Published on Dec 10, 2021 Updated 0 Hours ago

कच्चे तेल की नीची क़ीमतों ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को अपना कर राजस्व बढ़ाने का सुनहरा मौका दिया. बहरहाल कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय भाव में अब लगातार बढ़ोतरी का रुझान दिख रहा है. 

पेट्रोलियम पर लगने वाले करों पर महंगाई की नकेल

ये लेख कॉम्प्रिहैंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया एंड द वर्ल्ड सीरीज़ का हिस्सा है.


पृष्ठभूमि

4 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी में कटौती का एलान किया. पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में 5रु प्रति लीटर और डीज़ल पर 10 रु प्रति लीटर की कमी की गई. इस कटौती के बाद दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा भाव 103.97 रु प्रति लीटर पर आ गया. हालांकि एक्साइज़ ड्यूटी में कटौती के बाद भी दिल्ली में पेट्रोल का खुदरा भाव अक्टूबर 2021 में पेट्रोल की औसत खुदरा क़ीमत (101.89 रु प्रति लीटर) के मुक़ाबले ज़्यादा है. दूसरी ओर एक्साइज़ ड्यूटी में कमी के बाद दिल्ली में डीज़ल की खुदरा क़ीमत 86.67 रु प्रति लीटर हो गई. अक्टूबर 2021 में दिल्ली में डीज़ल का औसत भाव 90.17 रु प्रति लीटर था. ज़ाहिर है कि एक्साइज़ में कटौती के बाद दिल्ली में डीज़ल की खुदरा कीमत नवंबर में अक्टूबर के मुक़ाबले कम हो गई है. पेट्रोल पर लगने वाली एक्साइज़ ड्यूटी (केंद्रीय कर) में अक्टूबर 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच कोई बदलाव नहीं हुआ और ये 32.9 रु प्रति लीटर पर स्थिर रही. नवंबर में इसमें 15 प्रतिशत की कटौती कर इसे 27.90 रु प्रति लीटर के स्तर पर ला दिया गया. हालांकि इसी अवधि में दिल्ली में राज्य सरकार द्वारा लगाए जाने वाले मूल्य वर्धित कर (VAT) में 35 प्रतिशत (17.71 रु प्रति लीटर से 23.99 रु प्रति लीटर) की बढ़ोतरी हुई. डीज़ल पर लगने वाली एक्साइज़ ड्यूटी में अक्टूबर 2020 से अक्टूबर 2021 तक कोई बदलाव नहीं हुआ. 4 नवंबर 2021 को इसमें 31 प्रतिशत (21.80 रु प्रति लीटर) की कटौती की गई. इसी कालखंड में दिल्ली में डीज़ल पर लगने वाले वैट में 22 फ़ीसदी की कटौती (16.26 रु प्रति लीटर से 12.68 रु प्रति लीटर) हुई.

 तेल से मिलने वाला केंद्रीय उत्पाद राजस्व 2014-15 में 1.72 खरब रु (23 अरब अमेरिकी डॉलर) था. वित्त वर्ष 2020-21 में ये 163 फ़ीसदी बढ़कर 4.5 खरब रु (60.2 अरब अमेरिकी डॉलर) तक पहुंच गया. 

एक्साइज़ और मूल्य वर्धित कर (वैट) का रुझान

2015 में अमेरिका द्वारा गाढ़े तेल के उत्पादन में इज़ाफ़े के बावजूद सऊदी अरब की अगुवाई में तेल उत्पादक देशों  के संगठन ओपेक ने अपने तेल उत्पादन में कोई भी कमी नहीं लाने का फ़ैसला किया था. नतीजतन वैश्विक तेल क़ीमतें गिरकर तक़रीबन 40 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई थीं.  ओपेक देशों के इस फ़ैसले से भले ही उनको तेल से मिलने वाले राजस्व में कमी आई लेकिन तेल के बाज़ार में उनका हिस्सा बरकरार रहा. उस वक़्त कच्चे तेल की वैश्विक क़ीमतों में हुई गिरावट ने भारत सरकार को पेट्रोल और डीज़ल पर लगने वाले करों को बढ़ाने का मौक़ा दे दिया. आमतौर पर कच्चे तेल की क़ीमतों में हुए बदलावों का प्रभाव उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचाया जाता है. लिहाज़ा कच्चे तेल की क़ीमतों में गिरावट आने पर सरकार को ज़्यादा टैक्स वसूलने का मौका मिल जाता है. दरअसल कच्चे तेल के भाव में 1 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की गिरावट से सरकार करों में 50 पैसे प्रति लीटर का इज़ाफ़ा कर सकती है. करों में ये बढ़ोतरी तेल के ख़ुदरा भाव में किसी भी तरह का बदलाव लाए बगैर संभव होता है. भारत सरकार 2015 के बाद से इसी मौके को भुनाकर लगातार अपना राजस्व बढ़ाती रही है.

