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बढ़ता हुआ मुद्रास्फीति दबाव अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लौटने के प्रयासों को धक्का पहुंचा सकता है
जैसे ही कोरोनेा के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का ख़तरा एक बार फिर अर्थव्यवस्था की गतिविधियों को बाधित कर रहा है वैसे ही भारतीय अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति दबाव की चिंता पैदा करने वाली ट्रेंड देखी जाने लगी है. साल दर साल होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति दर नवंबर 2020 के 2.29 फ़ीसदी की दर से बढ़कर नवंबर 2021 में 14.23 फ़ीसदी (प्रस्तावित) की दर पर पहुंच चुका है. अर्थव्यवस्था में इस तरह की उच्च दर की वजह मैन्युफैक्चरिंग में उत्पादों की उच्च कीमत के साथ-साथ महंगी तेल और ऊर्जा उत्पादों का होना है. (आकृति 1)
लगातार होनेवाली एलपीजी, पेट्रोल और हाई स्पीड डीजल (एचएसडी) की कीमतों में बढ़ोतरी का नतीजा एक वक्त पर पूरी मुद्रास्फीति पर तो पड़ना ही था, और यह अब हो रहा है.
आकृति 1 – साल दर साल होलसेल प्राइस इंडेक्स(डब्ल्यूपीआई) में मुद्रास्फीति की दर, प्रतिशत में
बीते तीन महीने में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों की मुद्रास्फीति दर 12 फ़ीसदी रही है जो बेहद चिंताजनक है.
प्राथमिक वस्तु की मुद्रास्फीति दर अक्टूबर 2021 तक 6 फ़ीसदी से कम थी लेकिन नवंबर में यह बढ़कर 10.34 फ़ीसदी पर पहुंच गई. यह सामान्य तौर पर खाद्य सामग्रियों की कीमत (प्राथमिक उत्पादों की श्रेणी से) और खाद्य उत्पादों (मैन्युफैक्चर्ड उत्पाद का हिस्सा) में बढ़ोतरी की वजह से थी. खाद्य सूचकांक में वार्षिक मुद्रास्फीति की दर अक्टूबर 2021 के 3.06 फ़ीसदी से बढ़कर नवंबर में 6.70 फ़ीसदी पहुंच गई.
कोरोना महामारी के बाद के दौर में बुरी तरह से फंसी हुई केंद्र और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पेट्रोलियम उत्पादों पर लगातार टैक्स में बढ़ोतरी करने से थोड़ी सुधरी थी. पूरे देश भर में पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय एक्साइज़ ड्यूटी और स्टेट सेल्स टैक्स (या वैट) इसकी कीमत का 50 फ़ीसदी बनाते हैं. हालांकि इससे होने वाली आय कुछ हद तक केंद्र और राज्य सरकारों की बिगड़ती वित्तीय व्यवस्था को कुछ हद तक ठीक करने में मददगार रहे लेकिन लगातार होनेवाली एलपीजी, पेट्रोल और हाई स्पीड डीजल (एचएसडी) की कीमतों में बढ़ोतरी का नतीजा एक वक्त पर पूरी मुद्रास्फीति पर तो पड़ना ही था, और यह अब हो रहा है.
सभी उत्पादों के होलसेल प्राइस इंडेक्स में तेल और ऊर्जा की हिस्सेदारी 13.15 फ़ीसदी है लेकिन तेल और ऊर्जा किसी भी तरह की आर्थिक गतिविधियों के लिए आवश्यक है. यही वजह है कि तेल की मुद्रास्फीति का असर इससे जुड़े सभी प्रकार के उत्पादों पर होता है.
64.23 फ़ीसदी के ओवरऑल होलसेल प्राइस इंडेक्स में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है. बीते छह महीनों में इस श्रेणी में मुद्रास्फीति 10.2 फ़ीसदी के स्तर से ऊंची रही है. बीते तीन महीने में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों की मुद्रास्फीति दर 12 फ़ीसदी रही है (आकृति 2) जो बेहद चिंताजनक है.
जुलाई 2021 के बाद से ही तेल और ऊर्जा कटैगरी में मुद्रास्फीति की दर लगातार बढ़ती जा रही है. दरों में तेजी सितंबर के बाद आई है. इसके अतिरिक्त प्राथमिक वस्तुओं की मुद्रास्फीति में अक्टूबर के 5.20 फ़ीसदी के मुकाबले नवंबर 2021 में 10.34 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. ये सभी बातें नवंबर में मुद्रास्फीति की दर को 14 फ़ीसदी तक पहुंचा देते हैं.(आकृति 2)
आकृति 2 : होलसेल प्राइस इंडेक्स का ट्रेंड साल दर साल मुद्रास्फीति में पिछले 6 महीने के आधार पर (प्रतिशत में)
मैन्युफैक्चर्ड उत्पादों के तहत बुनियादी मेटल, सब्जियां, एनिमल ऑयल और फैट, कपड़े, पेपर और पेपर उत्पाद, रसायन और रासायनिक उत्पाद, रबर और प्लास्टिक उत्पाद जैसे कुछ सेक्टर हैं जिसमें मुद्रास्फीति की काफी ऊंची दर हाल के दिनों देखी गई है. जून 2021 में सब्जियों और एनिमल फैट में मुद्रास्फीति की दर 43.56 फ़ीसदी थी जो थोड़ी नीचे आई लेकिन नवंबर में फिर भी यह 23.16 फ़ीसदी थी. बेसिक मेटल में भी मुद्रास्फीति का दबाव देखा गया – जो जून में 29 फ़ीसदी था और यह नवंबर में बढ़कर 29.06 फ़ीसदी पहुंच गया (आकृति 3). बेसिक मेटल कैटगरी में, सेमी फिनिस्ड स्टील की मुद्रास्फीति दर अक्टूबर 2021 में 23.85 फीसदी थी जो बढ़कर नवंबर में 19.40 फ़ीसदी पहुंच गई. स्टील को आर्थिक विकास की दिशा ठीक होने का प्रमुख संकेतक माना जाता है और इसकी कीमतों में लगातार तेजी अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए अच्छी ख़बर नहीं है.
