Author : Taufiq uz Zaman

Published on Jan 29, 2021 Updated 0 Hours ago

विकासशील देशों में कम आमदनी वाले और अकुशल मज़दूरों की नौकरियां जाने की समस्या ऐसी है, जिसका सामना हमें जल्द से जल्द करना पड़ेगा.

कामकाज का भविष्य, इंसान के लिए है या मशीन के लिए?

क्या मानवता के अस्तित्व को बचाने, तरक़्क़ी करने और समृद्धि को लेकर होने वाली परिचर्चा में हमें समझौता शब्द को भी शामिल कर लेना चाहिए? समाज को मानवता की ज़रूरतों और किन्हीं अन्य बातों के बीच समझौते का फ़ैसला कब करना चाहिए? इक्कीसवीं सदी में न तो ये सवाल महज़ नारेबाज़ी हैं और न ही काव्यात्मक. मानवता ऐसे विचारों और ज़मीनी स्तर पर कामकाज और आर्थिक गतिविधियों में होने वाले बदलाव की आदी है. हालांकि अब जबकि चौथी औद्योगिक क्रांति रफ़्तार पकड़ रही है, तो ऐसे समझौतों की सच्चाई और मुखर होकर सामने आती जा रही है, जो हमें आगे चलकर करने होंगे. विकासशील देशों में कम आमदनी वाले और अकुशल मज़दूरों की नौकरियां जाने की समस्या ऐसी है, जिसका सामना हमें जल्द से जल्द करना पड़ेगा.

मिसाल के तौर पर बांग्लादेश में आर्थिक प्रगति की रफ़्तार बहुत तेज़ है. वो आज तेज़ी से विकास करते हुए विकासशील देश के दर्जे से बाहर निकलकर औसत रूप से विकसित देश बनने की ओर बढ़ रहा है. अब जबकि बांग्लादेश इस समय कोविड-19 की महामारी के दुष्प्रभावों से जूझ रहा है, तो भी वर्ष 2020 में उसकी GDP की विकास दर 5.2 प्रतिशत और वर्ष 2021 में बढ़कर 6.8 फ़ीसद रहने की उम्मीद है. जबकि, बांग्लादेश के पड़ोसी देश, आर्थिक प्रगति के मामले में इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं. वर्ष 2020 में पाकिस्तान की GDP की विकास दर -0.4 प्रतिशत, श्रीलंका की -5.5 प्रतिशत और भारत की विकास दर -9 फ़ीसद रहने की उम्मीद है. पिछले दो दशकों से बांग्लादेश की तेज़ विकास दर में उसके रेडीमेड गारमेंट (RMG) और कपड़ा उद्योग का बहुत योगदान रहा है. सस्ते और अकुशल श्रम, कम लागत और अधिक निर्यात के कारण इस उद्योग ने बांग्लादेश की प्रगति को पंख लगा दिए हैं. हाल के वर्षों में वैश्विक मानकों और ज़रूरतों को बनाए रखने के लिए बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट और कपड़ा उद्योग ने निर्माण की प्रक्रिया में बदलाव किए हैं. बांग्लादेश के इस उद्योग ने नई तकनीकें अपनाकर श्रमिकों की स्थिति बेहतर बनाई है और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ तरीक़े भी अपनाए हैं. आज ऑटोमेशन से बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव आ रहे हैं; उदाहरण के लिए, पहले जहां किसी जींस में पीछे की जेबें लगाने के लिए किसी भी उत्पादन इकाई को दो मज़दूर लगाने पड़ते थे, वहीं अब बहुत से कारखानों में ये काम पूरी तरह मशीनों के हवाले कर दिया गया है. इससे उत्पादन में कुशलता भी आई है और काम भी बेहतर हो रहा है.

बांग्लादेश में आर्थिक प्रगति की रफ़्तार बहुत तेज़ है. वो आज तेज़ी से विकास करते हुए विकासशील देश के दर्जे से बाहर निकलकर औसत रूप से विकसित देश बनने की ओर बढ़ रहा है. 