मार्च 2014 से अक्टूबर 2021 के बीच केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल पर लगाए जाने वाले एक्साइज़ में 200 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई. इसी दौरान डीज़ल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में तक़रीबन 600 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ. दिल्ली में इसी अवधि में पेट्रोल पर वैट में  97 प्रतिशत और डीज़ल पर 118 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. दूसरे राज्यों ने भी इस कालखंड में वैट में भारी इज़ाफ़ा किया. तेल से मिलने वाला केंद्रीय उत्पाद राजस्व 2014-15 में 1.72 खरब रु (23 अरब अमेरिकी डॉलर) था. वित्त वर्ष 2020-21 में ये 163 फ़ीसदी बढ़कर 4.5 खरब रु (60.2 अरब अमेरिकी डॉलर) तक पहुंच गया. ग़ौरतलब है कि पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाला ज़्यादातर उत्पाद शुल्क विशेष या अतिरिक्त सेस के तौर पर वसूला जाता है. केंद्र के खाते में जाने वाले इस राजस्व से राज्यों को कोई हिस्सा नहीं दिया जाता. ऐसे में पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क के तौर पर वसूला जाने वाला लगभग सारा पैसा केंद्र सरकार के ख़ज़ाने में जाता है. इसी कालखंड (मार्च 2014 से अक्टूबर 2021) में तेल उत्पादों से मिलने वाले वैट राजस्व में क़रीब 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. वैट से होने वाली कमाई 1.6 खरब रु (21.4 अरब अमेरिकी डॉलर) से बढ़कर 2.1 खरब रु (28 अरब अमेरिकी डॉलर) तक पहुंच गई. ज़ाहिर है कि कच्चे तेल की नीची क़ीमतों ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को अपना कर राजस्व बढ़ाने का सुनहरा मौका दिया. बहरहाल कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय भाव में अब लगातार बढ़ोतरी का रुझान दिख रहा है. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों का वो सुनहरा दौर अब पीछे छूट रहा है.

वैट से होने वाली कमाई 1.6 खरब रु (21.4 अरब अमेरिकी डॉलर) से बढ़कर 2.1 खरब रु (28 अरब अमेरिकी डॉलर) तक पहुंच गई. ज़ाहिर है कि कच्चे तेल की नीची क़ीमतों ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को अपना कर राजस्व बढ़ाने का सुनहरा मौका दिया. 

कच्चे तेल की क़ीमतें

इंडियन क्रूड बास्केट का ताज़ा भाव 82.11 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल है. ये क़ीमत 2014-15 के स्तर के नज़दीक है. उस समय इंडियन क्रूड बास्केट का औसत भाव 84.16 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल था. मई 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच कच्चे तेल के भाव में क़रीब 120 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हो चुका है. ग़ौरतलब है कि मई 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा कोविड-19 वैश्विक महामारी की घोषणा के बाद वैश्विक कच्चे तेल की क़ीमतें धराशायी हो गई थीं. इस कालखंड में पेट्रोल और डीज़ल दोनों पर उत्पाद शुल्क का स्तर स्थिर बना रहा. हालांकि दिल्ली में पेट्रोल पर वैट में 43 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई जबकि डीज़ल पर लगने वाले वैट को 18 प्रतिशत कम किया गया. कुल मिलाकर मई 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच पेट्रोल की खुदरा क़ीमत में 42 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ. पेट्रोल के दाम में इस उछाल के पीछे कच्चे तेल की वैश्विक क़ीमत में वृद्धि के साथ-साथ वैट में हुए इज़ाफ़े का भी हाथ रहा. बहरहाल इसी अवधि में डीज़ल के खुदरा भाव में 29 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के लिए विश्व स्तर पर महंगे कच्चे तेल को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसकी वजह ये है कि इस दौरान डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि वैट में तो 18 प्रतिशत की कटौती की गई थी.