आकृति 3 : होलसेल प्राइस इंडेक्ट का ट्रेंड सेलेक्टेड मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों के साल दर साल पिछले 6 महीने में मुद्रास्फीति की दर पर आधारित ( प्रतिशत में )
नवंबर में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) मुद्रास्फीति का आंकड़ा 4.91 फ़ीसदी पहुंच गया था जबकि कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (सीएफपीआई) महज 1.97 फ़ीसदी था. यही वजह थी होलसेल प्राइस इंडेक्स और कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स की मुद्रास्फीति में भारी अंतर था. इस वित्तीय वर्ष में यह अंतर दिखता है. अप्रैल 2021 से लेकर नवंबर 2021 के बीच होलसेल प्राइस इंडेक्स 12.2 फ़ीसदी थी जबकि कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स या रिटेल मुद्रास्फीति 5.2 फ़ीसदी थी.
होलसेल प्राइस इंडेक्स (24.38 फ़ीसदी) के मुकाबले सीपीआई में खाद्य और पेय का बड़ा हिस्सा ( 54.18 फ़ीसदी ) होता है. 2020 के मुकाबले खाद्य पदार्थों का मूल्य 2021 में कम तेजी से बढ़ा. यह इस कैटेगरी के उत्पादों में हाई बेस इफेक्ट की वजह से था. अप्रैल और नवंबर 2020 के बीच खाद्य मुद्रास्फीति दर 9.9 फ़ीसदी थी लेकिन इसी दौरान साल 2021 में यह 2.8 फ़ीसदी थी.
2021 की शुरुआत से ही खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी देखी जा रही थी. सीपीआई के आकलन में होलसेल प्राइस इंडेक्स के मुकाबले खाद्य पदार्थों का हिस्सा करीब दोगुना होता है. इसलिए एक हाई बेस इफेक्ट अब तक सीपीआई में खाद्य मुद्रास्फीति की दर को कम रखने में सहायक रहा लेकिन यह दिसंबर के बाद से बदलने लगा जैसे दिसंबर 2020 में खाद्य मुद्रास्फीति दर 3.4 फ़ीसदी थी.
अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटना मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करेगा कि छोटे और मध्यम स्तर के मैन्युफैक्चरिंग ईकाईयों के लिए सॉफ्ट इंटरेस्ट रेट ख़ास कर लेंडिंग रेट कितना होगा.
मौजूदा होलसेल प्राइस इंडेक्स की सीरीज़ अप्रैल 2012 से शुरू हुई है और इस सीरीज़ में 14.23 फ़ीसदी का आंकड़ा सबसे ज़्यादा है. सीएमआईई के पास अप्रैल 1983 से होलसेल प्राइस इंडेक्स की सीरीज़ है, नतीज़तन, अप्रैल 1992 के 13.8 फ़ीसदी के आंकड़े के मुकाबले नवंबर 2021 में यह सबसे उच्च दर पर है. इसलिए नवंबर 2021 में होलसेल प्राइस इंडेक्स 30 सालों के सबसे उच्चतम स्तर पर है.
जैसे कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन दुनिया भर में पैर पसार रहा है, आर्थिक गतिविधियों के सुस्त पड़ने का ख़तरा भी बढ़ता जा रहा है और यह मुद्रास्फीति भारत के लिए भी उतना ही स्पष्ट है. अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटना मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करेगा कि छोटे और मध्यम स्तर के मैन्युफैक्चरिंग ईकाईयों के लिए सॉफ्ट इंटरेस्ट रेट ख़ास कर लेंडिंग रेट कितना होगा. इसलिए किसी तरह का मुद्रास्फीति दबाव और उसके बाद इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी कर इस समस्या से निपटने की नीति हर हाल में पहले से बैसाखी पर चल रही अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए काफी ख़राब होगी. इस मुद्रास्फीति के ट्रेंड को क्षणिक और कम समय के लिए असरदार मानने की भूल साल 2022 में नीति निर्धारण के लिए बहुत बड़ी गलती साबित होगी.
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Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...
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