भारत में भी कई उद्योगों में ऑटोमेशन को काफ़ी बढ़ावा दिया जा रहा है. इनमें वित्त, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा के क्षेत्र सबसे आगे हैं. आज उद्योगों के आटोमेशन को अपनाने में निजी क्षेत्र बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है. लेकिन, दोनों ही देशों के उद्योगों में ऑटोमेशन को बढ़ावा देने की प्रतिक्रिया बिल्कुल अलग अलग देखी जा रही है. भारत में जहां ऑटोमेशन को लेकर लोगों का नज़रिया सकारात्मक है, वहीं बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट और कपड़ा उद्योग में ऑटोमेशन की बढ़ती पैठ को एक ख़तरे के तौर पर देखा जा रहा है. बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग ने लाखों अकुशल मज़दूरों (ख़ास तौर से महिलाओं) को कम आमदनी वाले रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए हैं. ऐसे में इस उद्योग में ऑटोमेशन और अन्य तकनीकी इनोवेशन को तेज़ी से अपनाए जाने के कारण, बांग्लादेश के समाज के इस वर्ग के लिए ख़तरा बढ़ता जा रहा है.

वर्ष 2015 से बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट और कपड़ा उद्योग में श्रमिकों की आबादी का स्वरूप बदलता जा रहा है. एक समय इस उद्योग में महिलाओं का दबदबा हुआ करता था. लेकिन, अब बांग्लादेश के इस उद्योग में महिलाओं से ज़्यादा पुरुष काम कर रहे हैं. इसकी एक वजह ये है कि बांग्लादेश का RMG और कपड़ा उद्योग, अपनी उत्पादन प्रक्रिया में तकनीक और ऑटोमेशन को अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रहा है. इसके लिए अलग तरह के कौशल की ज़रूरत होती है. इस लिहाज़ से देखें तो मर्दों के पास कंपनियों के लिए आवश्यक वैसा हुनर, प्रशिक्षण और जानकारी है, जिसकी मदद से वो महिलाओं के मुक़ाबले किसी ऑटोमेटेड कारखाने को बेहतर ढंग से चला सकते हैं.

इसीलिए, बांग्लादेश और उसके जैसे अन्य देशों को लंबी अवधि में समृद्ध बनने के लिए बुनियादी स्तर पर शिक्षा को अनिवार्य बनाने को बढ़ावा देने और सख़्ती से लागू करने की ज़रूरत है.

भारत में जहां ऑटोमेशन को लेकर लोगों का नज़रिया सकारात्मक है, वहीं बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट और कपड़ा उद्योग में ऑटोमेशन की बढ़ती पैठ को एक ख़तरे के तौर पर देखा जा रहा है. बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग ने लाखों अकुशल मज़दूरों (ख़ास तौर से महिलाओं) को कम आमदनी वाले रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए हैं. 

पिछले एक दशक में बांग्लादेश ने अपने राष्ट्रीय साक्षरता अभियान में नामांकन को 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ा लिया है. इसके बावजूद, वर्ष 2019 में वहां युवाओं के बीच बेरोज़गारी की दर 11.87 प्रतिशत थी. बांग्लादेश, भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों को आर्थिक विकास की मज़बूत बुनियाद रखने के लिए, प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने और माध्यमिक व उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. साक्षरता और शिक्षा का स्तर बढ़ाकर ही कामकाजी लोगों को हुनरमंद या और कार्यकुशल बनाया जा सकता है.

