टिकोण और जोख़िम द्वारा निर्धारित है और यह कि अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद अरब-इज़रायल संबंध की वर्तमान गति हासिल की गई है, जो इस क्षेत्र में एक ऐतिहासिक अवसर है लेकिन यह इतना नाज़ुक भी है कि यह क्षेत्रीय उथल-पुथल में असल मक़सद को खोने का जोख़िम भी पालता है, जैसा कि अतीत में कई बार हुआ है. अगर वर्तमान में अरब-इज़रायल बातचीत का सिलसिला निकट भविष्य में टूट जाता है तो शायद इज़रायल को सबसे ज़्यादा नुक़सान झेलने को तैयार रहना होगा क्योंकि कम से कम, विवादों के बीच यह प्रतीकात्मक सहयोग तैयार करने की कोशिश तो ज़रूर करता है.

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.