कच्चे तेल की क़ीमतों का पूर्वानुमान

एनर्जी इन्फ़ॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (EIA) के मुताबिक पिछले एक साल में वैश्विक तेल भंडारों से निरंतर तेल निकाले जाने की वजह से कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी हुई है. जनवरी 2021 से सितंबर 2021 के बीच तेल भंडारों से प्रति दिन औसतन 19 लाख बैरल तेल निकाला गया है. ओपेक+ देशों (Organization of the Petroleum Exporting Countries (OPEC)) ने अक्टूबर में अपनी उत्पादन सीमा में किसी तरह का बदलाव नहीं करने का एलान किया. कच्चे तेल के भाव में बढ़ोतरी के पीछे इस घोषणा का भी हाथ रहा है. EIA का अनुमान है कि 2021 के बाक़ी बचे हिस्से में ब्रेंट क्रूड का भाव मौजूदा स्तर के आसपास ही बरकरार रहेगा. EIA के आकलन के अनुसार अक्टूबर 2021 से दिसंबर 2021 के बीच कच्चे तेल का औसत भाव 82 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर बरकरार रहेगा. EIA का विचार है कि 2022 में कच्चे तेल का औसत भाव 72 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहेगा. दरअसल अगले साल ओपेक+ देशों द्वारा तेल उत्पादन में इज़ाफ़े का अनुमान है. इसके अलावा  2022 में अमेरिका में गाढ़े तेल का उत्पादन भी बढ़ने के आसार है. साथ ही दूसरे ग़ैर-ओपेक देशों में भी तेल के उत्पादन स्तर में बढ़ोतरी होने की वजह से तेल की मांग के मुक़ाबले तेल की आपूर्ति का स्तर ऊंचा रहने का अनुमान है. विश्व बैंक के आकलन के अनुसार 2021 में कच्चे तेल की औसत क़ीमत क़रीब 70 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहेगी. वहीं वर्ष 2022 में ये भाव 74 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान है. हालांकि ज़्यादातर अंतरराष्ट्रीय बैंकों के मुताबिक 2021 और 2022 में कच्चे तेल की औसत क़ीमत इससे कहीं ऊंची रहने वाली है.  बैंक ऑफ़ अमेरिका ने 2022 में ब्रेंट क्रूड का भाव 120 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल रहने की संभावना जताई है. गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक साल 2021 के अंत तक तेल की क़ीमतें 90 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच जाएगी और 2022 में 85 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी रहेगी. UBS और IHS Markits ने भी साल 2021 के अंत तक कच्चे तेल का भाव 90 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है.

मई 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा कोविड-19 वैश्विक महामारी की घोषणा के बाद वैश्विक कच्चे तेल की क़ीमतें धराशायी हो गई थीं. 

ईंधन की बढ़ती क़ीमतें

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) के मुताबिक कच्चे तेल की क़ीमतों में लगातार बढ़ोतरी से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के मुक़ाबले चालू खाते के घाटे (CAD) का अनुपात बढ़ सकता है. साथ ही महंगे तेल की वजह से वित्तीय घाटे में भी इज़ाफ़ा हो सकता है. इतना ही नहीं अगर क़ीमतों में बढ़ोतरी का बोझ सीधे अंतिम उपभोक्ताओं पर पड़ने लगे तो महंगाई दर में बढ़ोतरी हो सकती है. RBI की सबसे ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2020 के बाद से पेट्रोल और डीज़ल में महंगाई की दर लगातार दोहरे अंक में रही है. रिपोर्ट के अनुसार कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय क़ीमतों में निरंतर हो रही बढ़ोतरी के चलते पेट्रोल और डीज़ल की महंगाई दर 23.8 प्रतिशत पर बरकरार रही है. अगस्त 2021 के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में पेट्रोल और डीज़ल की महंगाई दर 54.2 फ़ीसदी पर थी. महंगाई में चिंताजनक रूप से हो रही इसी बढ़ोतरी के चलते 4 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार को उत्पाद शुल्क में कटौती का फ़ैसला लेना पड़ा. कमोबेश इसी वजह से राज्य सरकारों द्वारा भी वैट में कटौती किए जाने की उम्मीद है. कच्चे तेल की क़ीमतों में उछाल और महंगाई के मोर्चे पर दबाव वाले हालातों की वजह से ऐसा लग रहा है कि सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स में बढ़ोतरी के लिए अभी एक या दो साल तक इंतज़ार करना पड़ेगा.

Source: PPAC Snapshot of India’s oil & gas data, monthly issues from 2011 to 2021
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

Read More +
Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

Read More +
Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

Read More +