उद्योगों की ज़रूरत के अनुसार श्रमिकों की ट्रेनिंग

पूरी दुनिया में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में निजी शिक्षण तकनीक (EdTech) ने क्रांतिकारी भूमिका निभाई है. आज दक्षिण एशिया में शिक्षा संबंधी तकनीक उपलब्ध कराने वाली 3000 से ज़्यादा कंपनियां काम कर रही हैं. ये कंपनियां छात्रों को ट्यूशन देने, इम्तिहान की तैयारी करने और हुनरमंद बनाने में मदद कर रही हैं. सरकार के संरक्षण में ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रमों के साथ साथ, शिक्षा और कुशलता विकसित करने के क्षेत्र में निजी कंपनियों ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है. लेकिन, EdTech कंपनियों तक लोगों की पहुंच बढ़ाने के लिए, देशो को अपने यहां डिजिटल संसाधनों का विकास करना होगा. इस समय बांग्लादेश की केवल 12.9 प्रतिशत आबादी के पास ही इंटरनेट की सुविधा है. वहीं, भारत में 48.48 फ़ीसद लोगों के पास इंटरनेट सुविधा पहुंच चुकी है. डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाने, ख़ास तौर से शिक्षा और कौशल विकास के समाधानों के क्षेत्र में इसके बुनियादी ढांचे का विकास करना, बांग्लादेश और भारत जैसे देशों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है.

शिक्षण तकनीक की तमाम संभावनाओं के बावजूद, ऐसे समाधानों का वास्तविक असर कितना व्यापक होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. हालांकि, कोविड-19 की महामारी ने डिजिटल तकनीक को अपनाने की रफ़्तार बढ़ा दी है. लेकिन, इससे छात्रों के साथ संवाद बढ़ाने, उन्हें पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने और तकनीक का उनकी शिक्षा पर असर का आकलन करने को लेकर बहुत सी चिंताएं भी जताई गई हैं. अब ऐसे अधिक से अधिक प्रयासों को ई-लर्निंग के अलावा दूसरे विकल्प भी अपनाने पर ज़ोर देना चाहिए. पढ़ाई के अतिरिक्त ऐसी अन्य गतिविधियां, जिनसे सॉफ्ट स्किल, तकनीकी साक्षरता और STEM शिक्षा को बढ़ावा देने की ज़रूरत है.

उद्योगों की बदलती मांग के लिए श्रमिकों को तैयार करने यानी उन्हें शिक्षित और कौशल विकास की ट्रेनिंग देने की ज़िम्मेदारी सरकार की बनती है. नीति निर्माताओं को शिक्षा और कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों का नए सिरे से मूल्यांकन करना होगा, तभी वो कामगारों को बेहतर ढंग से तैयार कर सकेंगे. 

‘मानव अथवा मशीन’ की बहस में शिक्षा और कौशल विकास के विषय बेहद महत्वपूर्ण है. तमाम उद्योगों में तकनीकी तरक़्क़ी से ज़्यादा हुनरमंद कामगारों की मांग बढ़ने वाली है. ऐसे में ऑटोमेशन के कारण अपनी नौकरियां गंवाने वाले अकुशल कामगारों को दूसरी जगह रोज़गार की तलाश करनी पड़ेगी. इसके लिए उन्हें अतिरिक्त प्रशिक्षण और कौशल का विकास करना पड़ेगा. उद्योगों की बदलती मांग के लिए श्रमिकों को तैयार करने यानी उन्हें शिक्षित और कौशल विकास की ट्रेनिंग देने की ज़िम्मेदारी सरकार की बनती है. नीति निर्माताओं को शिक्षा और कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों का नए सिरे से मूल्यांकन करना होगा, तभी वो कामगारों को बेहतर ढंग से तैयार कर सकेंगे. इस काम में नागरिक संगठन सरकार की सहायता कर सकते हैं. वैसे तो निजी कंपनियों पर इस बात की कोई मनाही नहीं है कि वो किसे नौकरी पर रखें या किसे नहीं. लेकिन, ये उनकी भी नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वो श्रमिक वर्ग को शिक्षा प्राप्त करने और नया हुनर सीखने में मदद करें, जिससे कि कामगार ख़ुद को भविष्य के कामकाज के माहौल के लिए तैयार हो सकें.


ये लेख  कोलाबा एडिट सीरीज़ का हिस्सा है.

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